सोमवार, 29 मई 2023

मंडे स्पेशल: ऐसे कैसे पूरा होगा गरीबों के सिर पर छत का सपना!

दस्तावेज व कीमते आवंटन में बन रही है अडंगा पीएमआवास की तर्ज पर अब सरकार ने शुरू की मुख्यमंत्री आवास योजना 
प्रदेश में 1805.61 करोड़ की धनराशि से बने 88 हजार आवास, ज्यादातर खंडहरों में बदले 
ओ.पी. पाल.रोहतक। राज्य सरकार ने प्रदेश के गरीबों और बेघरों के सिर पर छत मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना की तर्ज पर दीन दयाल जन आवास योजना को बंद करके नई योजना के रुप में मुख्यमंत्री आवास योजना शुरु की है। इस नई योजना के तहत इस मौजूदा साल में एक लाख किफायती मकान बनाने का लक्ष्य रखा है। सरकार के हर सिर पर छत’ का यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन इसलिए भी है, कि पिछले सात साल मंी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार दीन दयाल जन आवास योजना जैसी मुहिम में मकान बनाने की गति इतनी धीमी रही कि स्वीकृत 1.97 लाख आवास में महज 44.63 प्रतिशत मकान बनाने का लक्ष्य ही हासिल किया जा सका है। दिलचस्प बात ये है कि प्रदेश में गरीबों के लिए जो आवास बनाए गये है, उनमें बसाने के लिए सरकार के सामने गरीबों का टोटा है। ऐसा भी नहीं है कि गरीब या बेघरों की प्रदेश में संख्या कम है, बल्कि सरकार की सब्सिडी के बावजूद इन मकानों की बड़ी कीमत और मकान के लिए आवेदकों के सामने दस्तावेजों का अडंगा सामने आ रहा है। यही कारण है कि सरकार द्वारा 1805.61 करोड़ की धनराशि से बनाए जा गये अधिकांश आवास खंडहरों में बदलते नजर आ रहे हैं। 
---- 
प्रदेश सरकार ने पीएम आवास योजना के तहत दीनदयाल जन आवास योजना को बंद करके इस साल से मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत एक लाख मकान बनाने का लक्ष्य रखा है, ताकि आवासों को किफायती दामों पर प्रदेश के हर बेघर और गरीब के सिर पर छत मुहैया कराई जा सके। जबकि प्रदेश में पिछले सात साल में शहरी व ग्रामीण इलाकों में बनाए गये करीब 88 हजार आवासों में भी सरकार की दस्तावेज और मकानों की कीमत के कारण गरीबो को मकानों का आवंटन ऊंट के मुहं में जीरा जैसी कहावत साबित हो रहा है। यही कारण है कि सरकार ने गरीबों के लिए बनाए गये मकानों को पिछले सालों में सामान्य नागरिकों को भी आवंटित करने का विकल्प खुला कर दिया था। प्रदेश में पिछले सात सालों में गरीबों के लिए बनाए गये मकानों के आवंटन के जो हालात हैं, उसमें तकरीबन सभी जिलों में बने ज्यादातर आवासों के लिए आवंटन तक गरीब की पहुंच बेहद कम है। जो मकान या फ्लैट आवंटित भी हुए हैँ, तो वहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और खाली आवास खंडहरों का रुप धारण करते नजर आ रहे हैं। योजना के तहत बने आवासों का हाल ये है कि कैथल में 661 फलैट में से 101, फतेहाबाद में 257 फ्लैटों में से मात्र 4 फ्लैट, कुरुक्षेत्र में 1053 में से 522 फ्लैट और जींद में 252 फ्लैटों में 142 का ही आवंटन हो सका है। इसी प्रकार अंबाला, गुरुग्राम, रेवाड़ी, हिसार, करनाल, सोनीपत आदि जिलों के शहरी व ग्रामीण इलाकों में बने आवास भी गरीबों के इंतजार में खंडहर में बदलते नजर आ रहे हैं। कुछ जिलों में आवंटन के बाद गरीब सुविधाओं के अभाव में वापस भी कर रहे हैं। 
कैसे सिरे चढ़ेगी सरकार की योजना 
हरियाणा में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत साल 2022 तक गरीबों के लिए 2.81 लाख आवास बनाए जाने थे, इनमें से स्वीकृत 1.96,964 आवासों में से पिछले साल साल में अभी तक राज्य सरकार दीन दयाल जन आवास योजना के जरिए 87,910 आवास बनवा सकी है। इनमें प्रदेश के 38 शहरों और कस्बों में 64,481 और ग्रामीण क्षेत्रों में 23,429 मकान बनाए गये हैं। शहरी क्षेत्र के लिए 1,66,175 और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 30,789 आवास स्वीकृत हैं। मसलन राज्य में गरीबों के लिए 44.63 प्रतिशत मकानों को बनाने के हासिल किये लक्ष्य में शहरी क्षेत्र में 38.8 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 76.10 फीसदी मकान बनाए गये हैं। प्रदेश में आवास योजना में केंद्र व राज्य सरकार के व्यय अनुपात 60:40 के तहत अब तक शहरी क्षेत्र में 1473.64 करोड़ रुपये व ग्रामीण क्षेत्र में 331.97 करोड़ की धनराशि खर्च की जा चुकी है। इसके बावजूद सवाल है कि साल 2023 में पीएम आवास योजना की तर्ज पर मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत राज्य सरकार का एक लाख मकान बनाने का लक्ष्य पिछले साल के के लक्ष्य को देखते हुए कैसे कारगर होगा, इस पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है? वहीं प्रदेश में अंत्योदय-सरल योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए मकान मुहैया कराने हेतु हाउसिंग बोर्ड हरियाणा के फ्लैट और प्लाट देने की योजना भी चल रही है, जिसमें गरीबो को किफायदी दामों पर मकान मुहैया कराने का लक्ष्य है। 
आशियाने का सपना नामुमकिन 
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पीएमएवाई के तहत राज्य में जिस प्रकार से पात्रता के लिए दस्तावेज अनिवार्य किये गये हैं। उसके तहत बेघर गरीबों के सिर पर छत का सपना अधूरा रहने की ज्यादा संभावना है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो हरियाणा सरकार के साल 2007 में कराए गये सर्वे में प्रदेश में 7,86,862 परिवार ऐसे थे, जिनके पास अपनी जमीन और मकान नहीं थे। जबकि बेघर परिवारों की संख्या 51, 841 सामने आई, जिनमें 23,789 यानी 45.9 प्रतिशत शहरी और 28,082 यानी 54.1 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों के शामिल रहे। वहीं प्रदेश में 2011 की जनगणना में प्रदेश में 3,32,697 परिवार झुग्गियों में रहने वाले थे, जबकि स्लम बस्तियों में रहने वालों की इससे कहीं ज्यादा आंकी गई है। इसके अलावा प्रदेश में गरीबी के दायरे में शामिल करीब 82 हजार परिवार किराए के मकानों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जिनमें 62176 परिवार शहरी और 19724 परिवार ग्रामीण क्षेत्रों मंं किराएदार हैं। पिछले साल ही सरकार बीपीएल परिवारों यानि गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों का आय के आधार पर सर्वेक्षण कराया, जिसके बाद ऐसे परिवारों की संख्या 46.31 लाख से घटकर करीब 29 लाख रह गई है। 
दस्तावेज व कीमत बने अडंगा 
प्रदेश में गरीबों के लिए पीएम आवास योजना के तहत राज्य सरकार भले ही अपनी कई योजनाएं चला रही हो, लेकिन उन्हें आशियाना के लिए पंजीकरण कराने के लिए जिन दस्तावेजों को जमा कराने की अनिवार्यता व शर्त रखी है, उसमें सर्वे के बाद ज्यादातर गरीब या जरुरतमंद आवास योजना से बाहर हो जाते हैं। पीएम आवास योजना (ग्रामीण) के केंदीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के ताजा आंकड़ो में हरियाणा में ऐसे ढ़ाई हजार से ज्यादा यानी 2550 गरीबों के बैंक अकाउंट ही निरस्त किये जा चुके हैं। वहीं प्रदेश में जो आवास बने हैं, उनके आवंटन के लिए गरीबों की पहुंच उनकी ज्यादा कीमत भी किसी चुनौती से कम नहीं है। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना की तर्ज पर ही हरियाणा सरकार दीनदयाल जन आवास योजना के रुप में गरीबों के लिए ईडब्लूएस, एलआईजी, एमआईजी की दो श्रेणियों के आवास बने हैं। इसमें ईडब्लूएस के 30 स्क्वायर मीटर के मकान की कीमत करीब साढ़े पांच लाख रुपये है, जिसमें तक 2,67,280 रुपये जमा कराए जा रहे हैं, बाकी बैंक से सब्सिडी के तौर पर त्रण कराया जाता है। इसी प्रार एलआईजी छह से आठ लाख, एमआईजी-1 की छह से 12 लाख और एमआईजी-2 की कीमत 12 से 18 लाख रुपये तय की गई है। ऐसे में गरीबों के आशियाने का सपना पूरा होना असंभव ही नहीं, नामुमकिन लगता है। 
फरीबाद बाद में सबसे ज्यादा आवास 
हरियाणा के 22 जिलों में फरीदाबाद जिले में सर्वाधिक 33608 तथा गुरुग्राम में 33537 आवासों के निर्माण की मंजूरी है। इसके अलावा अंबाला में 17,370, भिवानी में 8,452, चरखी दादरी में 1,912, फतेहाबाद में 6,803, हिसार में 20,286, झज्जर में 9,207, जींद में 9,732, कैथल में 10,817, करनाल में 16,873, कुरुक्षेत्र में 10,527, महेन्द्रगढ़ में 4,398, नूंह में 2,798, पलवल में 3,968, पंचकूला में 5,845, पानीपत में 14,743, रेवाडी में 6,102, रोहतक में 10,784, सिरसा में 8,792, सोनीपत में 13,764 और यमुनानगर में 14,510 आवासों के निर्माण की मंजूरी मिली है। इसके अलावा हरियाणा के छह शहरों में पीएमएवाई-यू मिशन के तहत स्लम पुनर्विकास घटक के तहत 3,593 आवास स्वीकृत किये गये हैं। 
29May-2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति को नया आयाम देने में जुटी नृत्य रचनाकार लीला सैनी

