गुरुवार, 31 मार्च 2016

सड़क हादसों में मददगार को तंग नहीं करेगी पुलिस

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
केंद्र सरकार के जारी दिशानिर्देशों को दी मंजूरी 
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में अब सड़क दुर्घटना में जख्मी लोगों को मदद करने और अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों को अब पुलिस या अन्य कोई भी अधिकारी जांच के नाम पर परेशान या कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बना सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार के जारी दिशानिर्देशों पर मुहर लगाते हुए ऐसा एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को न्यायाधीश वी गोपाला गौड़ा और न्यायाधीश अरूण मिश्रा की पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार से कहा कि वह मुसीबत के समय दूसरों की मदद करने वाले नेक लोगों को कोई अधिकारी प्रताड़ित न कर सके इसका प्रचार कराए, ताकि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के डर को दूर किया जा सके। मसलन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अब सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करने वाले नेक लोगों को अब पुलिस न तो तंग करेगी और न ही उन्हें कानूनी झंझटों से दो-चार होना पड़ेगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व न्यायाधीश के एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने पिछले साल सितंबर में ही इस दिशा में दिशानिर्देश जारी कर एक अधिसूचना जारी की थी। समिति की सिफारिश में कहा गया था कि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने से डरने की जरूरत नहीं है। इस समिति में सड़क परिवहन मंत्रालय के पूर्व सचिव एस सुंदर और पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक निशी मित्तल भी शामिल थीं।
ये थी कोर्ट समिति की सिफारिशें
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली गठित तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों में राज्य सड़क सुरक्षा परिषदें गठित करने, अंधियारे स्थानों की पहचान का प्रोटोकॉल विकसित करने, उन्हें हटाने और उठाए जाने वाले कदमों के प्रभाव की निगरानी आदि करना शामिल था। यही नहीं समिति ने शराब पीकर या तेज गति में वाहन चलाने, लाल बत्ती पार करने और हेल्मेट या सीट बेल्ट के नियम तोड़ने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी सुझाव दिया था। गौरतलब है कि विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह माना है कि सड़क दुर्घटना में मौत की सबसे बड़ी वजह उचित तथा समय पर इलाज न मिलना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि दुर्घटना के एक घंटे के भीतर इलाज मिले तो मौत का आंकड़ा कम हो सकता है।
क्या थे दिशा निर्देश
केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट की गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर जारी दिशानिर्देशों में कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति की जान बचाने की खातिर उसे किसी नजदीकी अस्पताल ले जाता है, तो उसे केवल उसका पता लिखकर तुरंत जाने की अनुमति होगी और अस्पताल पहुंचाने वाले व्यक्ति को को उसके लिए उत्तरदायी नहीं माना जाएगा। वहीं पुलिस अथवा आपातकालीन सेवाओं को सड़क दुर्घटना के बारे में दूरभाष से सूचित करने वाले व्यक्ति को भी किसी प्रकार बाध्य नहीं करने की बात कही गई। यदि पीड़ित की सहायता करने वाला व्यक्ति दुर्घटना के बारे में स्वेच्छा से पुलिस की मदद करना चाहता है तो पुलिस जांच के लिए उससे केवल एक ही बार में पूछताछ कर सकेगी। वहीं सरकारी और और सार्वजनिक अस्तपतालों के अलावा सभी निजी अस्पतालों में दुर्घटना की आपातकालीन स्थिति में डाक्टर द्वारा लापरवाही बरतने को व्यावसायिक दुर्व्यवहार की श्रेणी में शामिल करते हुए उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाने के निर्देश शामिल रहे। अधिसूचना के अनुसार दिशा-निदेर्शों का पालन न करने पर संबंधित अधिकारियों द्वारा उनके विरूद्ध कार्रवाई करना वांछित किया गया।
मुफ्त इलाज करेंगे अस्पताल
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से भी सभी पंजीकृत सार्वजनिक एवं निजी अस्पतालों को दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं कि वे सहायता करने वाले व्यक्ति से अस्पताल में घायल व्यक्ति के पंजीकरण और दाखिले के लिए किसी प्रकार के शुल्क की मांग नहीं की जाएगी। अधिसूचना में यह भी प्रावधान होगा कि घायल की सहायता करने वाला व्यक्ति उसके पारिवारिक सदस्य अथवा रिश्तेदार है तो भी घायल व्यक्ति को तुरंत इलाज शुरू किया जाएगा, भले ही उनसे बाद में शुल्क जमा कराया जाए।
31Mar-2016

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