सोमवार, 3 अक्तूबर 2022

साक्षात्कार: लोक संस्कृति व कला में भारतीय संस्कृति के रंग भरती शुभ्रा मिश्रा

भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य कला में नृत्य रत्ना अवार्ड से सम्मानित 
    व्यक्तिगत परिचय 
नाम:श्रीमती शुभ्रा मिश्रा 
जन्म:19 अक्टूबर 1980 
जन्म स्थान:कोलकाता(पश्चिम बंगाल) 
शिक्षा:बीटेक(एएयू इलाहाबाद), एमटेक(एमडीयू रोहतक), भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य में प्रशिक्षण 
संप्रत्ति:नृत्य शिक्षिका के रूप में बच्चों को लोक संस्कृति की शिक्षा देना 
पिता का नाम: स्व.गोपाल जी पांडे 
माता का नाम:श्रीमती सत्यभामा पांडेय
संपर्क:मकान नं. 550, सेक्टर-30, फरीदाबाद(हरियाणा), मोबा.-97160 33638
-BY: ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक संस्कृति एवं कला में भारतीय संस्कृति के रंग भरने में जुटी भारतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य और ओडिसी लोक नृत्य विशेषज्ञ श्रीमती शुभ्रा मिश्रा पिछले एक दशक से ज्यादा समय से सूबे की युवा पीढ़ी को लोक संगीत-कला को जीवंत करने के मकसद से भारतीय शास्त्रीय संगीत और कला के गुर भी सिखा रही हैं। हरियाणा के लोक कला व संगीत के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने वालों को गुरु और शिष्य की पंरपरा वाला भरतनाट्य और ओडिसी नृत्य खूब भाने लगा है। इसी का नतीजा है कि हरियाणवी लोक नृत्य प्रतियोगिता में छात्र-छात्राओं ने अव्वल रहते हुए राष्ट्रीय सम्मान पाया। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य कला में नृत्य रत्ना अवार्ड से सम्मानित शुभ्रा मिश्रा ने उम्मीद जताई है कि हरियाणा की लोक संस्कृति और कला एक दिन उच्च शिखर पर होगी। 
प्रदेश के फरीदाबाद निवासी श्रीमती शुभ्रा मिश्रा का कहना है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत कला और लोक संस्कृति का लोहा विश्व के अन्य देश और अन्य संस्कृति को मानने वाले लोग भी मानते हैं। लेकिन विड़ंबना है कि आज भारतीय लोक संगीत और कला विदेशों में चली गई, जिसे भारत में पुनर्जीवित करने के मकसद से ही वे युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए बच्चों को लोक नृत्य सिखा रही हैं। उनका कहना है कि इस आधुनिक युग में भारतीय संस्कृति के प्रमुख शास्त्रीय संगीत-कला, लोक संस्कृति के प्रति रूझान कम होता जा रहा है, इसलिए बच्चों को वॉलीवुड और पाश्चत्य संस्कृति से अपनी संस्कृति और पारंपरिक लोक संगीत व कला या नृत्य को प्रोत्साहन देने का प्रयास है। बच्चों को इसके लिए भी जागरुक किया जा रहा है कि वे अपनी भारतीय संस्कृति को मिटने न दें, क्योंकि भारत के सूत्राधार बच्चें ही हैं। 
लोक संस्कृति को प्रोत्साहन 
भारतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विशेषज्ञ शुभ्रा मिश्रा भले ही मूल निवासी कोलकाता (पश्चिम बंगाल) की हों, लेकिन शादी के बाद से हरियाणा आने के बाद वे फरीदाबाद में रहने लगी है। लोक संगीत व कलाकार होने के नाते उन्होंने हरियाणा की लोक संस्कृति व कला का अध्ययन करना शुरू किया, तो उन्होंने पाया कि हरियाणा लोक कला और संगीत का हब है, लेकिन हरियाणवी संस्कृति और लोक कला के प्रति आज की पीढ़ी के कम होते रुझान पर चिंता जाहिर की। इसलिए उन्होंने अपनी लोक कला के अनुभव का इस्तेमाल हरियाणा की लोक कला व संगीत को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का बीड़ा उठाया। शुभ्रा मिश्रा फरीदाबाद में ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य और लोक संगीत कला सीखाने के लिए एक इंस्टीटयूट का संचालन करने लगी। यही नहीं फरीदाबाद के वाईएमसीए तथा एसओएस स्कूल के अलावा कई संस्थाओं में भी अतिथि नृत्य शिक्षिका की भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने कालिदास की कविता मेघदूतम् और चित्रांगधा पर नृत्य नाटकों का प्रदर्शन करके भारतीय संगीत कला को प्रोत्साहित करने की पहल की है। 
