पाांचवी मूल्यांकन रिपोर्ट के निष्कर्षः
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के विकल्प मौजूद
नई दिल्ली- मनुष्य का जलवायु पर प्रभाव स्पष्ट रूप से बढ़ रहा है, इसके प्रभावों को सभी महाद्वीपों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम लोगांे और पारिस्थितिक तंत्र के लिए घातक एवं अपरिवर्तनीय हो सकते है। हालांकि, इसे अनुकूलित करने के लिए कुछ विकल्प अभी भी उपलब्ध हें। ऐसी सख्त गतिविधियों को अपनाया जा सकता है जो प्रबन्धनीय तरीके से जलवायु बदलाव के प्रभावों पर नियन्त्रण करें।
रविवार को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अन्तरसरकारी पैनल के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के कुछ परिणाम यहां दिए गए हैं। रिपोर्ट के ये परिणाम पिछले 13 महीनों के दौरान 800 वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अध्ययन एवं सर्वेक्षण पर आधारित हैं-जिसके तहत जलवायु परिवर्तन पर व्यापक मूल्यांकन किया गया है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष आर. के. पचैरी के अनुसार ‘‘हमारे पास जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसे कई समाधान हैं जिनके द्वारा सतत मानव विकास को सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए हमें केवल जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझना होगा, इसके बारे ज़रूरी जानकारी जुटानी होगी तथा इसे रोकने के लिए मानवमात्र को प्रोत्साहित करना होगा। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन आज दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है और हमारे वातावरण के लिए अपने आप में एक बड़ी चेतावनी है। 1950 के बाद से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कई परिणाम स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। ‘‘हमारे मूल्यांकन से ज्ञात हुआ है कि वातावरण और समुद्र गर्म हो रहें हैं, बर्फ और हिमपात की मात्रा कम हो रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और कार्बनडाईआॅक्साईड का स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहा है। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 1 के सह अध्यक्ष थाॅमस स्टाॅकर ने बताया। रिपोर्ट में बताया गया कि बीसवीं सदी के माध्यम से बढ़ती ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को ग्लोबल वार्मिंग के रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सभी महाद्वीपों और सभी महासागरों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मनुष्य की गतिविधियां जलवायु को बाधित कर रही हैं, इसी के साथ जोखिम बढ़ता जा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन रही है, समाज के सभी वर्गों पर इसके प्रभाव स्पष्ट हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि विकासशील देशों और संवेदनशील समुदायों के लिए स्थिति और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उनके पास इन स्थितियों से निपटने के लिए सीमित क्षमता है। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, संस्थागत रूप से सीमित एवं वंचित समुदायों के लोग इस दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं। अनुकूलन इस जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विकास को बढ़ावा दे सकता है और पहले से हो चुके गैसे के उत्सर्जन से निपटन के लिए हमें तैयार कर सकता है।’’ आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 2 के सह अध्यक्ष विसेन्टे बैरोस ने बताया। लेकिन केवल अनुकूलन पर्याप्त नहीं है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में कमी लाना बेहद अनिवार्य है। ओर चूंकि इससे वार्मिंग का स्तर बढ़ रहा है, ऐसे में इसके गम्भीर सम्भावी प्रभावों को कम करने के लिए प्रयास करने होंगे।
अगले कुछ दशकों में गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के पर्याप्त प्रयास किए जा सकते हैं, इसे 66 फीसदी तक कम करके वार्मिंग को 2 डिग्री तक कम करना सरकारों का लक्ष्य है। हालांकि इन प्रयासों में देरी 2030 तक धरती के तापमान को 2 डिग्री तक बढ़ा भी सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है। कम कार्बन की अर्थव्यवस्था की ओर रुख करना तकनीकी रूप से व्यवहारिक प्रयास होगा। लेकिन इसके लिए उचिन नीतियों का अभाव है। हम कार्रवाई करने में जितनी देर करेंगे, उतना ही परिणामों को नियन्त्रित करना मुश्किल हो जाएगा। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप के सह अध्यक्ष यूबा सोकोना ने बताया। पचैरी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन पर स्पष्ट एवं प्रभावशाली नियन्त्रण आज की प्राथमिकता है। हमारे पास समय बहुत कम है, क्योंकि वार्मिंग 2 डिग्री के स्तर पर पहुंच गई। इसे 2 डिग्री से नीचे रखने के लिए हमें दुनिया भर में उत्सर्जन के स्तर को 2010 से 2050 के बीच 40 से 70 फीसदी तक कम करना होगा, और 2100 तक इसे शून्य के स्तर तक लाना होगा। अभी स्थिति हमारे हाथ में है, हम चाहें तो इस पर नियन्त्रण कर सकते हैं।
