सोमवार, 18 दिसंबर 2023

साक्षात्कार: साहित्य में नारी विमर्श पर साधना करती कवियत्री रश्मि बजाज

महिलाओं पर अंग्रेजी के समालोचक ग्रंथ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान 
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रश्मि बजाज 
जन्मतिथि: 5 अक्टूबर 1965 
जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (अंग्रेज़ी), पीएचडी(अंग्रेज़ी) 
संप्रत्ति: स्वैच्छिक सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष(अंग्रेज़ी),वैश्य कॉलेज भिवानी, स्वतंत्र-लेखन एवं कवियत्री।
संपर्क : भिवानी, मोबा. 9896661415,‍ rashmibajaj5@gmail.com
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा की संस्कृति और सभ्यता के संवर्धन करने में जुटे लेखकों, साहित्यकारों एवं लोक कलाकारों ने सामाजिक सरोकार के मुद्दों को उजागर करते हुए समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। ऐसे ही साहित्यिक साधकों में महिला साहित्यकार एवं प्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज ने नारी विमर्श को फोकस में रखते हुए सामाजिक विषमताओं पर अपनी बेबाक कलम चलाई है। उन्होंने कविताओं के माध्यस में महिलाओं को जागृत करते हुए यह साबित करने का प्रयास किया है कि यदि महिलाएं अपनी अंतशक्ति को पहचान लें, तो वे समाज का सकारात्मक रुप से कायाकल्प कर सकती हैं। अपने समालोचना ग्रंथ ‘विमेन इंडो एगलियन पोएट्स-ए क्रिटीक’ से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली द्विभाषी (हिंदी व अंग्रेजी) कवियत्री, लेखक, समालोचक, साहित्यकर्मी और शिक्षाविद् रश्मि बजाज ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें उनके लेखन का नजरिया नारी सशक्तिकरण की दिशा में महिलाओं के प्रति अवधारणा का सकारात्मक स्वरुप का सबब बन सकता है। 
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रियाणा की प्रसिद्ध महिला साहित्यकार रश्मि बजाज का जन्म 5 अक्टूबर 1965 को छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले शहर भिवानी में रोशनलाल बजाज एवं पुष्पलता बजाज के घर में हुआ। पिता संस्कृत के विद्वान एवं प्रोफेसर थे, जबकि माता उस समय की भिवानी की पहली स्नातक महिला थी। मसलन परिवार में बचपन से ही रश्मि को शिक्षित-साहित्यिक माहौल मिला। जब घर में साहित्यिक बैठके हों और उसमें पिता के आत्मीय मित्रों, जिनमें हरियाणा के वरिष्ठ कवि उदयभानु हंस एवं उर्दू शायर सतनाम सिंह ‘खुमार’ जैसे विद्वान हों, तो भला परिवार में साहित्यिक माहौल किसी भी बच्चे में रमना स्वाभाविक है और ऐसा ही रश्मि के साथ है, जिसमें हंस जी की रुबाईयां तथा मुक्तक,खुमार साहब की गजलें और शेर उस समय उनके बचपन के साथी बनते चले गये, जिस आयु मे बच्चे चंपक, चंदा मामा और नंदन पढ़ते थे, लेकिन रश्मि को गंभीर चर्चाएं एवं रचनाएं सुनना ज्यादा अच्छा लगता था। इसी माहौल का असर रहा होगा कि उसने महज नौ साल की उम्र में ही अपनी पहली दार्शनिक कविता ‘जीवन क्या है-खेल कैरम का’ लिखी, जो भिवानी के एक स्थानीय अखबार में प्रकाशित हुई। उनका विद्यार्थी जीवन भी बेहतर रहा है, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी टॉपर,,गोल्ड मेडलिस्ट, ऑल राउंड बेस्ट एवार्डी बनकर अपनी साधना का परिचय दिया। कालेज में पहुंचने पर उनकी कविता के लेखन में सामाजिक सरोकार एवं स्त्री-मुद्दे विषय-वस्तु झलकने लगा और पितृसत्तात्मक, लैंगिक भेदभावपूर्ण समाज में एक लड़की के लेखन में स्त्री-चेतना एक महत्वपूर्ण बिंदु बन गई। अपने कॉलेज आदर्श महिला महाविद्यालय की अध्यापिकाओं द्वारा दिए गए प्रशिक्षण एवं उनके तथा कॉलेज गवर्निंग बॉडी द्वारा दिये गये स्नेह एवं प्रोत्साहन ने उनकी प्रतिभा के पल्लवन