इंजीनियर के बजाए चुना नृत्य कला 
प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना शुभ्रा मिश्रा ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से एमटेक किया है, तो बीटेक एएयू इलाहाबाद(प्रयागराज) उत्तर प्रदेश से किया। इंजीनियर बनने के बजाए उन्होंने भारतीय संगीत और कला को अपना कैरियर बनाया। भारतीय संस्कृति में गुरु व शिष्य की पंरपरा की शैली वाले भरतनाट्यम नृत्य के साथ ओडिसी नृत्य में डेढ़ दशक तक प्रशिक्षण के बाद उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में नृत्य के रूप में कार्याशालाओं में हिस्सा लिया। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मंचों पर नृत्य प्रदर्शन भारतीय लोक संस्कृति की झलक दी। जहां तक उनका भारतीय संगीत कला और शास्त्रीय नृत्य कलाकार होने का सवाल है। उन्होंने बताया कि भरतनाट्यम नृत्य के लिए उन्होंने श्रीमती शर्मिष्ठा मलिक और श्रीमती लक्ष्मी के अधीन प्रशिक्षण हासिल किया। जबकि ओडिसी लोक नृत्य के लिए उन्हें सुश्री मधुमिता राउत और मायाधर राउत ने प्रशिक्षित किया। बाद में उन्होंने सुप्रसिद्ध ओडिसी नतृक और शोध विद्वान महापात्र को अपना गुरु मानकर शिष्या के रूप में नृत्यांगना को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाया। भारतीय नाट्यम में मोहिनीअट्टम के लिए सुश्री कीर्थना से उन्होंने बहुत कुछ सीखा। उन्होंने अनेक पुरस्कार और सम्मान हासिल किये, जिनमें राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार भी प्रमुख रुप से शामिल है। राष्ट्रीय लोक नृत्य प्रतियोगिता में उनके निर्देशन में हरियाणा और राजस्थान नृत्य छात्र-छात्राओं को राष्ट्रीय लोक नृत्य पुरस्कार मिलना उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। 
अरमांडी नृत्य शैली में विशेषता 
भरतनाट्यम शैली अपने निश्चित ऊपरी धड़, मुड़े हुए पैरों और घुटनों के बल (अरमांडी) को पैरों के खेल के साथ, और हाथों, आंखों और चेहरे की मांसपेशियों के इशारों पर आधारित सांकेतिक भाषा की एक परिष्कृत शब्दावली के लिए विख्यात है। नृत्य संगीत और एक गायक के साथ होता है, और आमतौर पर नर्तक के गुरु नट्टुवनार, निर्देशक और प्रदर्शन और कला के संवाहक के रूप में मौजूद होते हैं। भरतनाट्यम नृत्य में गुरु-शिष्य पंरपरा के अनुसार प्रमुख रुप से आठ शैली है। पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) में गणेशन यानी पुष्पांजलि यानी आलारिप्पू यानी फूलो की सजावट के साथ नृत्य पाठ्यक्रम की शुरुआत होती है। जबकि शब्दम् से भाव शुरू होते हैं और इसमें सबसे ज्यादा आकर्षक एवं सुन्दर शैली है, जिसमें नाट्य भावों को लावण्य के माध्यम से विशेषकर ईश्वर की प्रशंसा करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है। जबकि जावली शैली में तेज गति वाले संगीत के साथ एक छोटे से प्रेम गीत को प्रस्तुत किया जाता है यानी नायक व नायिका के प्रति प्रेम गीत प्रस्तुत किये जाते हैं। इसकी वर्णम् शैली में देवी देवताओं का वर्णन किया जाता है, जिसमें भाव, ताल एवं राग के माध्यम से कहानियों को प्रदर्शित किया जाता है, जो चुनौतीपूर्ण है। तिल्लाना शैली इस नृत्य का सबसे अंतिम पड़ाव विचित्र भंगिमा जैसी नृत्य कलाओं के माध्यम से नारी की सुंदरता को चित्रण है और यह पूरे प्रदर्शन का सबसे आकर्षक अंग है। 
