मंगलवार, 16 नवंबर 2021

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति की पैरोकार अर्चना सुहासिनी

लोकगीतों के साथ फॉक डांसिंग ने दिलाई प्रसिद्धि 
-ओ.पी. पाल 
रियाणा की प्रसिद्ध फोक डांसर अर्चना सुहासिनी एक ऐसी बहु प्रतिभा वाली कलाकार हैं, जिनमें शायद ही कोई कला ही बाकी रह गई होगी अन्यथा उनकी सर्वसंपन्न कला का हुनर सार्वजनिक है। मसलन हरियाणवी अभिनेत्री, लेखक, कवयित्री, शिक्षाविद, रेडियो व टीवी एंकर, वीडियो व फोटोग्राफी, चित्रकारी जैसी कलाओं से इतर जूडो कराटे और खेती बाड़ी जैसे तमाम कार्यो में निपुण अर्चना सुहासिनी में खासकर हरियाणवी संस्कृति और संस्कार कूट-कूटकर भरे हुए हैं, जिसे वह अपनी कला के हुनर से बढ़ावा देने में निरंतर जुटी हुई हैं। जैसा कि सुहासिनी का अर्थ सुंदर हंसने वाली यानि कलाकार अर्चना पर ‘मुस्कुराकर, दर्द भूलकर, रिश्तों में बंद थी दुनिया सारी, हर पग को रोशन करने वाली, वो शक्ति है एक नारी’ वाला मुहावरा सटीक बैठता है। अभिनय के रूप में बॉलीवुड तक सफर करने वाली अर्चना सुहासिनी एक ऐसा नाम है, जिसने समाज की बेड़ियों की जकड़न के बीच संघर्षशील जीवन को कलाओं की बुलंदियों का चोला पहनाकर देश व समाज को ही नहीं, बल्कि अपने सूबे हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। हरियाणवी संस्कृति को बचाने के लिए फॉक कला और संस्कृति विशेष योगदान के लिए राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सात रोड हिसार की हिंदी प्राध्यापिका अर्चना सुहासिनी को प्रदेश सरकार ‘हरियाणा गौरव’ अवार्ड से भी नवाज चुकी है। अर्चना सुहासिनी ने अपने संघर्षशील जीवन से लेकर कलाकार के रुप में बिंदास जीवन तक के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई विस्तृत बातचीत के दौरान साझा किया। 
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प्रदेश के हिसार शहर के गूजरान पड़ाव में 30 नवंबर 1972 को बहुत ही रूढ़िवादी परिवार में जन्मी अर्चना सुहासिनी का जीवन बेहद संघर्षशील रहा। इसके बावजूद उसने अपनी बहु प्रतिभा रूपी कला से वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सुहासिनी ने अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताया कि जब उसने पढ़ाई शुरू की तो उसके गुर्जर समाज के साथ गांव वालो ने विरोध किया और उनके पिता विनोद कुमार पर दबाव डाला, कि बेटी को पढ़ाकर क्या करेंगे। अच्छा होगा चूल्हा-चौका कराकर शादी करा देना। कहीं ऊंच-नीच हो गई तो समाज में बदनामी हो जाएगी। लेकिन एक विद्यालय में लाइब्रेरी में कार्यरत उसके पिता ने इसकी परवाह किये बिना बेटी को शिक्षित करने जिद पकड़ ली। परिवार के इसी सहयोग का नतीजा आज सामने है कि वह उस अपने क्षेत्र की गुर्जर समाज की पहली शिक्षित बेटी ही नहीं बनी, बल्कि उसने समाज व प्रदेश का जिस तरह से मान बढ़ाया है उसे देखकर आज वही लोग इस बेटी की तारीफ ही नहीं बल्कि सम्मान करते नहीं थकते, जो उसकी पढ़ाई और स्कूल जाने का विरोध करते थे। अपने कांटेभरे सफर को लेकर सुहासिनी का कहना है कि समाज व प्रदेश में उसकी एक दबंग महिला के रूप में भी पहचान है। गलत करो मत और गलत सहो मत जैसे संस्कार भी परिवार से ही मिले, जो किसी भी नारी को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा काम करते है। उन्होंने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह 11वीं कक्षा में थी और स्कूल से घर आते समय किसी लड़के ने उस पर फब्तियां कसी, जिसके बाद वह घर आकर खूब रोई, लेकिन पिता ने उसे आत्मरक्षा का पाठ पढ़ाकर उसमें आत्मरक्षा के लिए दबंगई का जज्बा जगा दिया। उन्होंने बताया कि वह गणित से बहुत डरती थी और स्कूल में कभी प्रार्थना नहीं की और न ही मंच पर जाने की हिम्मत हुई। इसके बावजूद बचपन में ब्याह शादी जैसे घरेलू कार्यक्रमो में गीत सुनते-सुनते उसमें हरियाणवी संस्कृति और लोक गीतों के प्रति रूझान बढ़ने लगा। एक मोड ऐसा आया जब इंटरमिडिएट करते ही परिवार वालों पर शादी करने का दबाव भी बना, लेकिन वह आगे कॉलेज में उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहती थी। कालेज के लिए गांव, समाज व परिवार के अन्य लोगों ने यहां तक कहा कि अब वह छोरो के साथ कालेज में पढ़ेगी? यहां भी उसके लिए पिता की जिद्द ने संजीवनी का काम किया और किसी परवाह किये बना पिता ने उसे कालेज में दाखिला दिलाया और वह बीए करने में सफल रही। 

