शनिवार, 11 मई 2024

दस साल सत्ता में रहे बीआरएस दो राष्ट्रीय दलों के बीच संघर्ष करने को मजबूर 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में पिछले कुछ माह से बदली सियासी परिस्थियों के बीच ऐसे समय लोकसभा चुनाव हो रहे हैं, जब आंध्र प्रदेश से अलग होते ही तेलंगाना में सत्तासीन हुई टीआरएस(अब बीआरएस) को दस साल बाद कांग्रेस के हाथो राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी। पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट लेने वाली टीआरएस इस बार लोकसभा चुनाव में दो राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस बीच होती नजर आ रही चुनावी जंग में फंसती नजर आ रही है। जबकि तेलंगाना में कुछ माह पूर्व सत्ता में आई कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने का भरोसा है, लेकिन दूसरी ओर पिछले चुनाव में चार सीट जीतने वाली भाजपा के लिए कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत में तेलंगाना में अपनी सियासी जमीन में लगातार विस्तार की संभावनाएं नजर आ रही है। दरअसल इस बार के. चन्द्रशेखर राव की बीआरएस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए बीआरएस नई चुनावी रणनीति के साथ लोकसभा के त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने के प्रयास में है। हालांकि इस बार तेलंगाना में ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही आमने सामने की चुनावी जंग हो सकती है। 
आंध्र प्रदेश से दो जून 2014 को अलग हुए तेलंगाना में उस समय की तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चन्द्रशेखर राव ने ऐसा सिक्का जमाया कि वह लगातार सत्तारुढ़ पार्टी रही और कांग्रेस का वर्चस्व तेजी के साथ कम होता चला गया। लेकिन कांग्रेस के अलावा भाजपा भी तेलंगाना के लोकसभा और विधानसभा में तेलंगाना अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है। अब पिछले साल के अंत में राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बहुमत के सामने बीआरएस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। तेलंगाना की राजनीति के परिवर्तन के साथ मानो बीआरएस पर सियासी संकट मंडराना शुरु हो गया। हालात यहां तक पहुंच गये कि लोकसभा चुनाव आते आते बीआरएस में इतनी तोड़फोड़ हुई कि दो तरफा संकट से घिरी केसीआर की भारत राष्ट्र समिति को इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस जैसी दो राष्ट्रीय दलों के बीच मुकाबले में बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि तेलंगाना की सभी 17 लोकसभा सीटों पर बीआरएस ने अपने उम्मीदवर चुनाव मैदान में उतारे हैं, तो वहीं भाजपा और कांग्रेस भी सभी सीटों पर चुनावी जंग लड़कर अपनी ताकत झोंक रही है। तेलंगाना में इन दलों के अलवा एआईएमआईएम समेत विभिन्न दलों और निर्दलीय समेत 525 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में तीन अनुसूचित जाति और दो अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए आरक्षित हैं। 
ये है लोकसभा चुनाव का इतिहास 
तेलंगाना के अलग राज्य के रुप में अस्तित्व में आने के बाद यह दूसरा लोकसभा चुनाव है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यह राज्य आंध्र प्रदेश से अलग हुआ था, इसलिए उस दौरान लोकसभा अविभाजित आंध्र प्रदेश की 42 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें राजग गठबंधन में तेदेपा को 16 और भाजपा को तीन सीटे मिली थी, जबकि टीआरएस के खाते में 11 लोकसभा सीटें आई थी। जबकि पिछले 2019 के चुनाव में तेलंगाना की 17 सीटों पर हुए चुनाव में टीआरएस ने नौ, भाजपा ने चार, कांग्रेस ने तीन और एआईएमआईएम ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। 
आठ लाख युवा डालेंगे पहला वोट 
