रविवार, 23 नवंबर 2014

राग दरबार: धर्मनिरपेक्षता के सहारे राहुल बाबा

धर्मनिरपेक्षता के सहारे राहुल बाबा
कांग्रेस अपनी सियासी सेहत सुधारने के लिए अब भाजपा की तर्ज पर धर्मनिरपेक्षता का संदेश लेकर यात्राओं का सहारा लेने की जुगत में है। जबकि सर्वविदित है कि भारत विभिन्न भाषाओं और धर्मो के समावेशी देश है फिर भी पता नहीं कांग्रेस किस धर्मनिरपेक्षता का संदेश देना चाहती है। शायद इसी कारण राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लोगों की स्वाभाविक पसंद और आक्रामक विपक्षी नेता के रूप में खुद को प्रस्तुत करने की गरज से भारत दर्शन यात्रा पर निकलने वाले हैं। इस यात्रा की शुरूआत भी सारनाथ से होने की खबर है तो यह एक बार फिर बड़ी गलती करने वाले हैं? पहली बात तो सारनाथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनाव क्षेत्र होने के कारण पहले दिन से ही उनकी इस यात्रा की कवरेज में बार-बार मोदी का उल्लेख होना तय है। दूसरे उन्हें सारनाथ से क्या मिलेगा? बौद्ध धर्म के सहारे यूपी के दलित वोट तो मायावती के पाले से फिलहाल छिटकने वाले नहीं। फिर वहीं बात आती है कि कब किस चीज को कहां भुनाना है, यह उन्हें शायद आता ही नहीं। मोदी भले ही सारनाथ नहीं गये, लेकिन बौद्ध धर्म के जरिए उन्होंने नेपाल, भूटान और फिर जापान में अपनी खूब ब्रांडिंग कर ली। फिलहाल राहुल बाबा उससे आगे नहीं निकल पाएंगे या यूं कहिए कि उन्हें अभी सियासत ने स्वीकारा ही नहीं। राजनीतिकार तो यह मानकर चल रहे हैं कि राहुल बाबा के लिए यह अच्छा होता कि नेहरू जी की 125वीं जयंती वर्ष के मद्देनजर वह यह यात्रा इलाहाबाद के आनंद भवन से शुरू करते तो यात्रा का औचित्य भी कुछ मायने रखता। वैसे तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश भर में मंदिरों, पीर-मजारों और गुरूद्वारों में मत्था टेक कर सर्वधर्मसमभाव का संदेश दिया जाता रहा है। राजनीति गलियारे में अब यही चर्चा है कि फिलहाल यूं ही बिना सूत-कपास भारत दर्शन से कांग्रेस की सियासी सेहत सुधरने की उम्मीद नहीं है। इससे अच्छा तो कांग्रेस को नवजीवन देने के लिए जरूरी है कि चाटुकारों का घेरा तोड़ कर लोगों से संवाद करें। अब यह मान लेने में ही भलायी है कि नेहरू परिवार का करिश्मा सिर्फ चेहरे से नहीं चलने वाला।
नेता जी की शाही सवारी
कांग्रेस ने नेहरू के समाजवाद को कारपोरेटवाद में बदल दिया, तो फिर सपा प्रूमुख मुलायम सिंह यादव ही भला पीछे कैसे रहें। उन्होंने लोहिया के समाजवादी प्रतीकों को तिलांजलि देकर राजशाही की निशानी को पसंद कर लिया। चलो कोई बात नहीं नजारा दिलचस्प ही रहा होगा, जब समाजवादी नेता जी शाही बग्धी पर गुजरेे और सड़कों के किनारे मैले-कुचैले कपड़ों से तन ढके लोहिया के गरीब-गुरबा उन्हें ललचाई नजरों से निहारा। जन्मदिन की बधाई हो नेताजी। आप लंबी उम्र जिये ताकि अंग्रेेजों के जाने के बाद भी उनके प्रतीक निहारने को मिलते रहें। नेताजी के इस शाही बर्थ-डे पर इस बार नवाबों के शहर रामपुर में आजम खां ने विशेष जलसा किया, जिसमें खास बात यह रही कि अपने नेता के लिए आजम खां साहब को इंग्लैंड से विक्टोरिया के नाम की बग्घी मंगाने की जरूरत पेश की और नेता जी इंग्लैंड से मंगायी गयी खास विक्टोरिया बग्घी पर सवार होकर रामपुर की सड़कों से गुजर कर जौहर यूनिवर्सिटी पहुंचें। यूं तो रामपुर के लिए शाही सवारियां कोई नयी बात नहीं हैं, यदि कुछ नया है तो वह नवाबों के शहर में एक समाजवादी का शाही सवारी से सफर करने का गवाह बनना। ऐसे में यह चर्चा आम है कि इंग्लैंड की विक्टोरिया..जी हां वही मल्लिका-ए-ब्रितानिया रही विक्टोरिया, जिनकी किस्मत से भी बेहतर किस्मत है सूबे के वजीर जनाब आजम खां साहब की भैंसों की। खैर किसकी किस्मत किससे बेहतर है, यह तो आजम खां साहब जैसे दानिश्वर सियासतदां ही जान सकते हैं पर इतना तो सबको पता हो गया कि इंग्लैंड को आजम की भैंसों की दरकार नहीं हुई, लेकिन आजम खां साहब को देश के बड़े नेता व समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जी का जन्मदिन पर इंग्लैंड से विक्टोरिया के नाम की बग्घी मंगाने की जरूरत पेश आ गयी। 
संत रामपाल गाथा
हरियाणा के बरवाला में संत रामपाल के लिए यह गनीमत रही कि उनका सतलोक आश्रम मदरसा नहीं और न ही रामपाल मौलाना। अगर रामपाल की जगह किसी मौलाना ने इतना जमावड़ा जोड़ कर कानून को चुनौती दी होती तो यकीन मानिए फिर निजी ब्लैककैट कमांडो के तार सीधे सिमी, पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई, लश्करे तइबा और ना जाने किस-किस से जुड़ते। चूंकि रामपाल हिंदू हैं सो इनके तार आतंकवादियों से जोडना मुश्किल है। पटकथा सच्ची नहीं लगेगी, सो जितना मुमकिन था उतना पुलिस कर रही है। हालांकि अब इनके हथियारबंद समर्थकों में नक्सली कनेक्शन खोजा जाना स्वाभाविक है। सुखद है कि कम से कम बल प्रयोग के बाद रामपाल पुलिस के हत्थे चढ़ गये। उन्हें यह पता था कि ऐसे मामलों में पुलिस कंबल परेड़ करती है, सो खुद ही कंबल ओढ़ कर एम्बुलेंस में सवार हो गये। इति श्री रामपाल गाथा।
23Nov-2014

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