शनिवार, 18 अप्रैल 2015

चन्द्रशेखर की विरासत पर होगी अब सियासत!


-विलय के बाद साइकिल पर सवार हुआ जनता परिवार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में छह क्षेत्रीय दलों के विलय के बाद जनता परिवार ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर की विरासत पर सियासत करने का फैसला किया है। मसलन विलय के बाद नए राजनीतिक दल ‘समाजवादी जनता पार्टी’ होगा और चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर सहमति बनाई गई है। इसका ऐलान कल चन्द्रशेखर की जयंती के मौके पर किया जा सकता है या फिर संसद के बजट सत्र से पहले इसकी घोषणा होगी।
जनता परिवार के छह दलों ने बुधवार को विलय करने के बाद एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया था। इस नई पार्टी के नाम, झंडे और चुनाव चिन्ह के फैसले के लिए एक छह सदस्यीय समिति गठित की गई थी, जिसमें सभी छह दलों के नेता शामिल थे। सूत्रों के अनुसार विलय के बाद बनाई जा रही नई पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह पर यह समिति आपसी सहमति से अंतिम निर्णय ले चुकी है। सूत्रों के अनुसार समिति के सदस्यों एच डी देवगौड़ा, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और प्रो. रामगोपाल यादव,कमल मोरारका, अभय चौटाला ने नए राजनीतिक दल का नाम ‘समाजवादी जनता पार्टी’ और चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर सहमति बना ली है। सूत्रों के अनुसार समिति में समाजवाद की राजनीति के वजूद को बनाए रखने की दिशा में समाजवादी के पक्षधर रहे पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की विरासत को जिंदा रखने पर भी निर्णय हुआ। इसलिए जनता परिवार के बिखराव के बाद 1991 में चंद्रशेखर द्वारा बनाई गई समाजवादी जनता पार्टी के नाम को आगे बढ़ाने पर सहमति बनाई गई है। जहां तक चुनाव चिन्ह का सवाल है उसमें समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सहमति बन चुकी है। सूत्रों की माने तो झंडे में लाल, हरा और सफेद रंग यानि तिरंगा रखने पर फैसला हो चुका है। सूत्रों के अनुसार इस समिति ने लोकसभा में मुलायम सिंह यादव और राज्यसभा में शरद यादव को नई पार्टी के सांसदों का नेता बनाने पर भी अपना फैसला किया है। बताया गया है कि पार्टी के नाम, झंडे और चुनाव चिन्ह का ऐलान कल स्व.चन्द्रशेखर की 88वीं जयंती के मौके पर या फिर संसद के सत्र शुरू होने से एक दिन पहले कर दिया जाएगा।
विलय पर समाजवाद भारी
जनता परिवार के इन छह दलों के विलय से पहले ही एकजुटता की जारी कवायद में समाजवादी जनता पार्टी या समाजवादी जनता दल के नामों को लेकर मंथन चलता रहा है। इस सियासत में हर लिहाज यानि संसद और विधानसभाओं में समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो जाहिर सी बात है कि भारतीय सियासत में समाजवाद को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के मुकाबले तीसरी राजनीतिक ताकत को खड़ा करने की कवायद में कई सालों से जुटे मुलायम सिंह यादव को तरजीह देना जरूरी भी है। तभी तो विलय के बाद नई पार्टी और संसदीय दल की कमान उन्हें सौंपी गई। संसद में लोकसभा और राज्यसभा में भी सपा के सदस्यों की संख्या बाकी पांच दलों पर भारी है।
विपक्ष की भूमिका होगा अगला निशाना
राजनीतिक सूत्रों की माने तो संसद के दोनों सदनों में इस नई पार्टी के 45 सदस्य हैं, जिनमें लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 30 सदस्य हैं। इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए इस नए दल की नजरें राष्‍ट्रीय राजनीति में बड़ी ताकत बनने पर होगी। मसलन यदि इस नए सियासी समीकरण में यह परिवार जैसा की तृणमूल कांग्रेस, बीजद और वामदलों से बातचीत करने का दावा कर रही है, तो इसमें सफल होने पर यह नया दल लोकसभा में विपक्षी दल का दर्जा भी हासिल कर सकता है। यानि इनके साथ तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजद के 20 और वामदलों के दस सदस्य जुड़ने की स्थिति में इनकी संख्या 79 हो जाएगी। इसी प्रकार राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के 12, वाम दलों के 11 और बीजद के 7 सदस्यों से हाथ मिलाकर इनकी संख्या 60 हो जाती है। ऐसी स्थिति में यह नया गठजोड़ उच्च सदन के किसी भी फैसले की अहम भूमिका में शामिल हो सकता है, जिसकी रणनीति पर जनता परिवार तैयारी में भी है।
18Apr-2015


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