सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: समाज के बिना साहित्य की कल्पना संभव नहीं: डा. सुभाष रस्तोगी

महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुभाष रस्तोगी 
जन्म: 17 अक्टूबर 1950 
जन्म स्थान: अम्बाला छावनी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (हिन्दी), पीएचडी 
संप्रत्ति: भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन कार्य संपर्क: फ्लैट नं. 14-ए डिवाइन अपार्टमेंट्स, विकास नगर, वार्ड नं. 12, बलटाना, जीरकपुर(पंजाब)-140604 मोबाइल: 089689-87259, ईमेल: subhashrastogi65@gmail.com ---- 
रियाणा के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार और समीक्षक डा. सुभाष रस्तोगी उन साहित्यकारों में शामिल हैं, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर लेखन करते हुए समाज को नई दिशा देने के मकसद से साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकों की रचनाएं करने वाले सुभाष रस्तोगी को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए हरियाणा अकादमी ने महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत किया। इससे पहले अकादमी उन्हें बालमुकुन्द गुप्त सम्मान और पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से भी नवाज चुका है। पंजाब में भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त डा. सुभाष रस्तोगी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने संघर्षपूर्ण जीवन और साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जो ये साबित करते हैं कि संघर्ष के बाद आने निष्कर्ष स्वर्णिम जीवन की गाथा लिख सकता है। 
रियाणा के अंबाला छावनी में एक मध्य वर्गीय परिवार में 17 अक्टूबर 1950 को जन्मे डा. सुभाष रस्तोगी का बचपन बहुत ही अभावों के बीच बीता। इसी बचपन में उनको परिवार में पुस्तकें पढ़ने का माहौल मिला। इसकी सूत्राधार और कोई नहीं उनकी माता रही, जिनके पास पुस्तकों का भंडार था। मां के किताबी भंडार से देशभक्त और क्रांतिकारियों के जीवनियां व अध्यात्मिक वाली किताबों को सुभाष अपनी पाठ्यक्रम की किताबों के बीच रखकर पढ़ने लगे। उन्हें लेखन और साहित्यिक संस्कार का माहौल अपनी मां से ही मिला। वहीं घर में पिता के अनुशासन ने उन्हें ऐसे संस्कार दिये कि जो उन्हें किस्से व कहानी तक सुनाते थे। शायद किताबे पढ़ने और आदर्श और जीवन मूल्य से भरी कहानी किस्से सुनते सुनते सुभाष रस्तोगी को लेखक की कल्पना के पंख लगने लगे। वे इन साहत्यिक उपलब्धियों का श्रेय अपनी पत्नी सरोजनी को भी देते हुए कहते हैं कि उनकी जीवन-संगनी सरोजिनी उन्हें घर परिवार की चिंताओं से मुक्त करके हर बार शब्द की पदयात्रा पर निकलने के लिए उपयुक्त माहौल और प्रेरणा न देती, तो शायद वह एक कदम भी न चल पाते। उनके संघर्ष और जीवट को अनंत छवियां उन्होंने अपनी कविताओं और कहानियों में भी समायोजित किया है। इन्हीं पंखो से उड़ान भरते हुए आज उनका साहित्यिक सफर बुलंदियों पर है। रस्तोगी की पहली कविता ‘रात के अंधेरे में’ शीर्षक से साल 1969 में हरियाणा की एक पत्रिका में प्रकाशित हुई, जो वर्ष 1971 में प्रकाशित उनके पहले कविता संग्रह 'टूटा हुआ आदमी' में भी शामिल हुई। उनके पहले कविता संग्रह प्रकाशित होने पर उनकी मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। इसके बाद 1972 में 'और जीवन छल गया' तथा 'अग्निदेश' जैसे प्रारंभिक कविता-संग्रह प्रकाशित होने से उनके साहित्य के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद वर्ष 1974 उपन्यास 'टूटे सपने' तथा वर्ष 1975 में कहानी संग्रह 'ठहरी हुई जिन्दगी' प्रकाशित हुए। 
संघर्ष में ही जीवन की राह 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का मानना है कि लेखक का साहित्यिक सफर उसके व्यक्तिगत जीवन से अलग नहीं होता। कालेज के दिनों में तो उन्हें लोहे के चने चबाने जैसे मोड से भी गुजरना पड़ा। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से भी उनका जीवन बेहद ही अभावों के बीच संघर्षपूर्ण बीता। बिजली न होने पर घर में लालटेन में पढ़कर परीक्षा दी। हालात यहां तक थे कि उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने बचे हुए समय में टयूशन पढ़ाया। उनका मानना है कि ऐसा संघर्ष की विपरीत परिस्थितियों में किसी भी इंसान की शक्ति और ऊर्जा के लिए सकारात्मक रास्ता मिल ही जाता है, जिसे वे भी अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं। डा. सुभाष रस्तोगी ने बताया कि पढ़ाई और खर्च के लिए टयूशन पढ़ाने के बीच उनके लेखन का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा। इसी दौरान उन्होंने इन्हीं दिनों पारसी थिएटर की तर्ज पर 'पागल ग्रेजुएट' (नाटक) तथा 'अभागा' शीर्षक से एक उपन्यास भी लिखा। इस नाटक का अम्बाला छावनी में मंचन भी हुआ और खूब वाहवाही भी लूटी। वे जीवन में जैसे पडावों से गुजरे हैं, उसी के नक्स उनके लेखन में साफतौर से देखे जा सकते हैं। 
र्व हिताय में निहित साहित्य 
डा. रस्तोगी का कहना है कि साहित्य लेखन समाज के हित में होता है, इसलिए समाज को नजरअंदाज करके किसी भी तरह के लेखन की कल्पना करना बेमाने है। लेखन अपने समय का आईना होता है, तो मशाल भी होता है जो अपने समय को रास्ता भी दिखाता चलता है। लेखक वास्तव में बार बार अपने जीवन और समाज की ओर ही लौटता है। कब कौन सी घटना कविता या कहानी की शक्ल में कागज पर उतर जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं होता। उनका मानना है कि उनके लेखन के जरिए आप मेरे जीवन की तमाम अंसगतियों व विसंगतियों के आर पार सहजता से झांक सकते हैं। 
हिंदी साहित्य की स्थिति सुखद 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का इस आधुनिक युग साहित्य की स्थिति के बारे में कहना है कि भारतीय भाषाओं की तुलना में हिंदी साहित्य की वर्तमान स्थिति प्रत्येक दृष्टि से सुखद है, बल्कि हिंदी भाषा का साहित्य आज वैश्विक स्तर पर अलग से पहचाना जाता है। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हर लिखी चीज साहित्य नहीं हो सकती और हर छपी चीज पुस्तक भी नहीं हो सकती। प्रत्येक साहित्यिक विद्या में कथागत और कहनगत नए नए प्रयोग होने के साथ इस युग में कई नवयुत्तर विद्याए भी उभरकर सामने आई हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि काल की छलनी बड़ी निर्ममता से छानती है। मसलन हिंदी साहित्य का वर्तमान रचना और आलोचना दोनों दृष्टि से आवश्वत करता है। हिन्दी साहित्य का यदि विधागत मूल्यांकन की दृष्टि को देखें, तो शोध की स्थिति साहित्यिक समालोचना की स्थिति भी संतोषजनक है। जहां तक हरियाणा के साहित्यकारों की रचनाओं और कृतियों का सवाल है, सूबे के साहित्य का अपना स्वतंत्र इतिहास है और वैज्ञानिक दृष्टि से नित्य उसका मूल्यांकन भी होता है। यहां साहित्यिक समालोचना के साथ नए आयाम और शोध कार्य भी लगातार हो रहे हैं। 
सोशल मीडिया का कुप्रभाव 
साहित्य क पाठक वास्तव में ही कम हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रानिक यानी सोशल मीडिया है, जो अनर्गल शब्दों ने परंपरागत भारतीय परिवाद की चूलें तक हिलाने का काम किया। इसके कारण परिवारिक रिश्तों पर ही सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। भारतीय समाज के लिए सबसे ज्यादा संकट और चिंता की स्थिति तो ये है कि इस युग में भाषा की नैतिकता का बहुत ही ज्यादा पतन हो रहा है। जहां तक युवाओं में साहित्य के प्रति रुझान कम होने का सवाल है इसका कारण भी यही है, जिसमें यही सच है कि कि आज के युवाओं में साहित्य पढ़ने के संस्कार संभव नहीं हैं। आधुनिक युग में युवाओं की प्राथमिकताएं इतनी तेजी से बदल रही हैं, जिसके लिए परिवार को भी कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। पहले बच्चों को जन्मदिन पर अच्छी किताबे उपहार में देने का चलन था, जो अब नहीं है। किताबों से जुड़ना अपनी जहां से जुड़ना है। यदि भारतीय परिवार पुन: अपनी जड़ो से जुड़ेगा तो किताबों का मूल्य भी फिर से उनकी समझ में आ जाएगा। अब भी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं की कमी नहीं है। यदि ऐसी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाएं परिवार में आने का चलन बढ़ेगा तो निश्चय ही युवाओं को पुन: साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। इसी के कारण साहित्य में लेखन के स्तर पर गिरावट आज रही है। लेखक रातो रात स्वयं को साहित्यिक परिदृश्य में साहित्यकार के तौर पर स्थापित करने की ललक ओर होड़ भी इसका मुख्य कारण है। 
युवाओं के प्रेरणादायक 
साहित्यकार डा. सुभाष रस्तोगी के साहित्य लेखन की गुणवत्ता और सर्वहिताय की परिकल्पना वाले सहित्य की ही उपलब्धियां है कि उनकी कविताएं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वहीं दिल्ली सरकार की सातवीं और आठवीं तथा पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड की ग्यारहवीं कक्षा की हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में शामिल कविताएं छात्र-छात्राओं को प्रेरणा दे रही हैं। यही नहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा उत्तर भारत के कई विश्वविद्यालयों में उनके व्यक्तित्व एवं कृतियों पर केन्द्रित एमफिल तथा पीएचडी हेतु विद्यार्थियों ने शोध कार्य भी किया है। 
पुस्तकें व रचनाएं 