नई दिल्ली- मनुष्य का जलवायु पर प्रभाव स्पष्ट रूप से बढ़ रहा है, इसके प्रभावों को सभी महाद्वीपों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके परिणाम लोगांे और पारिस्थितिक तंत्र के लिए घातक एवं अपरिवर्तनीय हो सकते है। हालांकि, इसे अनुकूलित करने के लिए कुछ विकल्प अभी भी उपलब्ध हें। ऐसी सख्त गतिविधियों को अपनाया जा सकता है जो प्रबन्धनीय तरीके से जलवायु बदलाव के प्रभावों पर नियन्त्रण करें।
रविवार को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित अन्तरसरकारी पैनल के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के कुछ परिणाम यहां दिए गए हैं। रिपोर्ट के ये परिणाम पिछले 13 महीनों के दौरान 800 वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अध्ययन एवं सर्वेक्षण पर आधारित हैं-जिसके तहत जलवायु परिवर्तन पर व्यापक मूल्यांकन किया गया है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष आर. के. पचैरी के अनुसार ‘‘हमारे पास जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के विकल्प उपलब्ध हैं। ऐसे कई समाधान हैं जिनके द्वारा सतत मानव विकास को सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके लिए हमें केवल जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को समझना होगा, इसके बारे ज़रूरी जानकारी जुटानी होगी तथा इसे रोकने के लिए मानवमात्र को प्रोत्साहित करना होगा। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन आज दुनिया भर के लिए चिंता का विषय है और हमारे वातावरण के लिए अपने आप में एक बड़ी चेतावनी है। 1950 के बाद से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कई परिणाम स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। ‘‘हमारे मूल्यांकन से ज्ञात हुआ है कि वातावरण और समुद्र गर्म हो रहें हैं, बर्फ और हिमपात की मात्रा कम हो रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और कार्बनडाईआॅक्साईड का स्तर अप्रत्याशित रूप से बढ़ रहा है। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 1 के सह अध्यक्ष थाॅमस स्टाॅकर ने बताया। रिपोर्ट में बताया गया कि बीसवीं सदी के माध्यम से बढ़ती ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को ग्लोबल वार्मिंग के रूप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सभी महाद्वीपों और सभी महासागरों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मनुष्य की गतिविधियां जलवायु को बाधित कर रही हैं, इसी के साथ जोखिम बढ़ता जा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन रही है, समाज के सभी वर्गों पर इसके प्रभाव स्पष्ट हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि विकासशील देशों और संवेदनशील समुदायों के लिए स्थिति और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उनके पास इन स्थितियों से निपटने के लिए सीमित क्षमता है। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, संस्थागत रूप से सीमित एवं वंचित समुदायों के लोग इस दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं। अनुकूलन इस जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विकास को बढ़ावा दे सकता है और पहले से हो चुके गैसे के उत्सर्जन से निपटन के लिए हमें तैयार कर सकता है।’’ आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 2 के सह अध्यक्ष विसेन्टे बैरोस ने बताया। लेकिन केवल अनुकूलन पर्याप्त नहीं है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में कमी लाना बेहद अनिवार्य है। ओर चूंकि इससे वार्मिंग का स्तर बढ़ रहा है, ऐसे में इसके गम्भीर सम्भावी प्रभावों को कम करने के लिए प्रयास करने होंगे।
अगले कुछ दशकों में गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के पर्याप्त प्रयास किए जा सकते हैं, इसे 66 फीसदी तक कम करके वार्मिंग को 2 डिग्री तक कम करना सरकारों का लक्ष्य है। हालांकि इन प्रयासों में देरी 2030 तक धरती के तापमान को 2 डिग्री तक बढ़ा भी सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है। कम कार्बन की अर्थव्यवस्था की ओर रुख करना तकनीकी रूप से व्यवहारिक प्रयास होगा। लेकिन इसके लिए उचिन नीतियों का अभाव है। हम कार्रवाई करने में जितनी देर करेंगे, उतना ही परिणामों को नियन्त्रित करना मुश्किल हो जाएगा। आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप के सह अध्यक्ष यूबा सोकोना ने बताया। पचैरी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन पर स्पष्ट एवं प्रभावशाली नियन्त्रण आज की प्राथमिकता है। हमारे पास समय बहुत कम है, क्योंकि वार्मिंग 2 डिग्री के स्तर पर पहुंच गई। इसे 2 डिग्री से नीचे रखने के लिए हमें दुनिया भर में उत्सर्जन के स्तर को 2010 से 2050 के बीच 40 से 70 फीसदी तक कम करना होगा, और 2100 तक इसे शून्य के स्तर तक लाना होगा। अभी स्थिति हमारे हाथ में है, हम चाहें तो इस पर नियन्त्रण कर सकते हैं।
04Nov-2014
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें