मंगलवार, 13 मार्च 2018

फांसी की सजा खत्म करने के समर्थन में केवल दो राज्य!



एक दर्जन राज्यों ने किया केंद्र के प्रस्ताव का विरोध  
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
भारत में फांसी की सज़ा पर रोक लगाने पर लंबे समय से चली आ रही बहस के बीच अभी भी पूरा देश एक राय नहीं बना पाया है, जिसमें ज्यादातर राज्यों ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखने का समर्थन किया है। जबकि केंद्र सरकार के प्रस्ताव में फांसी की सजा को खत्म करने के प्रस्ताव का केवल दो ही राज्यों ने समर्थन किया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अन्य देशों की तर्ज पर भारत में भी फांसी की सजा का खत्म करने के लिए विधि आयोग की गत 2015 में आई रिपोर्ट में शामिल सिफारिश के आधार पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर राय मांगी गई थी। मंत्रालय के सूत्रों की माने तो अभी तक 14 राज्यों से जवाब मिल पाया है, जिसमें केंद्र सरकार के फांसी की सजा को खत्म करने के प्रस्ताव का केवल कर्नाटक और त्रिपुरा ने ही समर्थन किया है, जबकि बाकी एक दर्जन राज्यों ने फांसी की सजा के प्रावधान बरकरार रखने का पक्ष रखा है। सूत्रों के अनुसार फांसी की सजा को बरकरार रखने वले 12 राज्यों का तर्क है कि देश में हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मामले में फांसी की सजा को खत्म करने से अपराधियों के हौंसले बुलंद हो जाएंगे। गौरतलब है कि विधि आयोग के अध्यक्ष जस्ट‍िस एपी शाह ने अपनी उक्त रिपोर्ट में यह प्रस्ताव रखा था कि गैर आतंकवाद वाले सभी मामलों में फांसी की सजा को खत्म कर देना चाहिए। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही इस मुद्दे पर देश में बहस छिड़ गई ,जिसके बाद केंद्र सरकार ने एक प्रस्ताव पर देश के सभी राज्यों से राय मांगी।
इन राज्यों ने प्रस्ताव का किया विरोध
सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय के इस मुद्दे पर राय के लिए पत्रों का जवाब देने वाले 12 राज्यों में प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने फांसी की सजा को बरकरार रखने का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार के प्रस्ताव का विरोध किया है। मंत्रालय का तर्क है कि करीब 140 देश फांसी की सजा को खत्म कर चुके हैं, जिनमें भारत के पडोसी देश नेपाल व भूटान भी शामिल हैं। विधि आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो अभी चीन, सऊदी अरब, ईरान और इराक जैसे देशो में फांसी देने वाले कानून व व्यवहार के स्तर पर चीन, ईरान, इराक, सऊदी अरब जैसे देशों की तरह भारत भी शामिल है।
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फांसी की सज़ा पर इसकी सज़ा को लेकर राजनीति हो जाती है। इस राजनीति में भी मज़हब का टच आ जाता है। जैसे 30 अगस्त 2011 को जब तमिलनाडु की विधानसभा राजीव गांधी के हत्यारे की फांसी के ख़िलाफ़ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया तो किसी ने जयललिता और करुणानिधि को देशद्रोही नहीं कहा। राजोआना और भुल्लर की फांसी के मामले में अकाली दल के नेता खुलकर विरोध करते हैं, अकाली दल की साथी बीजेपी फांसी का समर्थन करती है, लेकिन अकाली दल को देशद्रोही नहीं कहती।
अफज़ल गुरु को फांसी देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक जगह कहा है कि समाज की सामूहिक चेतना को संतुष्ट करने के लिए फांसी ज़रूरी है। अब हमें या आपको सोचना चाहिए कि ये सामूहिक चेतना कैसे बनती है। अगर अफज़ल गुरु और याकूब मेमन के बारे में सामूहिक चेतना है तो वो राजोआना भुल्लर या राजीव गांधी के हत्यारों के बारे में अलग कैसे हो जाती है। जो भी है ऐसी तथाकथित सामूहिक चेतना हकीकत तो है ही।
13Mar-2018

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