सोमवार, 6 सितंबर 2021

चौपाल: संग्रहालय की बाट जोहती हरियाणवी संस्कृतिक विरासत


-ओ.पी. पाल 
आधुनिक युग में लुप्त होती भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों की समाज में अलख जगाते आ रहे लोक कलाकार रघुवेंद्र मलिक को करीब साढ़े तीन दशक से जिन सांस्कृतिक विरासत और वस्तुओं का संग्रह करते आ रहे हैं। उनकी इन सांस्कृति और परंपारिक संग्रहित वस्तुओं को सुरक्षित रखने राज्य सरकार की तरफ से कई बार संग्रहालय बनाने की घोषणा भी हो चुकी है, लेकिन अब तक संग्राहलय न मिलने के कारण इस सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण खुद ही करते आ रहे रघुवेंद्र मलिक का मानना है कि सामाजिक और सभ्यता की संस्कृति को पुनर्जीवित करने के मकसद से इन संग्रहित परंपरागत वस्तुओं और विरासत के प्रति समाज को जागरूक करना वह अपना दायित्व समझते हैं। समाज को भी खासकर आज की युवा पीढ़ी को भी अपनी सांस्कृतिक विरासत की समझ होना जरुरी है। उनके पास संग्रहित की गई ऐसी वस्तुएं हैं जिनका आज के युवा और भावी पीढ़ी को कुछ भी पता नहीं है। इन सांस्कृतिक विरासत का वे मुंबई तक प्रदर्शनी के माध्यम से प्रदर्शन भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि बुजुर्गों को अपनी समाज और संस्कृति से युवा पीढ़ी को जीवन से जुड़े अनुभव साझा करना चाहिए। लोक कलाकार रघुवेंद्र मलिक ने हरिभूमि संवाददाता से विशेष बातचीत में खासकर हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी पंरागत वस्तुओं के संग्रह के बारे में बताया कि समूचे राज्य से रसोई, बर्तन, धातुएं, घरेलू सामान, कृषि यंत्र, परिधान, हाथ चक्की, पशुओं के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के अलावा सामाजिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली परंपारिक विरासत से जुड़े विभिन्न वस्तुओं का संग्रह किया गया है। इन वस्तुओं के लिए घर में रंगशाला बनाई हुई, जिसमें इनकी सुरक्षा के लिए परिजनों को भरपूर सहयोग मिल रहा है। इस संग्रह का मकसद यही है कि हमारी संस्कृति का ज्ञान एक दूसरी पीढ़ी तक निरंतर चलता रहना चाहिए। अपनी इस विरासत के बारे में वे गांव व शहरों में भ्रमण करते हैं, तो युवाओं या बुजुर्गो के समूह में अपनी इस संस्कृति और सभ्यता का जिक्र करके उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं। इसी दौरान ऐसा अहसास होता है कि इस युग में हमारी संस्कृति व सभ्यता किस कदर लुप्त होने के कगार पर है। इस संजोयी गई विरासत को देखने के लिए उनकी रंगाशाला पहुंचकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के अलावा फिजी के पीएम रहे महेन्द्र चौधरी व विदेशी पर्यटक भी उनके द्वारा सेहजी गई सांस्कृति धरोहर को सराह चुके हैं। 
कई विधाओं के धनी हैं रघुवेंद्र मलिक 
रोहतक शहर के प्रेम नगर में रहने वाले रघुवेंद्र मलिक एक ऐसे लोक कलाकार है जिनके अभियन की धमक हरियाणा में ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड तक सांस्कृतिक मूल्यों का प्रदर्शन कर चुके हैं। कला और अभिनय के क्षेत्र में कई विधाओं के धनी रघुवेंद्र मलिक का जन्म सोनीपत के गांव रेवड़ा में 23 अक्टूबर 1952 को हुआ था, जो एक फुटबालर और बच्चों को फुटबाल की अकादमिक जानकारी भी देते रहे। रघुवेंद्र मलिक लोक कलाकार, सामाजिक परोधा ह नहीं, बल्कि एक जादूगरी में भी अपना जलवा दिखाने में माहिर हैं। मसलन नजरबंदी का खेल दिखाकर अपने प्रशंसकों को हैरत में डाल देते हैं। यान किसी भी चीज को गायब करना, सिक्के या नोट का स्वरूप बदलने में माहिर मलिक एक जादूगर के रूप में भी पहचाने जाने लगे हैं। 
सत्तर के दशक से अभिनय का जलवा 
अपनी संस्कृति से जुड़े ऐसे कई अनुभव साझा करते हुए मलिक ने बताया कि 1970 से वे कला अभियन के रूप में थियेटर करते रहे हैं। उसी दौरान श्याम बेनेगल के साथ उन्होंने ‘चमत्कार’ और ‘कृषि पंडित’ नामक दो डॉक्यूमेंट्री में सुमित्रा हुड्डा, पींचू कपूर, पायल, युद्धबीर मलिक के साथ एक कलाकार की भूमिका निभाई। यहीं से अभिनय के क्षेत्र में उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ, जिसके बाद बहू रानी, सांझी, छोरा जाट का, फूल बदल व लाडो से लेकर बालीवुड की फिल्म ‘मेरे डैड की मारुति’ तक में एक कलाकार के रूप में भी अपनी संस्कृति की चमक बिखर चुके हैं। अभी भी उनकी लखमी चंद, नंगे पांव और अन फेयर एंड लवली फिल्में आने वाली हैं। इस विरासत के संग्रहण को देखने के लिए 13 फरवरी 1991 को इंडियन इंस्टीट्यूट एंड मास कम्यूनिकेशन के शिष्टमंडल में 15 देशों के मीडियाकर्मियों ने उनसे हरियाणवी कल्चर की जानकारी लेकर उनके प्रयास की प्रशंसा की थी। 
त्यौहारों में भी अहम भूमिका 
लोक कलाकार के रूप में अपनी विधाओं का परिचय देते आ रहे मलिक लुप्त होते जा रहे लोक गीतों और शादी ब्याहों के गीतों से जुड़ी हरियाणवी संस्कृति को भी पुनर्जीवित करने में जुटे है। वे 1985 से होली, दीपावली, तीज जैसे त्यौहारों का हिस्सा ही नहीं बन रहे, बल्कि प्रशासन के साथ मिलकर विशेष आयोजन के जरिए पारंपरिक गीतों के प्रति महिलाओं और लोगों को प्रेरित करने में पीछे नहीं हैं। यही नहीं हरियाणा के विकास पर भी वे सांस्कृतिक विरासत के नाम से प्रदर्शनी लगाकर समाज के लोगों को मान्यताओं से अवगत कराते आ रहे हैं। मलिक को राष्ट्रीय युवा महोत्सव में कला और वस्तु संग्रह के लिए वर्ष 2014 लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिल चुका है। वहीं हरियाणा दिवस पर एक नंवबर 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा ने उन्हें पुरावस्तु पुरस्कार से सम्मानित किया था। जबकि मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने वर्ष 2017 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव के दौरान मलिक को विरासत संरक्षण पुरस्कार से नवाजा है। 
06Sep-2021

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