शुक्रवार, 29 मार्च 2024

तमिलनाडु: भाजपा के लिए आसान नहीं द्रविड सियासत के चक्रव्यूह को भेदना

डीएमके व एडीएमके के चुनावी संग्राम में तीसरी ताकत के रुप में राजग की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 400 पार सीटों का लक्ष्य तय किया है, जिसमें भाजपा ने दक्षिणी राज्यों खासकर द्रविड सियासत के प्रभाव वाले तमिलनाडु अलग रणनीति तैयार की है, क्योंकि पिछले दो लोकसकभा चुनाव में भाजपा का विजय रथ तमिलनाडु में ही आकर रुकता नजर आया है। एडीएमके से रिश्ते टूटने के बाद अब भाजपा को हालांकि पीएमके का साथ मिला है, जिसका दर्जन भर सीटों पर अच्छा प्रभाव है। लेकिन भाजपा की तमिलनाडु में चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की इस रणनीति के बावजूद द्रविड़ सियासत के इस समुद्र को पार करना एक बड़ी चुनौती साबित होगी? 
तमिलनाडु राजनीति के इतिहास पर नजर डाली जाए, तो इस लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की राजनीति में इस समय द्रविड़ दलों यानी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एडीएमके) को अक्सर एक राजनीतिक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है। ये दोनों प्रमुख दल ही पिछले दशकों से राज्य पर शासन करते आ रहे हैं। इसलिए भी यहां अभी तक भाजपा की दाल नहीं गल पाई। इसके पीछे का कारण साफ है कि भाजपा की राजनीतिक विचारधारा हिंदुत्व है, लेकिन तमिलनाडु में हिंदुत्व नहीं, बल्कि द्रविड राजनीति का बोलबाला है। द्रविड संस्कृति में यहां की मूल भाषा के सामने हिंदी भाषा का भी बड़ा विरोध भी बड़ी वजह है। शायद यही कारण रहा कि डीएमके के नेताओं द्वारा पिछले दिनों सनातन यानी हिंदू धर्म विरोधी टिप्पणियों को हवा दी गई। हालांकि ऐसे बयानों ने विपक्षी गठबंधन इंडिया का संकट भी बढ़ा है, लेकिन अतीत में ब्राह्मण राजनीति के वर्चस्व को पछाड़कर द्रविड़ आंदोलन से बदली द्रविड़ वर्चस्व के ईर्दगिर्द घूमती सियासत के दबदबे को कायम रखने के मकसद से डीएमके और एडीएमके अपनी सियासी जमीन को मजबूत बनाने में जुटे हैं, जिन्हें इंडिया गठबंधन में तमिलनाडु की राजनीति के हिसाब से तव्व्जो दी जा रही है। ऐसे सियासत के बुने जाल को भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ पाएगा, इसकी संभावनाएं बहुत ही कम हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले पीएम मोदी के तमिलनाडु में हुए ताबड़तोड़ दौरों में की गई विकास एवं अन्य घोषणाओं का कितना प्रभाव होगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है। 
इतने मतदाता करेंगे फैसला 
तमिलनाडु में लोकसभा की सात आरक्षित सीटों समेत सभी 39 सीटों पर 19 अप्रैल को होने वाले चुनाव में 6,18,90,348 मतदाताओं का जाल है, जिसमें 3,14,85,724 महिला मतदाता, 3,03,96,330 पुरुष मतदाता के अलावा 8,294 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। जबकि प्रदेश में दिव्यांग मतदाताओं की संख्या 4,48,138 है। इन मतदाताओं में 3,310 एनआरअई मतदाता भी पंजीकृत हैं।इस बार 18 और 19 आयु वर्ग के 9.18 लाख मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। जबकि 20 से 29 आयु वर्ग के 1.08 करोड़ मतदाता हैं। राज्य में सबसे अधिक 1.37 करोड़ मतदाताओं की संख्या 40 से 49 आयु वर्ग के बीच है। जबकि तमिलनाडु में बुजुर्ग यानी 80 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या भी 12.5 लाख से अधिक है। जबकि साल 2023 में राज्य में मतदाताओं की संख्या 6,20,41,179 थी, जिसकी तुलना में लोकसभा चुनाव में दो लाख से अधिक मतदाताओं में कमी दर्ज की गई है, हालांकि ट्रांसजेंडर 8,027 से बढ़कर 8,294 हो गये है। दरअसल गत जनवरी में मतदाता सूची के अंतिम प्रकाश में से 13.61 लाख नए मतदाता जोड़े गये हैं, लेकिन वहीं 6.02 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गये हैं। 
