सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

चौपाल: संस्कृति के संवर्धन में जुटी लोक गायिका ईशा पांचाल

 ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’जैसे भजन से छोटी उम्र में ही संगीत में मिली बड़ी पहचान
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ईशा पांचाल 
जन्मतिथि: 20 जून 2003 
जन्म स्थान: गांव रुखी, जिला सोनीपत(हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक, संगीत गायन में मास्टर डिग्री           (अध्ययनरत) 
संप्रत्ति: लोक संस्कृति गायक कलाकार, छात्रा 
संपर्क: गांव रुखी, सोनीपत(हरियाणा), मोबा. 7082575925 
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक कलाकार अपनी विभिन्न विधाओं से हरियाणवी लोक संस्कृति का संवर्धन एवं संरक्षण करने में जुटे हैं। ऐसे ही नवोदित लोक कलाकारों में लोक गायिका ईशा पांचाल ने छोटी सी उम्र में आध्यात्मिक गीत लेखन और गायन में जो लोकप्रियता हासिल की है, उसकी गूंज देश-विदेश में भी सुनाई देती है। लोक संगीत के क्षेत्र में भजन गायकी के साथ ही उसने देशभक्ति, सामाजिक, तीज त्यौहार और सरकारी योजनाओं के अभियानों में भी अपनी गायन शैली की ऐसी छाप छोड़ी है कि यूथ ट्यूब चैनलों पर उसके भजन गीतों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हुए वह अपनी कला से समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने में जुटी हुई है। भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित ईशा पांचाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी लोक गायन शैली को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिससे यह साबित होता है कि लोक कला संगीत एवं संस्कृति के बिना समाजिक तानाबाना अधूरा है। 
रियाणा की युवा गीतकार ईशा पांचाल का जन्म 20 जून 2003 को सोनीपत जिले के गांव रुखी में एक साधारण किसान चांद सिंह व लक्ष्मी देवी के घर में हुआ। इनका परिवार आध्यात्मिक है, लेकिन संगीत या किसी कला से कोई ताल्लुक नहीं रखता। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के बीच ही उनकी माता भजन आदि गुनगुनाती रहती हैं तो उसका प्रभाव ईशा पर भी पड़ता नजर आया। इसी कारण आज अध्यात्मिक, सामाजिक व देशभक्ति गायन में ईशा जिस प्रकार आगे बढ़ रही है उसके पीछे उनकी माता व बहन अन्नू के प्रोत्साहन की अहम भूमिका हैं, जो कुछ भजन या गीत लिखती है, उन्हें संगीत देने का काम ईशा करती आ रही है। वह संगीत को सुर ताल देने के लिए हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र में भी निपुण है। बकौल ईशा जब वह छह साल की थी तो तब उसने गुरुकुल में भी गायन सीखा, लेकिन कक्षा नौ में वह डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी में पढ़ने चली गई, जहां उनके संगीत गुरु सोमेश जांगड़ा ने एक भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ सिखाया, जिसे संगीत देकर उसने गाना शुरु किया, तो यह भजन इतना लोकप्रिय हुआ कि उससे बेहद प्रसिद्धि मिली। जब वह दसवीं कक्षा में ही थी कि उनके आध्यात्मिक गायन पहला भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी बेहद पसंद आया। इसके अलावा उनके अन्य भजन व गीत ऐसे हैं, जिन्होंने उसे देश ही नहीं विदेशों में भी लोक गीतकार के रुप में पहचान दी है। हरियाणा के अलावा देश के उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, मुंबई, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में धार्मिक आयोजन में उसके मंगल गीत सुनने की हमेश श्रोताओं से मांग आती रहती हैं। इसी कारण बढ़ते आत्मविश्वास और हौंसलों ने उसे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिल रही है। यही कारण है कि कला संस्कृति के क्षेत्र में गीतकार के रुप में अपने भजन गायकी के सफर को सुहाना बनाने के मकसद से वह स्नातक करने के बाद फिलहाल वह एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक से संगीत गायन में ही एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक में मास्टर डिग्री(एमए) कर रही हैं। जहां तक संगीत गायन के क्षेत्र में परेशानियों को लेकर ईशा का मानना है कि जब कोई भी व्यक्ति नया सीखने और करने की राह पर चलता है, तो अड़चने या उतार चढ़ाव हर किसी के सामने आना स्वाभाविक है, लेकिन उसने पीछे मुड़ने के बजाए ‘सूर्य की तरह चमकना है तो सूर्य की तरह जलना पड़ेगा, मुश्किल तो हर राह होती हैं मेरे दोस्त, गर मंजिल पानी हैं तो तुझे बिना रुके चलना पड़ेगा..