समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों के साथ मंथन शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश
 में बढ़ते जल संकट और गिरते भूजल की चिंता से निपटने के लिए केंद्र सरकार 
ने जल सरंक्षण और जल प्रबंधन के लिए कई योजनाएं पटरी पर उतारी हैं, लेकिन 
लगातार गिरते भूजल और बढ़ते जल संकट संकेत दे रहे हैं कि यदि इस समस्या में 
सुधार न हुआ तो वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का सबसे बढ़ा जल संकट वाला देश बन 
जाएगा।
देश ही नहीं दुनियाभर में तेजी के साथ गिरते भूजल पर किये
 गये अध्ययन के बाद अपनी ताजा रिपोर्ट में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने 
साफतौर पर संकेत दे दिये हैं। मसलन भारत भी हर साल विश्व जल दिवस मनाया 
जाता है और जल संकट में तेजी से गिरते भूजल के स्तर को सुधारने की योजनाओं 
को आगे बढ़ाने के दावे किये जाते रहे हैं, लेकिन इस साल देश में पिछले दशकों
 के रिकार्ड संकट ने वैज्ञानिकों के ऐसे अध्ययन को हवा दी है कि यदि जल्द 
ही भू-जल के गिरते स्तर और सूखे से निपटने के उपाये न किये गये तो भारत 
2025 तक दुनिया का पहला जल संकट वाला देश बन जाएगा। अध्ययन में कहा गया है 
कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण 
घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में लगातार वृद्धि हो रही 
है। देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा 
भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। हालांकि घटते 
जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती 
हैं, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर जिन ठोस प्रयास 
के दावे किये जा रहे हैं उनसे मौजूदा छाए जल संकट के बादलों से कोई नतीजे 
आते नजर नहीं आते।
विशेषज्ञों के साथ मंथन शुरू
केंद्र
 सरकार ने गिरते भूजल स्तर की समस्या से निपटने के लिये गुरुवार को यहां 
‘भूमिगत जल की प्राकृतिक भरपाई, विकास और संभावना’ विषय पर एक कार्याशाला 
आयोजित की, जिसमें विशेषज्ञओें के साथ देश में जल संकट से निपटने के लिए 
तकनीकीतौर पर उपाय शुरू करने की योजनाओं को लेकर मंथन शुरू किया है। सरकार 
ने देश में जल सरंक्षण और जल प्रबंधन के प्रति जागरूकता के साथ जल सुरक्षित
 करने की अपील भी की है। इस दौरान भूमि-जल की प्राकृतिक भरपाई के लिए 
संभावनाओं को तलाशने के लिए भूमिगत जल भंडार, नदियों के कटाव और बाढ़ 
क्षेत्रों में मोटे अनाज के ज्यादा उत्पादन करने जैसे उपायों के सुझाव भी 
सामने आये। वहीं इसके लिए भूजल के दोहन को रोकने, जल सरंक्षण और प्रबंधन को
 बढ़ावा देने के साथ छतों पर वर्षा जल संचय जैसी प्रचलित प्रकियाओं को भी 
अपनाने पर बल दिया गया। भूजल के गिरते स्तर में सुधार के लिए कुछ अध्ययन और
 अनुसंधानों की रिपोर्ट का भी जिक्र किया गया।
जल संकट के प्रमुख कारण
दरअसल
 देश में जिस तरह से मानवीय जरूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भू-जल
 का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भूजल का स्तर गिरता जा रहा है। 
पिछले एक दशक के भीतर भूजल स्तर में आई गिरावट ताजा आंकड़े गवाह बन रहे हैं।
 मसलन दस साल पहले तक जहां 30 मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था। वहां अब 
पानी के लिए 60 से 70 मीटर तक की खुदाई करनी पड़ती है। जहां तक भारत का सवाल
 है, उसमें भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा ताज आंकड़ों के अनुसार देश के 
अधिकांश बड़े जलाशयों का जलस्तर में भी पिछले एक दशक के मुकाबले न्यूनतम जल 
स्तर आंका गया है। सरकार जल दोहन को रोकने की दिशा में जल कानून का मसौदा 
भी तैयार कर रही है।
17June-2016 

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