तेलंगाना की 17 लोकसभा सीट के लिए 13 मई को होने वाले चुनाव में मतदान करने के लिए 3,17,17,389 मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें 1,58,71,493 पुरुष, 1,58,43,339 महिला और 2,557 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं। तेलंगाना में 18-19 वर्ष आयु वर्ग के 8,11,640 नए युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। राज्य के मतदाताओं में 80 वर्ष से अधिक आयु के 4,43,943 तथा 5,06,493 दिव्यांग मतदाता भी वोटिंग के लिए अधिकृत है। साल 2019 के लोकसभा के चुनाव में राज्य में 1,46,74,217 महिलाओं व 2089 थर्डजेंडर समेत 2,95,18,888 मतदाता था। इस प्रकार से पिछले पांच साल में तेलंगाना में करीब 22 लाख मतदाताओ का इजाफा देखा गया है। 
मल्काजगिरि सीट पर देश के सबसे ज्यादा मतदाता 
देश की 543 सीटों में तेलंगान की सात विधानसभाओं क्षेत्र से बनी मल्काजगिरि लोक सभा सीट पर मतदाताओं के आधार पर सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र हैं, जहां इस बार लोकसभा चुनाव के लिए 37,47,265 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है, इनमें 19,29,471 पुरुष, 18,17,259 महिलाएं और 535 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। तेलंगाना में जिन 17 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होगा, आदिलाबाद, पेद्दापल्ली, करीमनगर, निजामाबाद, मेडक, मल्काजगिरि, सिकंदराबाद, हैदराबाद, चेवेल्ला, महबूबनगर, नलगोंडा, नगरकुरनूल, भुवनगिरी, वारंगल, महबुबाबाद, खम्मम, जहीराबाद शामिल हैं। 
ये है जातीय समीकरण 
तेलंगाना राज्य की आबादी में हिंदू 85 फीसदी, 13 फीसदी मुस्लिम और 2 फीसदी ईसाई हैं। यहां सियासी जातीय समीकरण पर गौर की जाए, तो राज्य में ओबीसी 57 प्रतिशत और अनुसूचित जाति 15.4 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 9.5 प्रतिशत है। वहीं राज्य में 18 फीसदी सवर्ण और करीब 10 फीसदी आदिवासी समुदाय भी राजनीति में अहम योगदान देते आ रहे हैं। जातियों के लिहाज हिंदू धर्म में कापू 14 से 15 फीसदी हैं, तो मडिगा 9 फीसदी है। सवर्णों में सबसे ज्यादा रेड्डी समुदाय के लोग हैं, तो कम आबादी के बावजूद वेलामा यानी राव जाति का भी सियासी तौर पर प्रभाव रहता है। दरअसल तेलंगाना के 33 जिलों में से 9 जिले संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत शेड्यूल एरिया में आते हैं। 
इन सीटों पर दिग्गजों के बीच मुकाबला
तेलंगाना में हैदराबाद, सिकंदराबाद, निज़ामाबाद, करीमनगर और मल्काजगिरी लोकसभा सीटों पर राजनीति के दिग्गजों के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इनमें हैदराबाद सीट पर पांचवी बार चुनाव लड़ रहे सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी जैसे दिग्गज को चुनौती देने के लिए भाजपा ने प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना और उद्यमी माधवी लता को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि हैदराबाद से सटी सीट से केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी भाजपा प्रत्याशी के रुप में तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुकाबला कांग्रेस के दानम नागेन्द्र और बीआरएस के टी. पद्मा राव गौड से होगा। करीमनगर भाजपा ने मौजूदा सांसद बंदी संजय कुमार को प्रत्याशी बनाया है। 
इस कारण बढ़ा वोटिंग का समय 
तेलंगाना में भीषण गर्मी के प्रकोप के कारण हैदराबाद, करीमनगर, जहीराबाद, सिंकदराबाद, चेवेल्ला, नगरकर्नूल, भोंगिर, निजामाबाद ,मेडक, मल्काजगिरि, महबूबनगर और नलगौंडा सीट पर मतदान का समय सुबह सात बजे से पांच बजे के बजाए छह बजे तक किया है। इसके अलावा आदिलाबाद की पांच, पेद्दापल्ले की तीन, वारंगल की की छह, महबुबाद के तीन और खम्मन लोकसभा क्षेत्र की पांच विधान क्षेत्रों के मतदान के लिए भी यही राहत दी है। 
11May-2024

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