क्या है दलगत गणित 
तमिलनाडु में साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 39 में से डीएमके सर्वाधिक 24 सीटें जीत आगे रहा, जबकि कांग्रेस को आठ, सीपीआई को दो, एडीएमके, वीसीके, सीपीएम तथा आईयूएमएल को एक-एक सीट मिली थी। जबकि इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में एडीएमके ने 37 तथा भाजपा व पीएमके ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी।
भाजपा-पीएमके 30 सीटों पर करेगी संघर्ष 
भाजपा ने तमिलनाडु में 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं, जबकि उसकी साझीदार डॉ. एस. रामदास अंबुमणि की पार्टी पीएमके ने दस सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इस चुनाव में डीएमके और एडीएमके के अलावा अन्य क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में हैं। राजग राज्य में द्रविड संस्कृति वाली सियासत के इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। 
ये सामाजिक परिदृश्य 
तमिलनाडु की जनसंख्या 7.21 करोड़ से ज्यादा है, जहां ओबीसी 80 प्रतिशत और ब्राह्मण करीब चार प्रतिशत हैं। तमिलनाडु घरेलू पैनल सर्वेक्षण के प्री-बेसलाइन सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार राज्य में पिछड़ा वर्ग (बीसी) 45.5 प्रतिशत और सबसे पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) राज्य की आबादी का 23.6 प्रतिशत है। भाजपा ने उसी संतुलन के साथ उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में भी उतारकर बड़ा दांव खेला है। 
पीएमके इसलिए होगी खास 
डॉ. एस. रामदास अंबुमणि के दल पीएमके का उत्तरी तमिलनाडु के 6 जिलों में खासा असर है। अति पिछड़े वण्णियार समुदाय में पीएमके की पैठ है। राज्य की करीब 6 प्रतिशत वोटों पर पीएमके की पकड़ मजबूत है। राज्य की 11 लोकसभा सीटों सलेम, धर्मपुरी, विल्लुपुरम, कुडलोर, थिरुवन्नमलाई, वेल्लोर, आरणी, कल्लाकुरिचि, पेरांबलुर, नमक्कण और चिदंबरम पर पीएमके का असर है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएमके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ थी और उसे 5.3 प्रतिशत वोट मिले। जबकि भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में 3.6 प्रतिशत वोट मिले थे। 
इन सात सीटों पर भाजपा की नजरें 
तमिमलनाडु में अपने विजय रथ की राह बनाती भाजपा की प्रमुख रुप से कन्याकुमारी और रामनाथपुरम के इर्द-गिर्द सात लोकसभा सीटों पर नजरें लगी हैं, जहां तमिलनाडु के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अन्नामलाई ने पदयात्रा करके भाजपा का जनाधार मजबूत करने में जुटे हैं। इससे पहले 2019 के चुनाव में भी एआईएडीएमके ने भाजपा इनमें से ही 6 सीटें दी थी, जहां इस बार भाजपा को अपनी जीत की उम्मीद हैं। 
ये हैं प्रमुख दल 
तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एडीएमके जैसे प्रमुख दलों के अलावा डा. रामदास अंबुमणी की पीएमके, के. कृष्णा सामी की पुथिया तमिलागम, जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस(मूपनार), भाकपा, सीपीआईएम, वीसीके, आईयूएमएल, वाइको की एमडीएमके, एसी शनमुगम की पीएनके जैसे दल चुनावी जंग में रहे हैं। 
29Mar-2024

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें