मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: साहित्य में हिंदी को नया आयाम देते डॉ. विश्वबंधु शर्मा

हरियाणवी भाषा के व्याकरण लेखन ने दी खास पहचान व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. विश्वबंधु शर्मा 
जन्मतिथि: 02 सितम्बर, 1953 
जन्म स्थान: ग्राम-पुर, तहसील-बवानी खेड़ा, जिला-भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए(इतिहास), एमए (हिन्दी), पीएचडी, डी.लिट् सम्प्रति: सेवानिवृत्तअध्यक्ष, हिन्दी विभाग, वैश्य कॉलेज, रोहतक (हरियाणा), पूर्व प्रो. बीएमयू, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क: 97-98, नेहरु कॉलोनी, रोहतक(हरियाणा), मोबा. 9050998171 
BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकारों, लेखकों एवं कवियों ने किसी न किसी विधा में साहित्य सृजन करते हुए सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर समाज को सकारात्मक विचारधारा के लिए नई ऊर्जा देने में अहम योगदान दिया है। वहीं अपनी संस्कृति तथा परंपराओं के संवर्धन के लिए भी साहित्य साधना के माध्यम से नई पीढ़ियों की राह प्रशस्त करने का प्रयास में जुटे साहित्यकारों में सुप्रसिद्ध लेखक एवं कवि डा. विश्वबंधु शर्मा एक ऐसे मूर्घन्य विद्वानों में शुमार हैं, जिन्होंने हरियाणा की लोक कलाओं और संस्कृति के स्वरुप व उसे पहचान दिलाने के मकसद से साहित्य सेवा करते हुए हरियाणवी, हिंदी और संस्कृत भाषा में साहित्य सृजन कर रहे हैं। उन्होंने हरियाणा भाषा का व्याकरण लिखकर हरियाणवी भाषा के साहित्यकार के रुप में तो लोकप्रियता हासिल की है, वहीं वे पिछले दस साल से हिन्दी भाषा के व्याकरण करके ‘शब्द निर्माण विज्ञान’ पर गहनता से कार्य करने में जुटे हुए हैं। उनकी यह साहित्य साधना हिंदी जगत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी? विभिन्न विधाओं में गद्य एवं पद्य में लेखन करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने अपने साहित्यिक सफर के बारे में हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनकी साधना साहित्य जगत को नया आयाम देने में सक्षम हो सकती है। 
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रियाणा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा‍. विश्वबंधु शर्मा का जन्म 02 सितम्बर, 1953 को भिवानी जिले के पुर गांव में संस्कृत के प्रकांड पंडित ब्रजलाल शास्त्री और श्रीमती अंती देवी के घर में हुआ। उनके पिता ब्रजलाल उस समय के उत्तर भारत के एक मात्र अग्निहोत्री थे। मसलन उनके परिवार में दियासलाई से आग जलाना प्रतिबंधित था और परिवार में पांच कुंड से अग्नि लेकर ही चूल्हे के अलावा अन्य आग जलाई जाती थी। परिवार में साहित्य और संस्कृति के माहौल में डा. विश्वबंधु को उनके पिता ने संस्कृत श्लोक कंठस्थ करा दिये थे। डॉ. विश्वबंधु शर्मा ने बताया कि विरासत में मिली साहित्य-संस्कृति की वजह से बचपन से ही उन्हें साहित्य, कला एवं परंपरागत संस्कृति में रुचि हो गई। छात्र जीवन में स्कूल में साप्ताहिक बाल सभाओं में वे कविताएं सुनाने लगे थे और सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा भाषण प्रतियोगिताओं में जहां भी वह हिस्सा लेते थे, तो प्रथम पुरस्कार उन्हीं को मिलता था। जब वह कक्षा सात में पढ़ रहे थे, तो साल 1967 में उनके पिता का बीमारी के चलते निधन हो गया। इस वजह से स्कूल जाना कम हो गया और घर की जिम्मेदारियां बढ़ गई। किसी तरह से द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक पास कर ली। भिवानी में उनके विज्ञान के शिक्षक रामेश्वरदास पुरी उनसे प्रेम करते थे, जो उसे अपनी ससुराल साहनेवाल (पंजाब) ले गये, जहां उनकी ससुराल में लाला छज्जूमल को काम करने वाले लड़के की जरुरत थी। दो साल तक उनके यहां काम किया और वहीं से लाला की मेहरबानी ने उन्होंने साल 1970 में प्रभाकर पास किया। लाला छज्जूमल ने उन्हें गुरुनानक हायर सेकेंडरी स्कूल प्रतापपुरा, जालंधर में हिंदी अध्यापक लगवा दिया, जहां वे प्रबंधन समिति के सदस्य थे। उसके बाद वह हिसार आ गये, जहां से ओटी की परीक्षा पास की। बकौल डा. विश्वबंधु शर्मा उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने छोटे भाईयों को भी पढ़ाया, जिनमें से एक फौज में गया और कारगिल युद्ध में शहीद हुआ और दो भाई शास्त्री हो गये। उन्होंने खुद दो विषयों में एमए किया। राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर से उन्होंने साठोत्तरी हिंदी में शोधकार्य कर पीएचडी की, जबकि आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्यन कर डीलिट की उपाधि हासिल की है। सितंबर 1981 में डा. शर्मा वैश्य कालेज रोहतक में हिंदी विभाग में लेक्चरार के रुप में नियुक्त हुए और 20 साल तक विभागध्यक्ष रहने के बाद सितंबर 2013 में एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक में प्रोफेसर तथा गुरुनानक सेंटर मीरपुर रेवाडी में निदेशक के रुप में कार्य किया। उन्होंने बताया कि साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने ज्यादा हरियाणवी में लेखन किया, जिसमें हरियाणा की लोक कलाओं पर ज्यादा अध्ययन किया और पहला ग्रंथ भी हरियाणा संस्कृति अकादमी के अनुदान से प्रकाशित हुआ। जबकि उनका आलोचानात्मक लेखन का हिंदी में हुआ। डा. शर्मा ने साहित्यकार बनाने का श्रेय रुपचंदानी खुराना और अवतार पराशर को दिया, जिन्होंने उसे आकाशवाणी रोहतक से जोड़े रखा और और हरियाणवी नाटक तथा झलकी विद्या के साथ कार्यक्रमों में मौका दिया। जबकि उनके प्रेरणा स्वरुप डा. हरीश वर्मा रहे। डा. शर्मा के एकांकी संकलन की दो एकांकियों का संस्कृत में अनुवाद भी हो चुका है। डा. विश्वबंधु शर्मा की झलकियां आकाशवाणी रोहतक केंद्र से प्रसारित हैं और उनकी कोरी हांडी की एकांकियों का मंचन कई बार एमडीयू के क्षेत्रीय युवा समारोह में भी हुआ। वहीं उनके साहित्य पर कई विद्यार्थियों ने पीएचडी के शोध कार्य भी किये हैं। डा. शर्मा के हरियाणवी लोक कलाओं पर विशेष अनुसंधन हुए और 25 से ज्यादा शोधात्मक लेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने विभिन्न शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यक समितियों में रहते हुए प्रशासनिक कार्य में भी अहम भूमिका निभाई है। 
हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं 
सुप्रसिद्ध लेखक एवं साहित्यकार डा. विश्वबंधु हिंदी के शब्दों के अर्थ शब्दों के व्याकरण पर कार्य करते हुए कर रहे है। उनका कहना है कि हिंदी का कोई भी शब्द अपना नहीं है, जिसमें विभिन्न राज्यों की बोली के शब्दों का मिश्रण है। इसलिए वे पिछले दस साल से हिंदी के शब्द निर्माण विज्ञान पर कार्य कर रहे हैं और अभी तक पहला खंड पूरा हुआ है, जबकि इसका कार्य अभी जारी है। इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि अपनी जड़ो से जुड़े रहना जरुरी है और पुरानी परंपराए समाज में रीड की हड्डी है, जिसमें आस्था और अनास्था दोनों जुड़ी हैं। लेकिन इंटरनेट और मोबाइल के इस युग में खासकर युवा पीढ़ी के दिमाग, शरीर व चरित्र तीनों भ्रष्ट हो रही है और समाज भी पथभ्रष्ट हो रहा है। युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए साहित्यकारों व लेखकों को आदर्श कविता व रचना के साथ अच्छे लेखन करने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
वरिष्ठ साहित्कार डॉ. विश्वबंधु शर्मा की प्रकाशित 30 पुस्तकों में साठोत्तर हिन्दी-महाकाव्यों में पात्र-कल्पना, संक्षिप्त भाषा विज्ञान, हिन्दी भाषा भास्कर, चेत मछंदर गोरख आया( हरियाणवी उपन्यास), जामदग्नेय (उपन्यास), आपणा मरण जगत की हाँसी व कोरी हाण्डी (हरियाणवी झलकी संग्रह), भगत सुदामा (हरियाणवी खण्डकाव्य), दुर्गा चरित (हरियावणी महाकाव्य), चासणी (हरियाणवी कविता-संग्रह), हरियाणा के लोकगीत (संपादित), भारत का सूरज: सूरजमल (हरियाणवी ऐतिहासिक उपन्यास), लाला छज्जूमल (संस्मरण संग्रह), दीवानों का मसीहा (हरियाणवी जीवनी), साठोत्तरी हिन्दी कविता, हरियाणा की लोक कलाएँ, आधुनिक हिन्दी-महाकाव्यों का समाजशास्त्रीय अध्ययन, कामायनी का समाजशास्त्रीय विश्लेषण, संत जाभो जी:साधना पद्धति और सामाजिक अवदान, काहे कबीरा भया कबीर, हरियाणवी भाषा:स्वरूप और पहचान, हरियाणवी लोक-साहित्य की ज्ञान-गगरिया:पहेली, शुद्ध हिन्दी कैसे लिखें?, हरियाणवी भाषा का व्याकरण, हरियाणवी भाषा का भाषा वैज्ञानिक आधार, वंशावली, बणछटियाँ की चिंगारी, लोक-अनुभूति का सीसा और भीत्तरले की झाल प्रमुख रुप से शामिल हैं। इसके अलावा उनके दो उपन्यास द्रोणि और टुकड़े-टुकड़े दास्तान प्रकाशनाधीन हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी से झलकी संग्रह ‘अपणा मरण जगत की हांसी’ और साठोत्तरी हिंदी कविता पर प्रथम पुरस्कार हासिल करने वाले डॉ. विश्वबंधु शर्मा को अकादमी द्वारा जनकवि मेहर सिंह सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें उदयभानु हंस वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, रघुवीर सिंह मथाना पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, शाश्वामृत सम्मान, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी समृति सम्मान, कलम नायक सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, विद्यासागर सम्मान, साहित्य कौस्तुभम् अलंकरण सम्मान, कबीर सम्मान के साथ ही अध्यापन सम्मान प्रशंसा प्रमाण पत्र और विद्या वारिधि की उपाधि भी दी गई है। इनके अलावा डा. शर्मा को भारत की विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा उन्हें सैकड़ो पुरस्कार हासिल हो चुके हैं। 
25Dec-2023

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