सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: समाज के बिना साहित्य की कल्पना संभव नहीं: डा. सुभाष रस्तोगी

महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुभाष रस्तोगी 
जन्म: 17 अक्टूबर 1950 
जन्म स्थान: अम्बाला छावनी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (हिन्दी), पीएचडी 
संप्रत्ति: भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन कार्य संपर्क: फ्लैट नं. 14-ए डिवाइन अपार्टमेंट्स, विकास नगर, वार्ड नं. 12, बलटाना, जीरकपुर(पंजाब)-140604 मोबाइल: 089689-87259, ईमेल: subhashrastogi65@gmail.com ---- 
रियाणा के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार और समीक्षक डा. सुभाष रस्तोगी उन साहित्यकारों में शामिल हैं, जो सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर लेखन करते हुए समाज को नई दिशा देने के मकसद से साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकों की रचनाएं करने वाले सुभाष रस्तोगी को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए हरियाणा अकादमी ने महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत किया। इससे पहले अकादमी उन्हें बालमुकुन्द गुप्त सम्मान और पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान से भी नवाज चुका है। पंजाब में भारत सरकार के कार्यालय में राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त डा. सुभाष रस्तोगी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने संघर्षपूर्ण जीवन और साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जो ये साबित करते हैं कि संघर्ष के बाद आने निष्कर्ष स्वर्णिम जीवन की गाथा लिख सकता है। 
रियाणा के अंबाला छावनी में एक मध्य वर्गीय परिवार में 17 अक्टूबर 1950 को जन्मे डा. सुभाष रस्तोगी का बचपन बहुत ही अभावों के बीच बीता। इसी बचपन में उनको परिवार में पुस्तकें पढ़ने का माहौल मिला। इसकी सूत्राधार और कोई नहीं उनकी माता रही, जिनके पास पुस्तकों का भंडार था। मां के किताबी भंडार से देशभक्त और क्रांतिकारियों के जीवनियां व अध्यात्मिक वाली किताबों को सुभाष अपनी पाठ्यक्रम की किताबों के बीच रखकर पढ़ने लगे। उन्हें लेखन और साहित्यिक संस्कार का माहौल अपनी मां से ही मिला। वहीं घर में पिता के अनुशासन ने उन्हें ऐसे संस्कार दिये कि जो उन्हें किस्से व कहानी तक सुनाते थे। शायद किताबे पढ़ने और आदर्श और जीवन मूल्य से भरी कहानी किस्से सुनते सुनते सुभाष रस्तोगी को लेखक की कल्पना के पंख लगने लगे। वे इन साहत्यिक उपलब्धियों का श्रेय अपनी पत्नी सरोजनी को भी देते हुए कहते हैं कि उनकी जीवन-संगनी सरोजिनी उन्हें घर परिवार की चिंताओं से मुक्त करके हर बार शब्द की पदयात्रा पर निकलने के लिए उपयुक्त माहौल और प्रेरणा न देती, तो शायद वह एक कदम भी न चल पाते। उनके संघर्ष और जीवट को अनंत छवियां उन्होंने अपनी कविताओं और कहानियों में भी समायोजित किया है। इन्हीं पंखो से उड़ान भरते हुए आज उनका साहित्यिक सफर बुलंदियों पर है। रस्तोगी की पहली कविता ‘रात के अंधेरे में’ शीर्षक से साल 1969 में हरियाणा की एक पत्रिका में प्रकाशित हुई, जो वर्ष 1971 में प्रकाशित उनके पहले कविता संग्रह 'टूटा हुआ आदमी' में भी शामिल हुई। उनके पहले कविता संग्रह प्रकाशित होने पर उनकी मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। इसके बाद 1972 में 'और जीवन छल गया' तथा 'अग्निदेश' जैसे प्रारंभिक कविता-संग्रह प्रकाशित होने से उनके साहित्य के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा। इसके बाद वर्ष 1974 उपन्यास 'टूटे सपने' तथा वर्ष 1975 में कहानी संग्रह 'ठहरी हुई जिन्दगी' प्रकाशित हुए। 
