शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य को नया आयाम देते साहित्यकार यशपाल

राष्ट्र, सामाजिक, विज्ञान व अध्यात्म पर काव्य लेखन ने दी पहचान 
                       व्यक्तिगत परिचय 
नाम: यशपाल सिंह ‘यश’ 
जन्मतिथि: 01 अप्रैल 1956 
जन्म स्थान: गांव भंगेला, जिला मुजफ्फरनगर(यूपी)
शिक्षा: बीएससी, एमए(अंग्रेजी साहित्य), सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। संप्रत्ति: सेवानिवृत्त (उप महाप्रबंधक, आईडीबीआई बैंक) 
संपर्क:गुड़गांव(हरियाणा), ईमेल : yeshpalsinghyash@gmail.com, 
फोन : 8920190892, 0124-4018533
 -- BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लेखक एवं साहित्यकार साहित्य, संस्कृति एवं सभ्यता को जीवंत रखने के लिए समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य साधना से अहम योगदान दे रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में यशपाल सिंह ‘यश’ उन साहित्यकारों में शुमार है, जिन्होंने अपनी कविताओं और गजलों के लेखन व काव्य पाठ से सामाजिक सरोकार के मुद्दों से पाठकों व श्रोताओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश देने का प्रयास किया है। वहीं उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म को गद्य और काव्य विधा के माध्यम से साहित्य को को भी नया आयाम दिया। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्यकार एवं कवि यश्यापाल सिंह ‘यश’ ने अपने साहित्यिक सफर में के दौरान उस अप्रत्याशित लेखन का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने श्रीमद् भागवत गीता का दोहों में रुपांतरित ग्रंथ लिखकर समाज को बेहतर इंसान के साथ भारतीय संस्कृति, परंपरा और अखंड राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव दिया है। 
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विता एव गजल विधा के साहित्यकार यशपाल सिंह ‘यश’ का जन्म 01 अप्रैल 1956 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में खतौली तहसील के गांव भंगेला में एक किसान परिवार में हुआ। पिता किसान होते हुए भी अच्छे पढ़े लिखे ग्रेजुएट थे और माता कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन एक गृहणी के रुप में बच्चों को संस्कारित करने में पीछे नहीं रही। परिवार में किसी भी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा और न ही कोई लेना देना था, लेकिन माता पिता ने उन्हें हमेशा पढ़ाने पर ध्यान दिया और उन्होंने विज्ञान में स्नातक करने के बाद अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। जबकि दिल्ली में सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा खाद्य और पोषण में प्रमाणपत्र कोर्स किया और परिवार के साथ गुरुग्राम में रहने लगे। चूंकि उन्हें पढ़ने लिखने का शौंक बचपन से ही था। इसलिए साहित्य के प्रति एक लगाव होने की वजह से कभी-कभी कुछ अंग्रेजी कविताएं लिखने लगे। बैंक की सेवा में आने के उपरांत बैंक की पत्रिका के लिए हिंदी में कुछ लेख, कविताएं इत्यादि लिखना शुरु हुआ तो बैंक के हिंदी विभाग द्वारा प्रोत्साहन के कारण और बैंक के अन्य सहकर्मियों द्वारा सराहना मिलने लगी। इससे बढे आत्मवविश्वास ने उनके कविता लेखन को विस्तार दिया। बैंक में नौकरी करते हुए वे दिल्ली के अलावा चंडीगढ़ आदि कई शहरों में रहे। बकौल यशपाल उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वे एक साहित्यकार बनेंगे, लेकिन कविताएं लिखने और सुनाने पर एक बार उनके घनिष्ठ मित्र देवेन्द्र भाटिया ने उन्हें लेखन के प्रति गंभीर और संवेदनशील होने की सलाह दी, जिसके बाद उनके एक अन्य मित्र और राजभाषा अधिकारी प्रदीप अग्रवाल ने उन्हें जो परामर्श सहयोग दिया, तो उनका पहला काव्य संग्रह ‘मंजर गवाह हैं’ के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसका लोकार्पण उनकी उप महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त के दिन यानी 31 मार्च 2016 को बैंक के दिल्ली कार्यालय में ही हुआ। सेवानिवृत्ति के बाद वह कविताएं लिखने में जुट गये और यदा-कदा जब भी मौका मिला तो सार्वजनिक मंच से कविता पाठ भी किया। उनके सामने एक और रोचक मोड़ तब आया, जब एक यात्रा के दौरान डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। यशपाल सिंह यश ने बताया कि