सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

चौपाल: हरियाणवी रागनी गायन शैली की अलख जगाते सते फरमानिया




युवाओं को लोक कला व संस्कृति से जोड़ना जरुरी 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सते फरमानियां 
जन्मतिथि: 14 जून, 1957 
जन्म स्थान: गांव फरमाना जिला सोनीपत(हरियाणा)। 
शिक्षा: दसवीं, 
 संप्रत्ति: लोक गायक, रागनी 
BY-- ओ.पी. पाल 
रियाणवी गायन शैली के प्राचीन इतिहास में लोक गायकी की परंपरा को पुनर्जीवित करने की दिशा में सूबे के लोक गायकों की अहम भूमिका है। ऐसे ही रागनी गायक सते फरमानियां हरियाणवी लोककला व संस्कृति को समर्पित होकर अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे हो, या फिर देशभक्ति, अध्यात्मिक अथवा लोक संस्कृति को प्रोत्साहन देने के मकसद से वह अपनी रागनी गायन शैली को विस्तार देने में जुटे हैं। अपने सूबे की लोक कला व संस्कृति को एक गायक के रुप में फरमानिया देश के दूसरे राज्यों तक पहुंचाने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परिवार में पुराने जमाने से लोक गायकी और गाने बजाने की इस परंपरा को विस्तार देने के लिए वे युवाओं को भी गायकी और बैंजू जैसे वाद यंत्रों की शिक्षा देते रहे हैं। लोक गायक सते फरमानिया ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी रागनी गायन शैली के सफर को लेकर माना कि इस बदलते युग में संस्कृति से दूर होते जा रहे युवाओं को अपनी लोक कला व संस्कृति के प्रति प्रेरित करना समाजहित में अनिवार्य है। 
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रियाणवी लोक कला व संस्कृति को नया आयाम देने में जुटे सते फ़रमानिया का जन्म 14 जून 1957 को ज़िला सोनीपत के फ़रमाना गाँव में सुल्तान सिंह के परिवार में हुआ। सते की प्राइमरी शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई, लेकिन वह दसवीं तक की ही शिक्षा प्राप्त कर सके। चूंकि पिता उस जमाने में उस जमाने में प्रसिद्ध सांगी व लेखकों के बीच बाजेभगत के शिष्य थे। इसलिए उन्हें भी बचपन से ही गाने का शौक़ लगा। वैसे भी उस जमाने में मनोरंजन के लिए न टीवी थे और न रेडियो, देहात इलकों में केवल सांग एक मनोरंजन का साधन होता था। चूंकि परिवार में गाने बजाने का माहौल मिला और उनके बड़े भाई मगल सैन तबले की मास्टर डिग्री के लोक सम्पर्क विभाग में ढोलक व तबला वादक थे। जब वह 6-7 साल के थे, तो पिता ने गांव के ही राजकीय प्राथमिक पाठशाला में पहली कक्षा में दाखिला करा दिया। उसकी सुरीली आवाज के कारण स्कूल में उसे एक अन्य साथी के साथ प्रार्थना कराने की जिम्मेदारी दी गई। उस जमाने में हर शनिवार को स्कूलों में बाल सभाएं होती थी, जिसके लिए संगीत के ज्ञानी हिंदी के शिक्षक सूरज मल ने हम दोनों के नाम भी लिख लिये। उसी दौरान साल 1964-65 में भारत और चीन का युद्ध बंद हुआ था, तो बाल सभा में उसने देशभक्ति से प्रेरित ‘जहाज, टैंक, तलवार, तोप और टौमी गन मशीन, चलो मेरे भाईयों 'लड़न चलेंगे चीन’ गीत गाया। यह गीत स्कूल के बच्चों व सभी स्टाफ को बेहद भाया। सते ने बताया कि एक बार साल 1968-69 में उनके फ़रमाना गाँव में धनपत सिंह निंदाना का सांग हुआ, जब वह मुश्किल से दस ग्यारह के थे, तो गांव के लोगों ने उसे भी पडोस के ही सुंदर के साथ मंच पर खड़ा कर सांग में रागनी गाने का पहली बार मौका दिया। पहली बार मंच से रागनी में बोल के साथ सुर और ताल के साथ उनकी रागनी ने ऐसा रंग जमाया कि गांव वालों ने जहां उन्हें ईनाम दिया, वहीं सांगी धनपप निंदाना ने हम दोनों को साथ रखने की मांग की, लेकिन पिता ने साफ इंकार कर दिया। उसके बाद जब गांव या आसपास के गांव में सांग होता था, तो उन्हें हरियाणा के नामी कलाकारों और प्रसिद्ध सांगियों के साथ रागनी गाने के लिए बुलाया जाने लगा। पुरोधाओं को दे रहे पहचान 
