गुरुवार, 23 मई 2024

हॉट सीट संबलपुर: कांग्रेस के सियासी चक्रव्यूह में फंसी भाजपा व बीजद!

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की चुनाव में आसान नहीं होगी राह 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में ओडिशा की संबलपुर लोकसभा सीट इसलिए हाई प्रोफाइल बन गई है, कि यहां गठबंधन की डोर बंधने से पहले टूटने के कारण भाजपा और बीजद ने प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है। भाजपा ने इस सीट पर राज्यसभा सांसद एवं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को चुनावी जंग में उतारकर बड़ा दांव खेला है। जबकि राज्य में सत्तारूढ़ बीजद ने यहां वापसी करने के मकसद से अन्य जिले की सीट से मौजूदा विधायक प्रणब प्रकाश दास को प्रत्याशी बनाया। वहीं इंडी गठबंधन की तरफ से कांग्रेस ने भी भाजपा और बीजद दोनों को सियासी चुनौती देने के लिए बीजद के बागी हुए पूर्व सांसद नागेन्द्र प्रधान को अपना प्रत्याशी बनाकर नहले पर दहला मारा है। नागेन्द्र प्रधान इस सीट से सोलहवीं लोकसभा में बीजद के सांसद रहे हैं। कांग्रेस की इस चुनावी रणनीति के दांव ने संबलपुर लोकसभा चुनावी समीकरण को दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। राजनीतिक विशेषलकों की माने तो यहां अब त्रिकोणीय चुनावी मुकाबला होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 
अठारहवीं लोकसभा के लिए इस बार चुनाव में ओडिशा की संबलपुर लोकसभा सीट भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। यहां 25 मई को छठे चरण में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही इसके अंतर्गत आने वाली सात विधानसभा सीटों के लिए भी मतदान कराया जा रहा है। संबलपुर लोकसभा सीट के चुनाव की बात की जाए तो यहां का चुनाव भाजपा और बीजद के लिए इसलिए भी सियासी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है, कि दोनों दलों की गठबंधन करके चुनाव लड़ने डोर बंधने से पहले ही टूट गई थी। इसलिए भाजपा ने पिछले चुनाव में यहां भाजपा को पहली जीत का स्वाद चखाने वाले मौजूदा सांसद नितेश गंगा देब का टिकट काटकर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को प्रत्याशी बनाया है, केंद्रीय मंत्री प्रधान इससे पहले देवगढ़ सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। बीजद ने एक मजबूत चुनावी रणनीति के तहत मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के करीबी जाजपुर से तीन बार विधायक रहे बीजद के संगठन महासिचव प्रणब प्रकाश दास को भाजपा के खिलाफ चुनावी जंग में उतार दिया है, जबकि 2014 में इस सीट से बीजद सांसद नागेन्द्र प्रधान ने पिछले चुनाव की तरह इस बार भी टिकट न मिलने पर ऐसी बगावत करके पिछले महीने ही कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस ने पहले यहां बनाए गये प्रत्याशी दुलालचंद्र प्रधान का टिकट कैंसिल करके नागेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया कि संबलपुर लोकसभा सीट पर भाजपा और बीजद के चुनावी मुकाबले में सभी समीकरण बदल दिये। यह भी माना जा रहा है कि यहां चुनावी मुकाबला अब दो प्रधानों के बीच हो सकता है, लेकिय यह तो चुनाव के बाद नतीजे ही तय करेंगे कि इन प्रमुख दलों की रणनीतियों का समीकरण किस करवट बैठेगा। 
ये है लोकसभा का इतिहास 
ओडिशा की संबलपुर लोकसभा सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा सात बार कांग्रेस का कब्जा रहा है, जबकि बीजद चार, गणतंत्र परिषद दो के अलावा भाजपा, जनता पार्टी, जनता दल व प्रजा सोशलिस्ट एक-एक बार यहां जीत कर सकी है। भाजपा ने पहली बार साल 2019 के चुनाव में नितेश गंगा देब को प्रत्याशी बनाकर बीजद प्रत्याशी के खिलाफ महज 9,162 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। आजादी के पहले दो चुनाव यहां गणतंत्र परिषद के प्रत्याशियों ने जीते, तो तीसरे चुनाव 1962 में यहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने पताका लहराया। कांग्रेस ने पहली बार 1967 में खाता खोला और लगातार दो चुनाव जीते, लेकिन आपातकाल के दौरान 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में यहां जनता पार्टी ने जीत दर्ज की, लेकिन 1980 और 1984 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1989 में यहां जनता दल ने अपना झंडा फहराया, तो उसके बाद एक बार फिर कांग्रेस ने लगातार दो लोकसभा चुनाव जीते। लेकिन इसके बाद ओडिशा में बीजू जनता दल ने राज्य में बढ़ते जनाधार की बदौलत 1998 में इस सीट पर पहली बार जीत का स्वाद चखा और बीजद के प्रसन्ना आचार्य यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। जबकि केंद्र में यूपीए की सरकार के दौरान 2009 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस का प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचा, जबकि 2014 के चुनाव में यहां नागेन्द्र प्रधान ने बीजद को जीत दिलाई। इस बार नागेन्द्र प्रधान कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के धर्मेन्द्र प्रधान को चुनौती दे रहे हैं। 
क्या है विधानसभाओं का गणित 
संबलपुर लोकसभा के अंतर्गत तीन जिलों की सात विधानसभा सीटे आती है, जिनमें संबलपुर जिले की कुचिंडा, रेंगाली(सु) व संबलपुर व रायराखोल हैं तो देवगढ़ जिले की देवगढ़ और अंगुल जिले की छेंदीपाडा(सु) तथा अथमल्लिक विधानसभा शामिल हैं। इन सीटों में फिलहाल चार पर बीजद और तीन पर भाजपा के विधायक काबिज है। इस लोकसभा सीट के साथ सातों विधानसभा के लिए भी मतदान होगा। संबलपुर लोकसभा सीट पर करीब 15 लाख से ज्यादा मतदाताओं को भेदने के लिए 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। साल 2019 के चुनाव में 1468530 मतदाता थे। 
एससी व एसटी वर्ग निर्णायक 
ओडिशा के पश्चिमी भाग के अनुगुल, देबगढ़ और संबलपुर जिले में फैली इस लोकसभा क्षेत्र की आबादी करीब 20 लाख है, जिसमें 19 फीसदी लोग शहरी और 81 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में बसे हैं। यहां 30 फीसदी आदिवासी जनजाति राजनीति में निर्णाय की की भूमिका में रहती है। जबकि 17.91 फीसदी मतदाता अनुसूचित जाति हैं, जबकि बाकी सामान्य वर्ग के मतदाता है। गौरतलब है कि देश की आजादी की जंग में विशेष योगदान देने वाले संबलपुर जिला कभी एक बड़ा जिला होता था, लेकिन नब्बे के दशक में इसे चार जिलों में विभाजित कर दिया गया। 1993 में संबलपुर से अलग होकर बरगढ़ जिला बना तो, अगले ही साल 1994 में इस जिले से झारसुगुड़ा और देवगढ़ को भी दो अलग अलग जिलों में बांट दिया गया। 
23May-2024

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