शनिवार, 14 जून 2014

उत्तर प्रदेश विभाजन की ओर बढ़े मोदी सरकार के कदम!

राज्य के बड़े आकार को बेहतर शासन में रोड़ा मान रहा है केंद्र
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था से चिंतित केंद्र सरकार ने सूबे के विभाजन के लिए अपने कदम आगे बढ़ाने शुरू कर दिये हैं? मोदी सरकार मानती है कि यूपी में बिगड़ती कानून व्यवस्था राज्य का बड़ा आकार होना भी एक बड़ा कारण है। इससे पहले बसपा के शासनकाल में मायावती सरकार ने राज्य विभाजन की कवायद की थी, लेकिन सरकार के प्रस्ताव को केंद्र की यूपीए सरकार ने वापस कर दिया था।
केंद्र में आई नई राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा पहले से ही छोटे राज्यों की पक्षधर है और अब जब यूपी में पिछले एक सप्ताह के भीतर तीन भाजपा नेताओं की हत्या और महिलाओं के साथ गैंग रेप की घटनाएं बढ़ी हैं तो यूपी की 80 में से 73 सीट जीतकर आई भाजपा की चिंता स्वाभाविक है। करीब 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग अरसे से चली आ रही है। छोटे राज्यों के पक्षधरों का भी मानना है कि इससे राज्य के विकास में तेजी आएगी और हर हिस्से को उसका वाजिब हक मिल पाएगा। उत्तर प्रदेश में फिलहाल देश में सबसे ज्यादा यानी 75 जिले और 18 मंडल हैं। सूत्रों के अनुसार चूंकि गृह मंत्रालय स्वयं यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके राजनाथ सिंह के पास है तो उन्होंने राज्य में बिगड़ती जा रही कानून व्यवस्था की समीक्षा कराई है, जिसमें राज्य का बड़ा आकार होना शासन की बेहतर व्यवस्था न होना माना जा रहा है। गृह मंत्रालय भी मान रहा है कि राज्य का विभाजन किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय के सूत्र भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि मंत्रालय में यूपी विभाजन के प्रस्ताव पर गंभीरता के साथ विचार किया जा रहा है और स्वयं गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी एक दिन पहले उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एल. बनर्जी और राज्य के मुख्य गृह सचिव दीपक सिंघल के साथ राज्य की कानून और व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा कर चुके हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कानून व्यवस्था को लेकर प्रधानमंत्री से मुलाकात तक की है। केंद्र में नई सरकार आने के बाद उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था के साथ बिजली की किल्लत को भी राजनीतिक विशेषज्ञ सपा की चुनावों में हुई हार की परिणिति करार दे रहे है। मसलन सूबे की समाजवादी पार्टी सरकार के चरित्र पर चौतरफा उंगलियां उठ रही हैं। ऐसे में हालांकि केंद्र सरकार राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर तभी हस्तक्षेप करने पर विचार कर सकती है जब स्थिति बद से बदतर न हो जाए।
माया सरकार ने किया था प्रस्ताव
यदि उत्तर प्रदेश के विभाजन पर केंद्र सरकार गंभीरता से विचार करती है तो इससे वर्ष 2011 में राज्य में बसपा सरकार के प्रस्ताव को बल मिल सकता है,जब 21 नवंबर 2011 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 15वीं विधानसभा का आखिरी सत्र में राज्य विभाजन का प्रस्ताव पारित कराया था, जिसमें यूपी का पूर्वांचल, बुंदेलखंड पश्चिम प्रदेश व अवध प्रदेश के रूप में चार राज्य बनाने का प्रस्ताव था। इस प्रस्ताव को जब केंद्र की यूपीए सरकार को भेजा गया तो 20 दिसंबर 2011 को केंद्र सरकार ने उसे खारिज कर वापस कर दिया था। गृह मंत्रालय ने राज्य बंटवारे के सुझाव का आधार पूछते हुए सवालों की एक सूची भी मायावती को भेजी थी। केंद्र ने माया के इस प्रस्ताव को वापस करते समय जो सवाल किये थे उनमें राज्य सरकार से पूछा गया था कि बंटवारे के सुझाव का आधार क्या है? प्रस्तावित राज्यों की सीमाएं क्या होंगी? किन शहरों को राजधानी बनाया जाएगा? उत्तर प्रदेश में तैनात आईएएस अफसरों का बंटवारा कैसे होगा? मौजूदा प्रशासनिक इकाइयों को नए राज्यों के बीच कैसे बांटा जाएगा? उत्तर प्रदेश पर जो कर्ज है, उसका क्या होगा? क्या इस बात का अध्ययन किया गया कि बंटवारा आर्थिक रूप से कितना व्यावहारिक होगा? ऐसे सवालों के साथ इस प्रस्ताव को केंद्र ने ठुकरा दिया था। ऐसे में सवाल है कि क्या मोदी सरकार यदि विभाजन के प्रस्ताव पर विचार करेगी तो उसके क्या-क्या कदम होंगे।
14June-2014

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