लोक कला की विभिन्न विधाओं ने दी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: लीला रानी जन्म तिथि: 12 नवंबर 1958 (रोहतक) जन्म स्थान: रोहतक (हरियाणा) 
पिता:- स्व. इंदर सिंह सैनी 
माता: स्व. श्रीमती भोली देवी 
शिक्षा:एमए (ईआईएलएम विश्वविद्यालय), बीए (उस्मानिया विश्वविद्यालय), बीए शास्त्रीय नृत्य (कथक) प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़। 
संपर्क: 19/542, ग्रीन रोड, शक्ति नगर, रोहतक, मोबाइल- 9888476789 ईमेल: lilasaini963@gmail.com
-----
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा लोक कला और संस्कृति की देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी एक अलग पहचान है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह पहचान देने वाले लोक कलाकार अपनी अलग अलग विधाओं में बेहतर योगदान दे रहे हैं। ऐसी ही विभूतियों में प्रदेश की सुपरिचित महिला लोक कलाकार सुश्री लीला सैनी का नाम भी बेहद लोकप्रिय है, जिन्होंने अपनी लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य कला की विशेषज्ञता के साथ संगीत और नाटकीय मंचन में ही नहीं, बल्कि हरियाणवी फिल्म बहुरानी व चन्द्रावल से लेकर दादा लखमी तक अभिनय और लोक नृत्य की विधा के हुनर से एक अलग ही मिसाल कायम की है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग अलग विधाओं में हरियाणवी लोक कला और संस्कृति की अलख जगाते अलग ही छाप छोड़ी है। लोक संपर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग हरियाणा से विशेष कार्यकारी अधिकारी के पद से सेवानिवृत सुश्री लीला सैनी ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने लोक नृत्य एवं संगीत के सफर के बारे में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें उनके हरियाणा लोक कला एवं संस्कृति को नया आयाम देने का भाव विद्यमान है और शायद इसी मकसद से वह बच्चों और युवा पीढ़ी को लोक कला का प्रशिक्षण देने के मिशन में जुटी हुई हैं। 
 ---- 
रियाणा की प्रसिद्ध नृत्यांगना के रुप में लोकप्रिय सुश्री लीला सैनी का जन्म 12 नवंबर 1958 को रोहतक में इंदर सिंह सैनी व भोली देवी के परिवार में हुआ। उनके खुशनुमा परिवार में आठ भाई बहनों के बीच उनके पिता ही अकेले कमाने वाले थे और उनके परिवार में किसी प्रकार का साहित्यिक या कला का कोई माहौल तक नहीं था। हां उनकी माता तीज त्यौहार पर मधुर और सुरीली आवाज में अच्छा गा लेती थी, शायद उन्हें सुनकर ही उन्हें लोक संगीत में रुचि होने लगी। बचपन में वह अपनी छोटी बहन के साथ राधा कृष्ण बनकर डांस भी करते थे, लेकिन संगीत कला में उनके बढ़ते कदमों में पूरे परिवार का सहयोग व समाज का लगातार प्रोत्साहन मिलता रहा। स्कूल में शनिवार को होने वाली बालसभा जैसे कार्यक्रमों में मंच पर नृत्य में उनकी हमेशा भागीदारी रहती थी। जबकि प्रार्थना कराना उन्हीं की जिम्मेदारी रहती थी। इस प्रकार उनका लोक नृत्य और संगीत का सफर लगातार आगे बढ़ता गया। हरियाणवी लोक संगीत से वह रोहतक आकाशवाणी केंद्र की स्थापना से ही एक कलाकार के रुप में जुड़ी हुई हैं। नृत्य करने से कोई गुरेज न करने वाली लीला सैनी ने हमेशा अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हुए समाज को अपनी कला की विधाओं से हमेशा संकारात्मक संदेश देने का ही प्रयास किया है। साल 1982 में उन्हें हरियाणा लोक संपर्क और सांस्कृतिक विकभाग में एक महिला कलाकार के रुप में नौकरी मिली, जहां उन्हें 1998 में सहायक सांस्कृतिक कार्य अधिकारी के पद की जिम्मेदारी सौंपी और साल 2006 में सूचना लोक संपर्क और सांस्कृतिक विभाग में उप विशेष सांस्कृतिक अधिकारी के रुप में कार्य करने का मौका मिला। इस बीच उन्हें हरियाणा कला परिषद में कार्यक्रम अधिकारी का दायित्व भी निभाना पड़ा। स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाली लीला सैनी ने चंडीगढ़ में नौकरी करते हुए प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से शास्त्रीय नृत्य(कथक) की शिक्षा ली, जहां गुरु वेदव्यास ने कथक नृत्य के गुर दिये, तो छह माह उन्हें गुरु परिहार से नृत्य की शिक्षा ली और उन्होंने चंडीगढ़ में उनके कई कार्यक्रम कराए। उन्होंने नृत्य, नाटक और संगीत की कलाओं में हमेशा सामाजिक बुराईयों पर फोकस करके समाज को सकारात्मक विचाराधारा का संदेश दिया। सांस्कृतिक विभाग की ओर से उन्होंने अने नृत्य कार्यशालाओं का आयोजन भी कराया। कोविड के दौरान भी उन्होंने अपनी कला के जरिए लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए गाने रिकार्ड कराए। उनकी लोक कला की विभिन्न विधाओं के कारण उन्हें आईसीसीआर और संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के अलावा सांस्कृतिक विभाग हरियाणा, एनजेडसीसी पटियाला, सीसीआरटी दिल्ली के साथ पैनलबद्ध समूह से जोड़ा गया है। 
रंगमंच व संगीत कला में भूमिका 
हरियाणा जनसम्पर्क एवं सांस्कृतिक विभाग की नृत्य कार्यशालाओं तथा संगीत नाटक अकादमी की नाट्य कार्यशाला का आयोजन में लीला सैनी ने नृत्य और मंचन में अहम भूमिका निभाई। साल 2000 में उत्तर क्षेत्र द्वारा गणतंत्र दिवस पर पटियाला सांस्कृति कला द्वारा हरियाणा की लोक नृत्य कार्यशाला, लाल बहादुर शास्त्री अकादमी मसूरी में हरियाणा की लोक नृत्य कार्यशाला के अलावा उन्होंने बंजारा ग्रुप रेवाड़ी के साथ नृत्य कार्यशाला का आयोजन भी किया। एक रंगमंच कलकार के रुप में भी उन्होंने पिछले तीन दशक में 20 से ज्यादा नाटकों में अभिनय तो किया ही, वहीं अधिकांश संगीत कार्यक्रमों का निर्देशन का दायित्व भी निभाया है। हरियाणा राज्य स्तर के कार्यक्रमों में बैशाखी महोत्सव, घूमर नृत्य, नृत्य कार्यशालाओं जैसे कई दर्जन सांस्कृतिक आयोजनों में उन्होंने मंचन से लेकर नृत्य निर्देशक और नृत्य कोरियोग्राफर जैसी जिम्मेदारी निभाई हैं। 
गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सेदारी 
प्रसिद्ध लोक कलाकार लीला सैनी ने हरियाणा सरकार की ओर से नई दिल्ली में राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में प्रमुख कलाकार के रुप में चार बार 1981, 1983, 1985 और 2000 की परेड में हिस्सेदारी की है। वहीं नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के उत्सव में नृत्य टीम का नेतृत्व किया और संसदीय दल के रुप में दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियों पर नृत्य का प्रदर्शन किया है। विशेष रुप से एशियाड-1982 के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए हरियाणा राज्य ने उन्हें नृत्य के लिए कोरियोग्राफर नियुक्त किया, जहां उन्होंने 500 बच्चों के नृत्य और मंचन का नेतृत्व किया। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में अपना उत्सव, अहमदाबाद शेरयाश उत्सव, हिमाचल के कूल्लू में दशहरा उत्सव, पटियायाल के अपना उत्सव में भी एक नृत्यांगना के रुप में अपने प्रदर्शन से लोगों के दिलों में जगह बनाई है। लीला सैनी ने डांस कोरियोग्राफर के तौर पर साल 1979 से अब तक हरियाणा सरकार के सांस्कृतिक विभाग के प्रतिनिधि के रुप में देश में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पुडुचेरी, गोवा, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों के विभिन्न शहरों में आयोजित सांस्कृतिक आदान प्रदान कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कर लोकप्रियता हासिल की है। 
विदेशों में छोड़ी छाप 
राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, लोक नृत्यांगना लीला सैनी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के प्रति विदेशियों को आकर्षित किया है। उन्होंने इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स की ओर से साल 1989 में बीस दिवसीय दौरे में लिबिया और सिरिया में 14 सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी कला के हुनर का प्रदर्शन किया। जबकि साल 1994 में पश्चिमी अफ्रीका के देशों घाना, मोरको, बुर्केना फास्को, तुनिसिया, मिश्र और दुबई में करीब एक माह के प्रवास के दौरान बीस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर हरियाणवी लोक कला व संस्कृति की छटाएं बिखेरी। इससे पहले साल 1985 में प्रसिद्ध नृत्यांगना लीला सैनी ने हरियाणा सरकार की ओर से हरियाणा के सांस्कृतिक दल के सदस्य के रूप में नेपाल (काठमांडू) में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की। 
फिल्मों में अभिनय 
आल इंडिया रेडियो से उच्च श्रेणी कलाकार की मान्यता प्राप्त प्रसिद्ध नृत्यांगना लीला सैनी ने हरियाणवी फिल्मों में हरियाणवी फिल्मों की मशहूर डांस डायरेक्टर के रुप में काम किया। सुश्री सैनी सबसे पहले 1983 के दौरान हरियाणवी फिल्म बहुरानी में अभिनय और संगीत में अपनी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सुपरहिट हरियाणवी फिल्म चन्द्रवल, लाडो बसंती, जर जोरु और जमीन, जाटनी, छोरा हरियाणे का, कुनबा, चन्द्रावल-2 और यशपाल शर्मा की निर्देशित हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में नृत्य रचनाकर यानी कोरियोग्राफर के रुप में अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा उन्होंने पंजाबी फिल्म गबरु पंजाब दा और तकरार में भी अभिनय किया। जबकि हिंदी फिल्म दूसरी लड़की और फक्कड के अलावा लघु फिल्म ‘हक’ में अभिनेत्री के रुप में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। लीला ने ऑडियो विजुअल फिल्म 'एक सवाल’ और लाइट एंड साउंड फिल्म 'कल और आज’ भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है। 
युवाओं को संस्कृति से जोड़ना जरुरी 
महिला लोक कलाकार लीला सैनी का कहना है कि हरियाण कला व संस्कृति की जड़े मजबूत है और रहेंगी, लेकिन आज के इस आधुनिक युग में यदि युवा वर्ग को लोक संस्कृति के साथ मजबूती से नहीं जोड़ा गया, तो हमारी प्राचीन संस्कृति की पहचान गुम हो जायेगी। वह मानती हैं कि पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से हरियाणवी लोक संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचा है। अपनी संस्कृति की जड़ो को मजबूत रखने के मकसद से ही वह हरियाणा की कला संस्कृति के साथ युवा पीढी को जोड़ने के लिए लगातार नृत्य व संगीत कला की कार्यशालाएं आयोजित कर हजारों बच्चों को प्रशिक्षण देती आ रही है। वहीं रोहतक में लीला कला मंच फाउंडेशन के माध्यम से बच्चों व युवाओं को निशुल्क इस कला की शिक्षा देने का काम कर रही है। इस मिशन में लीला सैनी ने हरियाणा की परम्परागत विद्या सांग को भी आधुनिक रूप देने का प्रयास किया है। दरअसल परम्परागत सांग में पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाते थे, लेकिन उन्होंने इसे नया आयाम दिया और अब सांग में महिला का किरदार महिला ही निभा रही है। उनका कहना है कि जिंदगी बहुत छोटी है और वह चाहती है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है, उसे वह निस्वार्थ भाव से बच्चों में बांट दें, ताकि हरियाणवीं कला संस्कृति को और अधिक मजबूती मिले। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा की प्रसिद्ध लोक कलाकार सुश्री लीला सैनी को वर्ष 1986 में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला ने सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना के पुरस्कार से नवाजा था। वहीं उन्हें पंडित लख्मीचंद मेमोरियल ट्रस्ट से लोक संस्कृति रक्षक अवार्ड भी मिल चुका है। जबकि गणतंत्रण दिवस की परेड में चार बार लोक नृत्य का सम्मान मिल चुका है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की लोक एनसीजेडसीसी, वाह वीमेनियन श्रमिका श्री सम्मान के अलावा फिल्म और कला में विशेष योगदान के लिए देवी शंकर प्रभाकर मेमोरियल ट्रस्ट, नटराज थियेट्रिकल ग्रुप, सोनीपत, बंजारा ए कल्चरल सोसाइटी रेवाडी, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 रोहतक समेत सैकड़ो सांस्कृतिक मंचों से सम्मान होने का गौरव लीला सैनी को हासिल हो चुका है। 
29May-2023

बुधवार, 24 मई 2023

साक्षात्कार: समाज को जोड़ने में साहित्य की अहम भूमिका: श्रुति राविश

प्रदेश की युवा पीढ़ी को ज्ञानवर्धक शिक्षा देने में जुटी युवा महिला लेखक 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: श्रुति राविश 
जन्मतिथि: 30 अगस्त 1996 
जन्म स्थान: गांव बालू, जिला कैथल 
शिक्षा: एमए (अंग्रेजी, एजुकेशन), बीएड (अंग्रेजी), नैट (अंग्रेजी), पीएचडी (शोधार्थी) 
सम्प्रत्ति: शैक्षणिक अध्ययन और लेखन।
संपर्क: म.न. 2119, सेक्टर-23, सोनीपत, मो. 90688-83037, 
ईमेल-sumindershruti@gmail.com
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला, संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज, भाषा को नई दिशा देने में साहित्यकार, लेखक अपनी विभिन्न विधाओं के माध्यम से योगदान देते आ रहे है। इसके लिए अब राज्य के प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अब युवा पीढ़ी भी विरासत को संभालती नजर आने लगी है। ऐसे ही साहित्यकारों व लेखकों में युवा लेखक श्रुति राविश साहित्य सेवा के लिए साधना करते हुए उदयीमान महिला साहित्यकार के रुप में पहचानी जा रही है। श्रुति ने संस्कृति और सामाजिक सभ्यता के साथ राजनीतिक इतिहास तथा अंग्रेजी ज्ञानवर्धन के लिए भी अपनी रचनाओं से युवा पीढ़ी को भी प्रेरणा देने का प्रयास किया है। अंग्रेजी विषय में पीएचडी के लिए शौध कार्य में जुटी युवा लेखक श्रुति राविश ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने शैक्षणिक और साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जो समाज को ही नहीं जोड़ेगा, बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का सबब बनेंगे। 
------ 
रियाणा की युवा महिला लेखक श्रुति राविश का जन्म 30 अगस्त 1996 कैथल जिला के गांव बालू में प्रोफेसर डा. सतपाल सिंह राविश व गीता राविश के परिवार में हुआ। अपने शिक्षित परिवार में ही श्रुति को साहित्यिक माहौल मिला, तो संस्कारों के साथ उनका भी बचपन से ही साहित्य में रुचि होना स्वाभाविक था। माता व पिता और बड़े भाई समय मिलने पर कुछ न कुछ लेखन करके साहित्य क्षेत्र में जब पहचाने जाने लगे, तो साहित्यिक माहौल को अपनी अभिरुचि का हिस्सा बनाने में श्रुति ही भला कहां पीछे रहने वाली थी। नतीजन उसने भी समाज के परिदृश्य और वास्तविकता को अपने लेखन के माध्यम से उजागर करने का मन बनाया। उनके पिता सोनीपत स्थित सी.आर.ए. कॉलेज सोनीपत में राजनीतिक शास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हैं, जो स्वयं भी साहित्यिक लेखक हैं। पीएचडी कर रही श्रुति ने बताया कि परिवार के सभी सदस्यों को कुछ न कुछ लिखता देख उसके मन में भी कुछ ऐसा ही लिखने की जिज्ञासा रहने लगी। बकौल श्रुति जब बड़े भाई शिवा को साहित्यिक पुस्तकों पर हरियाणा साहित्य अकादमी ने युवा लेखक के पुरस्कार से नवाजा, तो उसने भी पढ़ाई के साथ साथ लेखन करने की ठान ली और उसका नतीजा भी एक संकल्प के रुप में सकारात्मक रुप से उस समय सामने आया, जब उसे उसकी खुद की लिखी गई पुस्तकों पर अकादमी ने सम्मान से नवाजा। साहित्य अकादमी का उसके लिए यह पुरस्कार उसके लेखन की प्रेरणा बनता नजर आया, जिसने लेखन के प्रति उसके आत्मविश्वास को ज्यादा मजबूत बनाया, बल्कि उसे समाज हित में कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित किया। श्रुति राविश को डांस और संगीत के साथ खेल में भी बेहद दिलचस्पी रही। बचपन से ही वह पढ़ाई में होशियार रही और कई पुरस्कार हासिल किय। स्कूल व कालेज स्तर एक एथेलीट के रुप में श्रुति ने अनेक बार पहला स्थान लेकर पुरस्कार हासिल किये हैं। लेकिन परिवारिक संस्कारों ने उसे साहित्य के क्षेत्र में आगे रहने की जो प्रेरणा मिली, उसी का नतीजा है कि उसने पढ़ाई के साथ लेखन को धार देने का निर्णय लिया। 
युवा महिला साहित्यकार श्रुति ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले सबसे पहले श्रुति ने अपने विषय अंग्रेजी पर लिखी, जिसके बाद अविभाजित हरियाणा के समय से अब तक राजनीतिक इतिहास को समेटते हुए पिता के साथ मिलकर ‘हरियाणा राजनीति प्रश्नोतरी’ शीर्षक से पुस्तक लिखी, हरियाणा संपूर्ण राजनीति पर केंद्रित पहली पुस्तक साबित हुई। समाज में महिलाओं का सबसे लोक प्रिय व बड़ी पसन्द श्रंगार विषय पर लिखने का मन बनाकर लिखना शुरू किया, जिसमें परिवार ने सहयोग और प्रोत्साहन दिया। मसलन दुनिया की आधी आबादी महिलाएं श्रंगार को दिल से पसन्द करती है इसी सोच को लेकर श्रंगार में गहनों की क्या भूमिका है और क्या गहने श्रंगार तक ही सीमित हैं जैसे पहुलाओं का गहराई से समाज, संस्कृति और आभूषण पर अध्ययन करने के बाद ‘श्रंगार सागर’ पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि गहने या आभूषण सौलह श्रंगार ही नहीं है, बल्कि गहनो का स्वास्थ्य से भी गहरा संबन्ध जुड़ा हुआ है। यह पुस्तक सुर्खियों में आई तो एक लेखिका के रुप में उन्हें भी साहित्यिक और सामाजिक क्षेत्र में लोकप्रियता मिली। श्रुति का कहना है कि भविष्य में उनके लेखन का उद्देश्य समाज हित को सर्वोपरि रखते हुए सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर पुस्तक लिखते रहना है। 
युवा पीढ़ी को प्रेरित करना जरुरी 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर श्रुति राविश का कहना है कि साहित्य का मुनष्य के जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। बचपन से बच्चे दादी-नानी से कहानियां सुनते है और बहुत कुछ सीखते है और यह साहित्य के दायरे में ही आता है। कहानियां, कविता, गीत को हम अपनी कक्षाओं में भी पढ़ते और पढाते है, सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है। युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने की जरूरत पर बल देते हुए श्रुति ने कहा कि बच्चों में इसके लिए स्कूल स्तर पर साहित्य की प्रतियोगिता होना अनिवार्य है, तभी युवा पीढ़ी को इस इंटरनेट युग में पाश्चत्य संस्कृति से निकालकर अपनी संस्कृति से जोड़ा जा सकता है। साहित्यकारों व लेखकों को भी ऐसे साहित्य की रचना करनी चाहिए, जिससे अपनी प्राचीन संस्कृति व रीति रिवाज को भुलाते युवाओं को सकारात्मक विचाराधारा से जोड़ा सके। साहित्य की समझ से ही समाज को नई दिशा दी जा सकती है। 
पुस्तक प्रकाशन
युवा लेखक सुश्री श्रुति राविश ने अभी तक तीन पुस्तके अलग-अलग विषयों पर लिखी है। इसमें उनकी पहली पुस्तक छात्रों की ज्ञानवर्धक शिक्षा से जुड़े विषय पर ‘इग्लिश ग्रामर’ प्रकाशित हुई है। जबकि दूसरी पुस्तक हरियाणा क्षेत्र यानि 1966 से पहले सयुंक्त पंजाब से लेकर वर्तमान हरियाणा से जुड़े सभी छोटे-बड़े राजनीतिक घटनाओं, राजनेताओं से जुड़े तीन हजार से अधिक प्रश्न उत्तरों का संग्रह के रुप में ‘हरियाणा राजनीतिक प्रश्नोत्तरी’ प्रकाशित हुई है। उन्होंने दुनिया की महिलाओं के श्रंगार में गहनों के प्रेम व लगाव को लेकर ‘श्रंगार सागर’ नामक पुस्तक लिखी है, जो समाज, संस्कृति और आभूषण की दृष्टि से पाठकों के बीच सुर्खियों में है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने सोनीपत की युवा लेखक श्रुति राविश साल 2021 के लिए एक लाख रुपये के स्वामी विवेकानंद युवा लेखक सम्मान से नवाजा है। इस साल के इस इकलौता पुरस्कार लेने का सौभाग्य श्रुति को मिला। उन्हें इसके अलावा श्रुति को कालेज व स्कूल स्तर पर सांस्कृति और खेलकूद में अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।
22May-2023

