श्रमिक संगठनों पर शिकंजा कसने की तैयारी!
श्रमिकों के हित में जल्द आएगा नया श्रम कानून बिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की दिशा में श्रम कानूनों में बदलाव करते
हुए एक ऐसा श्रम विधेयक का मसौदा तैयार कर चुकी है,जिसमें श्रमिक संगठनों
पर पूरी तरह से शिकंजा कसा जाएगा और कर्मचारियों के हितों की रक्षा हो
सकेगी।
मोदी सरकार ने केंद्र में सत्ता संभालते ही श्रम कानूनों
में व्यापक बदलाव करने के संकेत दे दिये थे। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में
नये श्रम कानून संबन्धी विधेयक का मसौदा तैयार हो चुका है। श्रम एवं रोजगार
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नए श्रम कानून में सरकार ने श्रमिकों
की भर्ती-बर्खास्तगी के सख्त कानूनों में ढील देने, श्रमिक यूनियन बनाने
के नियमों को अपेक्षाकृत अधिक कठिन बनाने और कर्मचारियों के हितों की रक्षा
के लिए छंटनी से जुड़े पैकेज को तिगुना करने प्रस्ताव किया हैं। इस बात के
संकेत केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय पहले भी दे चुके
हैं। दत्तात्रेय का कहना है कि देश में कारोबार का वातावरण और सुगम बनाने
और रोजगार के अवसरों के सृजन में बढोतरी के उपायों के तहत एक विधेयक का
मसौदा तैयार कर लिया है। सूत्रों के अनुसार विधेयक के इस मसौदे में ट्रेड
यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम और औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश)
अधिनियम को एकीकृत कर औद्योगिक संबंधों के लिए एकल संहिता बनाने का
प्रावधान किया गया है। मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार का मकसद है कि देश
में उद्योगों और श्रमिकों के बीच समरसता का माहौल तैयार करने और ज्यादा से
ज्यादा रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया जाए। सरकार श्रम कानूनों को आसान बनाने
और तर्कसंगत बनाने के लिए श्रमिको के हितों को दांव पर लगाने के पक्ष में
नहीं है, बल्कि श्रमिकों के हितों की रक्षा करके कारोबार को सुगम बनाने की
दिशा में कदम बढ़ा रही है। सूत्रों के अनुसार उम्मीद है कि सरकार इस नये
श्रम कानून संबन्धी विधेयक को संसद के आगामी मानसून सत्र में पारित कराने
का प्रयास करेगी। हालांकि श्रमिक संगठन एवं टेÑड यूनियने सरकार के इस नए
कानूनों का पुरजोर विरोध कर रही है। इस विरोध से निपटने के लिए
प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप से पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली के
नेतृत्व में मंत्रिस्तरीय समिति गठित कर दी है, जिसमें समिति इन मुद्दों से
निपटने के लिए श्रमिक संगठनों से परामर्श करने की रणनीति बनाई है, जिसमें
श्रमिक संगठनों को मनाने के प्रयास हैं।
नए विधेयक में ये हैं प्रावधान
श्रम
एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार कामगारों के हितों की रक्षा के लिए छंटनी
या इकाई बंद करने के लिए प्रतिष्ठानों के लिए नोटिस की अवधि एक माह से
बढ़ाकर तीन महीने की जा रही है। वहीं छंटनी के शिकार कामगारों को 15 दिन के
बजाए 45 दिन का औसत वेतन देने का प्रावधान किया जा रहा है। इस विधेयक में
यह प्रस्ताव भी किया गया है कि श्रमिक तीन साल के अंदर छंटनी पर आपत्ति जता
सकेंगे। छंटनी के अधिकार में फेरबदल करते हुए केंद्र सरकार ने नए कानून
में ऐसी कंपनियों को बिना आधिकारिक मंजूरी के छंटनी का अधिकार देने का
प्रस्ताव किया है, जिनके पास 300 तक कामगार हों। नये कानून के तहत हर
कर्मचारी न्यूनतम वेतन का पात्र होगा, लेकिन इसमें श्रमिकों के लिए ट्रेड
यूनियन बनाना या हड़ताल पर जाना मुश्किल बनाया गया है। सूत्रों के मुताबिक
संगठित क्षेत्र में सिर्फ कर्मचारियों को यूनियन बनाने की मंजूरी होगी और
किसी बाहरी व्यक्ति को श्रम संगठन का अधिकारी नहीं बनाया जा सकता।
गैर-संगठित क्षेत्र में दो बाहरी प्रतिनिधि ट्रेड यूनियन के सदस्य हो सकते
हैं। प्रस्तावित कानून के तहत समझौता प्रक्रिया जारी रहने के दौरान श्रमिक
हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। इसी प्रकार सार्वजनिक सेवाओं से जुड़ी इकाईयों
में हड़ताल के लिए नोटिस देने के मौजूदा प्रावधान से हटकर अब सभी
प्रतिष्ठानों में छह सप्ताह पहले नोटिस दिए बिना हड़ताल नहीं की जा सकेगी।
सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल माना जाएगा। सरकार इस नए कानून में श्रम
अदालत समेत विभिन्न तरह के मध्यस्थता मंच को खारिज करने का प्रावधान शामिल
है, लेकिन औद्योगिक पंचाट अस्तित्व में बने रहेंगे।
26June-2015
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