शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

बदले सियासी समीकरण से रालोद बेचैन!


दांव-पेंचः-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटने से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को झटका
ओ.पी.पाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ को मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में हुए दंगों ने जिस तरह से तार-तार कर दिया है उससे राष्ट्रीय लोकदल की सियासी बिसात को गहरा झटका माना जा रहा है, जिसके कारण रालोद की आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को गहरा झटका भी लगा है, जिसने रालोद की बैचेनी को बढ़ाने का भी काम किया है।
राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख और केंद्रीय नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह को भी जाट-मुस्लिम समीकरण टूटने का अहसास हो चुका है। चार दिन पहले ही जब अजित सिंह मुजफ्फरनगर गये तो उन्हें अपने ही वोट कैडर यानि जाटों के विरोध का सामना भी करना पड़ा, जिसका कारण था कि चौधरी अजित सिंह दंगों के ठीक एक महीने बाद इस क्षेत्र में गये थे, जहां दंगों ने रालोद के वोट बैंक जाट-मुस्लिम को तो तोड़ा ही है, वहीं जाट भी रालोद प्रमुख के प्रति नाराजगी जताते नजर आए। राजनीतिकारों की माने तो ऐसे में रालोद प्रमुख की आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। यह सर्वविदित है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की राजनीतिक बिसात जाट-मुस्लिम समीकरण के सहारे ही बिछती रही है, जो इस बार टूटकर तार-तार हो चुकी है। मसलन मुस्लिम वोट बैंक रालोद से पूरी तरह खिसक गया है और जाटों का रूख भी फिलहाल रालोद के पक्ष में नहीं है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि जाटों का रूख पूरी तरह से भाजपा की और जा रहा है? ऐसी संभावना पर रालोद कम से कम जाटों को मनाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन यह तय हो चुका है कि मुस्लिम वोट बैंक रालोद की झोली में जाने वाला नहीं है। अब रालोद के पास जाट आरक्षण ही एक ऐसा हथियार है जो रालोद को संजीवनी दे सकता है, लेकिन इस स्थिति को कांग्रेस भी भांप रही है और जाटों के रूख को देखते हुए वह जाट आरक्षण के मुद्दे पर पुनर्विचार करके रालोद को ठेंगा भी दिखा सकती है। जहां तक मुस्लिम वोटों का सवाल है वह फिलहाल समाजवादी पार्टी से भी नाराज है लेकिन यूपी की सपा सरकार उन्हें इन दंगों के लिए ज्यादा पीड़ित मानकर उन्हें तरह-तरह की योजनाओं से रिझाने का प्रयास कर रही है, लेकिन मुस्लिमों की नजरे इससे पहले राज्य में बसपा के शासनकाल की तरफ भी मुड़ी हैं जिसने न तो सूबे में दंगा ही होने दिया और सपा शासन के मुकाबले बसपा शासनकाल में प्रशासन भी कभी लापरवाह नजर नहीं आया। इसलिए बसपा को आगामी लोकसभा चुनाव में बिना किसी प्रतिक्रिया के लाभ मिल सकता है, लेकिन कांग्रेस भी रालोद व सपा से खिसकते मुस्लिम वर्ग को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है।
रालोद के सामने बड़ी चुनौती
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने परंपरागत वोट बैंक जाट-मुस्लिम समीकरण के खिसकने के कारण रालोद के सामने बड़ी राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है। वर्ष 2009 में देश में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान जाट-मुस्लिम गठजोड़ के कारण ही रालोद के खाते में सात में से पांच सीटें आई थी और इसके अलावा रालोद को भाजपा के साथ गठबंधन का सहारा लगा था, लेकिन इस बार के चुनाव में रालोद प्रमुख अजित सिंह की आने वाले दिनों में मुश्किलें इसलिए भी बढ़ती नजर आ रही हैं क्योंकि चौधरी अजित सिंह को गत आठ अक्टूबर को मुजफ्फरनगर में अपनों के ही ताने सुनने के लिए मजबूर होना पड़ा और चौधरी अजित सिंह को यहां तक नसीहत दी गई कि जब मुजफ्फरनगर जल रहा था तो वह कहां थे। अजित सिंह ने भले ही उन्हें सौ सफाई दी हों, लेकिन वह मौजूदा राजनीतिक हालातों को भी महसूस करने से नहीं चूके। इसलिए छोटे चौधरी के लिए आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ सकती हैं और इसमें भी संदेह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में हासिल की गई सीटों को बचा पाएंगे? इसका कारण है कि इस बार रालोद के साथ भाजपा भी नहीं है, हालांकि रालोद अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात भी कह रही है, जबकि उसका परंपरागत जाट-मुस्लिम समीकरण बिखर चुका है। यह राजनीतिक समीकरण आने वाले दिनों में किस करवट बैठेगा इस पर नजरें लगी हुई हैं।
कोई हाथ मिलाने को तैयार नहीं
राजनीतिकारों का मानना तो यह है कि जाट बिरादरी को ऐसा लग रहा है कि कवाल में हुई घटना के बाद यदि छोटे चौधरी आकर दोनों समुदायों के बीच मिल बैठकर मामला शांत करा देते तो शायद इतने बड़े पैमाने पर हिंसा नही होती। लेकिन अजित सिंह के लिए इस बार परिस्थितियां विपरित हैं। सूत्रों के अनुसार रालोद इस बार भी भाजपा की तरफ बढ़ना तो चाहती है, लेकिन भाजपा इस बार उनसे हाथ मिलाने के लिए तैयार नहीं है। राजनीतिक जानकारों की माने तो ऐसी परिस्थितियों में रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को अपनी बागपत लोकसभा सीट को बचाने के लिए भी नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं, जबकि उनके सुपुत्र का मथुरा में विरोध होने के कारण वह फतेहपुर सीकरी की और रूख कर सकते हैं, जो इतना आसान भी नहीं है।
12Oct-2013

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