रविवार, 22 दिसंबर 2013

म से मुलायम-म से मोदी के बीच सियासी जंग!

भाजपा की तरह सपा भी हाईटैक हुई
ओ.पी. पाल. बदायूं (उ.प्र.)।

आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जी-जान से जुटे राजनीतिक दलों की नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। सबसे ज्यादा 80 संसदीय सीटों वाले यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी अपना मुकाबला भाजपा से ही मानकर चल रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव इस बात को स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि म से मुलायम और म से मोदी के बीच ही जंग होनी है। शायद तभी तो जिस दिन उत्तर प्रदेश में भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की रैली होती है तो उसी दिन सपा भी अपनी रैली आयोजित करती आ रही है, लेकिन अभी तक मोदी की रैली का मुकाबला करने में सपा कामयाब नहीं हो पाई है।
नरेन्द्र मोदी की बनारस में हुई रैली के मुकाबले भले ही सपा प्रमुख ने इसी दिन बदांयू में हुई सपा की विकास रैली की भीड़ को देखकर उत्साहित स्वर में बोला हो कि बदायूं की जनता ने भाजपा यानि मोदी की रैली को भी पछाड़कर यह साबित कर दिया है कि सूबे की जनता राज्य में मोदी के पैर नहीं जमने देगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि बदायूं में सपा की विकास रैली इससे पहले बरेली में 21 नवंबर की रैली से बेहतर भीड़ वाली कही जा सकती है। सपा की तकनीकियों से युक्त इस रैली ने अपनी पिछली रैलियों के रिकार्ड को ही दुरस्त किया है, हालांकि यूपी में मोदी की अभी तक हुई रैलियों से मुकाबला करना बेमाने होगा। हां इतना जरूर है कि भाजपा और कांग्रेस की रैलियों में अपनाई जाने वाली तकनीकों को अभी तक कंप्यूटर विरोधी मानी जाने वाली सपा ने भी अब लेपटॉप की राजनीति शुरू कर दी है। इसका असर बरेली की तरह ही बदायूं जिले के नजदीक गुनौरा वाजिदपुर स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास व विकास रैली में भी दिखा, जहां मंच की साजसज्जा तकनीक पर आधारित रही, जिसमें आधुनिक तकनीक थ्री डी साउंड सिस्टम और विशाल एलईडी की मदद से बने हाई-फाई सिस्टम से सुसज्जित मंच तैयार किया गया था। मंच के साथ ही पंडाल भी आधुनिक तकनीक से तैयार किये गये थे। इस रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भीड़ को देखकर गदगद नजर आए और अपने परिवार के ही बदायूं के सांसद धर्मेन्द यादव की पीठ थपथपाने व उनकी तारीफों के पुल बांधने में भी पीछे नहीं रहे। सपा प्रमुख मुलायम सिंह तो रैली की सफलता से इतने उत्साहित नजर आए कि उन्होंने कहा कि लखनऊ फतेह हो चुका है और अब लगता है कि दिल्ली फतेह दूर नहीं है।
रैलियों से जवाब देने की होड़
लोकसभा चुनाव की सियासत में जब रैलियों की बात चलती है, तो देशभर में सबसे पहले नरेंद्र मोदी की रैलियों के दृश्यों का ही जिक्र सामने आता है। मोदी की रैलियों की चर्चा देशभर में लोकप्रिय हो रही है तो उत्तर प्रदेश की सियासत में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी भी नरेन्द्र मोदी को रैलियों से ही प्रेरित होकर जवाब देने में जुटी हुई है। जहां तक इन रैलियों का सवाल है उसमें मोदी की बनारस रैली के मुकाबले सपा ने बदायूं में रैली करके जवाब देने का प्रयास किया। इससे पहले 21 नवंबर को जब नरेन्द्र मोदी आगरा में गरजे तो सपा के मुखिया बरेली में गरजे। इससे पहले सपा आजमगढ़ और मैनपुरी में भी रैलियां कर चुकी हैं, लेकिन इन सभी रैलियों के मुकाबले बदायूं की रैली की भीड़ देखकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की जान में जान आई। सपा अहसास कराना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सपा के जनाधार वाला सूबा है और यहां वह अन्य किसी दल से अपने आपको कम नहीं आंकवाना चाहती, तभी तो इस रैली में भीड़ के साथ ग्लैमर और तकनीक भी नजर आई।
करोड़ों रुपये की परियोजनाओं को तोहफा
बदायूं रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 1184.21 करोड़ की 56 परियोजनाओं का शिलान्यास किया। इसमें 545 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस राजकीय मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास के अलावा बदायूं जिलें के लिए ही कुल 1153.18 करोड़ रुपए लागत की 34 परियोजनाओं के साथ ३१.०२करोड़  रुपए की 22 परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इसी प्रकार जनपद सम्भल की 179.42 करोड़ रुपए की 5 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं 4.53 करोड़ रुपए लागत की 2 परियोजनाओं का लोकार्पण किया गया। जनपद बदायूं में कुल 1184 करोड़ 21 लाख रुपए की 56 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं लोकार्पण करने के साथ ही जनपद सम्भल की 183.95 करोड़ रुपए की 7 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं लोकार्पण भी किया गया।
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राग दरबार
बेमन का इतिहास
संसद के शीतकालीन सत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल विधेयक को मंजूरी देकर केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस इसे इतिहास रचने से कम नहीं मान रही है। यही नहीं इस बेमन वाले इतिहास बनाने का श्रेय लेने की भी सपा को छोड़कर लोकपाल का समर्थन करने वाले ज्यादातर दलों में तक लगी हुई है। लोकपाल पास होने के बाद आम चर्चा है कि सरकार और राजनीतिक दलों ने इसे बेमन से पारित कराया है। जिसका कारण पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे खासकर दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे अण्णा हजारे के आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन ने सभी बड़े छोटे दलोे को जो सबक दिया, उसी नतीजे से लोकपाल विधेयक पास हो सका है? हो भी क्यों न सभी दलों की आप ने जो हवा बदली है और सभी दलों को लोकसभा चुनाव में भी जाना है। इस बदले राजनीतिक माहौल तो इन राज्यों के चुनाव नतीजे आते ही बदल गई थी, जिसके बाद संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग कर रहे दल भी चुप्पी साध गये और आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर बेमन से संसद सत्र में हिस्सा लेते रहे। सत्र के एजेंडे में 38 बिल थे, लेकिन दिल्ली में आप ने सरकार और सभी दलों को लोकपाल विधेयक को प्राथमिकता पर लाने के लिए मजबूर कर दिया। यही नहीं हुआ लोकपाल विधेयक को कमजोर साबित करने वाले दलों में भी लोकपाल विधेयक को समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया और इसके बावजूद सपा को छोड़कर ज्यादातर दलों ने उसे पारित कराने में समर्थन देने की मजबूरी को परोसा। वैसे भी एक कहावत आजादी के समय से ही चलजी आ रही है कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। यह कहावत कुछ लोकपाल बिल को संसद की मंजूरी में साफ नजर आई और पिछले 45 साल से इतिहास के पन्नों में दर्ज होने की बाट जोह रहे लोकपाल को पारित करके एक बेमन का इतिहास रच दिया गया।
अधूरी रह गई युवराज पुकार
संसद के शीतकलीन सत्र में राज्यसभा से पारित होकर बुधवार को जब संशोधन पारित कराने के लिए लोकपाल विधेयक लोकसभा में पहुंचा तो सदन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष और युवराज राहुल गांधी को भी बोलने का मौका मिला। उन्होंने लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए इतिहास रचने का गवाह बनते हुए सदन में पुकार लगाई कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल के अलावा कम से कम आठ विधेयक संसद में अभी लंबित है जिन्हें पारित कराने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। लेकिन शायद यह सत्र लोकपाल बिल पारित कराने के लिए ही बुलाया गया हो इससे तो ऐसा ही लगता है कि लोकपाल विधेयक के पारित होने के बाद ही निर्धारित अवधि से दो दिन पहले ही लोकसभा को अनिश्चित कालीन के लिए स्थगित कर दिया गया, तो सदन में मौजूद सदस्य भौंचक्के रह गये और विपक्षी दलों के सदस्य ही नहीं मीडियाकर्मियों में चर्चा होती रही कि कम से कम कांगे्रस युवराज की पुकार तो सुन ही ली जाती, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी कानून पास कराने के लिए गंभीर रूप ले चुके थे।
हमनाम का हंगामा
संसद के शीतकालीन सत्र में उच्च सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले बाली में हुए अंतर्राष्टÑीय व्यापार संगठन के सम्मेलन में भारत के हुए समझौते पर चर्चा कराने का निर्णय लिया गया, जिसमें केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को जवाब देना था। इस संक्षिप्त चर्चा की शुरूआत विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने की और बारी-बारी से सभी दलों को मौका दिया गया। चर्चा के लिए शांत चल रही सदन की कार्यवाही में उस समय हंगामा हो गया जब उपसभापति ने चर्चा में हिस्सा लेने के लिए मनोनीत सदस्य अशोक कुमार गांगुली का नाम पुकारा। यह नाम आते ही तृणमूल कांग्रेस के सदस्य हाथों में पोस्टर लेकर हंगामा करते हुए आसन के करीब आ गये और अशोक गांगुली को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे। बाद में सदस्यों की समझ में आया कि हंगामा क्यों हुआ। दरअसल पश्चिम बंगाल के उस जज का नाम भी अशोक कुमार गांगुली है जिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप है। उधर अपनी सीट पर बोलने के लिए खड़े हुए अशोक गांगुली जब बोलने लगे तो उनके मुख से निकला कि वह तो सबकुछ भूल गये कि उन्हें क्या बोलना था और अब वह याद करते हुए कुछ तो बोलेंगे ही।
22Dec-2013

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