संघर्ष में ही जीवन की राह 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का मानना है कि लेखक का साहित्यिक सफर उसके व्यक्तिगत जीवन से अलग नहीं होता। कालेज के दिनों में तो उन्हें लोहे के चने चबाने जैसे मोड से भी गुजरना पड़ा। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से भी उनका जीवन बेहद ही अभावों के बीच संघर्षपूर्ण बीता। बिजली न होने पर घर में लालटेन में पढ़कर परीक्षा दी। हालात यहां तक थे कि उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने बचे हुए समय में टयूशन पढ़ाया। उनका मानना है कि ऐसा संघर्ष की विपरीत परिस्थितियों में किसी भी इंसान की शक्ति और ऊर्जा के लिए सकारात्मक रास्ता मिल ही जाता है, जिसे वे भी अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी मानते हैं। डा. सुभाष रस्तोगी ने बताया कि पढ़ाई और खर्च के लिए टयूशन पढ़ाने के बीच उनके लेखन का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा। इसी दौरान उन्होंने इन्हीं दिनों पारसी थिएटर की तर्ज पर 'पागल ग्रेजुएट' (नाटक) तथा 'अभागा' शीर्षक से एक उपन्यास भी लिखा। इस नाटक का अम्बाला छावनी में मंचन भी हुआ और खूब वाहवाही भी लूटी। वे जीवन में जैसे पडावों से गुजरे हैं, उसी के नक्स उनके लेखन में साफतौर से देखे जा सकते हैं। 
र्व हिताय में निहित साहित्य 
डा. रस्तोगी का कहना है कि साहित्य लेखन समाज के हित में होता है, इसलिए समाज को नजरअंदाज करके किसी भी तरह के लेखन की कल्पना करना बेमाने है। लेखन अपने समय का आईना होता है, तो मशाल भी होता है जो अपने समय को रास्ता भी दिखाता चलता है। लेखक वास्तव में बार बार अपने जीवन और समाज की ओर ही लौटता है। कब कौन सी घटना कविता या कहानी की शक्ल में कागज पर उतर जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं होता। उनका मानना है कि उनके लेखन के जरिए आप मेरे जीवन की तमाम अंसगतियों व विसंगतियों के आर पार सहजता से झांक सकते हैं। 
हिंदी साहित्य की स्थिति सुखद 
साहित्यकार सुभाष रस्तोगी का इस आधुनिक युग साहित्य की स्थिति के बारे में कहना है कि भारतीय भाषाओं की तुलना में हिंदी साहित्य की वर्तमान स्थिति प्रत्येक दृष्टि से सुखद है, बल्कि हिंदी भाषा का साहित्य आज वैश्विक स्तर पर अलग से पहचाना जाता है। हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि हर लिखी चीज साहित्य नहीं हो सकती और हर छपी चीज पुस्तक भी नहीं हो सकती। प्रत्येक साहित्यिक विद्या में कथागत और कहनगत नए नए प्रयोग होने के साथ इस युग में कई नवयुत्तर विद्याए भी उभरकर सामने आई हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि काल की छलनी बड़ी निर्ममता से छानती है। मसलन हिंदी साहित्य का वर्तमान रचना और आलोचना दोनों दृष्टि से आवश्वत करता है। हिन्दी साहित्य का यदि विधागत मूल्यांकन की दृष्टि को देखें, तो शोध की स्थिति साहित्यिक समालोचना की स्थिति भी संतोषजनक है। जहां तक हरियाणा के साहित्यकारों की रचनाओं और कृतियों का सवाल है, सूबे के साहित्य का अपना स्वतंत्र इतिहास है और वैज्ञानिक दृष्टि से नित्य उसका मूल्यांकन भी होता है। यहां साहित्यिक समालोचना के साथ नए आयाम और शोध कार्य भी लगातार हो रहे हैं। 
सोशल मीडिया का कुप्रभाव 
