सोमवार, 10 अप्रैल 2023

साक्षात्कार: सामाजिक सरोकार में साहित्य की अहम भूमिका: डा. ज्योति

सामाजिक विसंगतियों के प्रति समाज को सजग करने की मुहिम 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. ज्योति लठवाल 
जन्मतिथि: 4 सितंबर 1988 
जन्म स्थान: जालंधर(पंजाब) 
शिक्षा: बीए एवं एमए(हिंदी), नेट व जेआरएफ(प्रथम श्रेणी), पीएचडी। 
संप्रत्ति: सहायक प्रोफेसर(हिंदी विभाग) हिंदू कन्या महाविद्यालय सोनीपत। 
संपर्क: जीवन बिहार, देवड रोड, गली नंबर-4 सोनीपत (हरियाणा)। मोबा- 9466014274 
BY--ओ.पी. पाल
हिंदी साहित्य के सृजन के लिए हरियाणा के साहित्यकार एवं लेखक विभिन्न विधाओं में संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने में जुटे हैं। इसी मकसद से युवा लेखकों में शामिल डॉ. ज्योति लठवाल ने सामाजिक विसंगतियों को उजागर करके समाज को आईना दिखाने की मुहिम के साथ अपनी रचना संसार को आगे बढ़ाया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों में खासतौर से दहेज प्रथा जैसी बुराई के प्रति समाज को सकारात्मक विचारधारा का पाठ पढ़ाने के लिए डा. ज्योति ने पुस्तक का सृजन करने का बीड़ा उठाया है। इस आधुनिक युग में भी अपनी सभ्यता, नैतिक मूल्यों और संस्कृति से दूर होते समाज को अपनी सामाजिक परंपराओं और कर्तव्यों के प्रति जागरुक करने के लिए साहित्यिक लेखकों की अहम भूमिका हो सकती है। ऐसा मानने वाली युवा लेखक और सहायक प्रोफेसर डा. ज्योति लठवाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर और सामाजिक अनुभवों को साझा करते हुए कई अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया है। 
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रियाणा के सोनीपत जिले में गोहाना तहसील के गांव सीरसाढ की मूल निवासी डा. ज्योति लठवाल का जन्म 4 सितंबर 1988 को पंजाब में जालंधर के आर्मी हॉस्पिटल हुआ। सेना से सेवानिवृत्त उनके पिता दिलावर सिंह लठवाल उस समय जालंधर में कार्यरत थे। उन्होंने बताया कि जब वह तीन साल की थी तो उनका परिवार अपने मूल गांव सीरसाढ लौट आया। गांव में सरकारी विद्यालय में कभी कक्षा लगती थी और कभी नहीं। इसलिए पिता ने उसका दाखिला गोहाना के एक निजी विद्यालय में करवा दिया, जहां रोजाना गांव से ही आना जाना हुआ करता था। पिता उसकी और छोटी बहन अंतिम की शिक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील रहे। इसलिए जब वह दस साल की रही होगी, तो वे पिता के साथ आर्मी क्वार्टर में रहने के लिए दिल्ली चले गए। इसका मकसद हम दोनों बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाना था। उसी वर्ष हमारे घर में हम दोनों बहनों से छोटे मेरे भाई मोहित का जन्म हुआ। मेरे पिता की सेना से सेवानिवृत्ति के बाद हम रहने के लिए सोनीपत आ गए, जहां तीनो भाई बहनों ने शिक्षा ग्रहण की। सोनीपत में उन्होंने जीवीएम कन्या महाविद्यालय में स्नातकोत्तर (हिंदी ) में दाखिला लिया, तो एक बार जब कक्षा में शिक्षक द्वारा यह पूछा गया कि आने वाले समय में हिंदी में पीएचडी कौन-कौन करना चाहेगा, तब कक्षा में उनके अलावा किसी ने भी अपना हाथ ऊपर नहीं उठाया। इसके लिए उन्होंने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर में उन्होंने नेट जेआरएफ की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की। पीएचडी के लिए उनका दाखिला महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के हिंदी विभाग में हो गया और वह रोहतक में अपनी बुआ के घर रहने लगी, जहां करीब 6 महीने में उसके लिए नया माहौल था। इसलिए वह कक्षा के बाद अपना ज्यादा समय एमडीयू के पुस्तकालय में ही व्यतीत करने लगी। पुस्तकालय में उसे पढ़ने के लिए पुस्तकों ने अपनी तरफ आकर्षित किया। पठन पाठन के लिहाज से बिल्कुल उसके अनुकूल ऐसा माहौल मिला कि इसी दौरान उनके मन में कुछ लिखने के लिए अभिरुचि पैदा हुई। वहीं उसका पीएचडी में शोध-छात्रा के रूप में चयन भी हो गया और लगभग 3 वर्ष में उन्होंने अपना शोध-कार्य पूरा करने के साथ साहित्यिक क्षेत्र में अपनी दो पुस्तकों का सृजन तक कर डाला। उनका कहना है कि हरियाणा साहित्य अकादमी के पुरस्कार ने उन्हें अपना जीवन साहित्य को समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है। इस मुकाम तक पहुंचाने में मेरे परिवार विशेषकर पिता का सहयोग रहा है। 
सामाजिक मुद्दो पर लेखन का फोकस 
डा. ज्योति ने बताया कि उनके साहित्य में उनके लेखन का मुख्य फोकस समाज की विसंगतियों को लेकर रहा, जिसे उसने बहुत करीब से देखा और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक घटनाओं ने खुद की रचनात्मकता को भी प्रभावित किया है। समाज के कुछ सभ्य चेहरों के पीछे छिपे दूसरे चेहरो के कारण दहेज प्रथा जैसी समस्या समाज को अंदर से खोखला कर रही है। उनका मानना है कि बेटियों के साथ-साथ अगर बेटों को भी अच्छे संस्कार दिए जाएं, तो समाज में एक अच्छा परिवर्तन देखने को मिल सकता है। उनकी तीसरी पुस्तक सामाजिक सरोकार से जुड़ी दहेज प्रथा जैसी बुराई को लेकर ही सृजित की जा रही है, ताकि समाज को सकारात्मक विचाराधारा के साथ जाग्रत किया जा सके। इससे पहले उन्होंने बाजारवाद ने कैसे समाज को अपनी तरफ आकर्षित किया और किस प्रकार से आज की युवा पीढ़ी के अंदर नैतिक मूल्यों का विघटन हो रहा है जैसे मुद्दो पर दो पुस्तकों का सृजन किया। 
युवाओं में गंभीरता आवश्यक 
इस आधुनिक युग में हिंदी साहित्य की विधाओं कविता, कहानी, उपन्यास में शैलीगत और शिल्पगत खूब बदलाव हुआ है। सोशल मीडिया पर रोजाना नए लेखक पैदा होने से साहित्य के स्तर का क्षरण हुआ है। मसलन पहले लेखक कम और पाठक ज्यादा होते थे, लेकिन आज के इस युग में एक दम उलट नजर आ रहा है, जिससे लेखन पर गहन चिंतन विमर्श भी कम होना चिंता का विषय है। आज की युवा पीढ़ी अपने संस्कारों को खोती जा रही है। इसलिए युवा पीढ़ी में एक ठहराव, गंभीरता और गहराई की आवश्यकता है। कंप्यूटर और इंटरनेट के इस जमाने में भी उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना बेहद जरूरी है। आज की युवा पीढ़ी पुस्तक खरीद कर पड़ने की बजाय अपने मोबाइल में ही मनोरंजन के पलों को तलाशती रहती है। अगर यह सोशल मीडिया थोड़ी जिम्मेदारी लेकर साहित्य को मनोरंजन का जरिया बनाए तो यह बहुत ही लाभकारी होगा। 
पुस्तक प्रकाशन 
युवा लेखक एवं साहित्यकार डॉ. ज्योति लठवाल ने तीन पुस्तकों का सृजन किया है। इनमें हिंदी कहानी और बाजारवाद तथा हिंदी कहानी का दशवा दशक: मूल्य विघटन की समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा उनके दस शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं तथा 17 शोधपत्र राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। यही नहीं उनके पांच शोध पत्र 05 शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीयों तथा 12 शोध पत्र राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में प्रस्तुत किए गये हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से युवा साहित्यकार डा. ज्योति को वर्ष 2017 के लिए स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से नवाजा है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने उन्हें 50 हजार रुपये का यह पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा उन्हें सारथी जनसेवा ट्रस्ट, सोनीपत ने साल 2022 के बेस्ट वूमेन ऑफ द ईयर से सम्मानित किया है। इसके अलावा वर्ष 2022 में महिला काव्य मंच सोनीपत ने भी इस युवा लेखक को सम्मानित किया गया। 
10Apr-2023

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