शुरुआत में सामाजिक मुद्दों पर ही इस लिए ज्यादा लिखते थे, लेकिन बाद में विज्ञान और अध्यात्म के लेखन ने भी उन्हें ऐसी पहचान दी कि चंद्रयान-2 पर लिखी गई उनकी कविता ‘प्यारे विक्रम’ का प्रसारण तो दूरदर्शन से भी हुआ। यही नहीं उनकी विज्ञान, अध्यात्म और सामाजिक सरोकार पर लिखी गई कविताओं का दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से प्रसारण हुआ है। वहीं उनके लेखों और कविताओं का विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन भी होता आ रहा है। साइंस एंड पोएटरी यूट्यूब चैनल से भोजन, स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधित चर्चाएं का प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। 
यहां से मिली बड़ी पहचान
भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग एक फोन ने उनके लेखन को ऐसा नया आयाम दिया कि उन्होंने विज्ञान कविताएं भी लिखना शुरु किया और ‘अंतररष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव’ में विज्ञान पर लिखी कविताएं पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां से उन्हें कविता लिखने और सुनाने के लिए बड़ी पहचान मिली। इसी विज्ञान कवि सम्मेलन में वे प्रख्यात साहित्यकार पंडित सुरेश नीरव के संपर्क में आए, जिन्होंने प्रोत्साहन देते हुए उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उनकी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में कई ऑनलाइन तथा ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में सम्मिलित हुआ, जहां बहुत से साहित्यकारों से परिचय हुआ। उनके साहित्यिक सफर में एक और ऐसा रोचक मोड़ तब आया, कि डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। उनकी कविताओं की विभिन्न विधाओं के लेखन एवं काव्य पाठ से उन्हें देश-विदेश में श्रोताओं ने सराहना मिली। 
हिंदी साहित्य पर आधुनिकता की छाया 
इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर यशपाल सिंह यश का कहना है कि साहित्य अच्छी है, लेकिन जहां तक हिंदी साहित्य की बात है, उन्हें लगता है कि वह पिछड़ता जा रहा है। साहित्य लिखा जा रहा है, बहुत अच्छा भी लिखा जा रहा है लेकिन हिंदी साहित्य में रुचि बहुत कम रह गई है। हिंदी साहित्य के पाठक कम इसलिए हो रहे हैं कि सारी हिंदी की पत्रिकाएं बंद हो रही हैं। उनका मानना है कि किसी भी समाज का मध्यम वर्ग उसके चिंतन और संस्कृति की दिशा तय करता है। आज भारत में मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ रहे हैं और हिंदी पढ़ना, सीखना अब उनकी प्राथमिकता में नहीं है। अगर समाज का यह वर्ग हिंदी से दूर हो जाएगा तो निश्चित रूप से ही हिंदी साहित्य को पाठकों की कमी रहेगी। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य की रुचि कम होना है, उसके लिए उन्हें गंभीर साहित्य को पढ़ने के लिए विशेष प्रेरणा और प्रोत्साहन देने की जरुरत है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार ने अभी तक कविता संग्रह 'मंजर गवाह हैं', 'आँखिन देखी' तथा 'जीवन गरम चाय की प्याली' प्रकाशित हुआ है। सबसे बड़ी उपलब्धियों में श्रीमद भगवद्गीता का दोहों में रुपांतरण के रुप में उनका ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ नामक ग्रंथ इसी साल प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा उनका विज्ञान कविताओं का एक संग्रह के प्रकाशन के लिए भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग द्वारा स्वीकृति प्रदान की है, जो जल्द ही पाठकों के सामने होगा। इसके अलावा सामाजिक सरोकार, स्वस्थ्य, भोजन, विज्ञान संबन्धित आलेख व कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
साहित्य को विज्ञान और अध्यात्म से जोड़कर नया आयाम देने वाले लेखक एवं कवि यशपाल सिंह यश को भारत सरकार के विज्ञान प्रसार ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट देकर सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें साहित्य भूषण सम्मान, ‘समझ’ साहित्यिक संस्था नागदा, साहित्य विभूति सम्मान तथा अखिल भारतीय सर्व भाषा संस्कृति समन्वय समिति के संस्कृति समन्वय सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक मंचों से सम्मान मिल चुका है।
06Nov-2023

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