बिहार और झारखंड
में
बढ़ेगी
सिंचाई
क्षेत्र
की
क्षमता
हरिभूमि ब्यूरो.
नई
दिल्ली।
बिहार और झारखंड
में
जल
संकट
का
कारण
बने
उस
उत्तरी
कोयल
जलाशय
की
परियोजना
को
केंद्र
सरकार
ने
फिर
से
शुरू
कराने
का
फैसला
किया
है,
जिसके
निर्माण
कार्य
को
24 साल
पहले
रोका
गया
था।
केंद्र
सरकार
ने
इस
परियोजना
के
बकाया
काम
को
पूरा
करने
के
लिए
1622.27 करोड़
रुपये
की
अनुमानित
लागत
को
भी
मंजूरी
दी
है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
की
अध्यक्षता
में
बुधवार
को
हुई
केन्द्रीय
मंत्रिमंडल
की
बैठक
में
केंद्रीय
जल
संसाधन
मंत्रालय
के
इस
प्रस्ताव
को
स्वीकार
करते
हुए
बिहार
और
झारखंड
में
इस
अधूरी
उत्तरी
कोयल
जलाशय
परियोजना
के
काम
को
पूरा
करने
के
लिए
अगले
तीन
सालों
में
अनुमानित
खर्च
के
रूप
में
1622.27 करोड़
रुपये
की
राशि
को
मंजूरी
दी
गई
है।
केंद्रीय
मंत्रिमंडल
ने
परियोजना
के
तहत
बांध
के
जल
स्तर
को
पहले
के
परिकल्पित
स्तर
के
मुकाबले
सीमित
करने
का
भी
फैसला
किया
गया,
ताकि
कम
इलाका
बांध
के
डूब
क्षेत्र
में
आए
और
बेतला
राष्ट्रीय
उद्यान
और
पलामू
टाइगर
रिजर्व
को
बचाया
जा
सके।
गौरतलब
है
कि
यह
परियोजना
सोन
नदी
की
सहायक
उत्तरी
कोयल
नदी
पर
स्थित
है
जो
बाद
में
गंगा
नदी
में
जाकर
मिलती
है।
उत्तरी
कोयल
जलाशय
झारखंड
राज्य
में
पलामू
और
गढ़वा
जिलों
के
अत्यंत
पिछड़े
जनजातीय
इलाके
में
स्थित
है।
इस
परियोजना
का
निर्माण
कार्य
वर्ष
1972 में
शुरू
हो
चुका
था,
लेकिन
21 साल
बाद
यानि
वर्ष
1993 में बिहार सरकार
के
वन
विभाग
ने
इसे
रुकवा
दिया
था
और
तभी
से
बांध
का
निर्माण
कार्य
ठप्प
हुआ
है।
इस
परियोजना
की
कुल
लागत
2391.36 करोड़
रुपये
आंकी
गई
है,
जिसमें
अभी
तक
769.09 करोड़
रुपये
की
राशि
इस
परियोजना
पर
खर्च
की
जा
चुकी
है।
यानि
शेष
बचे
कार्यों
के
1013.11 करोड़
रुपये
के
सामान्य
घटकों
का
वित्त
पोषण
केन्द्र
सरकार
द्वारा
पीएमकेएसवाई
कोष
से
अनुदान
के
रूप
में
किया
जाएगा।
क्या है परियोजना
मंत्रालय के अनुसार
प्रमुख
रूप
से
दो
घटकों
में
शामिल
यह
परियोजना
बिहार
और
झारखंड
के
जल
संकट
की
समस्या
को
दूर
करने
के
लिए
शुरू
की
गई
थी।
इसके
पहले
घटक
में
67.86 मीटर ऊंचे और
343.33 मीटर
लम्बे
कंक्रीट
बांध
के
निर्माण
को
पहले
मंडल
बांध
नाम
दिया
गया
था,
जिसकी
क्षमता
1160 मिलियन
क्यूबिक
मीटर
(एमसीएम)
जल
संग्रह
करने
की
निर्धारित
की
गयी
थी।
इसके
अलावा
परियोजना
के
तहत
नदी
के
बहाव
की
निचली
दिशा
में
मोहनगंज
में
819.6 मीटर
लंबा
बैराज
और
बैराज
के
दांये
और
बांये
तट
से
दो
नहरें
सिंचाई
के
लिए
वितरण
प्रणालियों
समेत
बनायी
जानी
थी।
मंत्रालय
के
अनुसार
परियोजना
के
पूरा
हो
जाने
पर
झारखंड
के
पलामू
और
गढ़वा
जिलों
के
साथ-साथ
बिहार
के
औरंगाबाद
और
गया
जिलों
के
सबसे
पिछड़े
और
सूखे
की
आशंका
वाले
इलाकों
में
111,521 हैक्टेयर
जमीन
की
सिंचाई
की
व्यवस्था
की
जा
सकेगी।
हालांकि
फिलहाल
अधूरी
परियोजना
से
71,720 हैक्टेयर
जमीन
की
पहले
ही
सिंचाई
हो
रही
है।
इसके
पूरा
हो
जाने
पर
इससे
39,801 हैक्टेयर
अतिरिक्त
भूमि
की
सिंचाई
होने
लगेगी
और
बिहार
व
झारखंड
दोनों
राज्यों
में
सिंचाई
क्षमता
में
बढ़ोतरी
होगी।
मसलन
परियोजना
के
बाद
कुल
1,11,521 हेक्टेयर क्षमता में
इजाफा
होगा,
जिसमें
बिहार
में
सिंचाई
क्षमता
91,917 हेक्टेयर
और
झारखंड
में
सिंचाई
क्षमता
19,604 हेक्टेयर
होगी।
नक्सलवाद में आएगी कमी
केंद्र सरकार द्वारा
इस
परियोजना
को
शुरू
करने
के
फैसले
का
स्वागत
करते
हुए
केंद्रीय
मंत्री
सुश्री
उमा
भारती
ने
कहा
कि
नक्सलवाद
को
आम
जनता
का
संरक्षण
मिलता
है
और
ऐसे
जनजातीय
क्षेत्र
में
जनता
की
बुनियादी
सुविधाओं
और
विकास
की
योजनाओं
को
पूरा
करने
से
नक्सलवाद
की
समस्या
का
समाधान
किया
जा
सकेगा।
उन्होंने
कहा
कि
जहानाबाद
के
इलाके
में
अधूरी
पडी
इस
परियोजना
को
बंद
करने
का
कारण
नक्सलवाद
भी
रहा
है,
लेकिन
केंद्र
सरकार
ने
इस
परियोजना
के
लिए
सुरक्षा
के
कड़े
बंदोबस्त
करते
हुए
पूरा
करने
का
संकल्प
लिया
है।
17Aug-2017
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