मंगलवार, 21 सितंबर 2021

मंडे स्पेशल: दूध-दही के प्रदेश में खून की कमी से जूझ रही आधी आबादी

देश में शीर्ष पर रहे प्रदेश अंक बढ़ने के बावजूद चौथे स्थान पर खिसका 
गर्भवती महिलाओं में खून की कमी को दूर करने पर ज्यादा फोकस 
पांच से नौ साल के नौनिहालों की हालात बद से बदतर
ओ.पी. पाल.रोहतक। दूध-दही के खाने के लिए मशहूर हरियाणा की आधी आबादी खून की कमी से जूझ रही है। प्रदेश की 31.6 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। वहीं 62 फीसदी से ज्यादा बच्चों में भी खून की कमी पाई गई है। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद पांच से नौ साल तक के 93 फीसदी से ज्यादा नौनिहालों के हालात तो बद से बदतर हैं। हालांकि सरकार अटल अभियान के तहत कुपोषण व एनीमिया से मुक्ति पाने की जी तोड़ कोशिशों में जुटी है। इसके बावजूद साल 2020 में 46.7 अंक लेकर देशभर में अव्वल रहने वाला प्रदेश साल 2021 में ‘एनीमिया मुक्त भारत’ की जारी रैंकिंग में 55.9 अंक लेने के बावजूद चौथे स्थान पर खिसक गया। इन अंकों की बढ़ोतरी से यह तो साफ है कि सरकार की योजना तो कारगर है, लेकिन अन्य राज्यों की रफ्तार हमारे से कहीं तेज है। इसलिए प्रदेश में एनीमिया से निपटने की गति को बढ़ना होगा और आमजन को इससे जोड़ना पड़ेगा, तभी हम 2022 तक इससे मुक्ति के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।
हरियाणा सरकार केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की पहल पर ‘एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम को अलग ही अंदाज में ‘अटल अभियान’ (एश्योरिंग एनीमिया लिमिट अभियान) के तहत चला रही है। हरियाणा में अप्रैल 2018 में शुरू किये गये इस अभियान का नतीजा दो साल बाद ही एक सकारात्मक योजना के रूप में सामने आया, जब वर्ष 2020 को राष्ट्रीय स्तर पर जारी 29 राज्यों की ‘एनीमिया मुक्त भारत’ की रैंकिंग में प्रदेश ने ऊंची छलांग लगाते हुए पहला स्थान की रैंकिंग में प्रदेश का नाम दर्ज कराया। प्रदेश सरकार के ‘अटल अभियान’-एश्योरिंग एनीमिया लिमिट के तहत 6.6.6 रणनीति को लागू करके प्रदेश में एनीमिया को कम करने के मकसद से इस योजना की घोषणा की थी। इसके तहत मासिक स्कोर कार्ड तैयार किया जा रहा है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 में हरियाणा सरकार कुपोषण और एनीमिया से निपटने के लिए लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में राज्य की सरकार ने ‘एनीमिया मुक्त भारत’ के तहत 1.11 करोड़ को लाभान्वित करने का लक्ष्य तय किया है, जिसमें 12.81 लाख गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के अलावा 97.46 लाख बच्चें भी शामिल हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य पर फोकस करते हुए सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने एनीमिया से बचाने के मकसद से इस साल अभी तक 65.3 फीसदी पंजीकृत और 58.8 फीसदी गर्भवती महिलाओं को आयरन और फोलिक एसिट की गोलियां मुहैया कराई है। दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के चौथे चरण में प्रदेश में कुपोषण और एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी को लेकर जो तस्वीर सामने आई थी, उसके बाद राज्य सरकार ने कम से कम 34 स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किये, जिनमें एनीमिया मुक्त भी एक है। 
सुधार की राह पर एनीमिया 
