सोमवार, 24 अप्रैल 2023

साक्षात्कार: साहित्य में सकारात्मक दृष्टिकोण की अहम भूमिका: डा. प्रद्दुम्न भल्ला

साहित्यिक रचनाओं में सामाजिक सरोकार के साथ किया आध्यात्मिक रस का समावेश
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. प्रद्युम्न भल्ला ‘पूर्ण’ 
जन्मतिथि: 20 अक्टूबर 1967 
जन्म स्थान: कैथल 
शिक्षा: एमए(अंग्रेजी, हिंदी, शिक्षा, जन संचार, नैदानिक मनोविज्ञान), एमएड, पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति:हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में राजपत्रित अधिकारी।
संपर्क: 508, सेक्टर-20, अर्बन एस्टेट, कैथल(हरियाणा) मोबा. 9812091069
ई-मेल : pradumanbhalla67@gmail.com
 
 --BY—ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में हिंदी के संवर्धन के लिए साहित्यकार, कवि एवं लेखक अपनी विभिन्न विधाओं में साहित्य साधना के माध्यम से समाज को नई दिशा देने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही प्रसिद्ध साहित्यकारों में शुमार हरियाणा के डा. प्रद्युम्न भल्ला ‘पूर्ण’ ने सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर फोकस करते हुए अपनी लेखनी चलाई और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने साहित्यिक रचना संचार को विस्तार दिया है। डा. भल्ला ने शायद निरंकारी मिशन से मिले ब्रह्मज्ञान की वजह से अपनी साहित्यिक रचनाओं में आध्यात्मिक रस का समावेश किया,जो उनकी दोहा विधा में साफतौर से नजर आता है। हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में एक राजपत्रित अधिकारी पद पर सेवा दे रहे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक डा. प्रद्युम्न भल्ला ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर की गाथा में कई अनुछुए पहलुओं को उजागर किया। 
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रियाणा के साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला का जन्म 20 अक्टूबर 1967 को कृष्ण कुमार के परिवार में हुआ। उनका कहना है कि उनके परिवार में दूर-दूर तक साहित्य से किसी का कोई नाता नहीं रहा। हां! उनकी दादी धार्मिक प्रवृत्ति की अवश्य थी और मेरा नाम भी प्रद्युम्न उन्हीं का पौराणिक संदर्भों से दिया गया नाम है। यदा-कदा जब वह कुछ लिखने का प्रयास करते थे, तो वह नहीं जानते थे कि उस समय उनका यह लेखन कविता या या कहानी होती थी? कुछ भी हो, लेकिन वह उसे देखकर उनके भीतर ऊर्जा पैदा करने की कोशिश करती थी। उनकी मेरी पहली रचना ‘सौदा’ 1984 में कैथल से निकलने वाले एक दैनिक अखबार ‘हरियाणा लीडर’ में प्रकाशित हुई थी। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा, जिसके लिए उन्हों अपने परिचितों और मिलने-जुलने वालों से सराहना मिली। हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी भाषा के ज्ञाता डा. प्रद्युम्न भल्ला कहते हैं कि उनका विधिवत साहित्यिक सफर 1986 से आरंभ हुआ, जब वह भगवान प्रियभाषी, सुरेश जांगिड़ उदय, पृथ्वीराज अरोडा, यश खन्ना नीर आदि के संपर्क में आए और उन्होंने अपना लेखन लघुकथा से प्रारंभ किया। साल 1987 में उन पर लघुकथा का जुनून कुछ इस कदर हावी था कि उन्होंने उस समय एक लघुकथा-संग्रह ‘सारांश’ संपादित किया। इस संग्रह में 100 लघु कथाकार, छः लेखकों की परिचर्चा में भागीदारी एवं दो आलेख शामिल थे। उन्हें प्रसन्नता है कि यह कृति उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई। उनका मानना है कि सकारात्मक सोच के साथ यदि आप लेखन के प्रति समर्पित हैं और ईमानदार हैं, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, भले ही इसमें कुछ वक्त लगे। हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी, हरियाणा साहित्य अकादमी, भाषा विभाग पंजाब, हिमाचल एवं देश की कई संस्थाओं से सम्मान मिलना इसी बात का प्रतीक है। उनकी साहित्यिक रचनाओं का फोकस सदैव मानवीय मूल्यों और सकारात्मक सोच के प्रति रहा है, जिसमें उन्होंने भूख, सास-बहू, बच्चे, नैनीताल, ताजमहल, जंगल, परदेस, मजदूर, धूप, भ्रष्टाचार, पर्यावरण, दफ्तर, सांत्वना, समाज, वक्त, मेहनत, हंसी आदि 34 विषयों पर दोहों की रचना भी की। उन्होंने समाजिक परिवेश में जो कुछ भी देखा, उसे शिद्दत के साथ महसूस करके अपने लेखन से समाज को एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। निरंकारी मिशन से जुड़े हुए होने के कारण उन्होंने गुरुभक्ति व अध्यात्म शीर्षकों को लेकर प्रभु प्रेम पर अत्यधिक दोहे लिखे हैं। यानी उन्होंने इन दोहों द्वारा सांसारिक प्रेम से आध्यात्मिक प्रेम तक की यात्रा भी तय की है। उनकी यह साहित्यिक यात्रा पिछले करीब साढ़े तीन दशक से अनवरत जारी है और उनके लेख साहित्यिक पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हो रहे हैं। वहीं वे आकाशवाणी और दूरदर्शन में अतिथि लेखक के रुप में भी शामिल हुए और साहित्यिक क्षेत्र में उन्होंने एक प्रसिद्ध एंकर, मंच-कवि और प्रेरक वक्ता की पहचान बनाई है। 
आधुनिक युग में पाठकों में कमी 
डा. भल्ला का कहना है कि वर्तमान युग में साहित्य की स्थिति यद्यपि अच्छी नहीं है, लेकिन फिर भी पुस्तक-प्रकाशन और साहित्य-लेखन में कमी नहीं आई है। यह अलग बात है कि इंटरनेट युग होने के कारण साहित्य के पाठक कम हुए हैं और व्यक्ति पुस्तकों से दूर होता जा रहा है। मगर इसके बावजूद साहित्य-लेखन और प्रकाशन निर्बाध गति से जारी है। यह भी नहीं कह सकते कि युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि नहीं है। हां! उनकी अभिरुचि के मायने अवश्य बदले हैं। जिस साहित्य को हम मानते आए अथवा मान रहे हैं, युवा पीढ़ी उसके दूसरी तरफ चलकर इसे रूमानी और भागदौड़ की जिंदगी से सुकून पाने के जरिए के रूप में देखती है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं कर पाती। यह एक बड़ी त्रासदी पूर्ण स्थिति है। दरअसल आज की युवा पीढ़ी सफलता का शॉर्टकट तलाश करती है और तकनीकी युग में शायद बहुत सी चीजें उन्हें उपलब्ध भी हैं, जो साहित्यकारों के गले नहीं उतरती। वे मानते हैं कि युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए साहित्य अकादमियों की एक बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है और उनके लिए कार्यक्रम आयोजित करते हुए प्रौढ़ साहित्यकारों को भी प्रमुखता के साथ शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रौढ़ साहित्यकारों के पास अनुभव और शब्द भंडार का खजाना है। 
पुस्तक प्रकाशन 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला की अब तक बाल साहित्य, दोहा, नाटक विधा के अतिरिक्त अंग्रेजी साहित्य समेत 19 पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है, जिसमें चार कहानी संग्रह-रिसते-रिश्ते, एक महाभारत और, तल्ख़ियां, साहब का कुत्ता, पांच काव्य संग्रह में एहसासों की आंच, मैं फिर लौटूंगा, बड़ी होती लड़की, ताजा हवाओं के लिए,जग ढूंढता है जिसको जैसी पुस्तकें सुर्खियों में हैं। इसके अलावा तीन लघुकथा संग्रह-सारांश, मेरी पैंसठ लघुकथाएं, लघुदंश, दो बाल साहित्य-खुश्बू और सलोना बचपन, एक नाटक- मानव का मुकदमा, एक दोहा संग्रह-उमड़ा सागर प्रेम का और अंग्रेजी पुस्तक ड्युएलिटीज इन लाइफ भी उनकी कृतियों में शामिल है। उन्होंने प्रौढ़-शिक्षा का महत्व महात्मा गांधी का व्यक्तित्व पर दो अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं, जबकि उन्होंने दो पुस्तकों का अंग्र्र्रेजी में अनुवाद भी किया है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला को साल 2021 के लिए ढ़ाई लाख रुपये के ‘बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान’ से अलंकृत किया जा रहा है। इससे पहले अकादमी उनकी कहानी साहब का कुत्ता को तृतीय पुरस्कार दे चुका है। हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था के डा. हरिशचंद मिड्ढा स्मृति साहित्य सम्मान के अलावा जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर डा. भल्ला को विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी और साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अब तक दो सौ से ज्यादा पुरस्कार एवं सम्मान से नवाजा जा चुका है। कई बड़े कार्यक्रमों में मंच का संचालन भी कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से उसकी एक कहानी को तृतीय पुरस्कार के लिए चयन करते हुए सम्मानित किया था। प्रदेशभर में 90 कहानियों में यह तीसरे नंबर पर आई थी। उनकी नाटक पुस्तक आदमी दा मुकदमा को भी हरियाणा पंजाब साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। 
  24Apr-2023

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