ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय
सतर्कता आयोग ने बैंक और अन्य आय संबन्धी मामलों में फंसे सरकारी बैंकों
के भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ इसलिए कानूनी कार्रवाही को आगे नहीें बढ़ा पा
रहा है कि संबन्धित विभागों ने आयोग की रिपोर्ट पर मुकदमा चलाने की मंजूरी
नहीं दी है।
दरअसल केंद्रीय सतर्कता आयोग ने सरकारी बैंकों के
भ्रष्टाचार और वित्तीय घोटाले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ पिछले साल
जांच की थी, जिसमें करीब 98 बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों पर वित्तीय
हेराफेरी और भारी घोटाले करने के आरोप हैं। इन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा
चलाने के लिए विभागीय मंजूरी मांगी गई थी, लेकिन करीब चार माह से मंजूरी न
मिलने के कारण ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे जैसी कानूनी
कार्रवाही शुरू ही नही हो सकी। सीवीसी की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया
है कि जिन बैंक अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलना है उनमें वरिष्ठ प्रबंधक,
मुख्य प्रबंधक और जनरल मैनेजर स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। आयोग की फरवरी
में सामने आई प्रगति रिपोर्ट के अनुसार 43 मामलों में 49 सरकारी
अधिकारियों के खिलाफ मुकदमे के लिए मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।
जांच के घेरे में कई बैंक अफसर
ऐसे
सात मामले इंडियन ओवरसीज बैंक, दो-दो एसबीआई और बैंक आॅफ इंडिया और एक-एक
मामले ओबीसी, कॉरपोरेशन बैंक, स्टेट बैंक आॅफ पटियाला, एक्जिम बैंक, बैंक
आॅफ बड़ौदा के खिलाफ चलाए जाने हैं। सीवीसी के सूत्रों के अनुसार ऐसे भ्रष्ट
अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए चार महीने के भीतर फैसला करना
होता है। कार्यवाही शुरू करने के मकसद से सीवीसी भ्रष्ट अधिकारियों के
खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने में हो रहे विलंब मामले को
इंटर-मिनिस्ट्रियल मीटिंग्स में भी उठा चुके हैं, लेकिन अभी तक मंजूरी न
मिलने के कारण फिर से विभागों को पत्र लिखने की तैयारी में हैं। सीवीसी का
मानना है कि इस तरह विलंब के कारण ऐसी मामले बढ़ने से मामले विभागों में
अटकने की आशंका बनी रहती है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
सीवीसी
के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार किसी भी भ्रष्ट अधिकारी के
खिलापु मुकदमा चलाने के लिए विभागों को मंजूरी तीन माह के भीतर देना जरूरी
है। इस निर्देश से सीवीसी सभी विभागों को पहले ही अवगत करा चुका है। इसके
बावजूद विभाग ऐसे अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा शुरू करने में देरी करके
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवलेना कर रहे हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट के
दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के
मुताबिक हालांकि हालांकि एक महीने की छूट ऐसे मामले में मिल सकती है जिनमें
अटार्नी जनरल या एजी आॅफिस के अन्य दूसरे कानूनी अफसर से परामर्श करने की
आवश्यकता हो।
11Apr-2016
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