मंडे स्पेशल: मिशन एडमिश्न: सबको मिलेगा दाखिला, नौनिहालों के लिए कॉलेज तैयार

प्रदेश के उच्च संस्थानों में लड़को से ज्यादा लड़कियों की सीटे निर्धारित 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बाहरवीं का परीक्षा परिणाम आने के बाद बच्चों का उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए मिशन एडमिशन शुरू हो गया है। केवल बच्चें ही नहीं अभिभावक भी अपने लाडले के दाखिले को लेकर खासे सक्रिय हैं। ऐसे में सबसे बड़ा असमंजस बना हुआ है कि दाखिला लें कैसे और कहां लें। प्रदेश के एक लाख से ज्यादा बच्चों ने सीबीएसई और 2.10 लाख ने भिवानी शिक्षा बोर्ड से इंटरमिडिएट की परीक्षा पास की है। अब इनके उच्च शिक्षा के लिए अलग-अलग सपने हैं। जिसे पूरा करने के लिए वे किसी संस्थान में अपनी अपने मिशन को पूरा करने के मकससद से दाखिला लेने की तैयारी में जुटे हैं। इन बच्चों के लिए प्रदेशभर के सरकारी और प्राइवेट समेत कुल 643 शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए अलग-अलग कोर्स के लिए 7,38,081 सीटें हैं। इसके अलावा अनेक आस पड़ोस के राज्यों के बच्चे भी यहां पढ़ाई करने आते हैं और प्रदेश के बच्चे भी विशेषकर दिल्ली समेत कई राज्यों की ओर उच्च शिक्षा पाने के लिए मुंह करते हैं। 
---- 
हरियाणा सरकार देश के मानव संसाधन विकास में कुशल जनशक्ति का निर्माण करके, औद्योगिक उत्पादकता बढ़ाकर और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उच्च शिक्षा को नई दिशा देने का प्रयास किया है। प्रदेश के बच्चों को देश में उच्च शिक्षा विभाग ने तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, वास्तुकला, नगर नियोजन, फार्मेसी, अनुप्रयुक्त कला और शिल्प, होटल प्रबंधन और खानपान प्रौद्योगिकी जैसे कोर्स को प्रोत्साहन दिया है। इसी मकसद से बुनियादी ढांचे, और संकाय, शैक्षणिक सुधार, शासन में सुधार और संस्थागत मजबूती में निवेश करके शैक्षणिक संस्थानों और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए कदम उठाए हैं, ताकि राज्य में शैक्षिक अवसरों को बढ़ाने के लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित किया जा सके। प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रदेश के सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में विभिन्न कोर्स के लिए पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की सीटे निर्धारित की गई हैं। इसी माह सीबीएसई और हरियाणा शिक्षा बोर्ड के इंटरमिडिएट का परीक्षाफल घोषित हुआ है, जिसमें तीन लाख से ज्यादा उत्तीर्ण बच्चों ने उच्च शिक्षा में अपनी अभिरुचित के कोर्स में प्रवेश लेने की कवायद तेज कर दी है। हालांकि कुछ छात्र प्रदेश से बाहर भी उच्च शिक्षा के लिए रुख करते नजर आ रहे हैं, तो वहीं प्रदेश में अन्य राज्यों के बच्चे भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने आ रहे हैं। 
विश्वविद्यालयों 2.35 लाख सीटे 
प्रदेश में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ 15 सरकारी विश्वविद्यालय समेत कुल 42 विश्वविद्यालय संचालित है, जिनमें 24 निजी, तीन डीम्ड और एक प्रतिष्ठित संस्थान के रुप कार्यरत है। प्रदेश के विश्वविद्यालयों में विभिन्न कोर्स के लिए कुल 234546 सीटे निर्धारित है, जिनमें 119497 महिलाओं और 31 ट्रांजेंडरों के लिए आरक्षित हैं। स्टेट यूनिवर्सिटियों में 1,49,555 सीटें, केंद्रीय विश्वविद्यालय में 3,058, निजी विश्वविद्यालयों में 56090, डीम्ड में 18343 तथा प्रतिष्ठा संस्थान में 7500 सीटे तय है। इसके अलावा 335 महाविद्यालयों में 405196 सीटों में जहां 169017 पुरुषों के लिए हैं, तो इससे कहीं ज्यादा 236170 लड़कियों के लिए आवंटित हैं, जबकि नौ सीटें ट्रांजेंडरों के लिए भी तय है। विश्व विद्यालयों और डिग्री कालेजों में तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा के लिए हालांकि प्रदेश में विश्वविद्यालयों के अलावा इजींनियंरिंग और डिप्लोमा के लिए भी अलग से संस्थान हैं, लेकिन डीग्री कालेज भी बीए, बीएससी, बीकॉम और एलएलबी जैसे कुछ तकनीकी संकाय संचालित कर रहे हैं। 
इंजीनियरिंग कोर्स को भी बढ़ावा
प्रदेश में बच्चों को इंजीनियरिंग बनने के सपने को भी साकार किया जा रहा है, जहां बच्चे अलग अलग क्षेत्र में बीई या बीटेक करके अपने सपने पूरे कर सकते हैं। प्रदेश में सरकार के चार इंजीनियरिंग कालेज समेत कुल 79 इंजीनियरिंग कालेज संचालित हो रहे हैं, जिनमें बाकी 75 निजी इंजीनियरिंग कालेज है, जिनमें 4015 महिलाओं समेत कुल 28244 सीटे निर्धारित हैं। जबकि सरकारी इंजीनियरिंग कालेज 224 महिलाओं समेत कुल 1869 सीटें है। इसके अलावा प्रदेश में डिप्लोमा इंजीनियरिंग करने वाले बच्चों के लिए 187 पॉलिटेक्निक संस्थान भी संचालित हो रहे हैँ, जिनमें 11865 महिलाओं समेत कुल 70 हजार से ज्यादा सीटें हैं। इनमें 37 सरकारी, तीन सरकार से मान्यता प्राप्त तथा 147 प्राइवेट पॉलिटेक्निक संस्थान हैं। 
बीटेक में बढ़ते कदम 
उच्च शिक्षा के लिए तकनीकी शिक्षा के लिए बच्चों की अधिक रुचित देखी जा रही है, जिसमें प्रदेश में करीब दस हजार से ज्यादा सीटे हैं, इनमें सबसे ज्यादा कंप्यूटर इंजीनियर की सीटें हैं। जबकि तकनीकी संस्थानों में सिविल इंजीनिरिंग, इलेक्ट्रानिक्स कम्युनेक्शन इंजीनिरिंग, सूचना तकनीकी, मेकेनिकल इंजीनियरिंग, के अलावा फूड टेक्नोलॉली, पैकेजिंग तकनीकी, प्रिंटिंग तकनीकी जैसे प्रौद्योगिक कोर्स के लिए भी प्रेदश के संस्थानों में सीटे निर्धारित हैं। जर्नलिज्म कोर्स और बिजनेस कार्स के लिए बीबीए, बीसीए के अलावा बीएससी मेडिकल में प्रवेश लेने वाले बच्चों के लिए भी करीब सात हजार सीटे विभिन्न संस्थानों में निर्धारित हैं। इसके अलावा बी फार्मेसी के लिए 5360 तो डिप्लोमा फार्मेसी के लिए 5800 सीटे हैं। आर्चिटेक्चर और फाइन आर्ट में स्नातक करने वाले बच्चों के लिए प्रदेश के संस्थानों में 300-300 सीटे तय की गई हैं। 
कला व एक्टिंग में सुपवा की भूमिका 
हरियाणा की लोक कला एवं कलाकारों में रुचि रखने वालों के लिए पं. लखमी चंद सुपवा रोहतक अहम भूमिका निभा रहा है। इसमें विभिन्न कोर्स के लिए 285 सीटे निर्धारित हैं। इनमें आर्चिटेक्चर, फैशन डिजाइनिंग, फाइन आर्ट्स, ऑडियोग्राफी, कोरियोग्राफी, सिनेमाटोग्राफी, एनीमेशन और मल्टीमीडिया, विजुअल आर्ट्स एडिटिंग, एक्टिंग जैसे कोर्स करके डिग्रियां लेने में भी बच्चे आगे आ रहे हैं। 
धर्मकर्म शिक्षा कोर्स प्रदेश में कैथल के महर्षि संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत में रुचि रखने वालों के लिए धर्म कर्म के कोर्स के लिए 400 सीटे तय हैं। इसमें ज्योतिषम्, दर्शनम्, धर्मशास्त्रम्, योगा, वेद, व्याकरणम्, संस्कृत पत्रकारिता और साहित्यम् जैसे कोर्स के लिए 50-50 सीटें हैं। 
---- 
सर्वे में आया चौंकाने वाला आंकड़ा 
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा इसी साल जनवरी में अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के आंकड़ों में यह खुलासा हुआ कि हरियाणा में उच्च शिक्षा के मामले में मुस्लिमों के नामांकन में 18.9 फीसदी की गिरावट आई है। सर्वे के अनुसार जहां प्रदेश में साल 2019-20 में 12,877 मुस्लिमों ने उच्च शिक्षा के लिए नामांकन कराया था, वहीं 2020-21 में यह संख्या घटकर 10,445 पर आकर रुकी, जिसमें 18.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मसलन राज्य में 2020-21 के दौरान उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों के लिए कुल 10.29 लाख नामांकन हुए, जिनमें मुस्लिम समुदाय के नामांकन की संख्या 10,445 रही, जो कि कुल नामांकन का करीब एक फीसदी है। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 7.03 फीसदी है। सर्वे में यह भी जानकारी सामने आई कि पिछले पांच साल में मुस्लिम विद्यार्थियों के नामांकन में यह दूसरी बार गिरावट आई है। इससे पहले 2017-18 में राज्य में उच्च शिक्षा के लिए हुए इस समुदाय के कुल 7,607 नामांकन हुए थे, जो कि 2016 में हुए 17 8,447 नामांकनों से कम थे। 
22May-2023