लोक गायक सते फरमानिया ने बताया कि दूसरी पीढ़ी के लोक कलाकारों ने अपनी संस्कृति को संजोने का काम किया और वे भी अब तक अपनी लोक कला व संस्कृति के प्रति समर्पित हैं। साल 1999 में उनकी सिंचाई विभाग में मकैनिकल डिपार्ट मैन्ट में बहादुरगढ़ माईनर पर नौकरी लग गई। इसके बावजूद भी वह रात्रि में होने वाले सांस्कृतक कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं में टीम के साथ इस कला का प्रदर्शन करते रहे हैं। उनकी गायकी में हरियाणा के लोक संस्कृति और लोक गायकी में ऐतिहासिक परंपरा को जन्म देने वाले बाजे भगत, प. लख्मीचन्द, मेहर सिंह और अपने गुरु कवि उदय जैसे पुरोधाओं को पहचान दे रहे हैं, जिनकी रचनाओं के आधार पर मंच और कैसेट्स के माध्यम से एलबम बनाकर समाज को भी नई दिशा देने के लिए सामने रख रहे हैं। हरियाणा में बिगड़ते सामाजिक ताने बाने की सुधार की दिशा में उन्होंने भ्रूण हत्या, नशाबंदी, खेती किसानी और अन्य सामाजिक विसंगतियों को लेकर लिखी गई रचनाओं को रागनियों और गाने बजाने में समाज के समक्ष रखा है। 
परिवार से मिली कला 
लोक कलाकार फरमानियां ने बताया कि उनकी इस कला के पीछे उनके पिता द्वारा सुरताल के साथ गायकी में हारमोनियम, बैंजू व ढ़ोलक जैसे संगीत यंत्रों की दी गई सीख ही है। उनकी रागनियों की गायकी में बोल के साथ बैंजू से धुन निकालने की कला ने भी उन्हें लोक गायकी में इस मुकाम तक पहुंचाया। विरासत में मिली इस कला को वे आगे बढ़ा रहे हैं। इस पुश्तैनी कला को इस आधुनिक युग में गायकी का शौक रखने वाला उनका बेटा कोहली फरमानिया भी नए आयाम के साथ इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, जो संगीत विषय में स्नातक करने के बाद इस कला की तकनीकी शिक्षा ले रहा है। सते फरमानियां युवाओं को बैंजू सिखाकर उन्हें इस लोक गायकी की शिक्षा भी दे रहे हैं। 
स्पर्धा में भी दिखाया जलवा 
उन्होंने बताया कि साल 1979-80 में संगीत की प्रतिस्पर्धाओं के दौर में अपनी संगीत टीम के साथ हिस्सा लेते रहे हैं। वैसे भी हर साल स्कूलों में होने वाले वार्षिक कार्यक्रमों में खेलों के अलावा रात्रि के समय मनोरंजन के रुप में सांग के कंपीटिशन होते थे, जिसके लिए सात लड़कों के साथ उनके स्कूल की संगीत की टीम भी बनी। उनके शिक्षक ने खुद दो गीत लिखकर टीम को तैयारी कराई। जब एक ग्रुप सांग का एक्शन सांग हुआ, तो 8-10 टीमों में उसमें उनके स्कूल की संगीत टीम अव्वल साबित हुई। राज्यस्तर की प्रतियोगिता में राजकीय उच्च विद्यालय गुड़गाँव भी उनकी संगीत टीम का अच्छा प्रदर्शन रहा और द्वितीय स्थान हासिल किया। 
युवाओं को लोक कला की प्रेरणा जरुरी 
इस आधुनिक युग में लोक कला व गीतों की स्थिति को लेकर सते फरमानिया का कहना है कि बदलते परिवेश में श्रोताओं को पिछले सात दशक की रागनी की ही तर्ज मिलती है, जिसके कारण आज के लोग अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। जबकि आज के गीतों में लह, सुर, ताल का लेसमात्र भी भान नहीं होता। यही कारण है कि युवा पीढ़ी की लोक गायकी व लोक कलाओं में रुचि नहीं है, जिसका समाज पर गहरा असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में युवाओं को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक करने की जरुरत है, क्योंकि हमारी प्राचीन संस्कृति ही हमारी घरोहर है, जिसके लिए युवाओं को प्रेरित करना भी अनिवार्य है। दरअसल आज लोक गायकों का लह, सुर व ताल का बेहद कम बौध है। यही देखा जा रहा है कि हरेक बात के दो मतलब निकलते हैं और जैसी किसी की विचारधारा है उसी आधार पर वह उसका अर्थ लगा लेता है। मंचो से कविता या लोकगीतों में ऐसी फुहड़ता नजर आने लगी है, जिसे कोई परिवार एक साथ बैठक कर देख या सुन नहीं सकता। इसलिए लोकगीतों में आ रही इस गिरावट के लिए समाजिक हितों और संस्कृति को प्राथमिकता के साथ लेखकों व गायकों को इस क्षेत्र में सक्रीय होने की जरुरत है।
06Feb-2023

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