सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

मंडे स्पेशल: अपनों ने दिए जख्म, चौखट लांघने को मजबूर वृद्ध

आश्रमों ने दिया आसरा, लेकिन कम नहीं हो रहा दर्द ओ.पी. पाल.रोहतक। संस्कृति हमें बुजुर्गो का आदर व सम्मान करना सिखाती है। बड़े बुजुर्गों को परिवार की धरोहर माना जाता है, लेकिन बीते दो दशकों से प्रदेश के वृद्धाश्रमों में अचानक बुजुर्गों की भीड़ बढ़ गई है। यहां रहे रहे वृद्धों की आंखों में न केवल आंसू बल्कि एक गहरे दर्द की दास्तां भी साफ दिखाई देते है। शहर में बढ़ रहे एकल परिवार कल्चर ने बुजुर्गां को अलग-थलग कर दिया है। बेचारे वृद्ध अपने ही घर से बेगाने होकर आश्रमों में शरण लेने को मजबूर हैं। चारदीवारी में बढ़ते कलेश ने मुखियाओं को घर की चौखट लांघने को मजबूर कर दिया है। इनमें से अनेक को अपनों के अत्याचार के शिकार होकर यहां पहुंचे हैं। आश्रमों में अपने के ठुकाराए बुजुर्गो को घर जैसी सुविधाएं देकर अपनात्व का अहसास करवाने का प्रयास तो हो रहा है, लेकिन इनके दिल है दर्द है कि कम होने का नाम नहीं ले रहा। सरकार भी राष्ट्रीय वयोश्री योजना, वृद्धजन नीति, वृद्धा पेंशन के सहारे इन्हें सहेजने का प्रयास कर रही है, लेकिन इतना सब होने के बावजूद घर की बात आते ही इनकी आंखें छलक जाती है। ये हालत तब है जब राज्य सरकार प्रदेश के ऐसे 17 लाख से ज्यादा बुजुर्गो को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से हर माह पेंशन के रूप में आर्थिक मदद दे रही है, जो जीवन यापन करने में असमर्थ हैं। 
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रियाणा सरकार ऐसे बुजुर्गो को वृद्धावस्था पेंशन के रूप में वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना के तहत आर्थिक सहायता दे रही है, जो स्वयं की आय से जीवनयापन करने में असमर्थ हैं। प्रदेश में ऐसे 17.36 लाख से ज्यादा बुजुर्गो को सरकार की इस योजना का लाभ दिया जा रहा है। हालांकि एक आंकड़े के अनुसार हरियाणा की अनुमानित जनसंख्या 2.96 करोड़ में से 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गो की संख्या करीब 21 लाख है, जिसमें 68.96 प्रतिशत शहरी और 31.04 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। आज के इस आधुनियक युग में ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार की संस्कृति भी शहरी क्षेत्र में बढ़ते एकल परिवार की संस्कृति के प्रभाव में आती नजर आ रही है। यही कारण है कि परिवार के बुजुर्गो के प्रति आदर व सम्मान वाली संस्कृति अपनों से ही मुहं मोड़ने लगी है। जबकि हमारी संस्कृति एवं व सभ्यता हमें सबसे पहले महिला, बुजुर्गो और गुरुजनों का आदर व सम्मान करना सिखाती है, यहा तक धर्म ग्रंथों में तो कहा भी गया है कि जो अपने माता पिता को पूर्ण सम्मान देता है उसके लिए तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करना भी सहज हो जाता है। लेकिन देखने में आ रहा है कि प्रदेश में संयुक्त परिवारों के बिगड़ते जा रहे ताना बाना में उन्ही बच्चों द्वारा अपने बुजुर्गो को बेगाना बनाकर ठुकराया जा रहा है, जिनके भविष्य के लिए माता पिता ने अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। जब बुढ़ापे में उन्हें सहारे की जरुरत आई तो परिवार से उनका परित्याग करने की परंपरा ने जोर पकड़ लिया है। यही नहीं परिवार में बुजुर्गो पर अत्याचार और तरह के अपराधों का शिकार तक होना पड़ रहा है। ऐसा पिछले एक दशक में पहली बार साल 2021 में हरियाणा में बुजुर्गो के खिलाफ हुए अपराध का 126 प्रतिशत वृद्धि का आंकड़ा चौंकाने वाला है। 
हिसार के मोक्ष आश्रम में सर्वाधिक बुजुर्ग 
प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपनो द्वारा ठुकराए गये बुजुर्गो में सर्वाधिक 150 से अधिक बेसहारा वृद्धजन हिसार के मोक्ष आश्रम में शरण लिये हुए हैं। इनमें हरियाणा ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के अधिकांश ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें उनके बच्चों ने ठुकराया है। इसी प्रकार जींद के वृद्धाश्रम में 65 आश्रय लेकर रह रहे हैं, तो वहीं कैथल में श्री सनातन धर्म सभा द्वारा संचालित वृद्ध आश्रम में सात बुजुर्ग अपने घरों से त्यागे जाने पर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र के प्रेरणा वृद्धाश्रम में आठ महिलाओं समेत 14 बुजुर्ग रह रहे है, जो पारिवारिक टूट और संस्कारों की कमी के कारण वृद्ध आश्रम में रहने पर मजबूर हैं। महेंद्रगढ़ जिले के नांगल चौधरी के सेवा सीनियर सिटीजन होम में पांच तथा व नारनौल