गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मसूद के बाद अब लालू पर टिकी निगाहें!

दागियों को बचाने पर बैकपुट पर आई सरकार
ओ.पी.पाल

दागी सांसदों व विधायकों को अयोग्य ठहराने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलने वाले विवादित अध्यादेश पर अपनों से ही घिरी कांग्रेसनीत सरकार ने आखिर उसे वापस ले ही लिया है। इस अध्यादेश के वापस होने से जहां मेडिकल फर्जीवाड़े में चार साल की सजा पाने वाले कांग्रेस के सांसद रशीद मसूद की राज्यसभा सदस्यता खत्म होना तय हो गया है, वहीं अब जेल जा चुके राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को गुरूवार को सुनाई जाने वाली सजा पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। अब मौजूदा करीब ऐसे छह दर्जन सांसदों की सदस्यता पर भी कानूनी तलवार लटक गई है, जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में आने वाले समय में सजा सुनाए जाने की संभावनाएं हैं।
गत दस जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को अनुचित करार देते हुए उसे निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से किसी भी सांसद या विधायक को अदालत से दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिलने पर अयोग्य ठहराया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर लामबंद हुए राजनीतिक दलों के सहारे कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को बदलने के लिए जनप्रतिनिधित्व विधेयक में संशोधन करके सजायाफ्ता सांसदों या विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए यह व्यवस्था की थी कि सजा पाए जाने की स्थिति में उसकी सदस्यता तो बची रहेगी, लेकिन वह भत्ता लेने तथा सदन में मतदान में हिस्सा लेने का अधिकारी नहीं होगा। संसद के मानसून सत्र में सरकार इस संशोधन विधेयक को पारित नहीं करा सकी थी और उसे संसदीय स्थायी समिति के हवाले कर दिया गया था। लेकिन सत्र समाप्त होने के बाद कांग्रेस का हर मौके पर संकट मोचक रहे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में सजा मिलने की तिथि से पहले ही सरकार ने अध्यादेश को मंजूरी दी, जिस पर प्रमुख विपक्षी दल तो बिफरा ही, वहीं कांग्रेस के दिग्गज यहां तक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पिछले सप्ताह शुक्रवार को अध्यादेश के खिलाफ आए बयान से सरकार और कांग्रेस में बवाल खड़ा हो गया। चूंकि प्रधानमंत्री विदेश के दौरे पर थे तो उन्होंने स्वदेश लौटकर बुधवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई, जिसमें इस अध्यादेश और साथ में संशोधित विधेयक को भी वापस करने का फैसला मंजूर किया गया। सरकार के बैकपुट पर आते ही मंगलवार को मेडिकल फर्जीवाड़े में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद काजी रशीद मसूद को चार साल की सजा सुनाए जाने पर उनकी सदस्यता खत्म होना तय हो चुका है। वहीं बिहार के चारा घोटाले मामले में पहले ही जेल जा चुके राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की सजा पर कल गुरूवार को फैसला आना है, जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं।
छह दर्जन सांसदों पर लटकी कानूनी तलवार
राजनीतिक विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोके्रटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच ने वर्ष 2008 से अब तक देश के सांसदों और विधायकों के अपराधिक इतिहास को स्वयं जनप्रतिनिधियों द्वारा दिये गये शपथपत्रों को खंगाला है। इस संस्था के मुताबिक संसद में मौजूदा ऐसे 72 सांसद हैं जिनके खिलाफ ऐसे गंभीर आपराधिक मामलें लंबित हैं जिनमें दो साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है। यदि अदालत से उन्हें सजा सुनाई जाती है तो उन्हें भी संसद की सदस्यता से वंचित होने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इनमें सर्वाधिक 18 भाजपा, 14 कांग्रेस, आठ समाजवादी पार्टी छह बहुजन समाज पार्टी, चार अन्नाद्रमुक, तीन जनता दल-यू तथा दो माकर््सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के दो सांसद शामिल हैं। जबकि 17 अन्य दलों के सांसद इस दायरे में हैं, जिन्हें उनके लंबित अपराधों के आधार पर सजा सुनाए जाने की स्थिति में अयोग्य ठहराया जा सकता है। एडीआर के संस्थापक प्रो.जगदीश छोकर ने बताया कि लोकसभा चुनाव-2009 और 2008 के बाद से हुए विधानसभा चुनावों में चुने गए 4,807 संसद सदस्यों के विश्लेषणों के आधार पर 30 प्रतिशत सदस्य (1460) आपराधिक मामलों में आरोपी पाए गए। इनमें से 688 संसद सदस्यों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। छोकर ने कहा कि लोकसभा के 543 सांसदों में से 162 के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, जिनमें 72 सदस्यों के खिलाफ ऐसे गंभीर मामले हैं जिनमें दो या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है।
हरियाणा के दर्जनभर विधायकों की फूली सांसे
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक दस साल की सजा होने के बावजूद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व और उनके पुत्र अजय चौटाला के साथ उन्हीं की पार्टी के शमशेर बढशामी की सदस्यता जाने का खतरा तो नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय स्पष्ट कर दिया था कि यह निर्णय दस जुलाई से पहले मिली सजा पर लागू नहीं होगा, लेकिन इनके अलावा 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा के एक दर्जन से ज्यादा विधायक ऐसे हैं जिनकी अध्यादेश वापस होने से सांसे फूलने लगी है यानि उनके खिलाफ गंभीर अपराधिक मामले लंबित हैं। हरियाणा के ऐसे विधायकों में गोपाल कांडा, अभय चौटाला, सुखबीर सिंह कटारिया, रामकिशन गुर्जर, जिलेराम शर्मा, ओपी जैन, रामकिशन फौजी, जलेब खान, संपत सिंह, रामनिवास, विनोद भायना, जनरल  सिंह, नरेश कुमार प्रमुख रूप से शामिल हैं।
03Oct-2013

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