सोमवार, 4 मार्च 2024

साक्षात्कार: साहित्य के बिना समाजिक समरसता संभवन नहीं: अशोक जाखड़

देश की सेवा के साथ साहित्य सृजन करने में जुटे ‘निस्वार्थी’ 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अशोक कुमार जाखड़ ‘निस्वार्थी’ 
जन्म तिथि: 01 जनवरी 1958 
जन्म स्थान: ग्राम ढाणा जिला झज्जर 
शिक्षा: इंटरमिडिएट इलाहाबाद बोर्ड यूपी 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त एएसआई सीआईएसएफ, स्वतंत्र
 लेखन 
संपर्क:  ग्राण ढाणा डाकघर साल्हावास जिला झज्जर (हरियाणा ), मोबा.-8307906781/ 9306116563
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता तथा भाषा को सर्वोपरि रखते हुए साहित्यकारों व लेखकों ने अपनी अलग अलग विधाओं में प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साहित्यकार एवं कवि अशोक जाखड भी ऐसे लेखकों में शामिल हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा के प्रहरी की भूमिका निभाने के साथ ही जुनूनी साहित्य साधना की है। साहित्य के क्षेत्र में श्रीमदभागवद् गीता में विद्यमान शब्दो के अर्थो को हरियाणवी एवं हिंदी के सरल शब्दों में बदलकर श्रीमदभागवद् भजनावली नामक एक आध्यात्मिक कृति की रचना करके चर्चा में आए जाखड़ ने दीनबंधु सर छोटूराम के पूरे जीवन दर्शन के खड़ी बोली शब्दों को भी हिंदी एवं हरियाणवी शब्दों में पदबद्ध करके अहम भूमिका निभाई है। देश के सुरक्षाबल सीआईएसएफ में ढाई दशक की सेवा और उसके साथ साहित्यिक सफर को लेकर अशोक जाखड़ ‘निस्वार्थी’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें वे मानते हैं कि साहित्य के बिना सामाजिक समरसता की कल्पना करना बेमाने है। 
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देश की सुरक्षा के प्रहरी की भूमिका निभा चुके हरियाणा के साहित्यकार अशोक कुमार जाखड का जन्म 01 जनवरी 1958 को झज्जर जिले के गांव ढाणा में कुडेराम जाखड व श्रीमती बसंती देवी के घर में हुआ। उनके पिता साल 1950 के गांव में मैट्रिक पास थे और उन समेत सभी चार भाई सेना व अर्द्धसैनिक बल में सेवारत रहे हैं। अशोक जाखड का बेटा भी बीएसएफ में अधिकारी है। परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा, लेकिन सभी भाईयों को रागनी सुनने का शौंक रहा है। अशोक को भी कविता व दोहे बचपन से ही भाते थे। उन्होंने बताया कि स्कूली शिक्षा के दौरान पाठ्यक्रम में संत कबीर और रहीम के दोहे के साथ क्रांतिकारियों की कविताएं और सांग भजन पढ़ने के साथ रेडियो कार्यक्रमों में पं. लखमीचंद, पं. मांगेराम, शहीद कवि जाट मेहर के भजन व रागनियों का शौंक पैदा हुआ। वहीं दूसरी ओर वह बुजुर्गों की चर्चा में रहे ब्रह्मवेता कवि पं. मेहर सिंह साल्हावास झज्जर के नाम से वह बहुत प्रभावित रहे हैं। इसलिए उनका बचपन से ही कवि बनने का सपना था। जब वह नौवीं कक्षा के छात्र थे, तो उन्होंने पांच कविता सतसंग कीर्तन के भजन लिखे और दो भजन एक साधु के आश्रम में सुना दिए। इस पर एक गायक ने उन्हें दूसरे की कविता बताकर फटकार दिया। दसवीं में फेल होने पर उन्होंने सन 1974-75 में पढ़ाई छोड़ कर 05 साल तक पशु चराए और खेती का काम किया। अप्रैल 1980 में उनकी शादी हुई और एक दिसम्बर को वह सीआईएसएफ में भर्ती होकर पीटीसी मधुबन करनाल हरियाणा में प्रशिक्षण के लिए चले गये, जहां उन्होंने एक भजन लिखा और दो चार साथियों को सुनाया। प्रशिक्षण के बाद वह हल्दिया मिदनापुर (पं बंगाल) चले गये, तो रागनी कभी कभी बैरक में गा लेते थे। छुट्टियों पर घर आने पर हरियाणा में कम्पीटीशन का जोर को देखते हुए वह कैसिड खरीदते और उन्हें टेप रिकार्ड में सुनते थे। नौकरी में समय मिलते ही वह अपने आपको साहित्य में जोड़ लेते थे। शायद इसी जुनून में उन्हें 20 साल की उम्र में महाकवियों की करीब 300 कविताएं और हरियाणवी भजन कंठस्थ याद हो गई, क्योंकि इनके काव्य मे पौराणिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, परिवारिक, हरिभक्ति और देश भक्ति का मार्ग दर्शन ने उन्हें काव्य शौक और अभ्यास में रचा बसा दिया। हालांकि उनके लेखन का फोकस ईश्वर भक्ति, देशभक्ति, शहीद ,क्रांतिकारी, महापुरुषों, समाजिक बुराई, गौसेवा,नारी दर्शन,पर्यावरण, हिंदी और हरियाणवी भाषा, हरियाणवी सभ्यता और संस्कृति आदि विषयो पर ही ज्यादा रहा है। जाखड़ ने बतया कि जब उनकी पोस्टिंग झारखंड के बोकारो में हुई तो वहां यूपी, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा वाले रागनी प्रेमी बहुत मिले। इसलिए साथियों के कहने से उन्होंने एक श्रृंगार रस की रागनी बनाई, जो सभी को बेहद पसंद आई। बकौल जाखड 1986 में उन्होंने किसी तरह प्राईवेट से मैट्रिक और 1992 में इंटरमिडिएट पास की। नौकरी के दौरान ही रायबरेली(यूपी) के ऊंचाहार में होने वाले कवि सम्मेलनों ने तो उनके अंदर एक क्रांति पैदा कर दी। खासबात ये है कि 31 दिसंबर 2017 को सीआईएसएफ से सेवानिवृत्वेत हुए अशोक जाखड़, निस्वार्थी राष्ट्रीय समूह ढाणा झज्जर हरियाणा, निस्वार्थी देश भक्ति समूह ढाणा झज्जर हरियाणा, निस्वार्थी हिंदी काव्य समूह ढाणा झज्जर हरियाणा तथा निस्वार्थी हरियाणवी समूह ढाणा झज्जर हरियाणा के माध्यम से निरंतर साहित्य की निशुल्क और निष्वार्थ भाव से सेवा करने में जुटे हुए हैं। 
यहां से मिली मंजिल 
साहित्य में कविता के जुनून में अशोक जाखड़ को हरिहर प्रसाद द्विवेदी का प्रोत्साहन मिला और साल 2003 से दार्शनिक संत सतगुरु श्री संतोष पुरी महाराज की कृपा हुई। यूपी में होने वाले कवि सम्मेलन भी वह जाने लगे, जिसकी खबर अगले दिन अखबार में आती थी, तो उन्होंने भी कवि सम्मेलन में जाने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि यहां हरियाणवी रागनी नहीं, बल्कि शुद्ध हिंदी की कविता सुनानी पड़ती है। इस पर उन्होंने संकल्प लिया कि वह हिंदी की कविता बनाकर लिखेंगे। साहित्य के प्रति इस जुनून ने उन्हें ऐसा उकसाया कि हमारा देश, दहेज, कश्मीर पर कविता लिखी, जिन्हें हरिहर प्रसाद रिसाल ने भी पढा और उन्हें सराहा। इसके बाद उन्हें पहली बार यूपी के प्रतापगढ में 29 अप्रैल 1992 को आयोजित कवि सम्मेलन मे आमंत्रित किया और उनके काव्यपाठ को सराहा गया, जिसके बाद उनकी कविताएं लिखने और सुनाने की रफ्तार बढ़ती चली गई। इस प्रकार उन्होंने गुजरात 26 जनवरी 2001 के भूकंप आपदा पर एक कविता कृति लिखी। 