गृहस्थी में आते ही बदली जिंदगी 

उन्होंने बताया कि बीए पास होते ही परिवारवालों ने उसकी शादी हांसी के गांव ढाणीपाल में कर दी, लेकिन सौभाग्य से उसकी ससुराल वालों ने भी उसकी कला को समझा और भरपूर साथ दिया। खास बात ये भी है कि ससुराल वालों के सहयोग की बदौलत वह हिंदी व राजनीति शास्त्र में डबल एमए, एमफिल के अलावा ग्राम विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा और फॉक डांसिंग का डिप्लोमा तक करने में कामयाब रही। उसके लिए साल 1999 इतना लकी रहा, जब उसे पात्र शिक्षिका की नौकरी मिली और पहली बार कृष्णलीला में डांस करने का मौका मिला। इसी साल रेडियो पर भी मौका मिला। यही वो मोड था, जहां से उनका लोक साहित्य के रुझान को विस्तार मिला तथा सांग, डांस, हरियाणवी रामलीला, कृष्ण नाटय लीला कर मंचन की शुरूआत हुई। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2002 में वह टीवी में आई। उसकी इन विभिन्न विधाओं की कला को बुलंदियों तक पहुंचाने में पिता विनोद के अलावा ससुरालियों और पति जसबीर सिंह बटार व बेटे शुभम का प्रोत्साहन लगातार मिल रहा है। 

नारी शक्ति को किया मजबूत 

लोक कलाकार एवं अभिनेत्री अर्चना सुहासिनी ने आर्चीज दमोडा सांस्कृतिक डांस ग्रुप बनाकर उसमें हरियाणवी संस्कृति की समझ रखने वाली 80 साल तक की बुजुर्ग ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा है। खास बात ये है कि इस दल की महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक के लोकगीतों की प्रस्तुति, लोकगीतों और लोकनृत्यों के साथ हरियाणवी हस्तशिल्प कला, भीति चित्रों मांडने, सांझी, फुलझड़ी इत्यादि में भी महारत हासिल है। प्रसिद्ध महिला कलाकार अर्चना सुहासिनी इस आधुनिक युग में कोरियोग्राफी के बढ़ते चलन से लुप्त होते फोक नृत्य को बढ़ावा देने में जुटी हैं, जो एक शिक्षिका की जिम्मेदारी निभाते हुए वह अपने विद्यालय की छात्राओं को फोक डांस और अन्य संस्कृति आधारित कलाओं में निपुण कर रही है। वहीं छात्राओं के परिवारों की महिलाएं भी इस लोकगीतो व लोकनृत्य में हिस्सेदार बनकर दिलचस्पी दिखा रही हैं। अर्चना सुहासिनी देशभर में हरियाणवी लोक कला और संस्कृति में शामिल पारंपरिक वेषभूषा, बोल चाल, भाषा, पहनावा, खानपान और रीतिरिवाजों को पुनर्जीवित करने के लिए ऐसी अलग जगा रही है, जिसकी गूंज विदेशो तक भी सुनाई देती है। 

बागड़ क्षेत्र की संस्कृति की भूमिका 

सुहासिनी का कहना है कि हरियाणवी संस्कृति को समृद्ध करने में बागड़ क्षेत्र की संस्कृति के महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें खासकर बागड़ी चित्ताणा कला के बिना हरियाणवी लोक कला अधूरी है। हरियाणवी संस्कृति की धरोहर के रूप इस कला को संरक्षित करने के लिए वह दल की महिला कलाकारों के साथ बागड़ क्षेत्र में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त लोक कला के बागड़ी चित्ताणा को बढ़ावा देने में जुटी हैं। मसलन उन्होंने अपनी लोक कला में जन्म, छठी, ब्याह और मृत्यु तक के रीतिरिवाजों के गीतों को समाहित किया है। ग्रुप द्वारा दीपावली, धनतेरस, अहोई अष्टमी, घणघोर, गूगा नवमी, घरबत, बेहमाता और ब्याह आदि के चित्ताणा भी घर की दीवारों बनाकर महिलाएं इस संस्कृति को संजो रही हैं। इसमें बागड़ क्षेत्र में गाए जाने वाले लोकगीत और भजन एवं लोक नृत्य पर वह कार्याशालएं भी कर रही हैं, जिसमें घरेलू बर्तनों, कुठला, कोठी, ठाठिया आदि पर चित्ताणा बनाए जाते हैं।

बॉलीवुड और हरियाणवी फिल्मों में अभिनय 

बहु प्रतिभाशाली कलाकार सुहासिनी ने बालीवुड अभिनेता गुलशन ग्रोवर के साथ ‘नंगे पांव’ तथा अभिनेता राजकुमार के साथ ‘तुर्रम खां’ समेत कई फिल्म में अभिनय से बड़ी पहचान बनाई। हरियाणवी फिल्मों में भी अर्चना के अभिनय की कोई थाह नहीं। हाल ही में हरियाणा दिवस पर रिलीज हुई हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में मुख्य अभिनेत्री पम्मी की बुआ की भूमिका में सुहासिनी का अभिनय हरियाणवी संस्कृति का परिचायक साबित हुआ। उन्होंने कई लघु फिल्मों में भी अभिनय किया है। सुहासिनी अपनी बहु प्रतिभाशाली कला की प्रसिद्धि के लिए विभिन्न पत्रिकाओं व उपन्यास आदि की कवर गर्ल के रूप में भी सामने आई हैं। हरियाणा सरकार द्वारा जुलाई 2019 में हरियाणा गौरव अवार्ड के अलावा उन्हें टीम शिक्षा दीक्षा अवार्ड का सम्मान भी दिया जा चुका है, जो इससे पहले प्रदेश में शिक्षकों के आंदोलन में भी सक्रीय होकर नेतृत्व करती रही हैं। सामाजिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भागीदारी करके सुहासिनी समाज मे व्याप्त कुरीतियां मृत्युभोज प्रतिबन्ध,दहेज पर रोक के लिए भी जागरूकता का काम कर रही हैं। 

टीवी व रेडियो कलाकार 

अर्चना सुहासिनी बहु प्रतिभा कलाकार ही नहीं, बल्कि लोकगीतों पर कार्य करते हुए उन्होंने 17 साल तक आल इंडिया रेडियो पर जीवंत कार्यक्रम पेश किये हैं और डीडी न्यूज चैनल पर एंकरिंग भी की है। वहीं टीवी चैनल एवन तहलका और एंडी हरियाणा पर लोकगीतों और लोकनृत्यों की प्रस्तुतियां देने के अलावा धार्मिक अवसरों पर गीत, भजन और लोकनृत्य जैसी प्रस्तुतियां देकर सुहासिनी की सैकड़ो वीडियों यूट्यूब पर सार्वजनिक हैं। वह हरियाणा के अलावा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सैकड़ो सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। उनके नेतृत्व वाला सांस्कृतिक ग्रुप अंतराष्ट्रीय गीता जयंती, कला साधक संगम, हरियाणवी फिल्म फेस्टिवल, मैराथन, राहगीरी, पिंकाथन पानीपत, फ्री स्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता आदि समारोह में अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति को प्रोत्साहित करने में जुटा हुआ है। 

 15Nov-2021

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