साहित्यकार एवं कवि सुभाष रस्तोगी की अब तक हिन्दी की विभिन्न विद्याओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 18 कविता-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास, 5 जीवनी, एक संस्मरण संग्रह तथा 5 समालोचना ग्रंथ सम्मिलित हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं के कविता संग्रह में टूटा हुआ आदमी, और जीवन चला गया, अग्नि-देश, कत्ल सूरज का, वक्त की साजिश, अपना अपना सच, पटकोण, तपते हुए दिनो के बीच, बयान मौसम का, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशनी होती चीजे, समय के सामने, मेरी प्रिय कविताएं, रास्ता किधर से है, अंधेरे में कत्थक, आदमी जो चौंक उठता है नींद में, सुभाष रस्तोगी की प्रेम कविताएं जैसी पुस्तकें सुर्खियों में हैं। संपादक डॉ. लालचन्द शुम 'मंगल', 'यह कैसा दृश्यान्तर है' (लम्बी कविताएँ) के अलावा कविता, व्यंग्य एवं आलोचना की नौ संपादित कृतियां प्रकाशित हैं। अमर क्रांतिकारी सुखदेव (जीवनी) तथा अंधेरे में कत्थक (कविता-संग्रह) का पंजाबी में अनुवाद भी हुआ है। डॉ. सोमदत्त अत्री द्वारा लिखित 'सुभाष रस्तोगी का रचना संसार' शीर्षक से एक आलोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित हुआ। वहीं हरियाणा साहित्य अकादमी की 'हरिगंधा' (मासिक) फरवरी 2019 के 'रचना-प्रक्रिया विशेषांक' का अतिथि संपादन करने का भी उन्हें अवसर मिला। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला द्वारा वर्ष 2020 के लिए डा. सुभाष रस्तोगी को पांच लाख रुपये के महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें साल 2016 का पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान तथा साल 2010 का बाबू बालमुकुन्द गुप्त साहित्य सम्मान से भी अलंकृत कर चुकी है। इसके अलावा अकादमी ने उनकी पाँच कृतियाँ भी पुरस्कृत की हैं। 
31Oct-2022

मंडे स्पेशल: पढ़ाई व रोजगार की तलाश में विदेशों का रुख करते हरियाणा के युवा

सरकार ने भी विदेश में रोजगार के लिए बनाई प्रोत्साहन नीति 
विदेशों के नाम पर ठगी के बर्बाद भी हो रहे हैं हरियाणावासी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य युवाओं को सेना में भेजने के लिए विख्यात है, लेकिन प्रदेश में महंगी होती शिक्षा और बढ़ती बेरोजगारी अब युवाओं को पढ़ाई और रोजगार के लिए अमेरिका, कनाड़ा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशो की तरफ जाने के रास्ते पर मोड़ती नजर आ रही है। युवाओं के विदेश की तरफ रुख करने का यह भी मुख्य कारण है कि यहां उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा। इसलिए जहां इससे पहले ज्यादातर जमींदार या व्यापारी वर्ग ही अपने बच्चों को पढ़ाई या नौकरी के लिए विदेश भेजते थे, लेकिन अब नौकरीपेशा लोग भी अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए उन्हें विदेश भेज रहे हैं। यही नहीं राज्य सरकार ने भी प्रदेश के युवाओं को विदेश में नौकरी दिलाने की दिशा में इतना प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया है कि प्रवासी प्लेसमेंट सेल का गठन करके उसे प्रदेश में स्थापित 'विदेश सहयोग विभाग' से जोड़ दिया है। दूसरी तरफ युवाओं को विदेश भेजने के नाम पर प्रदेश के लोग फर्जी ट्रेवेल एजेंडों की ठगी का शिकार भी हो रहे। इस कारण कई ऐसे परिवार बर्बादी के कगार पर है जिन्होंने अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए जमीन जायदाद सब बेचकर सुनहरे सपने संजाएं थे। 
भारतीय छात्रों के विदेशों में अध्ययनरत छात्रों को लेकर रेडसीयर नाम की कंसल्टिंग फर्म की एक रिपोर्ट के अनुसार इस मौजूदा साल मार्च तक वर्तमान में विदेशों में अध्ययनरत 7,70,000 भारतीय छात्र हैं, जिनकी संख्या वर्ष 2016 में 4.40 लाख थी, इस प्रकार इन सात सालों में विदेशों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश जाने वाले छात्रों में 20 फीसदी से ज्यादा इजाफा देखा जा रहा है। जबकि विदेशों में कोरोना काल के दौरान विदेशों में भारत के 11,33,749 छात्र पढ़ रहे थे, जिसमें कनाडा में सर्वाधिक छात्र 2,15,720, अमेरिका में 2,11,930, ऑस्ट्रेलिया में 92 हजार से ज्यादा तथा सऊदी अरब में करीब 81 हजार भारतीय छात्र थे। इसके बाद यह संख्या कम हुई, लेकिन विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए युवाओं का रूझान ज्यादा है। हालांकि विश्व में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के मामले में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। इसके बावजूद शिक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि रोजगार के लिए भारत से बड़ी संख्या में खासतौर से युवा विदेशों का रुख कर रहे हैं। जहां तक हरियाणा के विदेश में रह रहे लोगो का सवाल है, उसमें हरियाणा के भी दस हजार से ज्यादा छात्र विदेशों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए सात समंदर पार रह रहे हैं। दूसरी ओर भारत में भी कम से कम 168 देशों के छात्र भारत में शिक्षा ले रहे हैं, जिनमें करीब हरियाणा में दो हजार से ज्यादा विदेशी छात्र अध्ययनरत है। 
सरकार भी दे रही है प्रोत्साहन 
देश के हरियाणा सरकार ने प्रदेश के युवाओं के लिए विदेशों में शिक्षा और रोजगार को एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता में शामिल करने का दावा किया है। इसके मद्देनजर ही प्रदेश में 'इंटरनेशनल हरियाणा एजूकेशन सोसायटी' के 'आनलाईन प्रशिक्षण कार्यक्रम' का शुभारंभ किया गया है। वहीं 'विदेश सहयोग विभाग' स्थापित करने के बाद हरियाणा सरकार द्वारा स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा उतीर्ण किए जाने के साथ युवाओं के निशुल्क रूप से पासपोर्ट भी बनवाए जा रहे हैं। नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सरकार दूसरी भारतीय भाषा और विदेशी भाषाओं को सीखने पर भी बल दे रही है। हरियाणा के युवाओं के लिए 'इंटरनेशनल हरियाणा एजूकेशन सोसायटी' द्वारा प्रारंभ किए गए 'आनलाईन प्रशिक्षण कार्यक्रम' के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'साफ्ट स्किल्स' को महत्व देते हुए हरियाणा कौशल विकास मिशन' व 'श्री विश्वकर्मा कौशल विकास विश्वविद्यालय' जैसे करीब चार दर्जन औद्योगिक प्रतिष्ठानों के साथ 'कौशल प्रशिक्षण' के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किये हैं। 
विदेशों में सस्ते कोर्स 
हरियाणा सरकार ने वर्ष 2020 में नई नीति तय कर उच्च शिक्षा की फीस कई गुना बढ़ा दी और एक साल के लिए फीस करीब 10 लाख रुपए तय की, जो अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। हालांकि, एमबीबीएस कोर्स करने वाले छात्रों के लिए राज्य सरकार द्वारा ऋण की ऐसी व्यवस्था की गई है कि यदि कोई छात्र अपनी पढ़ाई और इंटर्नशिप पूरा करके सरकारी नौकरी के लिए चयनित हो जाता है, तो सरकार उसके ऋण की किश्तों का भुगतान करेगी। लेकिन इस नई नीति के बाद बड़ी संख्या में टॉपर बच्चे भी सस्ते अध्ययन के लिए राज्य में प्रवेश लिए बिना दूसरे राज्यों या विदेश जा रहे हैं। इससे पहले प्रदेश में एमबीबीएस की फीस 53,000 रुपये सालाना थी। शायद इसलिए अब प्रदेश के युवा पढ़ाई करने और नौकरी करने के लिए इसलिए विदेशों का रुख कर रहे हैं। एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए छात्र यूक्रेन, रूस, चीन, फिलीपींस, कजाकिस्तान, जॉर्जिया, किर्गिस्तान, नेपाल और मलेशिया जाते हैं। हरियाणा में एमबीबीएस की ऊंची फीस का असर यह है कि पिछले एक साल में राज्य के छात्र यूक्रेन और चीन चले गए हैं। अकेले यूक्रेन में पिछले साल 500 से ज्यादा बच्चे यहां से एमबीबीएस करने गए थे। इसी तरह चीन में भी हर साल युवा कोर्स के लिए जा रहे हैं। इन देशों में यह डिग्री 16 से 25 लाख में पूरी होती है। अकेले यूक्रेन में प्रदेश के 2000 से ज्यादा युवा एमबीबीएस कर रहे थे, जो रूसी आक्रमण के बाद यूक्रेन से लौटे हैं। 
राज्य में मेडिकल की 1850 सीटे 
हरियाणा में 5 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। इनके अलावा, एक सरकारी सहायता प्राप्त और सात निजी मेडिकल कॉलेज हैं। राज्य में कुल 1850 सीटें हैं, हालांकि राज्य सरकार सीटों को बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि राज्य में हर साल लाखों युवा नीट का पेपर देते हैं। दूसरी ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री यहां के युवाओं की स्वास्थ्य शिक्षा को सरकार की प्राथमिकता बताकर यह भी ऐलान कर चुके हैं कि हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए काम किया जा रह है। एमबीबीएस की सीटें पहले के मुकाबले बढ़ाई गई जा चुकी है। वहीं पीएम मोदी ने भी निजी मेडिकल कॉलेजों से फीस कम करने का आव्हान किया है, ताकि युवाओं को पढ़ाई के लिए बाहर न जाना पड़े। 
विदेशों में निजी नौकरी 
प्रदेश के लोग निजी रोजगार हासिल करने के लिए भी विदेश जा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार पिछले तीन साल में पैसा कमाने के इरादे से देश के जुलाई 2022 तक रोजगार या कार्य के लिए 13 लाख से ज्यादा लोगों को 18 ईसीआर देशों के लिए विदेश जाने की मंजूरी दी है, जिसमें हरियाणा के 1349 लोग पंजीकरण कराकर विदेश में नौकरी के लिए गये हैं, इनमें पिछले एक साल में नौकरी के लिए 94 लोगों को विदेश जाने का मौका मिला। साल 2020 में 314, 2021 में 459 तथा 2022 के दौरान जून तक 354 हरियाणवी लोगों को उत्प्रवास की मंजूरी दी गई है। सरकार ने इस दौरान 18 ईसीआर देशों के लिए विदेश जाने की मंजूरी दी गई है।
विदेशों में उत्पीड़न का शिकार 
हरियाणा के ऐसे 57 लोगों की विदेशों में 2017 से जून 2022 तक भारतीय मिशन में उत्पीड़न होने की शिकायत दर्ज कराई है। प्रदेश के इन पीड़ित अप्रवासियों मलेशिया में 13, यूई में नौ, केएसए व ईसीएनआर देशों में सात-सात लेबनान में पांच, मलेशिया में 13, ओमान, जॉर्डन, कुवैत व ईरान में दो-दो, चीन, इंडोनेशिया, कतर, ईराक, थाईलैंड, यूएसए, कनाडा में एक-एक व्यक्ति के सामने रोजगार समस्या का सबब बना हुआ है। हालांकि भारत सरकार विदेशों में मौजूद भारतीयों की सुरक्षा व उनके कल्याण के लिए भारतीय मिशन और सामुदायिक कल्याण अनुभाग स्थापित किये हुए हैं। दरअसल विदेशों में शिक्षा ग्रहण के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में लाखों भारतीय छात्रों के वीजा की मंजूरी नहीं दी जाती, जिसके लिए वे शार्टकट अपनाकर वीजा लेने के लिए वे ऐसे एजेंटों के चुंगल में फंस जाते हैं, जिसकी वजह से वह विदेशों में परेशानियों में घिर जाते हैं। 
ठगी से बचाव पर गंभीर सरकार 
हरियाणा सरकार ने युवाओं को विदेश भेजने के नाम पर ठगी करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए जहां इमीग्रेशन फ्राड के बढ़ते मामलों पर अंकुश लागाने के लिए छात्रों तथा अन्य लोगों को विदेश भेजने के लिए अधिकृत ट्रैवल एजैंटों की सूची जारी की गई है। वहीं एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है, जिसने इस वर्ष 15 अक्तूबर तक राज्य में विदेश भेजने के नाम पर ठगी के 486 मामलों में 634 लोगों को गिरफ्तार करके उनके कब्जे से 20 करोड़ रुपए से अधिक राशि जब्त की है। शुरू में तो कुछ ही जिलों से अवांछित तत्वों द्वारा ठगी की शिकायतें मिल रही थीं परंतु अब लगभग समूचे हरियाणा से ही इस तरह की शिकायतें आ रही हैं। 
ये हो सकता है सही रास्ता 
युवाओं को आइईएलटीएस (इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम) में अच्छे बैंड लाकर सही रास्ते पर चलकर अपने सपने को साकार करना चाहिए। कनाडा में छह बैंड और इससे ऊपर वाले युवाओं को वीजा मिलता है। इसके साथ एलएमआइए (लेबर मार्केट इंपेक्टट एसेसमेंट) से भी विदेश जा सकते हैं। एसडीएस (स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम) प्रोग्राम में युवा विदेश में जाते हैं। इसके अलावा नान एसडीएस में लोग विदेश में जाते हैं। दोनों में फंड का अंतर होता है। 
31Oct-2022

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: देहाती ने हरियाणवी रागनी गायन शैली का सात समंदर तक बजाया डंका

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित रंगमंच लोक गायक प्रेमसिंह देहाती 
---ओ.पी. पाल 
हरियाणवी लोक संस्कृति और लोक कला को वैश्विक पहचान देने वाले लोक कलाकारों और गीतकारों ने अपनी प्रतिभा के बल पर सात समंदर तक लोहा मनवाया है। ऐसे ही लोक कलाकारों में हरियाणवी लोक संस्कृति में संगीत नाटक अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित रंगमंच कलाकार और लोक गायक प्रेम सिंह देहाती ने गुरु पंरपरा का निर्वहन करते हुए सात समंदर तक की रागनी गायन शैली के ऐसे रंग बिखेरे हैं। हरियाणवी लोक संस्कृति और कला की विरासत को संजोकर लोगों तक पहुंचाने वाले इस लोक कलाकार ने हरियाणा लोक कला और संस्कृति को जीवंत रखने के मकसद से हरियाणवी फिल्मों के अलावा वॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी रागनी गायन शैली में एक अभिनेता और गायक दोनों के रूप में अहम भूमिका निभाई है। हरियाणवी लोक गायकी और रागनी गायन शैली में आकाशवाणी द्वारा ए-ग्रेड श्रेणी के घोषित लोक कलाकार प्रेम सिंह देहाती ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए विश्वभर में विख्यात हरियाणवी लोक संस्कृति और सभ्यता को भूलती जा रही युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों के संस्कारों को ग्रहण करने पर बल दिया है। 
विरासत में मिली लोक कला 
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणवी रागनी गायन शैली में अपनी गायकी और अभिनय कला का प्रदर्शन कर एक रंगमंच कलाकार और लोक गायक के रूप में लोकप्रियता हासिल करने वाले प्रेम सिंह देहाती का जन्म रोहतक शहर के निकटवर्ती बोहर गांव में 5 फरवरी 1954 को हुआ। खासबात ये है कि उन्हें लोक संगीत, गायन, नृत्य व अभिनय शैली अपने परिवार में विरासत में मिली। प्रेम देहाती ने बातचीत के दौरान बताया कि उनके पिता, ताऊ, चाचा अपने जमाने के बहुत अच्छे लोक कलाकार के रुप में पहचाने गये हैं। लोक संस्कृति और कला की उसी विरासत को उन्होंने बचपन में ही आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। गांव के स्कूल में पंचायती खेलकूद के दौरान सांगियों व रागनी कलाकारों के साथ वह भी ज्यादातर मंचों से इस गायन शैली में गाने लगे। जिला स्तर पर नृतक मंडली में गांवों में होने वाले नाटकों के मंच पर एक कलाकार, नाटक गीत और भजन गायन ने उन्हें इस कला में परिपक्व बना दिया। 
ऐसे मिली मंजिल 
प्रेम देहाती ने बताया कि परिवार की इस कला विरासत को उन्होंने पेशेवर के रुप में अपनाने के मकसद से पारंपरिक रंगमंच और लोक कला में अपना प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। हालांकि शिक्षा के मामले में वे मैट्रिकुलेशन तक ही पढ़ाई कर पाये, लेकिन लोक संगीत को लेकर वे हमेशा संवेदनशील रहे और उसी का परिणाम था कि इसी कला के आधार पर वर्ष 1973 में वह चयन बोर्ड के माध्यम से लोक संपर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग हरियाणा में ग्रामीण समुदाय रंगमच के लिए गुडगांव में नियुक्त हो गये। इसी साल आकाशवाणी दिल्ली से वे लोक संगीत और दूरदर्शन से देहाती कार्यक्रम से पास हुए। यहीं से उन्हें अपने नाम प्रेम सिंह के साथ देहाती सरनेम का नाम मिला। 29 फरवरी 2012 को वे रेडियो प्रेस एवं संपर्क अधिकारी कार्यालय रोहतक में हारमोनियम परफोर्मर एवं सांस्कृतिक समन्वय के पद से सेवानिवृत्त हुए। फिलहाल वे हरियाणा कला परिषद एवं लख्मीचंद फॉक फाउंडेशन के साथ जुड़कर लोक संस्कृति कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने में जुटे हैं। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला की चयन समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में भी कार्य किया। 
फिल्मों में गायक व अभिनेता की भूमिका 
हरियाणा के लोक कलाकार प्रेम देहाती ने जहां हरियाणवी फिल्मों, डॉक्यूमेंट्री और नाटकों में अभिनय व गायकी कला का प्रदर्शन कर शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को आकर्षित किया है, वहीं उन्होंने बालीवुड में सुप्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक एवं संगीतकार विशाल भारद्वाज की फिल्म मटरु की ‘बिजली का मंडौला’ में लोक गायन शैली में चार गीत गाए और फिल्म में अभिनय किया। हाल ही में राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत बॉलीवुड अभिनेता एवं फिल्म निर्देशक यशपाल शर्मा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दादा लखमी’ में गायन व अभिनय जैसी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जबकि हरियाणवी फिल्मों-चन्द्रो, जर जोरु और जमीन तथा जाटणी में पार्श्व गायन व अभिनय करके हरियाणवी लोक संस्कृति के विस्तार में योगदान दिया। इसके अलावा उन्होंने हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित सांग ‘शाही लकड़हारा’ और ‘ज्यानी चोर’ तथा प्रख्यात आधुनिक थियेटर निर्देशक बलवंत गार्गी द्वारा निर्देशित हरियाणवी नाटक ‘शरबती’ के अलावा विलायत जाफरी द्वारा निर्देशित ध्वनी एवं प्रकाश कार्यक्रम ‘आंगन में चांदण’ तथा ‘कल और आज’ में अभिनय तथा पार्श्व गायक की विशेष भूमिका निभाई है। प्रसिद्ध संगीतकार रविन्द्र जैन, प्रसिद्ध गायिका श्रीमती दिलराज कौर, सविता साथी जैसे कलाकारों के साथ फिल्म में गायन किया। वहीं उन्होंने सुखदेव द्वारा द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंटरी में देशभक्ति गीत हरियाणवी गायन शैली में गाया है। 
टीवी व रेडियो कलाकार 
उन्होंने आकाशवाणी केंद्र नई दिल्ली, रोहतक, हिसार, कुरुक्षेत्र एवं आकाशवाणी द्वारा आयोजित विभिन्न स्थानों पर स्टेज कार्यक्रमों में भाग लिया और संगीत रुपक एवं विभिन्न सांगों में रिकार्डिंग की। वहीं दूरदर्शन केन्द्र: सीपीसी खेल गांव नई दिल्ली में कोस्टम एंड ट्रेडीशन फिल्म का निर्माण, कृषि दर्शन, दूरदर्शन जालंधर, हिसार तथा ईटीसी टीवी चैनल के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कैसेटों कंपनयों जैसे सोनोटोन, मैक्स, रामा कैसेट कंपनी दिल्ली द्वारा विभिन्न कैसेट रिकार्डिंग करवाई। वहीं आत्ममंथन एवं हरियाणा मस्ती रिमैक्स के ऑडियो कैसेट ने भी जनमानस में उन्हें अलग पहचान दी। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला की चयन समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में भी कार्य किया। 
विदेशों में भी छोड़ी छाप 
लोक कलाकार प्रेम सिंह देहाती ने विदेशों में भी उन्होंने अधिकांश रागनियों का पंडित लखमीचंद, कवि फौजी मेहर सिंह व पंडित मांगेराम जैसे प्रसिद्ध कवियों द्वारा रचित गायन शैली को प्राथमिकता देते हुए प्रस्तुत कर अपनी कला और हरियाणवी लोक गायकी शैली की छाप छोड़ी। उन्होंने सन 1985 में भारतीय सांस्कृतिक कार्य विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय फेस्टिवल समारोह काठमांडु(नेपाल) में हरियाणवी लोक गायकी का प्रदर्शन किया। वहीं सन 1994 में आईसीसीआर द्वारा उन्हें हरियाणवी सांस्कृतिक दल में शामिल किया गया, जिस दल में उत्तर पश्चिमी अफ्रीका के देश घाना, बुरकीनाफासों, मोरोको, टुनिस व मिस्र में हरियाणवी लोक गायकी रागनी की 20 जगह प्रस्तुति देकर विशेष ख्याति अर्जित की। विदेश यात्राओं के दौरान रागनी जैसी हरियाणवी लोक गीत की प्रस्तुतियों के दौरान उनको सम्मानित किया गया। वहीं इसके लिए विभिन्न देशों के राजदूतों ने उन्हें प्रशंसा पत्र भेंट किये गये। 
राष्ट्रीय समारोह में बिखेरी छटाएं 