साहित्य क पाठक वास्तव में ही कम हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रानिक यानी सोशल मीडिया है, जो अनर्गल शब्दों ने परंपरागत भारतीय परिवाद की चूलें तक हिलाने का काम किया। इसके कारण परिवारिक रिश्तों पर ही सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। भारतीय समाज के लिए सबसे ज्यादा संकट और चिंता की स्थिति तो ये है कि इस युग में भाषा की नैतिकता का बहुत ही ज्यादा पतन हो रहा है। जहां तक युवाओं में साहित्य के प्रति रुझान कम होने का सवाल है इसका कारण भी यही है, जिसमें यही सच है कि कि आज के युवाओं में साहित्य पढ़ने के संस्कार संभव नहीं हैं। आधुनिक युग में युवाओं की प्राथमिकताएं इतनी तेजी से बदल रही हैं, जिसके लिए परिवार को भी कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। पहले बच्चों को जन्मदिन पर अच्छी किताबे उपहार में देने का चलन था, जो अब नहीं है। किताबों से जुड़ना अपनी जहां से जुड़ना है। यदि भारतीय परिवार पुन: अपनी जड़ो से जुड़ेगा तो किताबों का मूल्य भी फिर से उनकी समझ में आ जाएगा। अब भी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं की कमी नहीं है। यदि ऐसी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाएं परिवार में आने का चलन बढ़ेगा तो निश्चय ही युवाओं को पुन: साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा। इसी के कारण साहित्य में लेखन के स्तर पर गिरावट आज रही है। लेखक रातो रात स्वयं को साहित्यिक परिदृश्य में साहित्यकार के तौर पर स्थापित करने की ललक ओर होड़ भी इसका मुख्य कारण है। 
युवाओं के प्रेरणादायक 
साहित्यकार डा. सुभाष रस्तोगी के साहित्य लेखन की गुणवत्ता और सर्वहिताय की परिकल्पना वाले सहित्य की ही उपलब्धियां है कि उनकी कविताएं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वहीं दिल्ली सरकार की सातवीं और आठवीं तथा पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड की ग्यारहवीं कक्षा की हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में शामिल कविताएं छात्र-छात्राओं को प्रेरणा दे रही हैं। यही नहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा उत्तर भारत के कई विश्वविद्यालयों में उनके व्यक्तित्व एवं कृतियों पर केन्द्रित एमफिल तथा पीएचडी हेतु विद्यार्थियों ने शोध कार्य भी किया है। 
पुस्तकें व रचनाएं 
साहित्यकार एवं कवि सुभाष रस्तोगी की अब तक हिन्दी की विभिन्न विद्याओं में तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 18 कविता-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास, 5 जीवनी, एक संस्मरण संग्रह तथा 5 समालोचना ग्रंथ सम्मिलित हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं के कविता संग्रह में टूटा हुआ आदमी, और जीवन चला गया, अग्नि-देश, कत्ल सूरज का, वक्त की साजिश, अपना अपना सच, पटकोण, तपते हुए दिनो के बीच, बयान मौसम का, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशनी होती चीजे, समय के सामने, मेरी प्रिय कविताएं, रास्ता किधर से है, अंधेरे में कत्थक, आदमी जो चौंक उठता है नींद में, सुभाष रस्तोगी की प्रेम कविताएं जैसी पुस्तकें सुर्खियों में हैं। संपादक डॉ. लालचन्द शुम 'मंगल', 'यह कैसा दृश्यान्तर है' (लम्बी कविताएँ) के अलावा कविता, व्यंग्य एवं आलोचना की नौ संपादित कृतियां प्रकाशित हैं। अमर क्रांतिकारी सुखदेव (जीवनी) तथा अंधेरे में कत्थक (कविता-संग्रह) का पंजाबी में अनुवाद भी हुआ है। डॉ. सोमदत्त अत्री द्वारा लिखित 'सुभाष रस्तोगी का रचना संसार' शीर्षक से एक आलोचनात्मक ग्रंथ प्रकाशित हुआ। वहीं हरियाणा साहित्य अकादमी की 'हरिगंधा' (मासिक) फरवरी 2019 के 'रचना-प्रक्रिया विशेषांक' का अतिथि संपादन करने का भी उन्हें अवसर मिला। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला द्वारा वर्ष 2020 के लिए डा. सुभाष रस्तोगी को पांच लाख रुपये के महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें साल 2016 का पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान तथा साल 2010 का बाबू बालमुकुन्द गुप्त साहित्य सम्मान से भी अलंकृत कर चुकी है। इसके अलावा अकादमी ने उनकी पाँच कृतियाँ भी पुरस्कृत की हैं। 
31Oct-2022

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