गुरुवार, 7 मई 2015

तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को न्याय का इंतजार


-मुख्य न्यायाधीश ने दिया पांच साल में मामले निपटाने का लक्ष्य
-सुप्रीम कोर्ट में 61 हजार व उच्च न्यायालयों में 45 लाख मामले
-निचली अदालतों में 2.65 करोड़ मुकदमे वर्षों से पड़े हैं लंबित
ओ.पी. पाल
, नई दिल्ली
फिल्म अभिनेता सलमान खान की कार के नीचे कुचलकर जान गंवाने वाले नूरुल्लाह महमूद शरीफ व अन्य चार घायलों के परिजनों को भले ही बुधवार को तेरह साल बाद न्याय मिल गया किन्तु देश के तीन करोड़ से ज्यादा लोग अभी भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं। उनके मुकदमे छोटी से बड़ी अदालतों तक लंबित हैं। जजों की कमी के कारण उनका समयबद्ध निस्तारण नहीं हो पा रहा है।
देश में न्यायिक सुधार के लिए सरकार की जारी कवायद के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने बीते माह उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन के बाद कहा था कि अगले पांच साल में अदालतों में कोई भी मामला लंबित नहीं रहेगा। देश के शीर्ष अदालत से लेकर निचली अदालतों पर मुकदमों को बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। विधि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देशभर की अदालतों में करीब 3.06 करोड़ मामले लंबित हैं। इनमें उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 61,300 है। लगभग 45 लाख मामले देश के 24 उच्च न्यायालयों में निर्णय की बाट जोह रहे हैं। इनके अलावा जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में तो करीब 2.65 करोड़ मामले लंबित हैं। जहां तक हाई कोर्ट में लंबित लाखों मामलों का सवाल है उसमें करीब सवा दस लाख तो आपराधिक मामले हैं जबकि करीब 34.33 लाख मामले सिविल कोर्ट में लंबित पड़े हुए हैं। सबसे ज्यादा 10.44 लाख मामले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित हैं, जिनमें 3.48 लाख आपराधिक और बाकी सिविल मामले शामिल हैं। सबसे कम 120 लंबित मामले सिक्किम हाई कोर्ट में निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित 64,652 मामलों समेत दिल्ली की अदालतों में करीब 5.86 लाख मामलों को निपटाना बाकी है। इन लंबित मामलों के अंबार में निचली अदालतों में करीब 3.82 मामले आपराधिक हैं जिनमें निर्णय का सालों से इंतजार है।
26 फीसदी मामले पांच साल से पुराने
विधि मंत्रालय के अनुसार सबसे ज्यादा बोझ ढाई करोड़ से भी ज्यादा लंबित मामलों के साथ जिला एवं अधीनस्थ अदालतों पर बना हुआ है, जिनका निपटान करने की चुनौती है। इनमें से 26 फीसदी मामले 5 साल से अधिक पुराने और 40 फीसदी मामले एक साल से अधिक पुराने हैं। शेष मामले एक साल से कम अवधि के हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रति दस लाख की आबादी पर अदालतों की संख्या 15 है, जिन्हें सरकार अगले पांच साल में बढ़ा कर 30 करने की योजना बना रही है।
18 प्रतिशत मामले चेक बाउंस के
देश की करीब 16 हजार अदालतों में लंबित 3 करोड़ से ज्यादा मामलों में से 18 फीसदी मामले चेक बाउंस के हैं, 10 फीसदी मामले मोटरवाहन दावों संबंधी विवाद के और 5 से 7 फीसदी मामले बिजली कानून से संबंधित हैं। यानि चेक बाउंस, मोटरवाहन दावों संबंधी विवाद, बिजली कानून संबंधी मामलों की संख्या करीब 33 फीसदी से 35 फीसदी आंकी गई है।
संसदीय समिति की चिंता
देश की निचली अदालतों में ढाई करोड़ से अधिक लंबित मामलों पर संसदीय समिति ने भी चिंता जताई थी, जिनके निपटान के लिए जजों की रिक्तियों को भरने की सिफारिश केंद्र सरकार से की थी। संसदीय समिति ने देश की निचली अदालतों में इतने बड़े पैमाने पर लंबित मामलों को गंभीर विषय करार दिया है। समिति का कहना था कि निचली अदालतों में इतनी बड़ी संख्या में मामलों के लंबित रहने का कारण आबादी के हिसाब से न्यायाधीशों की संख्या कम होना और प्रक्रिया एवं वकीलों के हितों के मद्देनजर वाद का खर्चीला होना, खराब आधारभूत संरचना, न्यायिक कर्मियों की कमी और कमजोर वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र आदि है।
सुप्रीम कोर्ट ने घटाई संख्या
सुप्रीम कोर्ट के ताजा आंकड़ों के मुताबिक जनवरी में अदालत में 61,848 मामले लंबित थे, जिसमें फरवरी में पंजीकृत 7083 नए मामलों के साथ लंबित मामलों की संख्या 68,931 हो गई, लेकिन इनमें 6421 को खारिज कर दिया गया। जबकि 1210 मामले पहले से लंबित मामलों में से खारिज किये गये। इस प्रकार फरवरी के अंत में सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 61,300 रह गई है।
07May-2015


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