ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सोमवार
से शुरू हो रहे संसद सत्र में उत्तराखंड में राष्ट्र्पति शासन, डिफॉल्टर
विजय माल्या और देश में सूखे जैसे कई मुद्दों पर विपक्षी दल मोदी सरकार की
घेराबंदी करने को तैयार हैं, जबकि केेंद्र सरकार भी विपक्षी दलों की इस
चुनौती से निपटने की रणनीति के साथ संसद में आने की तैयारियां पूरी कर चुकी
है। मसलन सरकार संसद में कामकाज निपटाने के लिए विपक्षी दलों के सहयोग के
लिए सकारात्मक नीति के तहत विपक्षी दलों के हरेक मुद्दे पर चर्चा कराने का
भरोसा दे रही है।

ऐसे करेगी सरकार बचाव
यदि
ऐसी नौबत भी आई तो उत्तराखंड में राष्ट्र्पति शासन पर संसद में विपक्ष को
जवाब देने का सवाल है उसके लिए सरकार ने कांग्रेस के शासनकाल में अनुच्छेद
356 के उपयोग के विशिष्ट मामलों की मिसाल पेश कर पलटवार करने की तैयारी की
है। इसी हथियार से सरकार उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की
कार्रवाही का ‘संवैधानिक संकट’ की दुहाई देकर बचाव करने का प्रयास करेगी।
संसदीय कार्य राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी द्वारा दिये जा रहे संकेतों
पर भरोसा करें, तो उत्तराखंड के मुद्दे पर सरकार की रणनीति के तहत यह तथ्य
भी पेश किये जाएंगे कि आजादी से अब तक अब तक विभिन्न राज्यों में लागू हुए
111 बार राष्ट्रपति शासन में 91 बार कांग्रेस तथा कांग्रेस समर्थित सरकारों
ने राष्ट्रपति शासन जैसी कार्रवाही की है। मसलन सरकार संसद में प्रथम
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र मोदी तक राष्ट्रपति शासन
लगाए जाने वाले आंकड़ों का खाका तैयार कर चुकी है।
संसद आने की चिंता
लोकसभा
अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा संसद सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए
रविवार को बुलाई गई बैठक में सांसदों ने दिल्ली में चल रहे आॅड-इवन पर
चिंता जताई, क्योंकि उनके पास एक-एक ही गाड़ी है तो ऐसे में ज्यादातर दलों
ने आॅड-इवन में सांसदों को छूट मिलने का प्रस्ताव रखा। सांसदों ने तर्क
दिया कि संसदीय कार्यवाही में भाग लेने का सांसदों के विशेषाधिकार ऐसे में
सांसदों को लाने ले जाने वाली गाड़ियों को विशेष छूट मिलनी चाहिए। लगे हाथ
दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने कहा है कि सांसदों को आॅड-ईवन से छूट
मिलने की संभावना कम है। इसलिए सांसदों को कार पूल करने से बेहतर कोई
इंतजाम नहीं हो सकता।

25Apr-2016
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