सोमवार, 15 मई 2023

मंडे स्पेशल: गाड़ियों से भर रहे शहर, पार्किंग-जाम-प्रदूषण संकट की ओर बढ़ रहे हम

हरियाणा में हर दूसरे व्यक्ति के पास है मोटर वाहन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाने की जरूरत गुरुग्राम में सबसे ज्यादा वाहनों की भरमार, सर्वाधिक 23.2 फीसदी कॉमर्शियल गाड़ी 
ओ.पी. पाल.रोहतक प्रदेश में शहर मोटर गाड़ियों से अट गए हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या से बाजार तो जाम हैं ही, वहीं मोहल्लों व गलियों का भी हाल बेहाल है। आधुनिकता की आंधी दौड़ में मोटर गाड़ी स्टेटस सिंबल बन गई है, जिस पर नियंत्रण न किया गया, तो सड़को पर दौड़ती अंधाधुध गाड़ियों से जहां वायु प्रदूषण की समस्या की चुनौतियां तो बढ़ेगी ही, वहीं एक घर में कई कई वाहन बढ़ रहे तो इसके लिए पार्किंग की व्यवस्था को दुरस्त करना होगा। सरकारी कार्यालय परिसरों की तर्ज पर बाजारों में मल्टी पार्किंग की व्यवस्था करने और वाहनों की ज्यादा खरीद को रोकने जैसी पहलें ही आने वाले समय में आमजन के सामने पेश आने वाली समस्याओं का समाधान संभव हो सकता है। लेकिन प्रदेश के हालात तो यहां तक पहुंच गये हैं कि प्रदेश की 2.9 करोड़ की अनुमानित आबादी पर 1.2 करोड़ वाहन हो गये हैं यानी हर दूसरे इंसान के पास अपना वाहन है, जिनमें करीब साढ़े दस लाख कॉमर्शियल वाहन पंजीकृत हैं। जबकि एक दशक यानी दस साल पहले 2.3 करोड़ की आबादी पर प्रदेश में पंजीकृत वाहनों की यह संख्या इससे आधी करीब 59.79 लाख थी। वाहनों के पंजीकरण के मामले में प्रदेश का गुरुग्राम जिला सबसे आगे है, जहां सर्वाधिक 14.20 लाख वाहन पंजीकृत हैं, जिनमें 2.67 लाख कॉमर्शियल वाहनों के मामले में भी गुरुग्राम ही अव्वल है। प्रदेश में आबादी बढ़ने से तेज गति से बढ़ती वाहनों की संख्या से सड़कों पर बढ़ते दबाव के साथ वायु प्रदूषण की समस्या तो बढ़ ही रही है, वहीं शहरों और बस्तियों में पार्किंग की समस्या भी विकराल रुप धारण कर रही है। सबसे बड़ी समस्या बिना परमिट के कॉमर्शिल वाहन भी पैदा कर रहे हैं। हालांकि प्रशासनिक व पुलिस तथा आरटीए विभाग ऐसे वाहनों पर शिकंजा कसने का दावा करता आ रहा है, लेकिन ऐसी सड़को पर दौड़त वाहन दुघटनाओं को भी बढ़ावा दे रहे हैं। जहां तक पर्यावरण संरक्षण का सवाल है, उसके लिए राज्य सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए प्रोत्साहत कर रही है और सरकार की नई नीति के तहत 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़को से हटाने के निर्देश भी जारी कर चुकी है। हालांकि राज्य में अब तक करीब 26 हजार इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर आ चुके हैं, जिनमें ज्यादातर तिपहिया और दुपहिया वाहन शामिल हैं। देखने में यह भी आया है कि खासकर तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहन बिना पंजीकरण के भी सवारियों के साथ सड़को पर दौड़ रहे हैं। पिछले दस साल में प्रदेश में पंजीकृत वाहनों की संख्या दो गुणा हो चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा दुपहिया वाहन हैं। अब तक प्रदेश में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या 1,19,97,808 पहुंच गई है, जो 31 दिसंबर 2012 को 59,78,110 थी। इस आंकड़े में जिला आरटीए, बीस उपमंडल पंजीकरण प्राधिकरण तथा वाहन रजिस्ट्रेशन के लिए जिलों में तहसील स्तर पर प्राधिकरण में पंजीकृत वाहनों की संख्या भी शामिल है। गौरतलब है कि प्रदेश में वाहन रजिस्ट्रेशन के लिए 70 भी ज्यादा आरटीए प्राधिकरण हैं। खासबात ये भी है कि वाहनों के केंद्रीकरण के मामले में हरियाणा देश के अन्य सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो में पहले स्थान पर है। 
सरकारी खजाने में आया 336.35 अरब का राजस्व 
प्रदेश की सड़को पर भले ही वाहनों की संख्या बढ़ रही हो, लेकिन राज्य सरकार के सरकारी खजाने में पिछले पांच साल के दौरान नए वाहनों के पंजीकरण, परमिट और अन्य वाहन कर के रुप में रविवार यानी 14 मई 23 तक 336 अरब 35 करोड 13 लाख 47 हजार 737 रुपये राजस्व के रुप में जमा कर चुकी है। इसमें सबसे ज्यादा पिछले साल 2022 के दौरान सर्वाधिक 3240.83 करोड़ रुपये के राजस्व का संग्रह हुआ। जबकि 2021 में यह राजस्व 2482.84 करोड़ से ज्यादा रहा। साल 2019 में नए वाहनों की खरीद की वजह से 2342.34 करोड़ रुपये का राजस्व मिला, लेकिन सरकार को साल 2020 में कोविड़ के दौरान इसके मुकाबले 20.38 फीसदी राजस्व का घाटा भी हुआ। जबकि मौजूदा साल के पहले साढ़े चार माह में सरकार अभी तक 2.99 लाख नए वाहनों के पंजीकरण से 14 मई तक 1379.58 करोड़ रुपये का राजस्व संग्रह प्राप्त हो चुका है, जिसमें 38,571 कामर्शियल वाहन परमिट की राशि भी शामिल है। 
डिफाल्टरों का आंकड़ा भी कम नहीं 
प्रदेश का ऐसा कोई जिला नहीं है, जहां हजारों की संख्या में वाहन मालिक टेक्स डिफाल्टर की सूची में न हो। प्रदेशभीर में ऐसे डिफाल्टरों की सूची में भी सबसे ज्यादा गुरुग्राम में 189802 और उसके बाद फरीदाबाद में 105660 वाहन सरकार को राजस्वो चूना लगा रहे हैं। सबसे कम 2413 वाहन टेक्स डिफाल्टर चरखी दादरी जिले में हैं। बाकी सभी जिलों में 15 हजार से लेकर 35 हजार तक के वाहन इस सूची में शामिल हैं। 
पन्द्रह साल पुराने वाहनों पर खतरा 
हरियाणा सरकार ने हरियाणा में प्रदूषण फैलाने वाले पुराने और अपेक्षाकृत रूप से कम सुरक्षित वाहनों को सड़कों से हटाने के लिए निर्देश जारी कर दिये हैं। एनजीटी के निर्देशों के बाद हरियाणा परिवहन आयुक्त पहले से ही 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को एनसीआर से वि-पंजीकृत करने के आदेश जारी कर चुका है। इस प्रकार एनसीआर में दायरे में शामिल 14 जिलों सोनीपत, पानीपत, करनाल, जींद, रोहतक, झज्जर, गुरुग्राम, पलवल, फरीदाबाद, भिवानी, चरखी दादरी, मेवात, महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी में ऐसे पुराने वाहनों के डि-रजिस्ट्रेशन का खतरा मंडरा चुका है। राज्य सरकार केंद्र सरकार की व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों पर पहले ही प्रतिबंध लगाया हुआ है। इस नए नियम के प्रदेश में सरकारी कंपनियों, स्थानीय निकायों और सरकार के नियंत्रण वाले किसी भी संस्थान के 15 साल पुराने वाहनों का के पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं होगा। राज्य में 15 साल से पुराने वाहनों की संख्या 18 लाख से अधिक हैं। 
कोविड़ काल में आई थी कमी 
हरियाणा में साल 2019 में जहां करीब नौ लाख वाहन खरीदे गये थे, तो कोविड़काल में तेजी के साथ वाहनों की खरीद में 28.96 फीसदी गिरावट देखी गई और करीब छह लाख वाहन पंजीकृत हुए। इसके मुकाबले अगले साल 2021 में चार फीसदी, 2022 में 7.42 लाख यानी 17.01 फीसदी बढ़ोतरी के साथ नए वाहन प्रदेश की सड़को पर उतरे। इस मौजूदा साल 2023 में 14 मई तक 2.99 लाख वाहनों का पंजीकरण हो चुका है। 
 ------
टेबल 
हरियाणा राज्य में पंजीकृत वाहन 
जिला         कु़ल पंजीकृत वाहन   कॉमर्शियल वाहन   दिसंबर 2012 तक पंजी. 
अंबाला :        3,73,920               39,224                   324898 
भिवानी :       2,88,797               45,890                   191837 
चरखी दादरी: 1,50,951               7735 ------- 
फरीबादाबाद : 9,77381              1,81,693                659454 
फतेहाबाद :    2,02,480             18,937                   151468 
गुरुग्राम :       14,19,771           2,66,694                653752 
हिसार :         2,06,453             48,605                   325106 
झज्जर :       1,99,770             41,922                   153283 
जींद :           1,82,135             27,184                   180851 
कैथल :        2,91,130              21,178                   175455 
करनाल :     4,55,524              38,154                  420838 
कुरुक्षेत्र :      2,39,422             19,939                  227805 
महेंद्रगढ़ :    2,92,977             33,040                  148243 
नूंह :           1,13400               32,663                  75442 
पलवल :     1,94,806              22,796                  50083 
पंचकूला :    2,26,357             29023                   174658 
पानीपत :    4,63,099             43,219                  253037 
रेवाड़ी :       3,61,113              48440                  190052 
रोहतक :    3,41,626               63,124                206113 
सिरसा :     3,58,515              23,612                 249592 
 सोनीपत :  2,78500              43,809                 268479 
यमुनानगर: 2,61,449           41,966                 256090 
प्रशासनिक प्राधि.20,92,684     -----                  5,84,573
नोट: (यह आंकड़ा 14 मई 2023 तक का है)
15May-2023

सोमवार, 8 मई 2023

साक्षात्कार: लोक संस्कृति में निहीत विधाओं के बिना साहित्य अधूरा: लहणा सिंहं अत्री