का वृद्धा आश्रम में करीब एक दर्जन बुजुर्गो का शरणस्थली बना हुआ है। रेवाडी शहर के वृद्धाश्रम में ऐसे 12 बुजुर्ग आश्रय लिए हुए है, जिन पर अपनों ने ही सितम ढाकर दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर कर दिया। रेवाडी शहर के ही आस्था कुंज में चल रहे वृद्धाश्रम में भी पांच 5 महिला समेत 12 बुजुर्ग पिछले कई सालों से आश्रय लेकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं। प्रदेश भर के अन्य जिलों में वृद्धाश्रम के अलावा भी विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित आश्रय और आश्रमों में सैकड़ो की संख्या में बुजुर्ग देखने को मिल रहे हैं, जिन्होंने परिवार त्याग दिया है या उन्हें परिवार के सदस्यों ने अपने स्वार्थवश ठुकरा दिया है। 
केंद्र सरकार भी मेहरबान 
केंद्र सरकार द्वारा देशभर में बुजुर्गो के लिए चलाई जा रही योजनाओं का कार्यान्वयन हरियाणा में भी किया जा रहा है। इनमें राष्ट्रीय वयोश्री योजना के तहत इस साल 14 जुलाई तक प्रदेश में बीपीएल श्रेणी के 4848 वृद्धजनों को उनकी शारीरिक क्षमता को सामान्य बनाने के लिए सहायक कत्रिम अंग वितरित किये गये। इसी प्रकार केंद्र की राष्ट्रीय वृद्धजन नीति के तहत केंद्र से मिलने वाली सहायता राशि को राज्य में बुजुर्गो के जीवन में सुधार लाने के लिए खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और जरुरतों को पूरा करने के खर्च किया जा रहा है। वहीं ऐसे स्वस्थ्य बुजुर्गो, जो रोजगार करना चाहते हैं के लिए भी राज्य में सिक्रेड यानी एसएससीआरईडी नामक पोर्टल सक्रीय है, जिसमें प्रदेश के 137 बुजुर्गो ने इस साल पुन: रोजगार के लिए पंजीकरण कराया है। अभी तक शारीरिक क्षमता को देखते हुए दो बुजुर्गो को रोजगार दिया जा चुका है। प्रदेश में सामाजिक कल्याण विभाग की देखरेख में बनाए जा रहे वृद्धाश्रमों में बुजुर्गो के जीवन को सामान्य बनाने की दिशा में पार्क, फिजियोथेरेपी सेंटर, केयर सेंटर, ऑब्जर्वेशन रुम, एक्टिविटी रुम, डायनिंग रुम व तीनों फ्लोर पर किचन जैसी सुविधाएं मुहैया करा रही है। 
वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना 
राज्य सरकार ने पिछले साल ही प्रदेश में वर्ष 1991 में शुरू हुई वृद्धावस्था पेंशन योजना का उदारीकरण करते हुए उसे वृद्धावस्था सम्मान भत्ता योजना के नाम दिया है, जिसमें सरकार ने 60 वर्ष की न्यूनतम आयु को आधार मानकर इस साल से 3100 रुपये प्रतिमाह की पेंशन देना शुरू किया है। हरियाणा सरकार ने इस साल जून माह में राज्य के 17.36 लाख वृद्धजनों को इस योजना के तहत 433.95 करोड़ रुपये की पेंशन देने का दावा किया है। इनमें सबसे ज्यादा हिसार जिले में 125696 बुजुर्गो को 31.42 करोड़ रुपये से ज्यादा धनराशि का वितरण किया गया है। इसके अलावा सरकार वृद्धों का उत्साहवर्धन करने के लिए पुरस्कार योजना भी चला रही है। इसके लिए वर्ष 2008-09 में हरियाणा सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिक स्वैच्छिक सेवाएं संगठन के रूप में नैटवर्क स्थापित करने की योजना शुरू की थी। इस योजना को हरियाणा के सभी जिलों शहरी सम्पदा में वरिष्ठ नागरिक क्लब की स्थापना के साथ जोड़ा गया है। राज्य के 14 जिलों में ऐसे संगठन कार्य कर रहे हैं। इसके तहत हर साल अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर राज्य स्तर पर पुरस्कृत किए जाने का प्रावधान है। जिसके लिए सरकार ने वर्ष 2020-21 के लिए 20.00 लाख रुपये के बजट का प्रावधान है, जिसमें लगभग 9.65 लाख रुपये खर्च हो चुके है। 
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समाज में सकारात्मक सोच जरुरी 
आज समाज का ताना बाना इतना बिगड गया है, कि अपनी संस्कृति और सभ्यता भूलते जा रहे समाज की विसंगतियों की वजह से आज रिश्तों को भूलकर धन और अपनी सुख सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाने लगी है। बढ़ते शहरीकरण में संयुक्त परिवार की परंपरा छोड़कर एकल परिवार की परंपरा शुरू हो गई है। यही कारण है कि जिन बच्चों को मां बाप ने पालकर लायक बनाने में पूरा जीवन लगा दिया, अब वही उनका सहारा बनने के बजाए उन्हें त्याग रहे हैं। नई पीढ़ी की इस भोगविलासिता के कारण उनके खुद के बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए सोच विचार करके सकारात्मक सोच को विकसित करना होगा, कि ऐसे संस्कार लेकर उनके बच्चे भी भविष्य में उनके साथ यही बर्ताव करेंगे। 
 -प्रो. देशराज सब्बरवाल, पूर्व अध्यक्ष समाज शास्त्र, एमडीयू रोहतक।
17Oct-2022

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