जैसी पक्तियों को चरितार्थ करने का ही प्रयास किया। उनके भजन संगीत का मुख्य फोकस आध्यात्म के जरिए समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, लेकिन उनका देशभक्ति, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर भी गीत लेखन और गायन के जरिए समाज और लोगों को कला संस्कृति को विकसित करने के लिए आगे रहने का संदेश देना प्रमुख मकसद है। हालांकि आज की कला संस्कृति पहले से कहीं ज्यादा विकसित हैं और हर बच्चा, बूढ़ा, जवान अपनी कला को लोगो तक पहुंचाने में सक्षम हैं। ईशा की दृष्टि में आज का युग बेहद खूबसूरत और कलात्मक भी है। 
लोकप्रिय भजन व गीत 
लोक गीतकार ईशा पांचाल के प्रसिद्ध भजनों में ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ के अलावा उड़जा उड़जा काले काम, सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु, काला काकाल कहवै गुजरी और सुदामा कैसे आये आदि हैं। इसके अलावा वह देशभक्ति के गीत भी लिखकर जारी कर चुकी हैं, तो वह समाजिक जागरुकता के लिए भी भजन व गीतों को लांच करके खूब सुर्खियां बटोर रही है। ईशा के हरियाणवी संस्कृति पर आधारित अब तक 200-250 भजन अलग अलग कंपनियों के माध्यम से आ चुके हैं इन सभी भजनों में हरियाणा की संस्कृति, समाज में फैली कुरीतियों एवं देश की समस्याओं के अलावा देश भक्ति पर आधारित गीतों से यही प्रयास किया गया है कि अपनी संस्कृति को विकसित करने के लिए समाज सजग रहे। फिलहाल हरियाणवी संस्कृति पर संस्कार टीवी पर भी काम चल रहा है। साल 2020 में मुंबई में भजनों का एक प्रोजेक्ट भी किया गया है। 
धार्मिक कार्यो का हुआ विस्तार 
हरियाणा की प्रसिद्ध भजन गायक ईशा पांचाल का कहना है कि इस इस आधुनिक युग में भी लोक कला संस्कृति के क्षेत्र में अध्यात्मिक संगीत या धार्मिक कार्यों का प्रचलन का बेहद विस्तारित हो रहा है। इसमें आज की युवा पीढ़ी भी कहीं ज्यादा रुचि लेकर अध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़ रही है। मगर एक बहुत गंभीर समस्या यह देखने में आ रही हैं, कि युवा वर्ग को सही दिशा निर्देश नहीं मिल रहा है। मसलन बच्चो को माता पिता का सानिध्य मिलना और अपने बच्चों को छूट देना अच्छी बात हैं, लेकिन अभिभावकों को यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि उनका बच्चा की किस माहौल में रह रहा है और उनका संग कैसे बच्चों से है। इसलिए माता पिता को बच्चों की रुचि के अनुसार सकारात्मक रुचि दिखानी चाहिए। 
पुरस्कार व सम्मान 
लोक संगीतकार सुश्री ईशा पांचाल को भारत गौरव अवॉर्ड के अलावा बेस्ट सिंगर अवॉर्ड, महिला सशक्तिकरण अवॉर्ड जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। एक बार राष्ट्रीय स्तर और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत दो बार राज्य स्तर पर हरियाणा लोक गीत में प्रथम स्थान मिल चुका है। यूथ रेडक्रास कैंपों में सोलो संगीत में अव्वल स्थान पाने वाली ईशा और उसकी टीम की भजन गायन शैली इतनी प्रभावशाली है कि साल 2017 में एमडीयू रोहतक में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी ईशा व उसकी टीम को सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा इस लोक गायिका को मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के हाथो भी सम्मानित होने का सौभाग्य मिला है। 
30Oct-2023

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