आधुनिक युग में सामाजिक परिवेश प्रभावित 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों के बारे में जाखड़ मानते हैं कि साहित्य के नए लेखक बढे है, लेकिन पाठकों की रुची बेहद कम हो रही है, यहां तक कि विश्वविख्यात धार्मिक साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत और रामायण जैसे ज्ञान वर्धक व मार्गदर्शक साहित्य से रुचि कम होने से समाजिक परिवेश भी प्रभावित हो रहा है। खासतौर से युवा वर्ग का सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रभाव में आने से संस्कृति, सभ्यता, मानवता, मात पिता की सेवा और अनुशासन से दूर होना एक सभ्य समाज के लिए घातक और चिंताजनक है। ऐसे में युवाओं को संतों ,महापुरुषो ,महान कवियो और कलमकारों को अच्छे साहित्य सृजन करने की जरुरत है। वहीं स्कूल, कालेज और शिक्षा संस्थाओं माता पिताओं द्वारा उनके जीवन के शुरुआत से ही साहित्य के प्रति प्रेरित करने की आवश्यकता है, जिसमें सरकार की उपाय करने की अनिवार्यता भी शामिल होना चाहिए। इसका दूसरा पहलु यह भी है कि आज के इंटरनेट व सोशल मिडिया युग ने साहित्य के प्रसार प्रसार को आसान कर दिया और आम साहित्यकार को प्रतिभा के मुताबिक राह मिली है, जिसमें पुस्तक प्रकाशन की जटिलता बहुत कम हो गई है। इसलिए सोशल मिडिया साहित्य का मित्र है, वरदान है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार अशोक कुमार जाखड़ की प्रकाशित 11 पुस्तकों में प्रमुख रुप से खंड काव्य योग दर्पण, धारा 370(जम्मू-कश्मीर), शहीद भगत सिंह, सर छोटु राम एवं अष्टावक्र गीता, भजन संग्रह काव्य त्रिवेणी के अलवा भारत के परम वीर चक्र विजेता, श्रीमदभागवत भजनावली, निस्वार्थी पद गीता, निस्वार्थी गौमाता दर्शन और निस्वार्थी उद्योग पर्व शामिल हैं। जबकि दस पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार हैं, जिनमें एकल काव्य लघु कृतियां, गुजरात आपदा विरह इतिहास, पराधीन भारत स्वाधीन भारत, कारगिल विजय अभियान नामक पुस्तकें भी लिखी गई हैं। वहीं उनकी एकल संपादन सांझा संकलन के रुप में 06 और 25 साझा सकलनों में उनकी कविताओं का प्रकाशत हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान 
देश के प्रहरी रहे साहित्यकार अशोक जाखड़ को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्थाओं ने साहित्य क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक सम्मान दिये हैं। इसमें हरियाणा गौरव सम्मान, काव्य सौरभ सम्मान, श्रीकृष्ण सरल सम्मान, परमवीर सृजन सम्मान, शब्द शिल्पीभूषण सम्मान, समाज पथ-प्रदर्शक सम्मान, पंडित श्री दत्त शर्मा स्मृति सम्मान, चंद्र मति स्मृति साहित्य रत्न सम्मान, क्रान्तिधरा मेरठ साहित्य रत्न सम्मान शामिल है। इसके अलावा उन्हें साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावां प्रतापगढ़ द्वारा विद्या वाचस्पति मानद उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है। 
04Mar-2024

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