सांग विधा के लेखक के रुप में बनाई अपनी पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: लहणा सिंह अत्री 
जन्मतिथि: 03 दिसंबर 1950 
जन्म स्थान: फफड़ाना (करनाल) 
शिक्षा: स्नात्तक 
सम्प्रत्ति: भूतपूर्व सहायक, महर्षि दयानन्द विश्व विद्यालय रोहतक 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा की परंपरागत लोक संस्कृति और कलाओं को जीवंत करने में लोक कलाकार ही नहीं, बल्कि साहित्यकार भी अपने लेखन के जरिए नया आयाम देने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही साहित्यकारों में प्रदेश की संस्कृति में प्राचीन सांग और रागनी की परंपरा को अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाने वाले लहणा सिंह अत्री ने यह संदेश दिया है कि बिना लोक संस्कृति की विधाओं के बिना साहित्य क्षेत्र अधूरा है। जहां उन्होंने अपनी रचना लेखन में सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर सांग और रागनियों के अलावा आध्यात्मिक गीत भी लिखे हैं, तो वहीं सम सामयिक घटनाओं को भी अपनी रचनाओं में समाहित करके सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार किया। साहित्य जगत में उन्होंने सांग परंपरा के लेखक के रुप में पहचान बनाई है। उनकी रचनाओं में सात सांग ऐसे हैं, जिनकी कहानी किसी लेखक या किसी किताब में नहीं है। प्रदेश में गुमनाम सांगियों और लोक कवियों को पहचान देने में योगदान करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार लहणा सिंह अत्री ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर के बारे में जानकारी देते हुए कई ऐसे अनुछुए पहलुओं का भी जिक्र किया है, जिससे उनके साहित्य लेखन में लोक संस्कृति के रस का मिश्रण मिलता है। 
---- 
रियाणा साहित्य अकादमी से सम्मानित साहित्यकार लहणा सिंह अत्री का जन्म तीन दिसंबर 1950 को करनाल जिले के फफड़ाना गांव में एक साधाराण मध्यम वर्गीय परिवार में पं. अमीलाल एवं शरती देवी के घर हुआ। उनके परिवार या आसपास के किसी भी परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। लहणा सिंह ने अपने जीवन के बारे में बताया कि पिता के ममेरे भाई पंडित लखमीचंद जींद के गांव भंभेवा में उच्च कोटि के गायक कलाकार एवं कवि पंडित मांगेराम के शिष्य जरुर हुए। सही मायने में उन्होंने उनकी गायन प्रतिभा से ही प्रभावित होकर ही उन्होंने भी उन्हें अपना गुरु धारण किया। सांग देखने का शौंक बचपन से ही था। इसलिए उनके मन में यही कसक रहती थी कि ये कवि लोग रागनी, सांग लिखते हैं तो वह क्यों नहीं लिख सकता? इसी अभिरुचि में वह भी बचपन में ही कुछ लिखने का प्रयास करने लगे। शुरुआत में वह जो लिखते थे उसे फाडकर फेंक देते थे और मजाक बनने के भय से किसी को दिखाने का साहस नहीं था। एक बार उन्होंने पंचायत चुनाव को लेकर अपनी ऐसी पहली रचना लिखी और सुनाई तो उसे सुनकर गांव वालों ने उसकी खूब प्रशंसा की। उसके बाद वह जो भी लिखते थे उसे संजोने लगे। इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए गुरु की तलाश हुई तो जुलाई 1988 उन्होंने गुरु धारण किया और उस समय काफी समसामयिक रचना और दो सांग लिख चुका था, लेकिन उसकी भनक गुरु को नहीं लगने दी और इसका उन्होंने अपने गुरु को सरप्राइज दिया। इसी जुनून में वह आगे बढ़ते रहे तो साल 1992-93 से उनका संबंध आकाशवाणी से हुआ और कविता पाठ के तौर पर वह अपनी रचनाएं सुनाने लगे, जहां उनके लिखे चार सांग आकाशवाणी से प्रसारित हुए। सच तो यही है कि उसे साहित्यिक क्षेत्र में यहीं से पहचान मिलना शुरु हुआ और इस मुकाम तक पहुंचा, कि एक साहित्यकार, लेखक एवं कवि के रुप में उन्हें साहित्यक संस्थाओं से सम्मान मिलने लगे। उनकी पुस्तक ‘चाल दिखाद्यूं अजब नजारा’ पर 2016 में हरियाणा साहित्य अकादमी से मिले 31 हजार रुपये के श्रेष्ठ कृति पुरस्कार ने उनका हौंसला बढ़ाया और अब साल 2021 में ढ़ाई लाख रुपये के जनकवि मेहर सिंह सम्मान ने उनकी साहित्यिक साधना की सफलता की गवाही दी। 
समाजिक सरोकार पर रहा लेखन का फोकस 
साहित्यिक क्षेत्र में उन्होंने अपने लेखन का फोकस हमेशा समाज पर रखा है। उसमें सम सामयिक रचना हो या सांग, उन्होंने दहेज प्रथा, बाल विवाह ,भ्रूण हत्या, अशिक्षा, फैमिली प्लैनिंग आदि पर लिखा है। उनके सात सांग ऐसे हैं, जिनकी कहानी किसी भी लेखक या किसी किताब में मौजूद नहीं है। इन सांगों की कहानियां भले ही काल्पनिक लगती हैं, लेकिन वह सब सत्य घटनाओं पर आधारित है। हां, उन्हें रोचक बनाने के लिए शब्दजाल का तड़का लगाना एक लेखक के लिए जरुरी भी है। आज के साहित्य में गुणवत्ता को दरकिनार किया जा रहा है। वह खुद तो सांग परंपरा के लेखक है और इस विधा में आज के लेखक शुद्धि-अशुद्धि पर ध्यान नहीं देते, जिसके पतन का कारण वह मटके वालों को मानते हैं, जो मूल तर्ज छोड़कर फिल्मी धुनों पर गाते हैं। हिंदी साहित्य में एक कविता पर जोर दिया जाता है, जो मुक्तक कहलाती है। बिन छंद-बंद की कविता कैसी? एक लघु कविता का चलन चला है। लघु कविता और मुक्त का पता ही नहीं चलता, वह कहना क्या चाहता है? 
युवाओं को साहित्य का ज्ञान जरुरी 
साहित्यकार लहणा अत्री ने आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने आ रही चुनौतियों को लेकर कहा कि इसके लिए इंटरनेट और स्मार्टफोन के साथ समाज और सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। यह भी सत्य है कि आज का युवा पुस्तक पढ़ना ही पसंद नहीं करता और उसका उद्देश्य सिर्फ सिलेबस की किताब पढ़कर डिग्री लेना ही रह गया है। जबकि हमारे धार्मिक ग्रंथ है, बड़े-बड़े साहित्यकारों और कवियों की पुस्तकों में ज्ञान का भंडार है, जिन्हें अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए पढ़ना भी जरूरी है। तभी अपने अपने अतीत, अपनी संस्कृति का कोई परिज्ञान युवाओं को मिल सकता है। हम लेखकों, साहित्यकारों और लोक कलाकारों का भी दायित्व है कि वह सामाजिक परंपरा और साहित्य के प्रति युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए अच्छे साहित्य का सृजन करें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार लहणा सिंह अत्री की प्रकाशित सात पुस्तकों में चार सांग संग्रह हैं, जिनमें किस्मत के खेल निराले व त्रिवेणी तथा तीन कदम ओर प्रमुख हैं, जबकि उनके रागनी संग्रह क्यां का करै गुमान बावले, भजन संग्रह चाल दिखायूँ अजब नजारा तथा हरियाणवी महाकाव्य महाभारत का सार के अलावा शिव विवाह, बल्लभगढ का नाहर, राम रत्न का ब्याह, नज्मा, प्रीतकौर चंद्रपाल, हीरामल-जमाल भी उनकी कृतियां सुर्खियों में हैं। उन्हें पुस्तकें पढ़ना, लिखना और रेडियो सुनने का शोंक है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने लहणा सिंह अत्री को साल 2021 के लिए ढ़ाई लाख रुपये के जनकवि मेहर सिंह सम्मान से नवाजा है। इसके अलावा उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति पुरस्कार, हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से हिन्दी विभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय का सम्मान, साहित्य सभा कैथल का सम्मान, हिन्दी साहित्य प्रेरक संस्था, जींद का सम्मान, वैद्य हुक्म चन्द अग्रवाल फाउंडेशन घरौंडा तथा निर्मला स्मृति साहित्यक समिति, चरखी दादरी द्वारा पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है। ब्राह्मण सभा, असंध ने परशुराम जयंती पर पगड़ी भेंट कर सम्मान किया। इसके अलावा उन्हें विभिन्न सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं के मंच से सम्मान मिल चुके हैं। 
08May-2023

मंडे स्पेशल: खेल नर्सरी में ऐसे कैसे तैयार होगी खिलाड़यों की पौध!