नई दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस और लालकिला पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में हरियाणा झांकी और लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रेम देहाती ने हरियाणवी लोक कला व संगीत का कई बार प्रदर्शन किया। वहीं उन्होंने लोक गायकी रुप में ऐसे राष्ट्रीय समारोह के मौकों पर उत्तर प्रदेश, मणिपुर, इंफाल, केरल राजस्थान, कर्नाटक, हरियाणा व पंजाब की राजधानियों में बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी की है। उन्होंने एशियाड़-1982 व अपना उत्सव में विशेष रूप से भी एक लोककलाकार के रूप में अपनी छाप छोड़ी और हरियाणा रजत जयंती समारोह दिल्ली में अग्रणी गायक कलाकारों की पंक्ति में शामिल रहे। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्य विभाग हरियाणा द्वारा आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के अंतर्गत उत्कृष्ट हरियाणवी रागनी व लोक गायकी जैसे मिजोरम, सिक्कम, तामिलनाडू में अमिट छाप छोड़ी। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणवी लोक कलाकार व गीतकर प्रेमसिंह देहाती को वर्ष 2012 के लिए संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के लोक नाट्य में एक लाख रुपये वाले राष्ट्रीय पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने प्रदान सम्मानित किया। इसके अलावा वर्ष 2008 में हरियाणा सरकार द्वारा देवी शंकर प्रभाकर पुरस्कार से नवाजा गया। जबकि पंजाब विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक, चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा, चौ. चरणसिंह कृषि विश्वविद्यलय हिसार आदि में शिक्षण संस्थाओं में कार्यक्रम प्रस्तुति के बाद उन्हें ढ़ेरो पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है। देश के विभिन्न राज्यों व शहरों में विभिन्न गणमान्य संस्थाओं व संगठनों द्वारा लोक कला संस्कृति कार्यक्रमों की प्रस्तुति के दौरान अनेको सम्मान मिलते रहे हैं। 
17Oct-2022

मंडे स्पेशल: अपनों ने दिए जख्म, चौखट लांघने को मजबूर वृद्ध

आश्रमों ने दिया आसरा, लेकिन कम नहीं हो रहा दर्द ओ.पी. पाल.रोहतक। संस्कृति हमें बुजुर्गो का आदर व सम्मान करना सिखाती है। बड़े बुजुर्गों को परिवार की धरोहर माना जाता है, लेकिन बीते दो दशकों से प्रदेश के वृद्धाश्रमों में अचानक बुजुर्गों की भीड़ बढ़ गई है। यहां रहे रहे वृद्धों की आंखों में न केवल आंसू बल्कि एक गहरे दर्द की दास्तां भी साफ दिखाई देते है। शहर में बढ़ रहे एकल परिवार कल्चर ने बुजुर्गां को अलग-थलग कर दिया है। बेचारे वृद्ध अपने ही घर से बेगाने होकर आश्रमों में शरण लेने को मजबूर हैं। चारदीवारी में बढ़ते कलेश ने मुखियाओं को घर की चौखट लांघने को मजबूर कर दिया है। इनमें से अनेक को अपनों के अत्याचार के शिकार होकर यहां पहुंचे हैं। आश्रमों में अपने के ठुकाराए बुजुर्गो को घर जैसी सुविधाएं देकर अपनात्व का अहसास करवाने का प्रयास तो हो रहा है, लेकिन इनके दिल है दर्द है कि कम होने का नाम नहीं ले रहा। सरकार भी राष्ट्रीय वयोश्री योजना, वृद्धजन नीति, वृद्धा पेंशन के सहारे इन्हें सहेजने का प्रयास कर रही है, लेकिन इतना सब होने के बावजूद घर की बात आते ही इनकी आंखें छलक जाती है। ये हालत तब है जब राज्य सरकार प्रदेश के ऐसे 17 लाख से ज्यादा बुजुर्गो को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से हर माह पेंशन के रूप में आर्थिक मदद दे रही है, जो जीवन यापन करने में असमर्थ हैं। 
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रियाणा सरकार ऐसे बुजुर्गो को वृद्धावस्था पेंशन के रूप में वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना के तहत आर्थिक सहायता दे रही है, जो स्वयं की आय से जीवनयापन करने में असमर्थ हैं। प्रदेश में ऐसे 17.36 लाख से ज्यादा बुजुर्गो को सरकार की इस योजना का लाभ दिया जा रहा है। हालांकि एक आंकड़े के अनुसार हरियाणा की अनुमानित जनसंख्या 2.96 करोड़ में से 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गो की संख्या करीब 21 लाख है, जिसमें 68.96 प्रतिशत शहरी और 31.04 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। आज के इस आधुनियक युग में ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार की संस्कृति भी शहरी क्षेत्र में बढ़ते एकल परिवार की संस्कृति के प्रभाव में आती नजर आ रही है। यही कारण है कि परिवार के बुजुर्गो के प्रति आदर व सम्मान वाली संस्कृति अपनों से ही मुहं मोड़ने लगी है। जबकि हमारी संस्कृति एवं व सभ्यता हमें सबसे पहले महिला, बुजुर्गो और गुरुजनों का आदर व सम्मान करना सिखाती है, यहा तक धर्म ग्रंथों में तो कहा भी गया है कि जो अपने माता पिता को पूर्ण सम्मान देता है उसके लिए तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करना भी सहज हो जाता है। लेकिन देखने में आ रहा है कि प्रदेश में संयुक्त परिवारों के बिगड़ते जा रहे ताना बाना में उन्ही बच्चों द्वारा अपने बुजुर्गो को बेगाना बनाकर ठुकराया जा रहा है, जिनके भविष्य के लिए माता पिता ने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। जब बुढ़ापे में उन्हें सहारे की जरुरत आई तो परिवार से उनका परित्याग करने की परंपरा ने जोर पकड़ लिया है। यही नहीं परिवार में बुजुर्गो पर अत्याचार और तरह के अपराधों का शिकार तक होना पड़ रहा है। ऐसा पिछले एक दशक में पहली बार साल 2021 में हरियाणा में बुजुर्गो के खिलाफ हुए अपराध का 126 प्रतिशत वृद्धि का आंकड़ा चौंकाने वाला है। 
हिसार के मोक्ष आश्रम में सर्वाधिक बुजुर्ग 
प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपनो द्वारा ठुकराए गये बुजुर्गो में सर्वाधिक 150 से अधिक बेसहारा वृद्धजन हिसार के मोक्ष आश्रम में शरण लिये हुए हैं। इनमें हरियाणा ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के अधिकांश ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें उनके बच्चों ने ठुकराया है। इसी प्रकार जींद के वृद्धाश्रम में 65 आश्रय लेकर रह रहे हैं, तो वहीं कैथल में श्री सनातन धर्म सभा द्वारा संचालित वृद्ध आश्रम में सात बुजुर्ग अपने घरों से त्यागे जाने पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र के प्रेरणा वृद्धाश्रम में आठ महिलाओं समेत 14 बुजुर्ग रह रहे है, जो पारिवारिक टूट और संस्कारों की कमी के कारण वृद्ध आश्रम में रहने पर मजबूर हैं। महेंद्रगढ़ जिले के नांगल चौधरी के सेवा सीनियर सिटीजन होम में पांच तथा व नारनौल का वृद्धा आश्रम में करीब एक दर्जन बुजुर्गो का शरणस्थली बना हुआ है। रेवाडी शहर के वृद्धाश्रम में ऐसे 12 बुजुर्ग आश्रय लिए हुए है, जिन पर अपनों ने ही सितम ढाकर दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया। रेवाडी शहर के ही आस्था कुंज में चल रहे वृद्धाश्रम में भी पांच 5 महिला समेत 12 बुजुर्ग पिछले कई सालों से आश्रय लेकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं। प्रदेश भर के अन्य जिलों में वृद्धाश्रम के अलावा भी विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित आश्रय और आश्रमों में सैकड़ो की संख्या में बुजुर्ग देखने को मिल रहे हैं, जिन्होंने परिवार त्याग दिया है या उन्हें परिवार के सदस्यों ने अपने स्वार्थवश ठुकरा दिया है। 
केंद्र सरकार भी मेहरबान 
केंद्र सरकार द्वारा देशभर में बुजुर्गो के लिए चलाई जा रही योजनाओं का कार्यान्वयन हरियाणा में भी किया जा रहा है। इनमें राष्ट्रीय वयोश्री योजना के तहत इस साल 14 जुलाई तक प्रदेश में बीपीएल श्रेणी के 4848 वृद्धजनों को उनकी शारीरिक क्षमता को सामान्य बनाने के लिए सहायक कत्रिम अंग वितरित किये गये। इसी प्रकार केंद्र की राष्ट्रीय वृद्धजन नीति के तहत केंद्र से मिलने वाली सहायता राशि को राज्य में बुजुर्गो के जीवन में सुधार लाने के लिए खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और जरुरतों को पूरा करने के खर्च किया जा रहा है। वहीं ऐसे स्वस्थ्य बुजुर्गो, जो रोजगार करना चाहते हैं के लिए भी राज्य में सिक्रेड यानी एसएससीआरईडी नामक पोर्टल सक्रीय है, जिसमें प्रदेश के 137 बुजुर्गो ने इस साल पुन: रोजगार के लिए पंजीकरण कराया है। अभी तक शारीरिक क्षमता को देखते हुए दो बुजुर्गो को रोजगार दिया जा चुका है। प्रदेश में सामाजिक कल्याण विभाग की देखरेख में बनाए जा रहे वृद्धाश्रमों में बुजुर्गो के जीवन को सामान्य बनाने की दिशा में पार्क, फिजियोथेरेपी सेंटर, केयर सेंटर, ऑब्जर्वेशन रुम, एक्टिविटी रुम, डायनिंग रुम व तीनों फ्लोर पर किचन जैसी सुविधाएं मुहैया करा रही है। 
वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना 
राज्य सरकार ने पिछले साल ही प्रदेश में वर्ष 1991 में शुरू हुई वृद्धावस्था पेंशन योजना का उदारीकरण करते हुए उसे वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना के नाम दिया है, जिसमें सरकार ने 60 वर्ष की न्यूनतम आयु को आधार मानकर इस साल से 3100 रुपये प्रतिमाह की पेंशन देना शुरू किया है। हरियाणा सरकार ने इस साल जून माह में राज्य के 17.36 लाख वृद्धजनों को इस योजना के तहत 433.95 करोड़ रुपये की पेंशन देने का दावा किया है। इनमें सबसे ज्यादा हिसार जिले में 125696 बुजुर्गो को 31.42 करोड़ रुपये से ज्यादा धनराशि का वितरण किया गया है। इसके अलावा सरकार वृद्धों का उत्साहवर्धन करने के लिए पुरस्कार योजना भी चला रही है। इसके लिए वर्ष 2008-09 में हरियाणा सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिक स्वैच्छिक सेवाएं संगठन के रूप में नैटवर्क स्थापित करने की योजना शुरू की थी। इस योजना को हरियाणा के सभी जिलों शहरी सम्पदा में वरिष्ठ नागरिक क्लब की स्थापना के साथ जोड़ा गया है। राज्य के 14 जिलों में ऐसे संगठन कार्य कर रहे हैं। इसके तहत हर साल अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर राज्य स्तर पर पुरस्कृत किए जाने का प्रावधान है। जिसके लिए सरकार ने वर्ष 2020-21 के लिए 20.00 लाख रुपये के बजट का प्रावधान है, जिसमें लगभग 9.65 लाख रुपये खर्च हो चुके है। 
 ---- वर्जन 
समाज में सकारात्मक सोच जरुरी 
