सोमवार, 29 मई 2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति को नया आयाम देने में जुटी नृत्य रचनाकार लीला सैनी

लोक कला की विभिन्न विधाओं ने दी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: लीला रानी जन्म तिथि: 12 नवंबर 1958 (रोहतक) जन्म स्थान: रोहतक (हरियाणा) 
पिता:- स्व. इंदर सिंह सैनी 
माता: स्व. श्रीमती भोली देवी 
शिक्षा:एमए (ईआईएलएम विश्वविद्यालय), बीए (उस्मानिया विश्वविद्यालय), बीए शास्त्रीय नृत्य (कथक) प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़। 
संपर्क: 19/542, ग्रीन रोड, शक्ति नगर, रोहतक, मोबाइल- 9888476789 ईमेल: lilasaini963@gmail.com
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा लोक कला और संस्कृति की देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी एक अलग पहचान है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह पहचान देने वाले लोक कलाकार अपनी अलग अलग विधाओं में बेहतर योगदान दे रहे हैं। ऐसी ही विभूतियों में प्रदेश की सुपरिचित महिला लोक कलाकार सुश्री लीला सैनी का नाम भी बेहद लोकप्रिय है, जिन्होंने अपनी लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य कला की विशेषज्ञता के साथ संगीत और नाटकीय मंचन में ही नहीं, बल्कि हरियाणवी फिल्म बहुरानी व चन्द्रावल से लेकर दादा लखमी तक अभिनय और लोक नृत्य की विधा के हुनर से एक अलग ही मिसाल कायम की है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग अलग विधाओं में हरियाणवी लोक कला और संस्कृति की अलख जगाते अलग ही छाप छोड़ी है। लोक संपर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग हरियाणा से विशेष कार्यकारी अधिकारी के पद से सेवानिवृत सुश्री लीला सैनी ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने लोक नृत्य एवं संगीत के सफर के बारे में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें उनके हरियाणा लोक कला एवं संस्कृति को नया आयाम देने का भाव विद्यमान है और शायद इसी मकसद से वह बच्चों और युवा पीढ़ी को लोक कला का प्रशिक्षण देने के मिशन में जुटी हुई हैं। 
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रियाणा की प्रसिद्ध नृत्यांगना के रुप में लोकप्रिय सुश्री लीला सैनी का जन्म 12 नवंबर 1958 को रोहतक में इंदर सिंह सैनी व भोली देवी के परिवार में हुआ। उनके खुशनुमा परिवार में आठ भाई बहनों के बीच उनके पिता ही अकेले कमाने वाले थे और उनके परिवार में किसी प्रकार का साहित्यिक या कला का कोई माहौल तक नहीं था। हां उनकी माता तीज त्यौहार पर मधुर और सुरीली आवाज में अच्छा गा लेती थी, शायद उन्हें सुनकर ही उन्हें लोक संगीत में रुचि होने लगी। बचपन में वह अपनी छोटी बहन के साथ राधा कृष्ण बनकर डांस भी करते थे, लेकिन संगीत कला में उनके बढ़ते कदमों में पूरे परिवार का सहयोग व समाज का लगातार प्रोत्साहन मिलता रहा। स्कूल में शनिवार को होने वाली बालसभा जैसे कार्यक्रमों में मंच पर नृत्य में उनकी हमेशा भागीदारी रहती थी। जबकि प्रार्थना कराना उन्हीं की जिम्मेदारी रहती थी। इस प्रकार उनका लोक नृत्य और संगीत का सफर लगातार आगे बढ़ता गया। हरियाणवी लोक संगीत से वह रोहतक आकाशवाणी केंद्र की स्थापना से ही एक कलाकार के रुप में जुड़ी हुई हैं। नृत्य करने से कोई गुरेज न करने वाली लीला सैनी ने हमेशा अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हुए समाज को अपनी कला की विधाओं से हमेशा संकारात्मक संदेश देने का ही प्रयास किया है। साल 1982 में उन्हें हरियाणा लोक संपर्क और सांस्कृतिक विकभाग में एक महिला कलाकार के रुप में नौकरी मिली, जहां उन्हें 1998 में सहायक सांस्कृतिक कार्य अधिकारी के पद की जिम्मेदारी सौंपी और साल 2006 में सूचना लोक संपर्क और सांस्कृतिक विभाग में उप विशेष सांस्कृतिक अधिकारी के रुप में कार्य करने का मौका मिला। इस बीच उन्हें हरियाणा कला परिषद में कार्यक्रम अधिकारी का दायित्व भी निभाना पड़ा। स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाली लीला सैनी ने चंडीगढ़ में नौकरी करते हुए प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से शास्त्रीय नृत्य(कथक) की शिक्षा ली, जहां गुरु वेदव्यास ने कथक नृत्य के गुर दिये, तो छह माह उन्हें गुरु परिहार से नृत्य की शिक्षा ली और उन्होंने चंडीगढ़ में उनके कई कार्यक्रम कराए। उन्होंने नृत्य, नाटक और संगीत की कलाओं में हमेशा सामाजिक बुराईयों पर फोकस करके समाज को सकारात्मक विचाराधारा का संदेश दिया। सांस्कृतिक विभाग की ओर से उन्होंने अने नृत्य कार्यशालाओं का आयोजन भी कराया। कोविड के दौरान भी उन्होंने अपनी कला के जरिए लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए गाने रिकार्ड कराए। उनकी लोक कला की विभिन्न विधाओं के कारण उन्हें आईसीसीआर और संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली के अलावा सांस्कृतिक विभाग हरियाणा, एनजेडसीसी पटियाला, सीसीआरटी दिल्ली के साथ पैनलबद्ध समूह से जोड़ा गया है। 
रंगमंच व संगीत कला में भूमिका 
हरियाणा जनसम्पर्क एवं सांस्कृतिक विभाग की नृत्य कार्यशालाओं तथा संगीत नाटक अकादमी की नाट्य कार्यशाला का आयोजन में लीला सैनी ने नृत्य और मंचन में अहम भूमिका निभाई। साल 2000 में उत्तर क्षेत्र द्वारा गणतंत्र दिवस पर पटियाला सांस्कृति कला द्वारा हरियाणा की लोक नृत्य कार्यशाला, लाल बहादुर शास्त्री अकादमी मसूरी में हरियाणा की लोक नृत्य कार्यशाला के अलावा उन्होंने बंजारा ग्रुप रेवाड़ी के साथ नृत्य कार्यशाला का आयोजन भी किया। एक रंगमंच कलकार के रुप में भी उन्होंने पिछले तीन दशक में 20 से ज्यादा नाटकों में अभिनय तो किया ही, वहीं अधिकांश संगीत कार्यक्रमों का निर्देशन का दायित्व भी निभाया है। हरियाणा राज्य स्तर के कार्यक्रमों में बैशाखी महोत्सव, घूमर नृत्य, नृत्य कार्यशालाओं जैसे कई दर्जन सांस्कृतिक आयोजनों में उन्होंने मंचन से लेकर नृत्य निर्देशक और नृत्य कोरियोग्राफर जैसी जिम्मेदारी निभाई हैं। 
गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सेदारी 
प्रसिद्ध लोक कलाकार लीला सैनी ने हरियाणा सरकार की ओर से नई दिल्ली में राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में प्रमुख कलाकार के रुप में चार बार 1981, 1983, 1985 और 2000 की परेड में हिस्सेदारी की है। वहीं नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के उत्सव में नृत्य टीम का नेतृत्व किया और संसदीय दल के रुप में दूरदर्शन और आल इंडिया रेडियों पर नृत्य का प्रदर्शन किया है। विशेष रुप से एशियाड-1982 के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए हरियाणा राज्य ने उन्हें नृत्य के लिए कोरियोग्राफर नियुक्त किया, जहां उन्होंने 500 बच्चों के नृत्य और मंचन का नेतृत्व किया। इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में अपना उत्सव, अहमदाबाद शेरयाश उत्सव, हिमाचल के कूल्लू में दशहरा उत्सव, पटियायाल के अपना उत्सव में भी एक नृत्यांगना के रुप में अपने प्रदर्शन से लोगों के दिलों में जगह बनाई है। लीला सैनी ने डांस कोरियोग्राफर के तौर पर साल 1979 से अब तक हरियाणा सरकार के सांस्कृतिक विभाग के प्रतिनिधि के रुप में देश में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पुडुचेरी, गोवा, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों के विभिन्न शहरों में आयोजित सांस्कृतिक आदान प्रदान कार्यक्रमों में हिस्सेदारी कर लोकप्रियता हासिल की है। 
विदेशों में छोड़ी छाप 
राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, लोक नृत्यांगना लीला सैनी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के प्रति विदेशियों को आकर्षित किया है। उन्होंने इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन्स की ओर से साल 1989 में बीस दिवसीय दौरे में लिबिया और सिरिया में 14 सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी कला के हुनर का प्रदर्शन किया। जबकि साल 1994 में पश्चिमी अफ्रीका के देशों घाना, मोरको, बुर्केना फास्को, तुनिसिया, मिश्र और दुबई में करीब एक माह के प्रवास के दौरान बीस सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन कर हरियाणवी लोक कला व संस्कृति की छटाएं बिखेरी। इससे पहले साल 1985 में प्रसिद्ध नृत्यांगना लीला सैनी ने हरियाणा सरकार की ओर से हरियाणा के सांस्कृतिक दल के सदस्य के रूप में नेपाल (काठमांडू) में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की। 