निजी शिक्षण संस्थानों में कैसे होगा बहारी खिलाड़यों को प्रशिक्षण 
मानदंडो पर खरे नहीं अनेक निजी खेल नर्सरी 
ओ.पी. पाल .रोहतक। हरियाणा के विभिन्न जिलों के स्कूलों में जूनियर स्तर खिलाड़ियों की पौध तैयार करने के मकसद से 1100 खेल नर्सरी खोली जा रही है, जिनमें 8 से 19 आयु वर्ग के खिलाड़ियों को विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण दिया जाना है। इनमें से छह सौ से ज्यादा खेल नर्सरी निजी स्कूलों और खेल अकादमियों को आवंटित की जा रही है। सरकार की इस योजना में 8 से 14 आयु के खिलाड़ियों को 1500 रुपये और 15 से 19 आयु वर्ग के खिलाड़ियों को दो हजार रुपये छात्रवृत्ति देने का प्रावधान इस शर्त पर किया गया है कि हरेक खिलाड़ी को 22 दिन का अभ्यास करना अनिवार्य होगा। अब सवाल ये है कि निजी स्कूलों को खेल नर्सरी आवंटित करने की नीति में वही खेल होगा, जिस वजह से साल 2017 में शुरू की गई खेल नर्सरियों को बंद करना पड़ा था और कुछ ऐसी ही हकीकत फिलहाल सामने नजर आ रही है। मसलन निजी स्कूलों में दूसरे खिलाड़ियों के आने की संभावना नगण्य रहेगी और शिक्षण संस्थाएं अपने स्कूल के बच्चों को ही विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण देने के नाम पर कोचों और खिलाड़ियों के नाम पर आने वाली छात्रवृत्ति की धनराशि वसूल करेगी? हरिभूमि की पड़ताल से यहां तक देखने को मिला है कि जिन निजी शिक्षण संस्थानों को खेल नर्सरी आवंटित की गई हैं, उनमें ज्यादा स्कूल खेल विभाग के खेल नर्सरी के लिए तय किये गये मानदंडों पर भी खरे नहीं पाए जा रहे हैं। 
रियाणा सरकार ने राज्य के युवाओं के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए उन्हें शिक्षा से लेकर उनकी प्रतिभा अनुसार खेलों में प्रोत्साहन देने के लिए खेल नर्सरी योजना शुरू की है। सरकार की मंशा यही है कि प्रदेश खेल के क्षेत्र में उन्हें उनके खेल की रुचि का बेहतर प्रशिक्षण मिल सके। हरियाणा सरकार ने स्कूली बच्चों में खेल के प्रति रुझान बढ़ाने उद्देश्य से खेल नर्सरी योजना करने के साथ उन्हें छात्रवृत्ति के लिए धनराशि देने का भी प्रावधान किया है। इसके लिए खेल विभाग की सरकार अकादमियों के अलावा निजी स्कूलों और खेल संस्थानों में मौजूद खेलों बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके एक बेहतर खेल नर्सरी का विकास करने का निर्णय लिया गया है। खेल नर्सरी योजना के तहत खेल नर्सरियों के माध्यम से हुनरमंद खिलाड़ियों को पेशेवर कोच के माध्यम से एशियाई, कॉमनवेल्थ और ओलंपिक जैसे खेलों में शामिल होने के लिए प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान हो सकेगी। खेल विभाग की मंशा यह भी है कि प्रदेश में चल रही कोचों की कमी को पूरा करने के लिए उन्हें निजी संस्थानों के कोच भी मिल जाएंगे। 
किस जिले में किस खेल पर होगा फोकस 
खेल विभाग के सूत्रों के अनुसार सूबे में खोली जा रही खेल नर्सरियों में अलग अगले खेलों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इनमें अंबाला में स्विमिंग, जिम्नास्टिक्स और वेटलिफ्टिंग (महिला व पुरुष वर्ग) की खेल नर्सरी शुरु की जा रही है। भिवानी में बॉक्सिंग, फरीदाबाद में तीरंदाजी, चरखी दादरी में हैंडबॉल, फतेहाबाद में फुटबॉल, गुरुग्राम में रेसलिंग व वॉलीबॉल, झज्जर में जूडो, जींद में एथलेटिक्स और कैथल में हॉकी (सभी पुरुष वर्ग) प्रशिक्षण के फोसक के साथ खेल नर्सरी स्थापित की जा रही है। जबकि करनाल में फेंसिंग और साइकिलिंग के अलावा कयाकिंग-केनोइंग व रोइंग (सभी पुरुष वर्ग) की नर्सरी स्थापित की गई है। कुरुक्षेत्र में लड़कों के लिए हॉकी व साइकिलिंग, महेंद्रगढ़ में फुटबॉल, नूंह में बॉक्सिंग, पलवल में वॉलीबॉल और पंचकूला में ताइक्वांडो (सभी पुरुष वर्ग) की खेल नर्सरी स्थापित की गई है। महिला व पुरुष दोनों वर्ग के लिए पंचकूला में हॉकी व टेबल टेनिस, पानीपत में बॉक्सिंग, रोहतक में रेसलिंग और यमुनानगर में वेटलिफ्टिंग की खेल नर्सरी स्थापित की जा रही है। इसके अलावा लड़कों के लिए रेवाड़ी में फेंसिंग, सिरसा में हॉकी और सोनीपत मे हॉकी व रेसलिंग के खेल पर ज्यादा फोकस रहेगा। 
कोचों पर भारी खिलाडी 
प्रदेश में खेल विभाग के 533 कोच है, जबकि एक जिले में अलग अलग खेलों के लिए कम से कम 50 कोच की आवश्यकता है, लेकिन प्रदेश के खेल विभाग के 15 से 20 फीसदी कोच ही खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। प्रदेश में कोचों की कमी को पूरा करने के लिए हरियाणा खेल विभाग ने एक नई योजना बनाई है, जिसमें जिला खेल विभाग को प्रत्येक कोच को 25 हजार रुपए मासिक वेतन देने का अधिकार दिया गया है। वहीं हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों ही अपनी आउटस्टैंडिंग स्पोर्ट्सपर्सन पॉलिसी के तहत खेल विभाग में 2 कोच और 32 जूनियर कोच के पदों पर नियुक्ति की सूची जारी की है। दूसरी ओर पिछले साल हरियाणा के साई सेंटरों के लिए 220 सहायक कोच के पदों हेतु भारतीय खेल प्राधिकरण ने भी अधिसूचना जारी की है। इसके बावजूद खेल के क्षेत्र में अपने बलबूत पर खिलाड़ी अपनी तैयारियों में जुटे हैं। 
खेल नर्सरी में कोचों की योग्यता 
हरियाणा खेल एवं युवा मामले मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान, एनआईएस पटियाला या इसके समकक्ष के संस्थान से डिप्लोमा होल्डर अथवा वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में कोच की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसी प्रकार से एनआईएस सर्टिफिकेट कोर्स, एमपीईडी या शारीरिक शिक्षा से एमए, डीपीईडी, जूनियर अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, जूनियर राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, ग्रामीण राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी प्लेयर या राष्ट्रीय महिला स्पोर्ट्स खिलाड़ी भी प्रशिक्षक की जिम्मेदारी निभा पाएंगे। खेल नर्सरी योजना में शामिल कोच को प्रतिमाह छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए मानदेय सरकार द्वारा प्रदान किया जाएगा, जिन कोचों द्वारा एमपीएड या डीपीएड या एमए फिजिकल एजुकेशन से किया गया है, या उन्होंने एनआइओस से सर्टिफिकेट कोर्स किया है, तो उन्हें कोचिंग के 2000 रूपये प्रदान किए जाएंगे। जबकि राज्य के जिन कोच द्वारा कोचिंग डिप्लोमा अनाइएस पटियाला या युवा मामले और खेल मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से कोचिंग डिप्लोमा प्राप्त किया गया है, उन्हें 25000 रूपये की सहायता राशि प्रदान की जाएगी। 
क्या है खेल नर्सरी योजना 
खेल विभाग के आदेशों में कहा गया है कि 500 नर्सरियों को खेल विभाग के प्रशिक्षकों की ओर से चलाया जाएगा। जबकि 600 नर्सरियों को सरकारी, गैर सरकारी संस्थान, निजी खेल संस्थान, खेल अकादमी में खिलाड़ियों को दी जाने वाली सुविधाओं के आधार पर आवंटित की जा रही हैं। योजना के तहत हर खिलाड़ी को खुराक राशि भी सरकार की ओर से दी जाएगी। हर खिलाड़ी को प्रतिमाह कम से कम 22 दिन नर्सरी में प्रशिक्षण लेने पर 8 से 14 वर्ष आयु वर्ग में 1500 रुपए, 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग में 2 हजार रुपए प्रति माह की दर से छात्रवृत्ति के रूप में खुराक राशि दिए जाने का प्रावधान है। प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बजट में पंचकुला में हरियाणा खेल अकादमी, एक खेल छात्रावास और एक राष्ट्रीय स्तर का वैज्ञानिक प्रशिक्षण और खेल पुनर्वास केंद्र स्थापित करने का ऐलान किया था। अंबाला और पंचकुला में 200 बिस्तरों वाले खेल छात्रावास के साथ-साथ हरियाणा खेल अकादमी स्थापित करने का प्रस्ताव भी किया। 
08May-2023

सोमवार, 1 मई 2023

चौपाल: लोक कला की विभिन्न विधाओं को जीवंत कर रहे इन्द्र सिंह लाम्बा

गीत लेखन व रागनी गायन के साथ लोकनृत्य में भी हासिल की है विशेषज्ञता 

BY--ओ.पी. पाल 

रियाणा के लेखक, कलाकार, गायक हरियाणवी लोक कला, संस्कृति एवं सभ्यता को जीवंत रखते हुए उसे देश विदेश में पहचान देने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही लोक कलाकारों में शुमार इन्द्र सिंह लाम्बा, हिसार दूरदर्शन से लोक गायन में बी+श्रेणी के लोक कलाकार है, जो लोक कला और संस्कृति को लेकर इतने संजीदा हैं कि उन्होंने अपनी अलग अलग शैली में अपनी कला के प्रदर्शन से सभी को चौंकाया है। यानी वे गीत लेखन, गायन, अभिनय और लोक नृत्य जैसी विधाओं के जरिए समाज को सीधे अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दे रहे हैं। इसी मकसद से लाम्बा ने परिवार से विरासत में मिली सभी विधाओं में देशभक्ति, सामाजिक कुरीतियां और भक्ति भाव पर फोकस करते हुए उसे आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। लोक संपर्क एवं सांस्कृतिक विभाग में कलाकार के पद से सेवानिवृत्त लोक कलाकार इन्द्र सिंह लाम्बा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान विभिन्न शैलियों में अपनी लोक कला के सफर के अनुभवों को साझा किया। 

रियाणा के रागनी गायक कलाकार इन्द्र सिंह लाम्बा का जन्म भिवानी जिले की तोशाम तहसील के गांव बजीना में 06 अगस्त 1961 को हरीचन्द के परिवार में हुआ। लाम्बा के पिता आकाशवाणी रोहतक से मान्यता प्राप्त लोक कलाकर थे। उनके चाचा, ताऊ, दादा और पड़दाता भी लोक गायक रहे। इसलिए उन्हें रागनी गायन और सांग की कला विरासत में मिली, जिसे लाम्बा आगे बढ़ा रहे हैं। लोक कलाकार इन्द्र सिंह लाम्बा ने बताया कि उन्होंने गायन की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा चाचा धर्मनाथ को ही गुरु बनाकर ली, जो उस समय रामलीला, प्रचारक तथा लेखक थे। सांगं व रागनी गायन का माहौल उन्हें चूंकि परिवार से बचपन में ही मिला। उन्होंने बताया कि जब वह गांव के ही प्राइमरी स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ते थे, स्कूल में हर शनिवार को बच्चों कुछ ना कुछ खेल या सांस्कृतिक गतिविधियां करवाई जाती थी। तब उनकी उम्र मात्र 8 साल थी। अध्यापक ने उन्हें अपनी मेज पर खड़ा कर दिया और कुछ सुनाने के लिए कहा। तब मैने सकुचाते हुए राजा हरीशचन्द्र के किस्से से एक रागनी सुनाई। जिसके बोल थे: घडिया ठाके चला हरीचन्द पाणी ढ़ाण लाग्या, करके पिछली बात याद, दरिया पै रोण लागग्या। इस पर सभी बच्चों ने और अध्यापकों ने खूब तालियां बजाई और मुझे ईनाम में मीठी गोली दी। तभी से वह और अन्य एक साथी के साथ प्राइमरी स्कूल में रोजाना सुबह की प्रार्थना करवाते थे। छठी कक्षा में ढाणी मांटू हाई स्कूल में दाखिला लिया। वहां भी दसवी काक्षा तक पढ़ा और सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी करने के साथ स्कूल की प्रार्थना करवाने का जिम्मा भी उन्हें ही सौंपा गया। यहीं से उन्होंने साल 1976 में मैट्रिक पास की। उसी दौरान उनके फूफा मांगेराम और चाचा धर्मनाथ सांग का बेड़ा बनाया। इसके लिए उनका भी ऑडिशन हुआ और उन्होंने सांग में मुख्य करेक्टर (बड़ी रागी) का लगभग चार साल तक अभिनय किया। सांग के लिए गायन के साथ-साथ नृत्य भी करना होता था। फिर साल 1980 में मुझे जिला लोक सम्पर्क विभाग नारनौल के कलाकार के पद पर नौकरी मिली। नौकरी के दौरान फिर एक दिन मन में विचार आया कि कुछ लिखना चाहिए और उन्होंने एक एक भजन ‘प्यार हैजी, हैजी, जगत में बड़ा बताया प्यार, बिना इस दुनिया में जीना है बेकार’ लिखा। उन्होंने यही भजन 1982 में आकावावाणी रोहतक से पहली बार गाया था, जो आकाशवाणी केंद्र से बहुत बार प्रसारित किया गया। वह सरकारी नौकरी से कलाकार पद से साल 2019 सेवानिवृत्त हुए। खास बात ये है कि रागनी गायक और लोक नृत्य के विशेषज्ञ माने जा रहे इन्द्र सिंह लाम्बा ने गीत लेखन और अभिनय जैसी विधा में भी अपनी छाप छोड़ी है। 