हरियाणा 2020 में 46.7 अंकों के साथ ‘एनीमिया मुक्त भारत’ में शीर्ष पर रहने के बाद भले ही इस साल चौथे स्थान पर खिसक गया हो, लेकिन अभियान के अंकों बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि जो राज्य एनीमिया सूची में 2018 में 22वें स्थान पर था। जो 2019 में 11वें और अगले साल 2020 में देशभर में अव्वल साबित हुआ। एनीमिया मुक्ति के लिए अप्रैल 2018 में शुरू किये गये सरकार के अटल अभियान के बाद लगातार सुधार देखा गया है। इस साल मार्च में यह एनीमिया मुक्ति का प्रदेश का सर्वाधिक 60.5 फीसदी स्कोर दर्ज किया गया, लेकिन इसके बाद हर माह इस स्कोर का ग्राफ में लगातार गिरावट आ रही है। इसका नतीजा यह हुआ कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में ‘एनीमिया मुक्त भारत’ का यह स्कोर 45.6 फीसदी तक आ पहुंचा, जो किसी चिंता से कम नहीं है। अभी तक प्रदेश में 68.4 फीसदी गर्भवती महिलाओं, 42.8 फीसदी 6-59 माह आयु वर्ग तथा 6.6 फीसदी पांच से नौ साल तक के बच्चों के साथ 64.4 फीसदी कक्षा छह से 12वीं तक के विद्यार्थियों को एनीमिया मुक्त किया गया है। 
एनीमिया संकट में नौनिहाल 
प्रदेश में एनीमिया मुक्त भारत अभियान के ताजा आंकड़े गवाह हैं कि पांच से नौ साल तक के 93.4 फीसदी बच्चे एनीमिया के भंवर में फंसे हुए है। इनमें प्रदेश के झज्जर, महेन्द्रगढ़, फरीदाबाद, सिरसा, गुरुग्राम, पंचकूला, भिवानी, नूहं और चरखी दादरी जिलों में ऐसे नौनिहालों की हालत बद से बदतर है। इस आयु वर्ग के बच्चों को एनीमिया से मुक्त करने में पलवल, करनाल, कैथल और यमुनानगर जिले अभियान कुछ हद तक आगे बढ़ता दिखा है। इसके अलावा प्रदेश में 6 से 59 माह तक के 57.2 बच्चे एनीमिया का दंश झेल रहे हैं। इसके अलावा सरकार के सामने अभी ‘अटल अभियान’ में कक्षा छह से 12 तक के 35.6 फीसदी विद्यार्थियों और 31.6 फीसदी गर्भवती महिलाओं को एनीमिया मुक्त करने की चुनौती खड़ी हुई है। चौथे राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण में हरियाणा की 62 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई थी। महिलाओं में आयरन, विटामिन बी12, विटामिन सी और अन्य पोषक तत्वों की कमी की वजह से एनीमिया पाया गया था। 
क्या हैं एनीमिया और लक्षण 
एनीमिया का तात्पर्य मानव शरीर में खून की कमी होना है। जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है तो रक्त से संबंधित एनीमिया जैसी गंभीर बीमारी सामने आती है। एनीमिया के लक्षण त्वचा का सफेद दिखना, चक्कर आना, सांस फूलना, हृदयगति का तेज होना और चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना है। एनीमिया से बचाव के लिए आहार में कुछ बदलाव करना जरुरी है और शरीर में आयरन की कमी को पूरा करने के लिए खाने में चकुंदर, गाजर, ट्माटर और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन फायदेमंद है। अगर शरीर में खून यानी एनीमिया स्टेटस अच्छा होगा तो ऐसी महिलाएं स्वस्थ बच्चे को जन्म देंगी। 
महिलाओं के स्वास्थ्य की योजनाएं 
प्रदेश सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर बड़े कदम उठाए हैं, जिसके तहत राज्य में संस्थागत प्रसूति 93.7 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ गई है। इसके लिए प्रदेश में 24 घंटे प्रसूति सुविधाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया गया है। प्रदेश में इसके अलावा केंद्र द्वारा ई-स्वास्थ्य सेवाओं के तहत ई-संजीवनी ऐप को शुरू किया गया है। प्रदेश में वर्ष 2019-20 में पहली बार राज्य में 93 प्रतिशत टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त किया गया। 
जागरूकता अभियान 
हरियाणा स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश को एनीमिया मुक्त करने की दिशा में चलाए गये कार्यक्रमों में बीसीसी यानी बिहेवियर चेंज कम्युनिकेशन भी शामिल है, जिसके तहत लोगों के बिहेवियर(व्यवहार) को बदलने की कोशिश हो रही है। वहीं टी-3 स्ट्रेटजी कार्यक्रम के तहत टेस्ट, ट्रीट और टॉक पर फोकस किया जा रहा है। इसके अलावा फूड डाइवर्सिफिकेशन कार्यक्रम के तहत लोगों को आयरन युक्त खाने के बारे जागरूक भी किया जा रहा है। 
20Sep-2021

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