शुक्रवार, 5 जून 2015

भू-जल के गिरते स्तर को सुधारना बड़ी चुनौती!

राज्यों में लागू किया केंद्रीय मास्टर प्लान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मौसम विभाग के मानसून और गर्मी के तापमान को लेकर लगाए अनुमान ने जल प्रबंधन की दिशा में उपाय और योजना बनाने के बावजूद सरकार की चिंताएं बढ़ा दी है। भूजल स्तर को सुधारने के लिए तैयार कराये गये मास्टर प्लान के बावजूद सूखा पड़ने की स्थिति में गिरते भूजल में सुधार करने की योजना केंद्र सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। उधर सरकार दावा कर रही है कि केंद्र के इस मास्टर प्लान को जल्द ही राज्योें में लागू किया जाएगा।
देश में जल संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के माध्यम से गिरते भूजल में सुधार करने की कार्ययोजना भी तैयार कराई गई है। हाल में मौसम विभाग की मानसून को लेकर सामने आए अनुमान को माने तो लगातार बढ़ती गर्मी के तापमान और आने वाले दिनों में सूखे की स्थिति के अनुमान को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में भूजल के स्तर में सात से दस मीटर की गिरावट आ सकती है। मसलन जन सामान्य के लिए जल संकट बढ़ने के साथ रबी की फसल में किसानों के सामने सिंचाई की समस्या बड़ी चुनौती बन सकती है। हालांकि गिरते भूजल पर पेयजल की संभावित किल्लत को लेकर चिंताओं से घिरे होने के बावजूद केंद्र सरकार और जल संसाधन मंत्री उमा भारती का दावा है कि सरकार ने हर स्थिति से निपटने के उपाय कर लिये हैं और किसी के जन जीवन को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। जल संसाधन विभाग को पिछले कुछ दिनों से पेयजल समस्या को लेकर मिल रही रिपोर्ट की माने तो पिछले दिनों छिटपुट बारिश के कारण भी शहर के ग्रामीण क्षेत्रों का भू-जल स्तर करीब 2 से 3 फीट तक नीचे खिसका है। जबकि मौजूदा समय में औसतन भूजल का स्तर 55-60 फीट आंका जा रहा है, लेकिन भू-जल का स्तर और गिरने की संभावना के चलते यह भी तय है कि कुओं और हैण्डपंपों के सूखने के हालात बनेंगे, तो सामने आने वाले पेयजल का संकट से निपटने के लिए सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
इस कारण गिरता है भूजल
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य सीजन की अपेक्षा रबी फसल के लिए धान की खेती करने में अधिक पानी लगता है। एक किलो धान की सिंचाई के लिए 3.5 हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, जबकि खरीफ फसल की अपेक्षा किसानों को इस मौसम में कम धान मिलता है। इसलिए विशेषज्ञ इसमें दलहन, तिलहन खेती करने की सलाह देते हैं। खेती की इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान खेतों में ट्यूबवेल लगाकर मोटरपंपों का इस्तेमाल करते हैं। इसके कारण भू-जल का ग्राफ गिरता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अलनीनों और लानीनों प्रभाव से पहले की मौसम विभाग और पीएचई की रिपोर्ट में भू-जल में गिरावट का अनुमान बेहद चिंता का विषय है। इसके लिए सरकार को समूचे खेती और जल संरक्षण के सिस्टम में सुधार करने की जरूरत है। तकनीकी तौर पर दुरुस्त और गुणवत्ता पूर्ण तालाबों और पौधरोपण से इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। क्योंकि गर्मी के दिनों में नदी, तालाबों का पानी सूखता है। वहीं बैमौसम खेती के लिए जमीन से पानी निकालना भी भूजल के स्तर में कमी का बड़ा कारण है।
क्या है सरकार की योजना
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि भूजल का गिरता स्तर बेहद चिंताजनक पहलू है। इस तथ्य को संज्ञान में रखते हुए सरकार ने वर्षा जल एवं बाढ़ के जल के संचयन के साधनों को सतही और जल संसाधन के कुशल प्रबंधन को मजबूत करने पर बल दिया है। गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए उनके मंत्रालय ने जल संरक्षण हेतु एक मास्टर प्लान तैयार किया है जिसे जल्द ही सभी राज्यों में परिचालित किया गया है। वहीं सरकार ने इस मास्टर प्लान के तहत पेड़ों की कटाई रोकने तथा ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करने का उपाय है ताकि पेड़ों की जड़े जड़ें पानी को रोककर वाटर लेबर रिचार्ज करती रहें। उमा भारती ने कहा कि ऐसे संकट से लोगों को प्रभावित न होना पड़े इसके लिए सरकार ने कई अन्य ठोस उपाय भी किये हैँ।
05June-2015

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