में बहुत योगदान दिया। उन्होंने बताया कि जब वह यूनिवर्सिटी रिफ्रेशर कोर्स में समर हिल, शिमला में ट्रेनिंग ले रही थी, तो उसी दौरान शिमला के इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ में कवि गोष्ठी में उनका पहला औपचारिक काव्य-पाठ हुआ, जिसमें प्रोफेसर चमन लाल,रमणिका गुप्ता,मोहन नैमिष राय, सुशीला टौंकभोरे एवं अन्य नामचीन साहित्यकार मौजूद थे। यह उनके लिए एक अविस्मरणीय क्षण था, जिसमें उन्होंने बड़े संकोच और धड़कते दिल से अपनी अब बहुचर्चित स्त्रीवादी कविता ‘मृत्योर्मा जीवनं गमय’को वहां पढ़ा, जिसके लिए मिली चौतरफा मिली शुभकामनाओं ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। साहित्य जगत में उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं उनके नारी विमर्श संबन्धी पांच काव्य संग्रह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कृतियों में शामिल रहे, जिन पर अनेक शोध प्रबंधों एवं शोध पत्रों के शोध स्रोत सामने आए। उनकी कविताएं विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद अन्तर्राष्ट्रीय संकलनों के अलावा आलेख, रचनाएं नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। शोध-पत्र एवं समालोचनात्मक लेख प्रतिष्ठित साहित्यिक शोध-पत्रिकाओं में सम्मिलित अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय गोष्ठियों का भी हिस्सा बने। उनकी आमंत्रित मुख्य वक्ता के रूप में दूरदर्शन एवं रेडियो-केंद्रों से साक्षात्कार, वार्ताएं, कविताएं, संगीत प्रसारित स्तरीय कवि सम्मेलनों में भागीदारी रही है। 2022 में प्रकाशित ‘कहत कबीरन’ संग्रह की चर्चाए वं कविता ‘सुनो तसलीमा’ का पाठ प्रतिष्ठित प्रतिष्ठित चैनल के ‘साहित्य तक’ में सम्मिलित होना भी उनकी बड़ी उपलब्धियों में शामिल रहा। रश्मि बजाज भारत सरकार की संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति की सदस्या भी हैं। 
महिलाओं पर रचनाओं का फोकस 
सुप्रसिद्ध कवियत्री रश्मि बजाज की साहित्यिक रचनाओं के फोकस में स्त्री रही है। पहले चरण के काव्य-संग्रहों में स्त्री-मुद्दे एवं स्त्रीवाद ही मूल स्वर रहे हैं, जहां सारा संघर्ष स्त्री को मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित करने का है और एक लैंगिक समता मूलक समाज बनाने का रहा, तो उन्होंने अपनी कविताओं के लेखन और काव्यपाठ के जरिए भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, स्त्री विरोधी मानसिकता, अत्याचार, अन्याय और स्त्री व पुरुष में भेदभाव जैसी नारियों से जुड़ी समस्याओं और सामाजिक कुरीतियों तीखे प्रहार करके समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने का प्रयास किया है। हालांकि उनके विस्तृत होते काव्य-कृतियों का फलक में सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर व्यापक चिंता एवं चिंतन,गहरा सरोकार विकसित होता नजर आता है। साहित्यिक साधना में उनका यह भी लक्ष्य है, जिसमें वे एक ऐसी सहृदय सभ्यता, संस्कृति का निर्माण करने में योगदान दें, जहां नवमनु, नव सृष्टि जन्म लें सके। उनकी हिंदी की लयात्मक मुक्त छंद कविताओं, तालबद्ध गीतिकाओं के अतिरिक्त उर्दू शेरो-शायरी में अभिव्यक्त होती है एक बेहतर इंसान, बेहतर समाज, बेहतर दुनिया बनाने की प्रबल इच्छा रही है। आज कल अध्यात्म में भी उनकी रुचि बढ़ रही है और उनका मानना है कि अध्यात्म व्यष्टि एवं समष्टि के समग्र उत्थान का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है। संगीत एवं गायन भी उनकी रुचि के क्षेत्र हैं, लोकसंगीत एवं भक्ति संगीत के कार्यक्रमों में भी उन्होंने प्रस्तुतियां दी हैं। 
साहित्य सृजन में गिरावट 
