शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

विदेशी तकनीक की तर्ज पर होगा जल प्रबंधन!

हंगरी से हुए करार को भी मिली हरी झंडी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश में जल संरक्षण और प्रबंधन की दिशा में उठाए जा रहे कदमों के तहत खासकर कृषि क्षेत्र में विदेशी तकनीक की तर्ज पर जल संबन्धी योजनाओं को चलाया जाएगा, ताकि देश में बाढ़ और सूखे की स्थिति के हालातों से भी निपटा जा सके।
केंद्र सरकार की भारत में जल संकट के साथ बाढ़ और सूखे की स्थिति से निपटने के लिए कई परियोजनाएं पटरी पर है, जिनकी दशा और दिशा को विदेशी तकनीक से रμतार देने का प्रयास किया जा रहा है। हंगरी की पेयजल व सिंचाई के लिए इस्तेमाल के लिए 'क्लीन वॉटर एंड ग्रीन एनर्जी इनकोरपेशन' की तकनीक को भारत में इस्तेमाल करने का रास्ता तय किया जा रहा है। खासकर हंगरी के 'वन ड्रॉप मोर क्रॉप' (एक बूंद से अधिक फसल) के नारे के अनुकूल तकनीकी को देश के कृषि क्षेत्र में वरदान बनाने का प्रयास है। इसी दिशा में गुरुवार को यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल जल प्रबंन्धन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग के लिए हंगरी के साथ होने वाले समझौते को मिलली मंजूरी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस करार के तहत दोनों ही देशों के बीच समानता और आपसी हितों के आधार पर जल प्रबंधन के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाया जाएगा। वहीं हंगरी व भारत के सार्वजनिक एवं निजी संगठनों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विकास को प्रोत्साहन मिलना तय है। करार के जरिए जल संसाधनों के विकास एवं प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिनिधिमंडलों के बीच संयुक्त गतिविधियों एवं आपसी आदान-प्रदान से दोनों देशों को फायदा मिलेगा। इससे पहले जल सरंक्षण और जल प्रबंधन के क्षेत्र में इजरायल के साथ भी आपसी सहयोग की नीति अपनाई गई है। जल प्रबंधन के क्षेत्र में इजरायल और हंगरी की तकनीक दुनिया के लिए एक सबक बनी हुई है, जिसके जरिए किसी भी देश में जल संबन्धी समस्याओं का समाधान संभव है।
कृषि क्षेत्र के विकास पर बल
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार सरकार की प्राथमिकता है कि कृषि विकास के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की योजना में विदेशी तकनीक के इस्तेमाल ऐसी तमाम जल संबन्धी योजनाओं में किया जाए, जिससे जल संकट को दूर किया जा सके। हंगरी और इजरायल की की तकनीक के जरिए देश में नदी बेसिन प्रबंधन, एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, जल आपूर्ति, सिंचाई प्रौद्योगिकी नवाचार, बाढ़ और सूखा प्रबंधन में समझौते से दोनों देशों के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाएगा। वहीं संयुक्त गतिविधियों और जल संसाधनों के विकास तथा प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रतिनिधिमंडलों व विशेषज्ञों के आपसी आदान-प्रदान से दोनों देशों को लाभ होगा। सरकार की प्राथमिकता है कि कृषि विकास के लिए जल संरक्षण और अपशिष्ट जल प्रबंधन की योजना में विदेशी तकनीक के इस्तेमाल ऐसी तमाम जल संबन्धी योजनाओं में किया जाए, जिससे जल संकट को दूर किया जा सके।
क्या है विदेशी तकनीक
जल संरक्षण के तहत कृषि सिंचाई के लिए इजरायल में गंदे पानी को शोध संयंत्रों के बाद वैज्ञानिक तकनीक के बाद सिंचाई में प्रयोग किया जा रहा है, जबकि नीदरलैंड के अलावा हंगरी जैसे कई देशों में कम लागत पर ज्यादा जल का उपयोग करने के लिए भी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। नीदरलैंड अपशिष्ट जल को शुद्ध जल में तब्दील करने की तकनीक का भरपूर उपयोग कर रहा है। इसी प्रकार हंगरी ने भी अपने देश में जल संरक्षण और उसके उपयोग में तकनीक का सहारा लेकर चुनौतियों का मुकाबला करके अन्य देशों के सामने मिसाल पेश की है। इसलिए केंद्र सरकार को भारत में जहां तक कृषि विकास और सिंचाई क्षेत्र में ऐसे देशों की तकनीक रास आ रही है। गौरतलब है कि इजरायल की तकनीक मध्य प्रदेश और हंगरी की तकनीक पंजाब में अपनाई जा रही है। इसके पूरे देश में अपनाने के लिए ही सरकार ने इजरायल और हंगरी की जल प्रबंधन क्षेत्र की तकनीकों को साझा करके कृषि विकास के साथ देश के विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास तेज किये हैं।
14Oct-2016

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें