शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

आखिर सियासी रणनीति में बदलाव पर उतरी माया!

हार से हताश दलों के प्रस्तावित महागठबंधन में जाने को तैयार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
पिछले लोकसभा और हाल ही में यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार से बहुजन समाज वादी पार्टी ऐसी हताश नजर आ रही है कि हमेशा अकेले दम पर चुनाव मैदान में जाने के सिद्धांत को पीछे धकेलकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने सियासी रणनीति में बदलाव करने को मजबूर होना पड़ा है। मसलन अब वह भाजपा के खिलाफ अपने चिर प्रतिद्वंद्वी दलों के साथ प्रस्तावित महागठबंधन में शामिल होने को भी तैयार है।
देश में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के 33वें स्थापना दिवस पर पार्टी की सियासी रणनीति बदलने के साफ संकेत ही नहीं दिये, बल्कि उत्तराधिकारी के रूप में अपने छोटे भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया है, जिसे माया के बाद सभी दस्तावेजों और फैसले लेने का अधिकार भी होगा। देश की राजनीति में बसपा ऐसे सिद्धांत पर रही है, जिसने हमेशा अकेले दम पर चुनाव लड़ा है और यदि गठबंधन करने की मजबूरी भी आई तो चुनाव के बाद ही किया है। पिछले लोकसभा चुनाव में लोकसभा में पार्टी को जगह न दे पाने वाली मायावती को पिछले महीने ही यूपी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की हवा में करारी हार का सामना करना पड़ा है। भले ही वह इस हार का ठींकरा ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी होने के आरोप के साथ फोड़ने का प्रयास कर रही है, लेकिन जातिगत आधार पर राजनीति करने वाली बसपा का वोटबैंक भाजपा की रणनीति के सामने पूरी तरह खिसकता नजर आया। ऐसे में पार्टी के सिद्धांतों को ताक पर रखते हुए मायावती ने सियासी रणनीति में ऐसे बदलाव करके फिर से जनाधार हासिल करने के प्रयास में एक कदम बढ़ाया है।
मुद्दो पर फिसली बसपा
चुनावी रणनीति में मायावती ने शुक्रवार को जिस प्रकार के बयान देकर कई रहस्यों को भी उजागर किया है, वहीं अन्य दलों की तरह बसपा भी जनहित के मुद्दों पर पूरी तरह फिसलती नजर आई है, जिनके लिए जनता ने भाजपा पर ज्यादा विश्वास जताया है। यहां तक कि डा. भीमराव अंबेडकर के नाम पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाओं से मायावती आहात नजर आ रही है। तो तीन तलाक या मुस्लिमों के हितों को साधने वाली पटरी से उतरी सभी रणनीतियों पर फिर से विश्वास बहाल करने के लिए दलित-मुस्लिमों की समर्थक होने के लिए मायावती अपनी व पार्टी की छवि सुधारने की मुहिम में जुट गई हैं।
मुस्लिमों के मुद्दे पर ऐसे पलटी माया
देशभर में चर्चा का विषय बने तीन तलाक पर मायावती ने शुक्रवार को कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को न्याय नहीं दे पा रहा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस पर फैसला ले। जबकि इससे पहले यानि पिछले साल ही हाजी अली मामले पर महिलाओं के संघर्ष पर मायावती ने एक सार्वजनिक बयान दिया था कि धार्मिक मामलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जिसमें मायावती ने हाजी अली दरगाह में महिलाओं को प्रवेश के लिए भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई की मुहीम पर बड़ा बयान दिया था और कहा कि हर धर्म के अपने रिवाज होते हैं और उसमे हस्तक्षेप करना सही नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा था कि हाजी अली का मामला धर्म से संबंधित है इसलिए धर्मगुरुओं को ही इस पर फैसला लेना चाहिए। हालांकि अब माया का कहना है कि महिलाओं को बराबरी तो मिलनी चाहिए, लेकिन बराबरी मांगने का तरीका ठीक होना चाहिए।
क्या रहा बसपा का सिद्धांत
गौरतलब है कि बसपा में सुप्रीमो मायावती ही पार्टी की तरफ से अपने बयान देती रही है और अन्य किसी पदाधिकारी, सांसद और विधायक को पार्टी की ओर से बोलने का कोई अधिकार नहीं था। कुछ अपवादों में सतीश मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी को ही इजाजत के बाद कुछ कहने का अधिकार था। वैसे भी मायावती हमेशा अपने भाषणों में राजनीति में परिवारवाद यानि वंशवाद का विरोध करती रहीं हैं। माया कांशीराम का उदाहरण देते हुए अपने परिवार को राजनीति से दूर रखती रही है, लेकिन बदलते राजनीतिक परिवेश में मायावती को परिवार के सदस्य को पार्टी में उत्तराधिकारी के रूप में ही सही वंशवाद का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
15Apr-2017

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