ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार जम्मू-कश्मीर के हालातों को सुधारने की दिशा में वहां अवैध रूप से रह रहे दस
हजार से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने की तैयारी में है।
हालांकि देशभर में अवैध शरणार्थियों के रूप में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों की
संख्या 40 हजार है। इस मामले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र सरकार से
रिपोर्ट मांगी है।
केंद्रीय गृह
मंत्रालय के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में गैरकानूनी तौर पर रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या
मुसलमानों को देश से बाहर भेजने के लिए गंभीरता से कार्यवाही की जा रही है। खुफिया
और कानूनी एजेंसियों के आधार पर गृह मंत्रालय यह भी मानकार चल रहा है कि देश में
अलग-अलग जगहों पर रहे रहे रोहिंग्या मुसलमान अब समस्या बनते जा रहे हैं, लेकिन
सरकार भारत में अवैध रूप से रह रहे इन शरणार्थियों को एक कानूनी प्रक्रिया के तहत
धीरे-धीरे म्यांमार भेजे जाएंगे। मंत्रालय के अनुसार ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान जम्मू
कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रह रहे
हैं। हालांकि गृह मंत्रालय के अनुसार म्यांमार के राखिने प्रांत में 2012 में भयानक
हिंसा के बाद ये रोहिंग्या मुस्लिम अवैध रूप से सीमा पार कर भारत के विभिन्न प्रांतों
में रहने लगे थे। सबसे ज्यादा जम्मू-कश्मीर में बताई गई है। दिलचस्प बात है कि
केंद्र सरकार के रोहिंग्य और बांग्लादेश के मुसलमानों को देश के लिए खतरा मानते
हुए वापस भेजने की कार्यवाही का जम्मू-कश्मीर में अवैध तरीके से रह रहे बंगलादेशी और
म्यांमार के मुस्लमानों को राज्य से बाहर भेजने के निर्णय का समर्थन किया है,
जिसमें पार्टी ने अनुच्छेद 35ए का हवाला देते हुए इसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़
को बर्दाशत नहीं की जाएगी,जो राज्य की विधानसभा को स्थायी नागरिकता तय करने का विशेषाधिकार
देता है।
क्या है कानूनी प्रक्रिया
गृह
मंत्रालय के अनुसार भारत में अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने
के लिए विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 3(2) की कानूनी प्रक्रिया है, जिस एक निरंतर प्रक्रिया
जिसके आधार पर राज्य सरकारों और वहां के प्रशासन को भी रोहिंग्या मुसलमानों समेत अवैध
रूप से रह रहे अन्य विदेशी नागरिकों की पहचान करके उन्हें रोकने और वापस भेजने का
अधिकार दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के लिए
भारत की म्यांमार और बांग्लादेश से बातचीत की प्रक्रिया चल रही है। दरअसल भारत ने
1951 में यूएन कन्वेंशन और 1967 के इंटरनेशनल प्रोटोकॉल पर दस्तखत नहीं किए हैं, लेकिन
शरणार्थियों से जुड़े संयुक्त राष्ट्र के कई घोषणा पत्रों पर भारत के दस्तखत हैं।
इसलिए सरकार इन्हें वापस भेजने के मामले पर गंभीर है।
मानवाधिकार ने भी मांगी रिपोर्ट
सूत्रों
के अनुसार पिछले सप्ताह ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी भारत में अवैध रूप से रह
रहे करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के मामले पर केंद्र
सरकार से रिपोर्ट मांगी है। गृह मंत्रालय को आयोग द्वारा भेजे गये नोटिस में एक
माह के भीतर रोहिंग्या मुसलमानों को भेजने के बारे में की जा रही कार्यवाही का
विवरण मांगा है। आयोग ने सरकार से यह भी जवाब मांगा है कि यदि म्यामांर इन अवैध
शरणार्थियों को वापस लेने से मना करता है
तो उस स्थिति में क्या और कौन से कदम उठाएं जाएंगे।
ऐसे पहुंचे भारत
मंत्रालय
के अनुसार म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था, जिसमें रोहिंग्या
मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया। इसके तहत तत्कालीन म्यांमार सरकार रोहिंग्या
मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही थी। इस वजह के कारण 2012 में म्यांमार
के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों इनके लिए खतरा बन गये उत्तरी राखिन में रोहिंग्या
मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इन दंगों के दौरान हजारों रोहिंग्या
मुसलमान अपनी जान बचाने के इरादे से सीमा उल्लंघन करके भारत आ गये। भारत में अवैध
शरणर्थियों के रूप में रह रहे रोहिंग्या भारत सरकार से यहां की नागरिकता की मांग
भी करते रहे हैं, लेकिन खुफिया रिपोर्टों के अनुसार इस दिशा में भारत ने इन्हें
वापस भेजने की प्रक्रिया को अपनाना बेहतर समझा और अब सरकार इस दिशा में आवश्यक कदम
उठाने का दावा कर रही है।
23Aug-2017
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