आज समाज का ताना बाना इतना बिगड गया है, कि अपनी संस्कृति और सभ्यता भूलते जा रहे समाज की विसंगतियों की वजह से आज रिश्तों को भूलकर धन और अपनी सुख सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाने लगी है। बढ़ते शहरीकरण में संयुक्त परिवार की परंपरा छोड़कर एकल परिवार की परंपरा शुरू हो गई है। यही कारण है कि जिन बच्चों को मां बाप ने पालकर लायक बनाने में पूरा जीवन लगा दिया, अब वही उनका सहारा बनने के बजाए उन्हें त्याग रहे हैं। नई पीढ़ी की इस भोगविलासिता के कारण उनके खुद के बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए सोच विचार करके सकारात्मक सोच को विकसित करना होगा, कि ऐसे संस्कार लेकर उनके बच्चे भी भविष्य में उनके साथ यही बर्ताव करेंगे। 
 -प्रो. देशराज सब्बरवाल, पूर्व अध्यक्ष समाज शास्त्र, एमडीयू रोहतक।
17Oct-2022

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है साहित्य: आशा खत्री

महिलाओं के कल्याण को लेकर बेहद संजीदा व्यक्तिगत परिचय 
नाम: आशा खत्री ‘लता’ 
जन्म : 26 नवम्बर 1963 
जन्म स्थान: गाँव खरावड़, जिला रोहतक(हरियाणा) 
शिक्षा: हिंदी में स्नातकोत्तर, बी.एड., सीएआईआईबी सम्प्रति: सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक, स्वतंत्रत लेखन कार्य 
संपर्क :2527, सेक्टर-1, रोहतक-124001(हरियाणा) मोबाइल-8295951677,ईमेल-asha41424@gmail.com ------ 
by--ओ.पी. पाल-- 
साहित्य जगत में लेखक साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से समाज को दिशा देने का काम कर रहे हैं। ऐसे साहित्यकारों में महिला साहित्यकार एवं लेखिका आशा खत्री ‘लता’ भी शुमार है, जिनके साहित्य लेखन का फोकस हमेशा दूसरों की पीड़ा को दूर करने पर रहा। खासतौर से महिलाओं के कल्याण को लेकर उनकी रचनाओं में एक संवेदनशील व्यक्तित्व साफतौर से देखा जा सकता है। साहित्य क्षेत्र में उनकी रचनाएं समाज को नई दिशा देकर विसंगतियों को दूर करके संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित करने से कम नहीं हैं। नारियों के बेहतर जीवन को लेकर वे बेहद संजीदा है और लेखन के साथ वे रचनात्मक कार्य करके समाज को सकारात्मक विचाराधारा का संदेश भी दे रही हैं। बैंक में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत श्रीमती आशा खत्री ‘लता’ ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान ऐसे कई पहलुओं को उजागर किया, जिसमें मानवता का संदेश मिलता है। हरियाणा में रोहतक के निकटवर्ती गांव खरावड़ के एक किसान परिवार में 26 नवम्बर 1963 को जन्मी श्रीमती आशा खत्री के पिता मदन मोहन मलिक सेना में थे। उनका विवाह नरेला के निकट बाकनेर गांव में हुआ है। इनके पति दयानंद खत्री कृषि विभाग से पटवारी पद सेवानिवृत्त हैं। आशा खत्री स्वयं हरियाणा ग्रामीण बैंक में प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। बचपन में वह परिवार और खेतीबाड़ी के काम में भी हाथ बंटाती रही। चूंकि उनके परिवार में पढ़ने का बेहतर माहौल था और घर में उस समय उर्दू का अखबार आता था। इसी कारण उन्हें पढ़ने और लिखने का संस्कार बचपन में ह परिवार से मिला। बतौर आशा खत्री अखबार में प्रकाशित कुछ ऐसी घटनाओं को लेकर वे आहत हो जाती थी, जो भारतीय संस्कृति और समाज के उत्थान के विपरीत संदेश देती थी। इसलिए उनकी हमदर्दी पीड़ितों के प्रति ज्यादा थी, जो मानवीय दृष्टि से होनी भी चाहिए। इसलिए लेखन करना उनके मन की विवशता का कारण बनकर उभरी। उनका कहना है कि समाज में विसंगतिया प्रतिपल उनके मन को कचोटती हुई दिल का चैन और आंखो की नींद छीन लेती हैं। यही बेचैनी उनके कलम के माध्यम से कागज पर आ जाती है। मानवीयता के प्रति संवेदनशील आशा खत्री ने अपनी कलम को उस समय धार देना शुरू किया, जब पंजाब में सिख आतंकवाद चरम पर था। उनका कहना है कि उस समय अखबारों में पाठकों के पत्र प्रकाशित होते थे और उनके पत्र भी नवभारत और अन्य अखबारों में प्रकाशित होने लगे तो उनका लेखन के प्रति और भी ज्यादा आत्मविश्वास बढ़ा। कुछ लाइने लिख कर कविताएं बनाना और फिर लघु कथाए लिखने के प्रति उनकी रुचि बढ़ती चली गई। उनकी पहली लघुकथा जब ट्रिब्यून में प्रकाशित हुई तो उनकी साहित्य साधना में गहनता आना स्वाभाविक ही था, तो फिर कारगिल युद्ध की घटनाओं से आहत होने पर उनकी साहित्य साधना में कहीं और ज्यादा गंभीरता आई। पिछले 30 वर्षों से दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक हरिभूमि, दैनिक जागरण एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में सतत लघुकथाएँ, कहानियां, कविताएं, व्यंग्य एवं सामयिक विषयों पर लेख प्रकाशित होते रहते हैं। महिला रचनाकार आशा खत्री ‘लता’ के साहित्य सृजन में निहित एक मानवीय पहलु उन्हें एक महान नारी के रूप में भी पहचानता है। मसलन वे सामाजिक सेवा और रचनात्मक गतिविधियों में इतनी सक्रीय हैं, कि लेखन एवं साहित्य सम्मान या अन्य पुरस्कार में मिलने वाली धनराशि को असहाय और जरुरतमंदों की आर्थिक और सामाजिक मदद में खर्च करती आ रही है या फिर गरीबों के कल्याण करने वाले ट्रस्ट को दान दे रही हैं। इस आधुनिक युग में सोशल मीडिया के बढ़ते दौर में साहित्य के प्रभाव को लेकर उनका मानना है कि पाठक साहित्य से दूर हो रहे हैं, लेकिन अच्छे साहित्य की महत्ता को कभी कम नहीं आंका जा सकता, जिसकी सार्थकता को कायम रखने के लिए साहित्यकारों का अच्छे साहित्य लेखन करने की जरुरत है, जिसमें युवा पीढ़ी को भी साहित्य के प्रति प्रेरित किया जा सके। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार आशा खत्री ‘लता’ की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में दो कहानी संग्रह, दो लघुकथा संग्रह, तीन दोहा संग्रह, एक उपन्यास, एक लघुकविता संग्रह सहित 9 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनके कहानी संग्रह की दर्द के दस्तावेज़ और आखिरी रास्ता, लघुकथा संग्रह में बेटी है ना! और काली चिड़िया, दोहा संग्रह में 'लहरों का आलाप', 'रक्तदान-दोहावली' और 'चिंतन खड़ा उदास' सुर्खियों में हैं। वहीं उनकी रचनाओं में 'उदय-स्वप्न से सत्य तक' और लघुकविता संग्रह 'औरत जिससे प्यार करती है' के अलावा जल्द ही एक एक गीत संग्रह प्रकाशित होने वाला है। इसके अलावा आशा जी ने शब्दशक्ति पत्रिका के 2 अंकों के अलावा रक्तदान पर दोहा संग्रह का सम्पादन भी किया। यही नहीं वे पिछले डेढ़ दशक से बैंक पत्रिका हरितिमा का संपादन भी करती आ रही हैं। इसके अलावा अब तक करीब 70 से अधिक पुस्तकों की समीक्षा भी कर चुकी हैं। उनकी विश्व के सौ रचनाकारों द्वारा लिखित उपन्यास 'खट्टे मीठे रिश्ते' में भी सक्रीय सहभागिता रही। खास बात ये भी रही कि म्हारा हरियाणा वेबसाइट पर प्रकाशित हरियाणवी कहानी 'गूठी' को हरियाणवी बोली में सराहना मिली है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा महिला रचनाकार आशा खत्री को वर्ष 2021 के लिए एक लाख रुपये क विशेष हिंदी सेवी सम्मान देकर पुरस्कृत किया गया। इससे पहले अकादमी वर्ष 2019 के लिए उनके लघुकथा संग्रह 'काली चिड़िया' को कहानी विधा में सर्वश्रेष्ठ कृति पुरस्कार देकर सम्मानित कर चुका है। इसके अलावा उन्हें आनन्द कला मंच भिवानी के श्रीमती शान्ति देवी स्मृति साहित्य सम्मान-2021, निर्मला स्मृति साहित्य मंच चरखी दादरी ने साहित्य सेवाओं के लिए सम्मान-2020, समग्र सेवा संस्थान सिरसा द्वारा वरिष्ठ कवि श्री उदयकरण सुमन स्मृति सम्मान-2020 तथा साहित्य सभा कैथल द्वारा साहित्यकार सम्मान 2018 के रूप में 'जसबीर सिंह मोर स्मृति सम्मान' से नवाजा जा चुका है। वहीं समर्थ महिला परिषद द्वारा श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान-2018, सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक द्वारा राजभाषा पुरस्कार-2018, प्रज्ञा साहित्य मंच द्वारा श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान-2017, यंग इंडिया एसोशिएसन द्वारा श्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान-2015 के अलावा अन्य साहित्यिक मंचों पर उनका सम्मान किया जा रहा है। जब आशा खत्री को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘विशिष्ट हिंदी सेवी पुरस्कार 2021’ की घोषणा हुई तो प्रज्ञा साहित्यिक मंच, रोहतक के अध्यक्ष मधुकांत (अनूप बंसल) के नेतृत्व में नगर के साहित्यकारों ने उनका और परिजनों का उनके आवास पर जाकर शाल, स्मृति चिन्ह, माला व अभिनन्दन पत्र भेंट कर नागरिक अभिनंदन किया। 
10Oct-2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा में साइबर अपराध का तेजी से फैलता 'संजाल'

पिछले आठ महीनों में साइबर सेल को मिली 36,996 शिकायतें 
महिलाओं व बच्चों के प्रति अपराध और प्रोर्नोग्राफी ने तोड़ी सभी हदें 
ओ.पी. पाल.रोहतक। इंटरनेट ने जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है। पलक झपते ही काम हो जाता है। बैंक में पैसे जमा करवाने हो, बिजली-पानी का बिल भरना हो या फिर देश दुनिया के बारे में कुछ भी जानना हो, बस अपना फोन खोलो और हो गया। इस डिजिटल दुनिया का इतना सुख है तो कुछ दु:ख भी कम नहीं है। ऑनलाइन दुनिया ने नए तरह के गुनाहों को भी जन्म दिया है, जिसे साइबर अपराध का नाम दिया गया है। बैंकिंग, सोशल नेटवर्किंग, ऑनलाइन शॉपिंग, डेटा स्टोरिंग, गेमिंग, ऑनलाइन स्टडी, ऑनलाइन जॉब सब में साइबर ठगों ने पैठ बना ली है। हरियाणा में पिछले पांच साल में साइबर अपराधों के बढ़ता ग्राफ चरख-चाख कर कह रहा है कि सब ठीक ठाक नहीं है। प्रदेश के साइबर अपराध के आंकड़ों को देखें तो यौन शोषण समेत महिलाओं व बच्चों के साथ पोर्नोग्राफी जैसे साइबर अपराध के मामलों में कहीं ज्यादा उछाल सामने आया है। ऐसे अपराधों के निपटान की गति इतनी धीमी है कि 96.5 फीसदी मामले अदालतों में लंबित पड़े हुए हैं और दोषसिद्ध दर तो महज 7.5 फीसदी ही है। अगर प्रदेश में मौजूदा साल के आंकड़ों को देखा जाए, तो ऑनलाइन बैंकिंग और विभिन्न स्कीमों का लालच देकर ऑनलाइन धोखाधड़ी और ठगी की शिकायतों में हरियाणा देशभर में सबसे आगे निकल चुका है। मसलन साल 2022 के पहले आठ महीनों में ही 36,996 शिकायतें साइबर हेल्पलाइन पर दर्ज की गई, जो पिछले सालों की तुलना में 136 प्रतिशत ज्यादा हैं। इसी हालात को देखते हुए राज्य सरकार ने पुलिस के पांच हजार जवानों को साइबर अपराध से निपटने का प्रशिक्षण देने की योजना भी बनाई है। 
