सोमवार, 18 मार्च 2024

साक्षात्कार: साहित्य एवं संस्कृति के संवर्धन में जुटे श्याम वशिष्ठ

दूरदर्शन पर समाचार वाचक और आकाशवाणी उदघोषक के रूप में बनाई पहचान 

नाम: श्याम वशिष्ठ 

जन्मतिथि: 24 फरवरी 1970 

जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा) 

शिक्षा: एम. कॉम, बी.एड, यूजीसी नैट उत्तीर्ण, पीएच.डी.(शोधार्थी)। 

सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर(वाणिज्य), अध्यक्ष,सांस्कृतिक प्रकोष्ठ,बनवारी लाल जिन्दल कॉलेज, तोशाम(भिवानी)। 

संपर्क: प्रो.श्याम वशिष्ठ सुपुत्र श्री फतेह चन्द वशिष्ठ वशिष्ठ भवन फूलचन्द गली,लोहड़ बाज़ार, भिवानी(हरियाणा) मो./व्हाट्सएप: 9996420600, ई मेल- shyamvashishtha@gmail.com 

BY-ओ.पी. पाल 

साहित्य एवं लोक कला के क्षेत्र में हरियाणवी संस्कृति, लोक कला को नया आयाम देने वाले सुविख्यात शिक्षाविद् एवं साहित्यकार श्याम वशिष्ठ ने कवि एवं शायर के साथ ही एक अभिनेता, निर्देशक, गायक, रेड़ियो उद्घोषक एवं मंच संचालक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है। वह समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने की दिशा में विभिन्न विधाओं में हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। दूरदर्शन के समाचार वाचक और आकाशवाणी उदघोषक की भूमिका निभाने वाले श्याम वशिष्ठ आकाशवाणी के नाटक प्रभाग में बी हाई श्रेणी के अनुमोदित कलाकार हैं, जिन्होंने रंगमंच पर भी नाटकों में अभिनय, निर्देशन और लेखन भी किया। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्यकार एवं कलाकार श्याम वशिष्ठ ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें यह साबित होता है कि उनके साहित्य एवं कला के सफर में की गई साधना देश और समाज को समर्पित है। 

रियाणा में छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले भिवानी शहर में 24 फरवरी 1970 को फतेहचंद वशिष्ठ एवं श्रीमती राजदुलारी वशिष्ठ के घर में 24 फरवरी 1970 को जन्मे श्याम वशिष्ठ के पिता भी एक एक कलाकार रहे हैं, जो पुरानी एवं प्रसिद्ध रामलीला में अभिनय और नाटकों के रंगकर्मी रहे। मसलन श्याम वशिष्ठ को संस्कार, आध्यात्म और संगीत का वातावरण विरासत में मिले। जाहिर सी बात है कि बचपन से ही उन्हें संगीत, नाटक, काव्यपाठ में अभिरूचि होना स्वाभाविक था। भिवानी जिले में तोशाम स्थित बनवारी लाल जिन्दल कॉलेज में 1997 से एसोसिएट प्रोफेसर (वाणिज्य) पद पर कार्यरत श्याम वशिष्ठ ने अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दूसरी कक्षा में पढ़ते हुए 'यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे' शिक्षा निकेतन भिवानी के मंच पर दी थी। पाँचवी कक्षा तक आते आते भजन, समूहगान, काव्यपाठ एवं संस्कृत श्लोकोच्चारण की अनेक प्रस्तुतियाँ देने लगे। उस समय में दो बार अलग अलग समारोहों में तत्कालीन शिक्षामंत्री हरियाणा हीरानन्द आर्य एवं श्रीमती शांति राठी ने सम्मानित किया। प्राथमिक स्तर पर गुरू सत्यनारायण हरित ने मार्गदर्शन दिया। साहित्य में अभिरूचि प्रत्यक्ष रूप में नहीं हुई बल्कि रंगमंच के माध्यम से हुई। बकौल श्याम वशिष्ठ स्कूली शिक्षा के दौरान रंगमंच गुरू कुंजबिहारी शर्मा के आशीर्वाद के कारण कठपुतली, मुर्दा बोला आदि नाटक करते करते साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का भी अवसर मिला। दसवीं कक्षा की परीक्षाओं के बाद नेकीराम शर्मा ज़िला पुस्कालय का कार्ड बनवाकर मुंशी प्रेम चंद से लेकर रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन से लेकर नज़ीर अकबराबादी व अन्य बड़े रचनाकारों की रचनाएं पढ़ी और काव्यपाठ में अनेक बार ज़िला स्तर से राज्य स्तर तक प्रथम पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने बताया कि 11वीं कक्षा में उन्होंने पहली रचना ‘एक रुपया’ लिखी, जिसके व्याकरणीय एवं साहित्यिक नियमों का ज्ञान प्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षक रमाकांत दीक्षित के मार्गदर्शन में मिला। जब वह रचना अखबार में प्रकाशित हुई। उन्हें युवा महोत्सवों में बिना तैयारी के ही ग़ज़ल गायन, डिबेट और कविता पाठ करने पर भी पुरस्कार मिले हैं। पद्मश्री महाबीर गुड्डू से भी एक बार मोनो एक्टिंग में यूनिवर्सिटी यूथ फेस्टिवल में आमना सामना हुआ और सौभाग्य से उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। घर पर साहित्य, संगीत, नाटक का वातावरण होने के बावजूद माता-पिता ने कभी कभी पढ़ाई की चिंता को लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों में एक साल तक हिस्सा तक नहीं लेने दिया, लेकिन वह छुप छुप के भाग लेकर पुरस्कार जीतते रहे। हालांकि पढ़ाई में भी वह हमेशा अव्वल ही रहे। उनके लेखन का फोकस गजल विधा में रहा, लेकिन उन्होंने गीत, कविताएँ, लघुकथा एवं नाटक भी लिखे हैं। संत कबीर दास,साहिर लुधियानवी, दुष्यन्त कुमार दिल के अधिकतम नज़दीक रचनाकार हैं, जिन्हें वह अपना आदर्श भी मानते हैं। अब उनका रचना संसार समाज और देश के लिए समर्पित है। उनके संगीत के गुरू जी डॉ तरसेम लाल शर्मा कहा करते हैं कि ग़ज़ल का वो शेर ही दिल में उतरता है, जो निजी न हो कर सबका दर्द और अनुभव लिए हुए होता है। 

ऐसे बनी साहित्य व लोक कलाकार की पहचान 

भिवानी के मेघदूत थिएटर ग्रुप से 1987 से सक्रीय रुप से जुड़े श्याम वशिष्ठ ने कामतानाथ प्रसाद की कहानी 'संक्रमण' पर आधारित हास्य-व्यंग्य नाटक ' बाबूजी ठीक कहते थे' में बतौर मुख्य अभिनेता 55 शो भी किये। नवम्बर 2014 में इसी नाटक के मंचन के लिए सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से आमन्त्रित किया गया। जबकि सितम्बर 2017 में दुबई अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच फेस्टिवल में भागीदारी की। दूरदर्शन की दो टेलीफ़िल्मों 'आत्मबोध' एवं 'अर्धसत्य' में अभिनय के अलावा उन्होंने अनेकों नाटकों के लिए गीत लेखन एवम संगीत संयोजन भी किया। एनएसडी ,दिल्ली की रंगमंच की कार्यशाला सहित रंगमंच की अनेक कार्यशालाओं का भी उन्हें अनुभव ह। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के आजीवन सदस्य होने के साथ उन्होंने 300 से अधिक कवि सम्मेलनों व मुशायरों में भागीदारी भागीदारी भी की है। विशेष रुप से न्यू इण्डिया डेवलपमेंट फाउंडेशन एवं पीएमओ के संयुक्त तत्वावधान में प्रधानमंत्री आवास पर 29 अप्रैल 2022 को आयोजित 'सद्भावना' कार्यक्रम का संचालन पर उन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा भी मिली। जिन्हें अक्तूबर 2022 में प्रधानमंत्री की दो पुस्तकों Modi@20 तथा Heart Felt: The Legacy of Faith के विमोचन के लिए भी श्याम वशिष्ठ को वाराणसी बुलाया गया। इस कार्यक्रम में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि थे। 

दिलचस्प घटना 

साहित्यकार श्याम वशिष्ठ ने अपने साहित्य, संगीत, रंगमंच के अनुभव के दिलचस्प पहलुओं का जिक्र करे कहा कि एक बार तो यूनिवर्सिटी में नाटक करते हुए पोस्टर नाटक किया था, जिसमें वह पोस्टर ही नहीं ले जा सके। वैश्य कॉलेज,भिवानी में नाटक, साहित्यिक कार्यक्रमों की तैयारी रात रात भर जाग कर करते थे। रिहर्सल करते हुए एक बार लाइट चली गई, सड़क पर ही रिहर्सल करते हुए रात को एक बजे सभी को पुलिस उठा कर ले गई थी। प्राचार्य बी एन त्रिखा जी ने थाने में आकर उन्हें छुड़वाया था। उन्होंने बताया कि अपने काव्यगुरू कैलाशचंद्र 'शाहीं' साहब के पास जब अपनी लिखी हुई तथाकथित 150 ग़ज़लें लेकर गये तो उन्होंने उनसे पूछे बिना ही डायरी जलती सिगड़ी पर रखकर जला दी और कहा अब तुम कोरे कागज़ हो तुम पर लिखना और तुम्हें समझाना आसान होगा। हालांकि मन बहुत बहुत दुखा, किंतु जल्द समझ में आ गया कि वह सही थे। उनका लेखन शुरुआती दौर में ईश्क़ और व्यक्तिगत भावों से प्रेरित रहा, लेकिन सामाजिक चिन्तन, दशा और दिशा ने उनकी सृजनयात्रा को व्यक्तिगत से समष्टिगत बना दिया। 