आज के आधुनिक युग में साहित्य में सृजन के स्तर में गिरावट को लेकर रश्मि बजाज का कहना है कि आजकल लेखकों एवं पुस्तकों की सुनामी सी आई हुई है, लेकिन हर व्यक्ति या तो लेखक है या लेखक बनने को है किंतु गुणवत्ता की दृष्टि से स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं। समकालीन हिंदी समीक्षा का फलक कुछ गिने-चुने रचनाकारों तथा चंद प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित कृतियों तक ही सीमित होकर रह गया है। इसी वजह से स्तरीय कृतियां प्रकाशित नहीं हो पा रहीं हैं और न ही कोई मौलिक साहित्यिक दृष्टि अथवा दर्शन समक्ष नहीं आ पा रहा है। उम्मीद है कि इस मंथन-काल के बाद मौलिक दृष्टि एवं सृजन अवश्य उभरकरसबके समक्ष आएगा। जहां तक युवा पीढ़ी का साहित्य से दूर होना है उसके पीछे अब इंटरनेट व संचार-तकनीक के माध्यम है, जिसके जरिए समकालीन परिदृश्य में साहित्य की पारंपरिक विधाएं नई टेक्नोलॉजी, संचार-माध्यमों द्वारा प्रस्तुति एवं संप्रेषण पा रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स-यू-ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, पॉडकास्ट इत्यादि एक सशक्त माध्यम के रूप में समक्ष आ रहे हैं। साहित्य-उत्सवों एवं पुस्तक-मेलों में बड़ी संख्या में युवा पाठकों की सक्रिय भागीदारी रहती है। इंटरनेट से मिली प्रारंभिक जानकारी लेकर वे पुस्तकों में अधिक सजीव रुचि लेते हैं। इसके अतिरिक्त अमेजॉन,फ्लिपकार्ट तथा प्रकाशकों से नेट के ज़रिए खरीदे जाने वाली पुस्तकों का एक बहुत बड़ा बाज़ार है एवं ई-बुक्स, ‘किंडल’ बुक्स, नॉटनल आदि पब्लिशिंग प्लेटफार्म पाठक को वैश्विक पुस्तक बाज़ार से सीधा जोड़ रहे हैं। आज के लेखक के कंधों पर बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वह अपने लेखन द्वारा नकारात्मकता ग्रस्त, मूल्यहीन, दिशाभ्रमित मानव-समाज को सकारात्मकता एवं सात्विक-मूल्यों का संदेश देने वाली रचनाओं का सृजन करें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार एवं द्विभाषी कविता लेखक रश्मि बजाज की अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित सात पुस्तकों में छह काव्य-संग्रह: मृत्योर्मा जीवनम् गमय, निर्भय हो जाओ द्रौपदी, सुरबाला की मधुशाला, स्वयंसिद्धा, जुर्रत ख्वाब देखने की, कहत कबीरन सुर्खियों में हैं। उनकी अंग्रेज़ी आलोचना पुस्तक ‘विमेन इंडो-एंग्लियन पोएट्स’ यूएस लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस द्वारा सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों में चयनित हुई, जो अपने क्षेत्र का बहु-उद्धृत मील का पत्थर ग्रंथ साबित हुआ। वहीं जल्द ही पाठकों के बीच आने वाले अंग्रेज़ी के महत्वपूर्ण आलोचना-ग्रंथ ‘समकालीन वैश्विक साहित्य में अध्यात्म’ का संपादन जारी है। उनकी अंग्रेज़ी की कविताएं प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय काव्य-संकलनों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा शोध-प्रपत्रों में शोध-विषय वस्तु के रूप में सम्मिलित हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
कवियत्री रश्मि बजाज को साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'पंडित माधव मिश्र साहित्य सम्मान', 'हंस राज्यस्तरीय कविता पुरस्कार', 'साहित्य शिरोमणि सम्मान', 'डॉ राजेंद्र प्रसाद साहित्य सम्मान' 'हरियाणा साहित्य सम्मान'. 'मनु मुक्त मानव अकादमी सम्मान', 'लाजवंती सीताराम साहित्य पुरस्कार', 'वुमन अचीवर्स अवार्ड', 'स्त्री रत्न', 'स्त्री शक्ति', 'आदर्श शिक्षक', 'बेस्ट कल्चरल इंचार्ज अवार्ड' तथा अन्य अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक पुरस्कारों, सम्मानों द्वारा अलंकृत किया जा चुका है। 
27Nov-2023

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