फिल्मों में अभिनय 
आल इंडिया रेडियो से उच्च श्रेणी कलाकार की मान्यता प्राप्त प्रसिद्ध नृत्यांगना लीला सैनी ने हरियाणवी फिल्मों में हरियाणवी फिल्मों की मशहूर डांस डायरेक्टर के रुप में काम किया। सुश्री सैनी सबसे पहले 1983 के दौरान हरियाणवी फिल्म बहुरानी में अभिनय और संगीत में अपनी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सुपरहिट हरियाणवी फिल्म चन्द्रवल, लाडो बसंती, जर जोरु और जमीन, जाटनी, छोरा हरियाणे का, कुनबा, चन्द्रावल-2 और यशपाल शर्मा की निर्देशित हरियाणवी फिल्म ‘दादा लखमी’ में नृत्य रचनाकर यानी कोरियोग्राफर के रुप में अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा उन्होंने पंजाबी फिल्म गबरु पंजाब दा और तकरार में भी अभिनय किया। जबकि हिंदी फिल्म दूसरी लड़की और फक्कड के अलावा लघु फिल्म ‘हक’ में अभिनेत्री के रुप में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। लीला ने ऑडियो विजुअल फिल्म 'एक सवाल’ और लाइट एंड साउंड फिल्म 'कल और आज’ भी अपनी कला का प्रदर्शन किया है। 
युवाओं को संस्कृति से जोड़ना जरुरी 
महिला लोक कलाकार लीला सैनी का कहना है कि हरियाण कला व संस्कृति की जड़े मजबूत है और रहेंगी, लेकिन आज के इस आधुनिक युग में यदि युवा वर्ग को लोक संस्कृति के साथ मजबूती से नहीं जोड़ा गया, तो हमारी प्राचीन संस्कृति की पहचान गुम हो जायेगी। वह मानती हैं कि पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव से हरियाणवी लोक संस्कृति को काफी नुकसान पहुंचा है। अपनी संस्कृति की जड़ो को मजबूत रखने के मकसद से ही वह हरियाणा की कला संस्कृति के साथ युवा पीढी को जोड़ने के लिए लगातार नृत्य व संगीत कला की कार्यशालाएं आयोजित कर हजारों बच्चों को प्रशिक्षण देती आ रही है। वहीं रोहतक में लीला कला मंच फाउंडेशन के माध्यम से बच्चों व युवाओं को निशुल्क इस कला की शिक्षा देने का काम कर रही है। इस मिशन में लीला सैनी ने हरियाणा की परम्परागत विद्या सांग को भी आधुनिक रूप देने का प्रयास किया है। दरअसल परम्परागत सांग में पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाते थे, लेकिन उन्होंने इसे नया आयाम दिया और अब सांग में महिला का किरदार महिला ही निभा रही है। उनका कहना है कि जिंदगी बहुत छोटी है और वह चाहती है कि उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है, उसे वह निस्वार्थ भाव से बच्चों में बांट दें, ताकि हरियाणवीं कला संस्कृति को और अधिक मजबूती मिले। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा की प्रसिद्ध लोक कलाकार सुश्री लीला सैनी को वर्ष 1986 में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला ने सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना के पुरस्कार से नवाजा था। वहीं उन्हें पंडित लख्मीचंद मेमोरियल ट्रस्ट से लोक संस्कृति रक्षक अवार्ड भी मिल चुका है। जबकि गणतंत्रण दिवस की परेड में चार बार लोक नृत्य का सम्मान मिल चुका है। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की लोक एनसीजेडसीसी, वाह वीमेनियन श्रमिका श्री सम्मान के अलावा फिल्म और कला में विशेष योगदान के लिए देवी शंकर प्रभाकर मेमोरियल ट्रस्ट, नटराज थियेट्रिकल ग्रुप, सोनीपत, बंजारा ए कल्चरल सोसाइटी रेवाडी, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 रोहतक समेत सैकड़ो सांस्कृतिक मंचों से सम्मान होने का गौरव लीला सैनी को हासिल हो चुका है। 
29May-2023

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