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रियाणा सरकार द्वारा साइबर अपराधों से निपटने के लिए राज्य में पंचकूला और गुरुग्राम में चल रहे दो साइबर पुलिस थानों के अतिरिक्त रेंज स्तर पर रोहतक, हिसार, करनाल, अंबाला, रेवाड़ी और फरीदाबाद में छह सइबर थानों की स्थापना की है। वहीं बैंक धोखाधड़ी, भुगतान गेटवे का मिसयूज, फेसबुक, ट्विटर आदि सहित साइबर संबंधी सभी शिकायतों के निपटान करने के मकसद से राज्य के हर जिले में साइबर रिस्पांस सेंटर भी कार्य कर रहे हैं। साइबर रिस्पांस सेंटर डिजिटलीकरण और तेजी से आधुनिकीकरण के कारण उभरती चुनौतियों के बढ़ते खतरों के मद्देनजर मौजूदा साइबर सेल को सुदृढ़ बनाने में मदद कर रहे है। पिछले माह एडीजीपी (अपराध शाखा) ओपी सिंह ने सभी जिला नोडल अधिकारियों (डीएसपी और एएसपी) और साइबर थाना प्रभारियों की बैठक में अध्यक्षता करते हुए बताया कि प्रदेश में इस साल अगस्त तक साइबर अपराध से जुड़ी 36,996 शिकायतें प्राप्त हुई। इनमें से 20,484 की जांच जारी है, जबकि 15,057 शिकायतों का निपटारा किया जा चुका है। इस बैठक में यह भी जानकारी सामने आई कि प्रदेश में साइबर जालसाजों को रोकने व अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई हेतु हरियाणा पुलिस की राज्य अपराध शाखा ने राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र (साइट्रेन) के पोर्टल पर साइबर अपराध जांच में पांच हजार से अधिक पुलिस कर्मियों और अधिकारियों के ऑनलाइन प्रशिक्षण देने का फैसला लिया है। 
किसी को नहीं बख्श रहे अपराधी 
दरअसल हरियाणा समेत देशभर में बढ़ते डिजिटल युग में साइबर साइबर अपराधी या जालसाजों ने लोगों को मोबाइल कॉल, संदेश या अन्य तौर तरीकों से उनके बैंक अंकाउंट से जमा धन चंद मिनटों में गायब कर देते है। वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए पर राजनेताओं के अलावा प्रमुख हस्तियों के फर्जी प्रोफाइल को हैक करने के मामले लगातार आ रहे हैं। यही नहीं कई ऑनलाइन स्कैमर्स लोगों से पैसे ऐंठने के लिए मशहूर हस्तियों के फर्जी अकांउट्स का उपयोग कर रहे हैं और सरकार की ऑनलाइन योजनाओं पर भी फर्जी तरीके से पंजीकरण के नाम पर धन ऐंठने में भी साइबर अपराधी पीछे नहीं हैं। यही नहीं महिलाओं, बच्चों, विशेष रूप से बाल पोर्नोग्राफी, बाल यौन शोषण सामग्री, रेप/गैंग रेप से संबंधित ऑनलाइन अश्लील सामग्री, आदि जैसे साइबर अपराध भी सिर चढ़कर बोल रहे हैं। 
सिर चढ़कर बोल रहा साइबर अपराध 
हरियाणा राज्य सरकार भी भारतीय साइबर अपराध से निपटने के लिए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के अलावा साइबर थानों की स्थापना करने में जुटी है। वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो प्रदेश में साइबर अपराध की जड़े मजबूत होने की गवाही दे रही है। एनसीआरबी के अनुसार हरियाणा में साल 2014-21 के दौरान नौ साल में प्रदेश में 3540 साइबर अपराध के मामले दर्ज हो चुके हैं। इस दौरान गिफ्तार किये गये 2253 आरोपियों में से पुलिस ने 2064 के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किये, लेकिन इन नौ साल में केवल 51 लोगों पर ही आरोप सिद्ध हो पाया है। जबकि 347 को अदालत ने आरोपमुक्त क अदालतों में जहां वर्ष 2014 में 150 मामले लंबित थे, वहीं साल 2021 में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 1091 हो गई है, जो कुल मामलों का 96.5 प्रतिशत है। 
साइबर का शिकार महिलाएं व बच्चें 
प्रदेश में महिलाओं के प्रति साइबर अपराध को लेकर एनसीआरबी के आंकड़े पर गौर करें तो पिछले पांच साल में साइबर अपराध की शिकार महिलाओं का आंकड़ा 236.7 फीसदी और बच्चों का पांच सौ प्रतिशत बढ़ा है। इस दौरान यौन शोषण के मामलों में 172 फीसदी साइबर अपराध देखा गया। पिछले पांच साल में प्रोर्नोग्राफी के 241 मामले सामने आए, जिनमें पांच साल में 1417 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया। सैक्सुअल व अश्लील प्रकाशन के भी साल 2021 में पिछले पांच साल की अपेक्षा 131 फीसदी साइबर अपराध दर्ज किये गये। 
केंद्र सरकार की स्कीम 
हरियाणा को केंद्र सरकार ने खासतौर से महिलाओं और बच्चों के प्रति साइबर अपराध को रोकने के लिए ‘सीसीपीडब्ल्यूसी’ स्कीम के तहत वर्ष 2017-2022 के लिए 2.76 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की है। हरियाणा पुलिस विभाग साइबर अपराध से पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिए इस धनराशि का इस्तेमाल कर रही है। प्रदेश सरकार प्रदेश में साइबर अपराध पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार की अन्य योजनाओं को भी प्रभावी रुप से लागू कर रही है। 
धोखाधड़ी के मामलों में भी उछाल 
हरियाणा में साल 2021 के दौरान धोखाधड़ी के 133 मामले दर्ज किये गये हैं, जिनमें ऑनलाइन, जालसाजी, जबरन वसूली, महिलाओं को ब्लैकमेलिंग और स्टाकिंग के मामले भी शामिल हैं। पिछले पांच साल के आंकड़े का देखा जाए तो जालसाजी के 50 फीसदी, वसूली के 225 फीसदी, ऑनालइन चिटिंग के 900 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। एटीएम से धोखाधड़ी करके निकाले गये धन के साल 2019 में 38 और 2017 में 52 मामले सामने आए थे। ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी के महेंन्द्रगढ़ में 48 और पलवल में 25 मामले इन पांच सालों में दर्ज किये गये। इन पांच सालों में साइबर अपराध की जद में छह देश विरोधी और एक दर्जन आतंकवाद से जुड़े मामले भी दर्ज किये गये हैं। 
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वर्जन 
शिकायत पर साइबर टीम की त्वरित कार्रवाई: एडीजीपी 
प्रदेश में साइबर अपराध को लेकर राज्य अपराध शाखा क एडीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि हरियाणा में राज्य अपराध शाखा बतौर साइबर नोडल एजेंसी काम कर रही है। वहीं साइबर अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के मकसद से ही हरियाणा में साइबर थाने, नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर काम कर रहे हैं। 1930 नंबर पर शिकायत देते ही साइबर टीम तुरंत बैंक और भुगतान इंटरफेस से संपर्क साधती है और जिस भी खाते में अपराधी ने पैसे जमा करवाए है, उन्हें तुरंत फ्रीज करवा दिया जाता है। इसके बाद मूल खाते में रुपये वापस करवा दिए जाते हैं। इस साल जनवरी से जुलाई तक 459 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इस दौरान 7 लाख रुपये रोजाना के हिसाब से करीब 11 करोड़ रुपये लोगों के बचाए जा चुके हैं। 
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पांच साल में साइबर अपराध के मामले 
वर्ष  मामले कंप्यूटर सैक्सुअल अश्लील  यौन  महिला  बच्चा   पोर्नो   आईटी     धोखाधड़ी  देशविरोधीध/आतंकी                     टपेरिंग    छपाई    छपाई   शोषण अपराध अपराध  ग्राफी  अपराध 
2021   622  185        192       47         98    266        05        91       414        133             04 
2020  656  263         193       71        73    222         33        69       490        160 
2019 564   195         139       47       57     251         05        41      346          217 
2018 418   197        158        31       75     112         01        34      382          418            02/  12 
2017 504   281         83        38       36       79         00         06       382        120 
वृद्धि% 23.41 -34.2 131.3   23.68   172.2  236.70   500     1417     8.38       10.83 
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वर्ष  एफआर गिरफ्तार चार्जशीट दोषी बरी लंबित मामले दोषसिद्ध दर लंबित दर 
2021 302     647         601        04   37   1099             7.5                96.5 
 2020 255   347         323        00    21    813              00                 98.7 
2019 224   314         288         06    63    603            13.0               92.9 
 2018 697 260         252          05   48     461           12.8                91.8 
2017 445 211         197           11  77      318            12.5               78.3 
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 वर्ष एटीएम ऑनलाइन ब्लैकमेल वसूली जालसाजी चिटिंग फेक न्यूज अन्य फ्रोड महिला स्टाकिंग कॉपीराइट 2021 0          03              3           13        12          30          0              81              13 
2020 0         26               1           17        15          16          3             60              19 
2019 38       51               3           16       01           06          0             33              65 
2018 00      00               7            21      12           01           0             33              05                      2 
2017 52      01               7           04        08         03            5             43               27
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10Oct-2022

सोमवार, 3 अक्तूबर 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश में बुजुर्गों को भी नहीं बख्श रहे दरिंदे

वृद्धों के खिलाफ अपराध में 126 फीसदी का उछाल 
घर में अकेले रहना खतरे से खाली नहीं, बुजुर्ग महिलाएं नहीं हैं सुरक्षित 
एनसीआरबी की रिपोर्ट का खुलासा: बच्चों व महिलाओं से ज्यादा हो रहे जुल्म का शिकार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। आपराधिक दरिंदे महिलाओं और बच्चों को तो क्या, बुजुर्गों पर भी रहम नहीं खा रहे हैं। प्रदेश में वृद्धों के खिलाफ होने वाले अपराधों में यकायद तेजी आई है। तेजी क्या इसे अपराध की आंधी कहें तो गलत नहीं होगा। बीते एक साल में जहां बच्चों के खिलाफ अपराध 31 फीसदी और महिलाओं के विरुध 28 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, तो वहीं बुजुर्गो पर जुल्म 65 फीसदी बढ़ा है। यदि पिछले एक दशक के आकड़ों पर नजर दौड़ाए तो यह वृद्धि 126 फीसदी से भी ज्यादा है। साल 2021 में पहली बार अपराध के शिकार बुजुर्गो की संख्या चार अंकों तक 1072 पहुंच गई है। इसमें सबसे दु:खद तो यह कि एक साल में बुजुर्ग महिलाओं से दुष्कर्म के मामले भी बढ़कर दो गुणा हो गए। हालात ये हैं कि अदालतों में वृद्धों की खिलाफ होने वाले अपराधों की फाइलों का अंबार लगा है। इसमें 190 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। देश में हर साल एक अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने की सार्थकता तभी मानी जाती है जब बुजुर्गो को सम्मान मिले और उनके साथ हो रही सामाजिक उपेक्षा पर अंकुश लगे। लेकिन इसके विपरीत बुजुर्गो की खासतौर से हरियाणा में क्या स्थिति है, इसका अंदाजा उनके खिलाफ लगातार बढ़ते अपराधों से लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश में बच्चों और महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों से भी कहीं ज्यादा बुजुर्ग यानी वरिष्ठ नागिरक पर हुए अपराध के जुल्मों का आंकड़ा चौंकाने वाला है। पिछले एक दशक में बुजुर्गो के खिलाफ हुए अपराध के मामले 126 फीसदी का उछाल आया हैं। शायद प्रदेश में यह पहली बार देखा जा रहा है कि अपराधिक जुल्म का दंश सहने वाले बुजुर्गो की संख्या एक हजार यानि चार अंकों का आंकड़ा छू गई है। बुजुर्गो के साथ जुल्म ढ़ाने में अपने सबसे आगे हैं। जिन्होंने संपत्ति के लिए माता पिताओं को अपराध का शिकार बना दिया। प्रदेश में जहां साल 2020 में वरिष्ठ नागरिकों के साथ अपराध के 650 मामले दर्ज हुए थे, वहीं साल 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 1056 पहुंच चुकी गई, जिसमें 1072 बुजुगों को किसी न किसी तरह के अपराध का शिकार बनाकर उन पर जुल्म हुआ। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के साल 2021 के आंकड़ों में अपराधों के मामलों में हरियाणा 16वें स्थान पर था, जो वर्ष 2020 की तुलना में 8047 मामलों की वृद्धि के साथ 1,12,677 अपराधिक मामले दर्ज हुए। स्थानीय और विशेष मामले भी वर्ष 2020 के 89,119 मामलों की तुलना में वर्ष 2021 में बढ़कर 93,744 हो गये। 
हवस का शिकार भी बनी बुजुर्ग 
प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराधों में बढ़ोतरी के साथ ही ऐसे मामले भी दर्ज हुए, जहां वृद्ध महिलाओं को भी दुष्कर्म का शिकार बनाने में हवस के पुजारी पीछे नहीं रहे। एनसीआरबी के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पिछले पांच साल में बुजुर्ग महिलाओं पर हमले व मारपीट के अलावा उनके साथ दुष्कर्म के मामले भी 33 फीसदी से ज्यादा बढ़े है। साल 2021 में 13 बुजुर्ग महिलाओं पर अत्याचार हुआ। जिसमें चार महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के मामले दर्ज किए गए। जबकि साल 2020 में एक दर्जन वृद्ध महिलाओं पर अत्याचार हुआ, जिसमें दो के साथ बलात्कार हुआ। 
पांच साल में 3143 बुजुर्गो पर जुल्म 
प्रदेश में वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ अपराधों के पिछले पांच साल के आंकड़ो पर गौर की जाए तो 3143 बुजुर्गो पर अपराधों का शिकार बनाने के 3127 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 206 की हत्या तक कर दी गई। जबकि 1795 बुजुर्गो को किसी न किसी रुप से उत्पीड़न का शिकार बनाया। वहीं हत्या का प्रयास, मारपीट कर गंभीर चोट पहुंचाने के अलावा बुजुर्गो के साथ आपराधिक साजिश करके उनके साथ जालसाजी और धोखाधड़ी के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2021 में ही सबसे ज्यादा 47 की हत्या, 76 के साथ मारपीट करके उन्हें गंभीर चोटे भी पहुंचाने के माममले सामने आए हैं। इस दौरान जालसाजी व धोखाधड़ी के सर्वाधिक 87 मामलों में 58 मामले जालसाजी के हैं, जिनमें संपत्ति से संबंधित मामले भी शामिल हैं। 
डकैती, लूट, चोरी, अवैध वसूली का शिकार 
घरों में बुजुर्गो का अकेले रहना भी किसी खतरे से खाली नहीं है। पिछले पांच साल में बुजुर्गो के घर में डकैती के छह, लूटपाट के 11, अवैध वसूली के सात तथा हत्या का प्रयास के 28 मामले दर्ज किए गए हैं। सबसे ज्यादा बुजुर्गो के घरों में इन पांच साल के दौरान 269 चोरी के मामले सामने आए हैं, जिनमें साल 2021 में सबसे ज्यादा 135 चोरी के मामले दर्ज किए गए। अदालतों में लंबित मामलों का अंबार हरियाणा में वरिष्ठ नागिरकों पर जहां लगातार अपराध बढ़ रहे हैं, वहीं निपटान की धीमी गति के कारण विचाराधीन मामलों का अंबार खड़ा हो रहा है। प्रदेश की अदालतों में बुजुर्गो पर अपराध के जहां साल 2017 में 431 मामले लंबित थे, वहीं साल 2021 में इन लंबित मामलों की फाइलों की संख्या बढ़ने की दर 1218 यानी करीब 190 फीसदी जा पहुंची है। 
दोषसिद्ध से ज्यादा बरी 
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में अदालतो के पास 403 नए मामलों समेत 1285 मामले थे, जिनमें से 67 का ट्रायल पूरा करके निपटान किया गया और सात नए दोषसिद्ध समेत 20 को दोषी ठहराया, जबकि 87 को आरोपमुक्त कर बरी कर दिया गया। इस साल पुलिस ने मामले सही होने के बावजूद सबूत और साक्ष्य के अभाव में 329 मामलों में फाइनल रिपार्ट लगाई। जबकि 46 महिलाओं समेत 783 को गिरफ्तार किया और 40 महिलाओं समेत 711 के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किये। अदालत की कार्रवाही पर कोरोनाकाल का भी प्रभाव पड़ा, जिसकी वजह से साल 2020 में केवल छह आरोपियों को ही दोषी ठहरया गया, जिसकी वजह से लंबित मामलों की संख्या में भी इजाफा हुआ। 
रंजिशन फंसाने के मामले भी बढ़े 
प्रदेश में अपने विरोधियों को सबक सिखाने की नीयत से भी बुजुर्गो पर हमले या अन्य अपराधों के मामले दर्ज कराए गये। साल 2021 के दौरान ही पुलिस ने ऐसे 261 मामलों को निरस्त किया। पिछले पांच साल में पुलिस ने मामलों की जांच पड़ताल के बाद 1636 मामलों को फाइनल रिपोर्ट लगाकर निरस्त किया, जिनमें 757 मामले झूठे पाए गये और बाकी सही मामले होने के बावजूद सबूत और साक्ष्य सामने नहीं आ सके। 
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वर्जन 
बुजुर्गों का ध्यान रखना पुलिस की प्राथमिकता 
सभी पुलिस कर्मियों को वरिष्ठ नागरिकों का ख्याल रखने के निर्देश हैं। पुलिस अपनी बीट क्षेत्र में ऐसे बुजुर्गो की समय समय पर निगरानी करती है, जो अपने घरों में अकेले रहते हैं, यही नहीं ग्रामीण इलाकों में खेतो में काम करने वाले बुजुर्गो की सुरक्षा के लिए भी पुलिस गश्त करती है। डायल 112 पर आने वाली वरिष्ठ नागरिकों की कॉल पर तत्काल कार्रवाई की जाती है। बुजुर्गो के साथ होने वाली किसी प्रकार की भी अपराध होने की सूचना पर पुलिस मामले की गहनता से जांच करके कार्रवाई की जा रही है। कानून व्यवस्था संबन्धित सभी बैठकों में एसएचओ, आईओ को बुजुर्गों से सम्बंधित शिकायतों को गंभीरता लेकर यह सुनिनिश्चत करने के आदेश है कि उनकी शिकायत पर सख्त कार्रवाई हो। यही नहीं इसके अतिरिक्त पीसीआर, राइडर के कर्मचारी सुनसान एरिया और अकेले रहने वाले बुजुर्गों का ध्यान रखा जाता है। 
 -उदय सिंह मीणा (आईपीएस), पुलिस अधीक्षक रोहतक। 
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टेबल 
पांच साल में बुजुर्गो पर बढ़े अपराध के 126 फीसदी मामले 
वर्ष दर्ज केस पीड़ित हत्या उत्पीड़न दुष्कर्म अपहरण धोखा गिरफ्तार चार्जशीट लंबित केस दोषी बरी दोषसिद्ध दर 
 2021 1056 1072     47      596        4         2          87      783        711        1218         20    87     19.4% 
 2020 650    650      46      355        2         9         65      496         480          882         06    61    11.8% 
 2019 384    385      36      218        3         6         23      297         268          671         23    84     21.5% 
 2018 571    572      50      331        3       18         30      463         447          597         23    72     24.2% 
 2017 466    477      27       295        3       47         13      399        348          421          31   427    12.8%
 वृद्धि% 126.6 124.7 74      102.3     33      -96      569    96.24    104.31    189.31     -35.5 -79.63 
  03Oct-2022

साक्षात्कार: लोक संस्कृति व कला में भारतीय संस्कृति के रंग भरती शुभ्रा मिश्रा

भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य कला में नृत्य रत्ना अवार्ड से सम्मानित 
    व्यक्तिगत परिचय 
नाम:श्रीमती शुभ्रा मिश्रा 
जन्म:19 अक्टूबर 1980 
जन्म स्थान:कोलकाता(पश्चिम बंगाल) 
शिक्षा:बीटेक(एएयू इलाहाबाद), एमटेक(एमडीयू रोहतक), भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य में प्रशिक्षण 
संप्रत्ति:नृत्य शिक्षिका के रूप में बच्चों को लोक संस्कृति की शिक्षा देना 
पिता का नाम: स्व.गोपाल जी पांडे 
माता का नाम:श्रीमती सत्यभामा पांडेय
संपर्क:मकान नं. 550, सेक्टर-30, फरीदाबाद(हरियाणा), मोबा.-97160 33638
