रविवार, 24 मार्च 2024

जम्मू-कश्मीर: बदले सियासी समीकरण में होगा लोकसभा चुनाव

राजनैतिक दलों के सामने होगी नई चुनौतियां 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पहली बार लोकसभा का चुनाव बदले नक्शे और नए सियासी माहौल के बीच होने के कारण अपने आप में अगल की मायने रखता है, जहां दुनियाभर की नजरें लगी होगी। धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों के नए परिसीमन से बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच इस चुनावी महासंग्राम में सभी राजनीतिक दलों के सामने नई चुनौतियां होंगी। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने से पहले छह लोकसभा सीट होती थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अलग किये गये लद्दाख के बाद पांच लोकसभा सीट रह गई हैं। मसलन जम्मू-कश्मीर के नक्शे और सियासी तस्वीर बदलने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव अपना अलग इतिहास बनाने की राह पर है। पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद भौगोलिक, सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य में भी बदलाव किया गया है। इन पांच सालों में हालांकि राज्य के मतदाता विधानसभा के चुनाव में मतदान करने का भी इंतजार करते आ रहे हैं। इस बदले परिदृश्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों के नए परिसीमन ने भी भोगौलिक और राजनैतिक नक्शे का बदला है। इस बदले परिदृश्य और माहौल में राज्य में बदले सियासी समीकरणों के बीच सभी राजनैतिक दल और मतदाता पहली बार लोकसभा चुनाव के संग्राम का हिस्सा बनेंगे। 
नए परिसीमन में क्या बदला 
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक दृष्टि से हुए नए परिसीमन में इस बार जम्मू और कश्मीर संभाग में दो-दो लोकसभा सीटें बनाई गई हैं, जबकि इन दोनों संभागों से काटकर राजोरी-अनंतनाग को नई लोकसभा सीट बना दिया गया है। इस प्रकार सियासी दलों के सामने इस बदले राजनीतिक समीकरण के बीच नई रणनीति के साथ चुनावी रणनीति की चुनौती होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक जम्मू व कश्मीर के हिस्सों से बनाई गई नई सीट पर सबकी नजरें होंगी। 
बदले माहौल में होगा चुनाव 
पिछले चुनावों में आतंकवादी और पत्थरबाज हावी थे। अलगाववादी हड़ताल के कैलेंडर जारी करते थे। चुनाव बहिष्कार की कॉल के साथ मतदान करने से रोका जाता था। अब यह स्थितियां बदल गई हैं। पत्थरबाजी बंद हो गई है। अलगाववादियों व आतंकियों पर भी अंकुश है।
फिलहाल ये हैं सांसद 
जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों पर 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस पर कब्जा किया था, जबकि भाजपा के हिस्से में दो सीटें आई। मसलन बारामूला लोकसभा सीट से मोहम्मद अकबर लोन, श्रीनगर से फारूक अब्दुल्ला, अनंतनाग-राजौर से हसनैन मसूदी सांसद हैं। जबकि उधमपुर से भाजपा के डा. जितेन्द्र सिंह और जम्मू लोकसभा सीट से जुगल किशोर शर्मा ने जीत हासिल की थी। 
प्रमुख राजनैतिक दल 
राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर प्रमुख रुप से भाजपा, कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस, जम्मू-कश्मीर पीडीपी प्रमुख रुप से सियासी मैदान में रहे हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस के दिग्गज रहे एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलामनबी आजाद भी चुनाव मैंदान में अपनी नवगठित डेमोक्रटिव प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के साथ चुनाव मैदान में होंगे। 
क्या है जातीय समीकरण 
जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य राज्य है, जहां मुस्लिम 68.31 प्रतिशत हैं। इसके अलावा हिंदू 28.44 प्रतिशत, सिख 1.87 प्रतिशत, ईसाई 0.28 प्रतिशत है। इसमें जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, उसमें सबसे ज्यादा सामान्य जाति 75 प्रतिशत है। जबकि अनुसूचित जाति 7.38 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 11.91 प्रतिशत और सबसे कम ओबीसी सात प्रतिशत है। 
करीब 87 लाख मतदाताओं का चक्रव्यूह 
जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों के लिए इस बार 86.93 लाख मतदाता वोटिंग करेंगे, जिसमें 44.35 लाख पुरुष और 42.58 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। इस बार केंद्र शासित प्रदेश में करीब 2.31 लाख नए मतदाता पहली बार चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने जा रहे हैं। 
एक दशक से नहीं हुए विधानसभा चुनाव 
जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 के बाद अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए और राज्यपाल शासन की सरकार में धारा 370 हटने के बाद केंद्र सरकार राज्य के विकसित राज्य बनाने का दावा कर रही है। उस समय भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी, लेकिन भाजपा ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी और वहां राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था और इसी दौरान जम्मू-कश्मीर से अनुछेद 370 हटाकर उसके केंद्र शासित राज्य घोषित करके उपराज्यपाल की तैनाती की गई। 
लद्दाख में भाजपा को हैट्रिक का मौका 
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को अलग करके केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया गया था, जहां एक मात्र लोकसभा सीट पर 2014 और 2019 में भाजपा जीत हासिल करती आ रही है। इस बार लेह और कारगिल वाले लद्दाख सीट पर भाजपा के लिए हैट्रिक बनाने की चुनौती होगी। लद्दाख ऐसा केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां अभी तक अपनी विधानसभा नहीं है यानि बिना विधानसभा सीटों के लद्दाख भी लोकसभा चुनाव में अलग महत्व में रहेगा। इससे पहले हुए चुनावों में लद्दाख में छह बार कांग्रेस, दो बार नेशनल कांफ्रेंस और तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं। साल 1989 के चुनाव में इस सीट पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी मो. हसन कमांडर ने कांग्रेस की सियासत को अवरोधित किया और 2004 व 2009 में भी निर्दलीय सांसद चुना गया। 24Mar-2024


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