शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

चुनाव खर्च में राष्ट्रीय दलों से आगे क्षेत्रीय दल!


चुनाव प्रचार में आमदनी से ज्यादा किया गया खर्च
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया यानि चुनावी समर में चुनाव प्रचार करने के लिए खर्च करने में राष्ट्रीय दलों के मुकाबले क्षेत्रीय दल कहीं ज्यादा खर्च कर रहे हैं। मसलन जहां राष्ट्रीय दल आमदनी से कम, तो क्षेत्रीय दल आमदनी से कहीं ज्यादा खर्च करते नजर आए।
चुनाव सुधार की दिशा में चुनाव आयोग के नियमों के तहत सभी राजनीतिक दलों को चुनाव  खर्च का ब्यौरा देना जरूरी है, लेकिन राष्ट्रीय दलों को छोड़कर करीब तीन दर्जन क्षेत्रीय दलों ने पिछले साल हुए पांच राज्यों के चुनावी खर्च का ब्यौरा अभी तक भी नहीं सौंपा है। यह खुलासा चुनाव सुधार के लिए सियासी दलों की हरेक गतिविधियों का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स ने किया है। इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार  वर्ष 2016 में पांच राज्यों के चुनाव खर्च का ब्यौरा राष्ट्रीय दलों के अलावा जिन क्षेत्रीय दलों ने सौंपा है उसमें दर्शाए गयी दलों की आय और खर्च के लिहाज से छह राष्ट्रीय दलों को आय के रूप में 287.89 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई और उनका चुनावी खर्च 188.12 करोड़ रुपये का रहा है। जबकि चुनाव खर्च का ब्यौरा देने वाले 16 दलों ने 67.22 करोड़ रुपये की धनराशि हासिल करने की बात कही है, लेकिन चुनाव प्रचार आदि गतिविधियों में 213.97 करोड़ रुपये का खर्चा होने का विवरण चुनाव आयोग के समक्ष पेश किया है। वर्ष 2016 में असम, केरल ,पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के चुनाव में छह राष्ट्रीय दलों के अलावा 25 क्षेत्रीय दलों ने चुनाव लड़ा था। चुनाव खर्च का ब्यौरा न देने वाले नौ क्षेत्रीय दलों में जद-यू सबसे आगे है, जिसने पिछले पांच सालों में 15 चुनावों में हिस्सेदारी की, लेकिन चुनावी खर्च का ब्यौरा देने के नियमों का उल्लंघन किया है। हालांकि राजद, शिवसेना, जेएमएम, एनपीपी, रालोद, इनेलो व जेकेएनपीपी भी इस नियम का उल्लंघन करने वाले दलों में शामिल हैं।
आमदनी 355 करोड़ तो खर्च 402 करोड
रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल इन पांच राज्यों में दलों द्वारा एकत्र की गई राशि 355.11 करोड़ रुपये थी, जबकि पार्टियों ने चुनाव प्रचार आदि पर 402.09 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। रिपोर्ट के अनुसार कई राजनीतिक दलों ने नकद और चैक के जरिए खर्च की घोषणा करते हुए उनके द्वारा अपने उम्मीदवारों पर किए गए खर्च को शामिल नहीं किया है। चुनावी खर्च में प्रचार, यात्रा खर्च, उम्मीदवारों का खर्च तथा अन्य खर्च में विज्ञापन आदि का खर्च शामिल हैं। राष्ट्रीय दलों ने केवल चुनाव प्रचार पर 137.46 करोड रुपये और क्षेत्रीय दलों ने 119.33 करोड़ खर्च को अपने विवरण में प्रस्तुत किया है। इस मामले में राष्ट्रीय दलों में भाजपा सबसे आगे रही और उसने 131.72 करोड़ रुपये एकत्र किए। क्षेत्रीय दलों में सपा ने सबसे ज्यादा 35.66 करोड़ रुपये एकत्र किए।
महंगी रही स्टार प्रचारकों की यात्रा
इन चुनावों के दौरान जहां तक यात्रा खर्च का सवाल है उसमें राष्ट्रीय दलों का 51.04 करोड़ रुपये और क्षेत्रीय दलों का मात्र 23.46 करोड़ रुपये रहा है। अपने उम्मीदवारों को भुगतान करने के लिए राष्ट्रीय दलों ने 151.65 करोड़ रुपये तथा क्षेत्रीय दलों ने केवल 60.89 करोड़ रुपये का ही खर्च घोषित किया है। इसके अलावा प्रचार सामग्री,जनसभाओं और मीडिया के विज्ञापन खर्च में राष्ट्रीय दलों का 82.08 करोड़ रुपये तथा क्षेत्रीय दलों का इनसे कहीं ज्यादा 95.49 करोड़ रुपये का खर्चा किया गया है। इसी प्रकार दलों के नेताओं और स्टार प्रचारकों की यात्रा के खर्च में राष्ट्रीय दलों द्वारा दर्शाए गये 47.52 करोड़ रुपये अपने स्टार प्रचारकों और 3.52 करोड़ रुपये पार्टी नेताओं की यात्रा पर खर्च करने का दावा किया है। जबकि क्षेत्रीय दलों के स्टार प्रचारकों की यात्रा पर 12.79 करोड़ रुपये और पार्टी नेताओं की यात्रा का खर्च 10.67 करोड. रुपये घोषित किया है।
क्या है नियम
चुनाव आयोग के नियमों के तहत राजनीतिक दलों को अपने चुनाव खर्च का विवरण विधानसभा चुनाव की अंतिम तारीख से 75 दिनों के अंतर्गत चुनाव आयोग में जमा कराना जरूरी है। व्यय विवरण में चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को प्राप्त कुल राशि नकद,चेक या डीडी और दलों का खर्च नकद, चेक, शेष बकाया राशि के रूप में होता है। चुनाव खर्च ब्यौरे में राजनीतिक दलों को अपने केंद्रीय कार्यालय और राज्य स्तर द्वारा किये गये खर्चों की राशि की जानकारी में प्रचार, यात्रा खर्च, अन्य खर्चो के अलावा उम्मीदवारों को की गई धनराशि भी शामिल है। व्यय ब्यौरा देने की यह अवधि चुनाव आयोग द्वारा जारी अधिसूचना के आधार पर तीन सप्ताह से तीन महीनों के बीच हो सकती है।
आयोग से सिफारिश
एडीआर ने चुनाव आयोग से सिफारिश की है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने व्यय का विवरण चुनाव आयोग को तय समय सीमा के भीतर दिये गये प्रारूप में प्रस्तुत न करने पर उनके खिलाफ सख्त सजा व जर्माना का प्रावधान किया जाना चाहिए। वहीं सभी दानदाताओं की जानकारी और योगदान का ब्यौरा भी सार्वजनिक होना चाहिए, जिन्होंने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों को दान राशि दी हो। वहीं यह भी सुझाव दिया गया है कि जिस प्रकार से उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी के लिए चुनाव आयोग के चुनाव समीक्षक होते हैं उसी तरह राजनीतिक दलों के खर्च की निगरानी के लिए भी समीक्षक होने चाहिए। चुनाव आयोग से सिफारिश की गई है कि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों को अपना खर्च का पूरा और सही बयान दाखिल करने से ही सार्वजनिक जांच करने की व्यवस्था लागू करनी चाहिए।
07July-2017

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