बाधाओं के बावजूद नहीं डिगा हौंसला 

लोक संपर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग में एक कलाकार के पद पर काम करने के लिए कई बार उन्हें महिला का अभिनय तक करना पड़ता था। रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद नाटक करते थे, जिसमें उसके कमला का अभिनय करना होता था, जहां कमला को देखने के लिए महिलाओं और लड़कियों का हजुम लग जाता था और आवाज आती थी कि कमला कितनी मलूक है। गायन के साथ अभिनय के लिए उसे अपने गांव के लोगों का भरपूर प्यार मिला। कला के क्षेत्र में कलाकारों के जीवन में बाधाएं तो अनेक आती हैं, लेकिन उनके साथ ऐसी घटना हुई कि उसका बुरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने बताया कि एक बार सांग में सुख भार कर यानि ऊंचा कूद-कूद नाच रहा था, तो तख्त टूट गया और उसके बीच से नीचे निकल गया। इसमें गहरी चोटों के कारण उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन कहावत है कि ‘जिन्दगी से जो ना हारे, वो संवारे जिन्दगी, ठोकरें खाकर ही बनता आदमी है आदमी। आजमाइस का यही दस्तूर है, तो क्या हुआ, चल मुसाफ़िर तेरी मन्जिल दूर है तो क्या हुआ’…। इसके बावजूद उन्होंने कोई परवाह किये बिना अपनी लोक कला को निरंतर जारी रखा, जिसका सकारात्मक परिणाम उनके सामने है और वह रागनी गायन में ही नहीं लोक कला की कई विधाओं के रुप में अपनी पहचान बना चुके हैं। 

हरियाणवी फिल्मों में की भागीदारी 

लोक कलाकार लाम्बा ने अपने लिखे गीतों पर रागनी गायन आकाशवाणी रोहतक और हिसार दूरदर्शन पर भी किया है। इसके अलावा उन्होंने हरियाणा कला परिषद की निदेशक उषा शर्मा के निर्देशन में तीज, करवा चौथ, होईमाता, रक्षाबंधन, कुंआ पूजन, जैसी ट्रेडिश्नल टेलीफिल्मों में गीत लिखने और गाने के साथ अभिनय की भूमिका भी निभाई है। वहीं यशपाल शर्मा के निर्देशन में बनी हरियाणवी फिल्म दादा लखमी में गायन के साथ अभिनय भी किया है। इसके अलावा उन्होंने हरियाणवी फिल्मों गौरव की स्वीटी, स्कैम, मैं भी सरपंच, पुनर्जन्म में भी लेखन, गायन व अभिनय किया है। इसके अलावा सपना चौधरी, अंजली राघव व सोनाली के साथ संगीत क्षेत्र में अपनी कला शैलियों का प्रदर्शन किया है। 

पाश्चत्य संस्कृति से हुआ ह्रास 

लोक कलाकार लाम्बा मानते हैं कि इस आधुनिक युग में साहित्य, लोक कला और लोक गीतों भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। इसका कारण किशोर तथा युवा वर्ग पथ भटक रहे हैं। पाश्चात्य संस्कृति की तरफ युवाओं का बढ़ता रुझान सामाजिक दृष्टि बहुत ही घातक है। लोक कलाकारों पक्के साज पर गाने के कारण रागनियों के श्रोताओं में भी बहुत कमी देखी जा रही है। इसका कारण घड़वा रागनी गायन भी है, जिसमें अश्लील चुटकले बेहुदी रागनी और भद्दी टिप्पणी भी आज की युवा पीढ़ी को हरियाणवी सांग और रागनी गायन शैली के प्रति भटका रही है। युवा पीढ़ी को अपनी लोक कला और संस्कृति के लिए प्रेरित करने के लिए कलाकारों को द्विअर्थी गीत लेखन और गायन शैली को त्यागकर गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन करने की जरुरत है। मसलन ऐसा लेखन, गायन, अभिनय होना चाहिए, जो परिवार एक साथ बैठकर सुन सके। अपनी लोक कला व संस्कृति को पुनर्जीवित रखने के कला क्षेत्र के लोग सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तो समाज और संस्कृति को ऐसे दुष्परिणामों से बचाया जा सकता है। 

01May-2023

डा. अंबेडकर के नाम से तेलंगाना के नए सचिवालय ने लिखा नया अध्याय

मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने विधि विधान के साथ किया उद्घाटन
हैदराबाद की खूबसूरती को नया आयाम देगा सचिवालय
ओ.पी. पाल
हैदराबाद/नई दिल्ली। भारत के संविधान निर्माण डा. भीमराव अंबेडकर के नाम से बनाए गये तेलंगाना सचिवालय के उद्घाटन के साथ ही कामकाज शुरू हो गया है। इस सचिवालय का उद्घाटन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने धार्मिक विधि विधान के साथ किया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि नये सचिवालय का नामकरण डॉ. भीम राव आंबेडकर के नाम पर इस मंशा से किया गया है कि जन प्रतिनिधियों और समूचे सरकारी तंत्र को भारतीय संविधान के निर्माता के सपनों को साकार करने की प्रेरणा मिल सके।
हैदराबाद में हुसैन सागर के तट पर ऐतिहासिक हिसाब से बनाए गये तेलंगाना सचिवालय का उद्घाटन रविवार को राज्य के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने सुबह से ही शुरू हुए सुदर्शन यज्ञ और अध्यात्मिक आयोजनों के साथ किया, जहां सुबह से दोपहर तक यज्ञ और पूजा अर्चना के कार्यक्रमों से लबरेज रहा। दोपहर को यज्ञ में पूर्ण आहुति देने मुख्यमंत्री केसीआर अपने मंत्रिमंडल के साथ सचिवालय भवन पहुंचे और अपने कक्ष में धार्मिक विधि विधान के साथ प्रवेश ही नहीं किया, बल्कि फाइलों पर हस्ताक्षर करके नए सचिवालय में कामकाज का भी शुभारंभ किया। भारतीय संविधान के निर्माण डा. भीमराव अंबेडकर के नाम पर रखने का मकसद स्पष्ट करते हुए कहा कि इससे जन प्रतिनिधियों और समूचे सरकारी तंत्र को भारतीय संविधान के निर्माता के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करना है। उन्होंने पिछले दिनों केंद्र सरकार से भी भारतीय संसद का नामकरण भी डा. अंबेडकर के नाम से करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि डा. अंबेडकर के संदेश और महात्मा गांधी की विचारधारा को भी उनकी सरकार आगे बढ़ाने का काम कर रही है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री केसीआर ने इस नए सचिवालय की नींव 27 जून 2019 को रखी थी। यानी सचिवालय का निर्माण काम शुरू होने के 26 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया। इतने बड़े निर्माण में आमतौर पर पांच साल लगते हैं। इसका निर्माण गुंबद निजामाबाद में काकतीय वंश के शासनकाल के दौरान निर्मित नीलकांतेश्वर स्वामी मंदिर की शैली में कराया गया है। इंडो-सरसेनिक शैली में 616 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गये नए सचिवालय भवन देखने में इंद्रभवन की तरह नजर आ रहा है, जिसमें गंगा जमुनी तहजीब दिखती है। इस सचिवालय भवन के भीतर मंदिर, मस्जिद और चर्च के लिए अलग-अलग जोन तैयार कराए गये हैं। वहीं 26.98 एकड़ क्षेत्रफल में फैले सचिवालय में ऐतिहासिक चार मीनार और गोलकुंडा किले के साथ-साथ एक अद्वितीय वास्तुशिल्प भी आकर्षण का केंद्र बन रहा है। 
सचिवालय की विशेषताएं
हैदाराबाद की खूबसूरती को बढ़ाते छह मंजिला नए सचिवालय के पूर्व में लुम्बिनीवनम, अमरज्योति, पश्चिम में मिंट कंपाउंड, उत्तर में अंबेडकर प्रतिमा और दक्षिण में रवींद्र भारती जानेवाली रोड हैं। इस भवन का निर्माण 7,79,982 वर्ग फीट में किया गया और इसकी ऊंचाई 265 फीट है। नए सचिवालय की कुल क्षेत्रफल 28 एकड़ है। इतना लंबा सचिवालय किसी राज्य में नहीं है। नीलकंठेश्वर मंदिर, वनपर्थी पैलेस और सारंगपुर हनुमान मंदिर से प्रेरणा लेकर बनाए गये तेलंगाना के नए सचिवालय पर कुल 34 गुंबद लगाए गये हैं। पूर्व और पश्चिम की ओर भवन के केंद्र में दो बड़े गुंबद हैं, जिन पर राष्ट्रीय चिन्ह स्थापित हैं। यही नहीं नए सचिवालय में तिरुपति की मूर्तियां भी लगाई जा रही हैं। इसके अलावा सचिवालय में गणपति, सुब्रह्मण्यस्वामी, अभयंजनयस्वामी, सिम्हा, नंदी और शिवलिंग की पत्थर की मूर्तियां भी लगाई जा रही हैं।  सचिवालय भवन में आगंतुकों के लिए सहायक भवनों, पुलिस कर्मियों, अग्निशमन विभाग, क्रेच, उपयोगिता भवन जैसे निर्माण को भी किया गया है। इसके अलावा लैंडस्केपिंग, पत्थर के फुटपाथ के साथ हार्डस्केप और लॉन, देशी पेड़, फव्वारे, वीवीआईपी, कर्मचारियों और अन्य लोगों के लिए पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह की योजना के तहत निर्माण किया गया है।
छठी मंजिल पर होगा मुख्यमंत्री कार्यालय 
नए सचिवालय की छठी मंजिल पर एक लाख वर्गफीट क्षेत्रफल में मुख्यमंत्री कार्यालय स्थापित किया गया है। मुख्यमंत्री का कार्यालय पूरी तरह से सफेद संगमरमर का है, और उनके कर्मचारियों के लिए विशेष खंड स्थापित किए गए हैं। लोगों से मिलने और प्रजा दरबार आयोजित करने के लिए 'जनहिता' के नाम से एक हॉल की व्यवस्था की गई है जिसमें कम से कम 250 लोग बैठ सकते हैं। कैबिनेट हॉल को 25 मंत्रियों और 30 से ज्यादा अधिकारियों के बैठने के लिए तैयार किया गया है। कलेक्टरों के साथ बैठक करने के लिए 60 लोगों के लिए एक हॉल और 50 लोगों के लिए एक हॉल का निर्माण किया गया है। इन चार मंदिरों के अलावा मुख्यमंत्री के विशिष्ट अतिथियों के साथ भोजन करने के लिए लगभग 25 लोगों के बैठने के लिए एक अत्याधुनिक डाइनिंग हॉल बनाया गया है। 
कौन सा मंत्रालय किस मंजिल पर होगा
भूतल: अनुसूचित जाति अल्पसंख्यक, श्रम, राजस्व विभाग
प्रथम तल: शिक्षा, पंचायत राज, गृह विभाग
दूसरी मंजिल: वित्त, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पशुपालन विभाग
तीसरी मंजिल: औद्योगिक और वाणिज्य विभाग, योजना विभाग
चौथा तल: वन, सांस्कृतिक विभाग, सिंचाई विभाग, विधि विभाग
पांचवीं मंजिल: आर एंड बी, सामान्य प्रशासन विभाग
छठा तल: सीएम, सीएस, सीएमओ, पीआरओ, स्टाफ के कार्यालय
01May-2023