मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

तो रूठे जाटों में पैठ बनाएंगे राजेन्द्र चौधरी!

रालोद के गढ़ पर लगी है समाजवादी पार्टी की नजर
ओ.पी.पाल

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के गढ़ को तोड़ने की सियासत तो समाजवादी पार्टी ने पहले ही कर दी थी। मुजफ्फरनगर व आसपास के जिलों में सांप्रदायिक हिंसा के बाद जाट-मुसलमान गठजोड़ के टूट जाने के बाद यूपी सरकार की कथित रूप से एक तरफा कार्यवाही से फैली नफरत का राजनीतिक लाभ लेने के लिए समाजवादी पार्टी ने रालोद प्रमुख अजित सिंह के मुकाबले जाटों में पैठ बनाने का जिम्मा चौधरी अजित सिंह का सिपहसालार और भरोसेमंद रहे राजेंद्र चौधरी को सौप दिया है। राजेंन्द्र चौधरी अजित का साथ छोड़कर सपा सरकार के कबीना मंत्री हैं और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की खास पसंद और प्रिय भी।
रालोद प्रमुख अजित सिंह के यूपीए सरकार का हिस्सा बनने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी थी, सपा ने इसके लिए सत्ता का सहारा भी लिया और रालोद के गढ़ में सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन का भी ऐलान किया, चाहे वह बागपत व पानीपत के बीच यमुना पर पुल बनाने अथवा किसानों को लाभांवित करने की योजनाएं ही क्यों न हों। यही नहीं रालोद के गढ़ में सपा ने बागपत जिला पंचायत के अध्यक्ष पद पर भी रालोद का तख्तापलट कर सपा को विराजमान कर दिया। इसी राजनीतिक गतिविधियों में सपा ने बागपत लोकसभा सीट पर चौधरी अजीत सिंह के सामने सोमपाल शास्त्री को टिकट थमा दिया था, लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों ने सपा की इस रणनीति पर पानी फेर दिया और सोमपाल शास्त्री ने इस टिकट को ठुकरा दिया। खासकर मुजफ्फरनगर व आसपास की हिंसा के कारण टूटे जाट-मुस्लिम गठजोड़ के बाद मुश्किल में आई सपा ने अपनी रणनीति पलटने में देर नहीं की, क्योंकि जाट और मुसलमान भी सपा से नाराज नजर आने लगा, लेकिन सपा को उम्मीद है कि वह मुसलमानों को मना लेगा, जिसके लिए सपा ने मौलानाओं को लखनऊ बुलाकर इस मुहिम को शुरू कर दिया, लेकिन रालोद द्वारा इन दंगा पीड़ित जाटों की सुध न लिए जाने से नाराज जाटों ने शायद अब नरेंद्र मोदी का मुरीद होकर भाजपा की और रूख करना शुरु कर दिया है। जाटों के बदले रूख को भांपते हुए सपा ने कभी अजित सिंह के सिपहसालार रहे अपने एक मंत्री राजेन्द्र चौधरी को जाटों को अपने पक्ष में करने की जिम्मेदारी सौँप दी है। सूत्रों के अनुसार राजेन्द्र चौधरी को जाटों और किसानों के बीच जाकर पैठ बनाना है, ताकि उन्हें अहसास कराया जा सके कि सपा में ही उनका हित सुरक्षित है। हालांकि यह सियासी दांव इतना आसान नहीं है जितना सपा मानकर चल रही है। शायद यही कारण था कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दंगाग्रस्त क्षेत्रों को दौरा किया था तो राजेन्द्र चौधरी ही उनके सबसे करीबियों में नजर आ रहे थे, जबकि मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री होने के बावजूद आजम खां अभी तक इन इलाकों तक नहीं पहुंच पाए हैं।
खिसकती जमीन से बेखबर अजित
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का खासकर जाट वोटर रालोद प्रमुख अजित सिंह से कुछ विशेष अपेक्षाएं कर रहा है। इसका कारण है कि पहले मुजफ्फरनगर और फिर मेरठ में उभरी नफरत की आग के बाद जाट वोटर कांग्रेस को वोट देना नहीं चाहता और रालोद प्रमुख अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने से बेखबर हैं तो ऐसे में रालोद से बढ़ती जाट समुदाय की दूरी का रूख भाजपा खेमे में उत्साह जगा रही है। हालांकि छोटे चौधरी के साहबजादे कुछ सक्रिय जरूरी हैं,लेकिन इन सबके बीच चल रहे मौजूदा घटनाक्रम पर सपा की तीखी नजरें हैं । वह रालोद की खामोशी का सियासी लाभ हासिल करने में कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है, भले ही उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैली नफरत की आग को थोड़ा बहुत हवा क्यों न देना पड़े। शायद यही कारण है कि सपा ने जाटों में पैठ बनाने के लिए जाट नेता राजेन्द्र चौधरी के रूप में एक मोहरा तैयार कर लिया है, जो चौधरी अजित सिंह के मुकाबले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सक्रिय हो गये हैं।
01Oct-2013

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