  साहित्य की दयनीय स्थिति चिंताजनक 

आधुनिक युग में साहित्य और लोक संस्कृति की बनती जा रही दयनीय स्थिति को चिंताजनक बताते हुए श्याम वशिष्ठ ने कहा कि साहित्य के पटल पर साहित्कारों, लेखकों और चिंतकों को ऐसा सामूहिक प्रयास करना होगा, जिसमे साहित्य में आ रही गिरावट और लुप्त होती लोक कलाओं को पुनर्जीवित किया जा सके, जिसमें साहित्य अकादमियों व परिषदों को नई पहल करनी होगी। भौतिकवादी होने के साथ धनअर्जन की दौड़ में कम होते साहित्य के पाठकों के समक्ष आज डिजिटल या सोशल मीडिया पर परोसी जा रही सामग्री ने खासकर युवा पीढ़ी को नकारात्मक रुप से प्रभावित किया है। जबकि इस देश में 70 प्रतिशत युवाओं की जनसंख्या पर भारत का भविष्य टिका हुआ है। यही नहीं समाज के लिए भी घातक साबित हो रही लेखकों व साहित्यकारों या लोक कलाकारों में जल्द से जल्द लोकप्रिय होने की ललक ने गुरु-शिष्य की परंपरा और गुणवत्तापूर्ण संस्कृति को रसातल में पहुंचा दिया। जहां तक युवा वर्ग को साहित्य या लोक कला या संस्कृति के प्रति प्रेरित करने का सवाल है उसके लिए हमारे साहित्यकारों, लेखकों और कलाकारों के साथ सरकार को भी सर्वजन के लिए सृजन करने की दिशा में काम करनो की आवश्यकता है। युवाओं में मानसिक प्रदूषण और नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए हमारे लेखकों और संगीतकारों को बहुत कुछ करना होगा। वहीं सरकार को सोशल मीडिया के लिए भी विनियमन तैयार करके लुप्त होती लोक कलाओं को धरोहर बनाने की पहल करनी होगी, जिसमें सामूहिक प्रयास से हमारी संस्कृति संवर्धन किया जा सकता है। 

  प्रकाशित पुस्तकें 

सुविख्यात शिक्षाविद, अभिनेता, निर्देशक, शायर, गायक एवं उद्घोषक की प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य एवम ग़ज़ल संग्रह में मेरे हिस्से का आसमान, मुखौटे, मैं अपना प्यार क्यूँ रोकूँ, समय की ताल पर शामिल हैं। आधुनिक ग़ज़ल के सामाजिक सरोकार पर उनका प्रकाशित शोधपत्र भी चर्चाओं में रहा है। इसके अलावा प्रतिष्ठित एवं ख्यातिप्राप्त शोधग्रंथों में अलग अलग विषयों पर 10 अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय शोधपत्रों का प्रकाश भी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। यहीं नहीं राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा उर्दू अकादमी की पत्रिकाओं में भी उनकी काव्य रचनाएँ, आलेख, लघुकथा, समीक्षा आदि प्रकाशित हुई हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान 

प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कलाकार श्याम वशिष्ठ को पं.माधव प्रसाद मिश्र साहित्य सम्मान के अलावा रंग-रत्न सम्मान, भारतेन्दु पुरस्कार, साहित्य सेवा सम्मान, साहित्य साधक पुरस्कार, कला साधक पुरस्कार, राज्यकवि उदयभानु हंस काव्य पुरस्कार, शुक्ल काव्य सम्मान, सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन शिक्षक,सम्मान, साहित्य कौस्तुभ सम्मान, अब्र सीमाबी स्मृति सम्मान, हाली पानीपती सम्मान, रघुवीर अनाम स्मृति साहित्य सम्मान, भिवानी गौरव सम्मान, साहित्य सम्मान, राज्य स्तरीय राजेश चेतन काव्य पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें .ज़िला स्तर भिवानी के प्रशासनिक उच्चाधिकारियों द्वारा केई बार 'शिक्षा एवँ साहित्य' में योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। वहीं 1994 में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल गायक का सम्मान तथा 1989 से 1994 तक लगातार एमडीयू रोहतक के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता होने का सम्मान भी मिल चुका है। 18Mar-2024

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