शनिवार, 7 दिसंबर 2013

सांप्रदायिक हिंसा बिल पर बवाल से बैकपुट सरकार!

नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री की चिठ्ठी के बाद मसौदे में बदलाव का फैसला
ओ.पी.पाल
संसद के शीतकालीन सत्र के एजेंडे में शामिल न होते हुए भी सरकार की ओर से इसी सत्र में सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक लाने की सुगबुगाहट के बीच विपक्षी ही नहीं, बल्कि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दलों के बवाल के सामने इस मुद्दे पर सरकार को बैकपुट पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा है। भाजपा के पीएम उम्मीदवार नेरन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के बाद केंद्र सरकार ने इस विधेयक के मसौदे में बदलाव करने का निर्णय ले लिया है।
संसद परिसर में गुरूवार को जैसे ही गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि सरकार इसी सत्र में सांप्रदायिक हिंसा रोधी विधेयक लेकर आ रही है, तो इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के तेवर गर्म हुए और इस मुद्दे पर सियासी बवाल शुरू हो गया। भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने भी पीएम को विरोध स्वरूप चिठ्ठी लिखी। इस बवाल के बाद शीतकालीन सत्र में विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक पर हंगामे के आसार बढ़ते देख केंद्र सरकार ने विधेयक के मसौदे में बदलाव करने का फैसला कर लिया है, जिसमें भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री को लिखी चिठ्ठी के मजमून ने तो सरकार के तेवर नरम ही कर दिये। भाजपा तो पहले से ही भाजपा इस विधेयक को भेदभावपूर्ण और संघीय ढांचे पर हस्तक्षेप करार देकर विरोध करती आ रही थी, वहीं इस विधेयक पर मोदी के बयान का समर्थन करके शिवसेना ने भी सरकार को घेरा, तो इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता भी इस प्रस्तावित विधेयक को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर विरोध जता चुकी हैं। दोनों सीएम का मानना है कि इस बिल के लागू होने से राज्य के मामलों में केंद्र का दखल बढ़ जाएगा। यही नहीं इस विधेयक को एजेंडे में शामिल न होने के बावजूद इसी सत्र में लाने पर अड़ी सरकार को बाहर से समर्थन कर रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों का भी विरोध झेलना पड़ेगा, जिनके साथ वामपंथी दलों ने भी साफ कर दिया है कि मौजूदा स्वरूप में उन्हें यह विधेयक स्वीकार नहीं है। ऐसे में इस विधेयक पर चौतरफा घिरी यूपीए सरकार को आखिर बैकपुट पर आना पड़ा और सरकार इस विधेयक में संशोधन करके नया मसौदा बनाने के लिए तैयार हो गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब इस बवाल को देखते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक को आमसहमति बनने के बाद ही संसद में लायेगी। इससे पहले गुरूवार हो ही अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने भी संसद के मौजूदा सत्र में ही सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के आसानी से पारित होने की उम्मीद जताते हुए कहा कि यह विभाजनकारी विधेयक नहीं है, लेकिन इसे लेकर आम सहमति बनाने के प्रयास जारी हैं।
इसलिए है मौजूदा विधेयक का विरोध
सरकार द्वारा लाये जाने वाले मौजूदा सांप्रदायिक हिंसा रोधी विधेयक को लोने का मकसद केंद्र व राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा को निष्पक्षता के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार बनाना है। इस विधेयक में केंद्र द्वारा राष्ट्रीय सांप्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति प्राधिकरण का गठन भी प्रस्तावित है। इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमे दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का भी प्रस्ताव है। हालांकि यह विधेयक गृहमंत्रालय संबन्धी समिति के पास है, लेकिन इसमें शामिल इन प्रस्तावों का भाजपा समेत अनेक दल विरोध कर रहे हैं।
नौकरशाह भी नाखुश
सूत्रों की माने तो गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने विधेयक के मसौदे में कुछ क्लॉज पर आपत्ति दर्ज कराई है। इनमें सांप्रदायिक हिंसा फैलने पर नौकरशाहों की जिम्मेदारी शामिल है। सूत्रों का कहना है कि सामान्य ड्यूटी निभाने में ये बाधा पैदा करेगा। विधेयक का प्रपोजल व्यापक तौर पर सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011 के प्रावधानों पर केन्द्रित है। गौरतलब है कि इस विधेयक के मसौदे को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया था। इस मौजूदा विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को निशाना बनाकर की गई हिंसा को रोकने और कंट्रोल करने के लिए निष्पक्ष और भेदभावरहित ढंग से अधिकारों का इस्तेमाल करना केंद्र, राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों की ड्यूटी का अनिवार्य हिस्सा होगा।
06Dec-2013

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