बचपन में दिखने लगे थे कला के गुण 
भारतीय संगीत और कला के क्षेत्र में कदम रखने के बारे में शुभ्रा मिश्रा ने बताया कि बचपन से ही उन्हें नृत्य और संगीत कला का शोक था। स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए पुरस्कार भी हासिल किये। शुभ्रा मिश्रा का जन्म 19 अक्टूबर 1980 को कोलकाता में हुआ। लोकनृत्य की कला के लिए वह अपने पिता स्वर्गीय गोपाल जी पांडे और माता स्वर्गीय श्रीमती सत्यभामा पांडेय को प्रेरक मानती हैं। माता पिता ने ही उन्हें भारतीय संस्कृति की विभिन्न विधाओं में समृद्ध करके बेटी के हितों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें समकालीन नृत्य कला प्रमुख रही। परिवार के सहयोग से ही वह लगातार भारतीय नृत्यों का प्रशिक्षण लेती रही और प्रतिष्ठित मंचो पर प्रदर्शन करके सम्मान हासिल किये। उनकी शादी के बाद बिहार के मूल निवासी डा. रंजन कुमार, जो दिल्ली में बिजनेस करते हैं ने भी उनके नृत्य कैरियर को भरपूर समर्थन दिया, जो भगवान और गुरुओं को समर्पित है। 
नृत्य विधाओं में अंतर 
भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विधाओं के बारे में पूछे जाने पर शिप्रा ने बताया कि भरतनाट्यम नृत्य, भारतीय शास्त्रीय नृत्य में सबसे प्राचीन कला है, जिसका उद्भव और विकास तमिलनाडु और उसके आस-पास के मंदिरों से हुआ और यह एकल स्त्री नृत्य है। इस नृत्य के प्रमुख अंशो में आलारिप्पु, जाति स्वरम, शब्दम्, वर्णंम, पदम्, तथा तिल्लाना शामिल हैं। जबकि ओडिसी नृत्य ओडिसा का लोक नृत्य है, जिसकी पारम्परिक रूप से नृत्य-नाटिका की शैली है। इसे बेबी डांस भी कह सकते हैं। नाट्यशास्त्र में इस विधा को ओद्र नृत्य कहा जाता रहा है। इसकी दो प्रमुख चौक और त्रिभंग स्थितियां है। चौक की इस मुद्रा में नर्तकी अपने शरीर को थोड़ा सा झुकाती है और घुटने थोड़ा सा मोड़ कर दोनों हांथों को आगे की तरफ फैला लेती है। जबकि त्रिभंग में शरीर को तीन भागों यानी सिर, शरीर और पैर में बांटकर उस पर ध्यान केंद्रित करते हुए नृत्य किया जाता है। एक तरह से इस नृत्य की मुद्राएं और अभिव्यक्तियाँ भरतनाट्यम के जैसी होती हैं। उनका कहना है कि भारत में प्राचीन काल से ही उत्सव और त्योहारों पर नृत्य करने की परम्परा चली आ रही हैं। इसमें प्रत्येक राज्य के अपने अपने पारंपरिक लोक नृत्य भी है, प्रदेश की संस्कृति को बयां करते है। 
हरियाणा के लोक नृत्य 
हरियाणा के प्रमुख लोक नृत्यों में फाग नृत्य, सांग नृत्य, छठि नृत्य, छठि नृत्य, खोरिया नृत्य, धमाल नृत्य, डफ नृत्य, झूमर नृत्य, गुग्गा डांस, लूर नृत्य और रास लीला नृत्य शामिल है। प्रदेश के अन्य हरियाणा के अन्य नृत्यों में ‘चौपाइया’ शामिल हैं, जो एक भक्ति नृत्य है और पुरुषों और महिलाओं द्वारा ‘मंजीरा’ को लेकर किया जाता है। इके अलावा ‘डीपैक’ नृत्य में, मिट्टी के दीपक ले जाने वाले पुरुष और महिलाएं, नृत्य के माध्यम से अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं, जो अक्सर पूरी रात चलती है। बारिश के दौरान ‘रतवई’ नृत्य मेवातियों का पसंदीदा है। ‘बीन-बाँसुरी’ नृत्य ‘हवा’ की संगत के साथ चलता है, जो एक हवा का वाद्य यंत्र है और ‘बांसुरी’ को बांसुरी के नाम से भी जाना जाता है। 
03Oct-2022

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