-BY: ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक संस्कृति एवं कला में भारतीय संस्कृति के रंग भरने में जुटी भारतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य और ओडिसी लोक नृत्य विशेषज्ञ श्रीमती शुभ्रा मिश्रा पिछले एक दशक से ज्यादा समय से सूबे की युवा पीढ़ी को लोक संगीत-कला को जीवंत करने के मकसद से भारतीय शास्त्रीय संगीत और कला के गुर भी सिखा रही हैं। हरियाणा के लोक कला व संगीत के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने वालों को गुरु और शिष्य की पंरपरा वाला भरतनाट्य और ओडिसी नृत्य खूब भाने लगा है। इसी का नतीजा है कि हरियाणवी लोक नृत्य प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं ने अव्वल रहते हुए राष्ट्रीय सम्मान पाया। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य कला में नृत्य रत्ना अवार्ड से सम्मानित शुभ्रा मिश्रा ने उम्मीद जताई है कि हरियाणा की लोक संस्कृति और कला एक दिन उच्च शिखर पर होगी। 
प्रदेश के फरीदाबाद निवासी श्रीमती शुभ्रा मिश्रा का कहना है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत कला और लोक संस्कृति का लोहा विश्व के अन्य देश और अन्य संस्कृति को मानने वाले लोग भी मानते हैं। लेकिन विड़ंबना है कि आज भारतीय लोक संगीत और कला विदेशों में चली गई, जिसे भारत में पुनर्जीवित करने के मकसद से ही वे युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए बच्चों को लोक नृत्य सिखा रही हैं। उनका कहना है कि इस आधुनिक युग में भारतीय संस्कृति के प्रमुख शास्त्रीय संगीत-कला, लोक संस्कृति के प्रति रूझान कम होता जा रहा है, इसलिए बच्चों को वॉलीवुड और पाश्चत्य संस्कृति से अपनी संस्कृति और पारंपरिक लोक संगीत व कला या नृत्य को प्रोत्साहन देने का प्रयास है। बच्चों को इसके लिए भी जागरुक किया जा रहा है कि वे अपनी भारतीय संस्कृति को मिटने न दें, क्योंकि भारत के सूत्राधार बच्चें ही हैं। 
लोक संस्कृति को प्रोत्साहन 
भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विशेषज्ञ शुभ्रा मिश्रा भले ही मूल निवासी कोलकाता (पश्चिम बंगाल) की हों, लेकिन शादी के बाद से हरियाणा आने के बाद वे फरीदाबाद में रहने लगी है। लोक संगीत व कलाकार होने के नाते उन्होंने हरियाणा की लोक संस्कृति व कला का अध्ययन करना शुरू किया, तो उन्होंने पाया कि हरियाणा लोक कला और संगीत का हब है, लेकिन हरियाणवी संस्कृति और लोक कला के प्रति आज की पीढ़ी के कम होते रुझान पर चिंता जाहिर की। इसलिए उन्होंने अपनी लोक कला के अनुभव का इस्तेमाल हरियाणा की लोक कला व संगीत को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का बीड़ा उठाया। शुभ्रा मिश्रा फरीदाबाद में ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य और लोक संगीत कला सीखाने के लिए एक इंस्टीटयूट का संचालन करने लगी। यही नहीं फरीदाबाद के वाईएमसीए तथा एसओएस स्कूल के अलावा कई संस्थाओं में भी अतिथि नृत्य शिक्षिका की भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने कालिदास की कविता मेघदूतम् और चित्रांगधा पर नृत्य नाटकों का प्रदर्शन करके भारतीय संगीत कला को प्रोत्साहित करने की पहल की है। 
इंजीनियर के बजाए चुना नृत्य कला 
प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना शुभ्रा मिश्रा ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से एमटेक किया है, तो बीटेक एएयू इलाहाबाद(प्रयागराज) उत्तर प्रदेश से किया। इंजीनियर बनने के बजाए उन्होंने भारतीय संगीत और कला को अपना कैरियर बनाया। भारतीय संस्कृति में गुरु व शिष्य की पंरपरा की शैली वाले भरतनाट्यम नृत्य के साथ ओडिसी नृत्य में डेढ़ दशक तक प्रशिक्षण के बाद उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में नृत्य के रूप में कार्याशालाओं में हिस्सा लिया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मंचों पर नृत्य प्रदर्शन भारतीय लोक संस्कृति की झलक दी। जहां तक उनका भारतीय संगीत कला और शास्त्रीय नृत्य कलाकार होने का सवाल है। उन्होंने बताया कि भरतनाट्यम नृत्य के लिए उन्होंने श्रीमती शर्मिष्ठा मलिक और श्रीमती लक्ष्मी के अधीन प्रशिक्षण हासिल किया। जबकि ओडिसी लोक नृत्य के लिए उन्हें सुश्री मधुमिता राउत और मायाधर राउत ने प्रशिक्षित किया। बाद में उन्होंने सुप्रसिद्ध ओडिसी नतृक और शोध विद्वान महापात्र को अपना गुरु मानकर शिष्या के रूप में नृत्यांगना को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाया। भारतीय नाट्यम में मोहिनीअट्टम के लिए सुश्री कीर्थना से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। उन्होंने अनेक पुरस्कार और सम्मान हासिल किये, जिनमें राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार भी प्रमुख रुप से शामिल है। राष्ट्रीय लोक नृत्य प्रतियोगिता में उनके निर्देशन में हरियाणा और राजस्थान नृत्य छात्र-छात्राओं को राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार मिलना उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। 
अरमांडी नृत्य शैली में विशेषता 
भरतनाट्यम शैली अपने निश्चित ऊपरी धड़, मुड़े हुए पैरों और घुटनों के बल (अरमांडी) को पैरों के खेल के साथ, और हाथों, आंखों और चेहरे की मांसपेशियों के इशारों पर आधारित सांकेतिक भाषा की एक परिष्कृत शब्दावली के लिए विख्यात है। नृत्य संगीत और एक गायक के साथ होता है, और आमतौर पर नर्तक के गुरु नट्टुवनार, निर्देशक और प्रदर्शन और कला के संवाहक के रूप में मौजूद होते हैं। भरतनाट्यम नृत्य में गुरु-शिष्य पंरपरा के अनुसार प्रमुख रुप से आठ शैली है। पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) में गणेशन यानी पुष्पांजलि यानी आलारिप्पू यानी फूलो की सजावट के साथ नृत्य पाठ्यक्रम की शुरुआत होती है। जबकि शब्दम् से भाव शुरू होते हैं और इसमें सबसे ज्यादा आकर्षक एवं सुन्दर शैली है, जिसमें नाट्य भावों को लावण्य के माध्यम से विशेषकर ईश्वर की प्रशंसा करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। जबकि जावली शैली में तेज गति वाले संगीत के साथ एक छोटे से प्रेम गीत को प्रस्तुत किया जाता है यानी नायक व नायिका के प्रति प्रेम गीत प्रस्तुत किये जाते हैं। इसकी वर्णम् शैली में देवी देवताओं का वर्णन किया जाता है, जिसमें भाव, ताल एवं राग के माध्यम से कहानियों को प्रदर्शित किया जाता है, जो चुनौतीपूर्ण है। तिल्लाना शैली इस नृत्य का सबसे अंतिम पड़ाव विचित्र भंगिमा जैसी नृत्य कलाओं के माध्यम से नारी की सुंदरता को चित्रण है और यह पूरे प्रदर्शन का सबसे आकर्षक अंग है। 
बचपन में दिखने लगे थे कला के गुण 
भारतीय संगीत और कला के क्षेत्र में कदम रखने के बारे में शुभ्रा मिश्रा ने बताया कि बचपन से ही उन्हें नृत्य और संगीत कला का शोक था। स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए पुरस्कार भी हासिल किये। शुभ्रा मिश्रा का जन्म 19 अक्टूबर 1980 को कोलकाता में हुआ। लोकनृत्य की कला के लिए वह अपने पिता स्वर्गीय गोपाल जी पांडे और माता स्वर्गीय श्रीमती सत्यभामा पांडेय को प्रेरक मानती हैं। माता पिता ने ही उन्हें भारतीय संस्कृति की विभिन्न विधाओं में समृद्ध करके बेटी के हितों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें समकालीन नृत्य कला प्रमुख रही। परिवार के सहयोग से ही वह लगातार भारतीय नृत्यों का प्रशिक्षण लेती रही और प्रतिष्ठित मंचो पर प्रदर्शन करके सम्मान हासिल किये। उनकी शादी के बाद बिहार के मूल निवासी डा. रंजन कुमार, जो दिल्ली में बिजनेस करते हैं ने भी उनके नृत्य कैरियर को भरपूर समर्थन दिया, जो भगवान और गुरुओं को समर्पित है। 
नृत्य विधाओं में अंतर 
भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विधाओं के बारे में पूछे जाने पर शिप्रा ने बताया कि भरतनाट्यम नृत्य, भारतीय शास्त्रीय नृत्य में सबसे प्राचीन कला है, जिसका उद्भव और विकास तमिलनाडु और उसके आस-पास के मंदिरों से हुआ और यह एकल स्त्री नृत्य है। इस नृत्य के प्रमुख अंशो में आलारिप्पु, जाति स्वरम, शब्दम्, वर्णंम, पदम्, तथा तिल्लाना शामिल हैं। जबकि ओडिसी नृत्य ओडिसा का लोक नृत्य है, जिसकी पारम्परिक रूप से नृत्य-नाटिका की शैली है। इसे बेबी डांस भी कह सकते हैं। नाट्यशास्त्र में इस विधा को ओद्र नृत्य कहा जाता रहा है। इसकी दो प्रमुख चौक और त्रिभंग स्थितियां है। चौक की इस मुद्रा में नर्तकी अपने शरीर को थोड़ा सा झुकाती है और घुटने थोड़ा सा मोड़ कर दोनों हांथों को आगे की तरफ फैला लेती है। जबकि त्रिभंग में शरीर को तीन भागों यानी सिर, शरीर और पैर में बांटकर उस पर ध्यान केंद्रित करते हुए नृत्य किया जाता है। एक तरह से इस नृत्य की मुद्राएं और अभिव्यक्तियाँ भरतनाट्यम के जैसी होती हैं। उनका कहना है कि भारत में प्राचीन काल से ही उत्सव और त्योहारों पर नृत्य करने की परम्परा चली आ रही हैं। इसमें प्रत्येक राज्य के अपने अपने पारंपरिक लोक नृत्य भी है, प्रदेश की संस्कृति को बयां करते है। 
हरियाणा के लोक नृत्य 
हरियाणा के प्रमुख लोक नृत्यों में फाग नृत्य, सांग नृत्य, छठि नृत्य, छठि नृत्य, खोरिया नृत्य, धमाल नृत्य, डफ नृत्य, झूमर नृत्य, गुग्गा डांस, लूर नृत्य और रास लीला नृत्य शामिल है। प्रदेश के अन्य हरियाणा के अन्य नृत्यों में ‘चौपाइया’ शामिल हैं, जो एक भक्ति नृत्य है और पुरुषों और महिलाओं द्वारा ‘मंजीरा’ को लेकर किया जाता है। इके अलावा ‘डीपैक’ नृत्य में, मिट्टी के दीपक ले जाने वाले पुरुष और महिलाएं, नृत्य के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं, जो अक्सर पूरी रात चलती है। बारिश के दौरान ‘रतवई’ नृत्य मेवातियों का पसंदीदा है। ‘बीन-बाँसुरी’ नृत्य ‘हवा’ की संगत के साथ चलता है, जो एक हवा का वाद्य यंत्र है और ‘बांसुरी’ को बांसुरी के नाम से भी जाना जाता है। 
03Oct-2022