सोमवार, 11 मई 2015

कानून बनने के इंतजार में राज्यों के 44 विधेयक!

छत्तीसगढ़ के पांच महत्वपूर्ण बिल भी लटके
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में जहां अभी सैकड़ो विधेयक कानून बनने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार के पास राज्यों की सरकार से पारित होकर आने वाले करीब चार दर्जन विधेयक मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। संसद में राज्यों के इन विधेयकों की मंजूरी न मिलने के कारण राज्यों में बहुत से कानूनों को लागू नहीं किया जा सका है। मसलन राज्यों की विधानसभाओं से पारित होकर आने वाले ऐसे विधेयक केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की खाक छानने को मजबूर हैं।
देश के विभिन्न राज्यों सरकार द्वारा विधानसभाओं में पारित ऐसे विधेयकों की संख्या भी केंद्र सरकार के पास लगातार बढ़ती जा रही है, जिन्हें राज्य में कानून का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार और और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी का बेसब्री से इंतजार है। राज्य सरकारों से केंद्र की जांच पड़ताल और राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए पिछले चार साल में अलग अलग राज्यों से केंद्र को करीब 119 विधेयक मिले थे, जिन्हें विधानसभाओं या राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेजा जाता है और केंद्र सरकार संबन्धित मंत्रालयों और विभागों से इनकी जांच-पड़ताल कराकर अंतिम रूप देती है। इसके बाद इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। खास बात यह है कि लंबित इन विधेयकों में कई इतने महत्वपूर्ण हैं, जिनके केंद्र सरकार के पास लंबित होने के कारण राज्यों को कभी-कभी नाजुक स्थिति के दौर से गुजरने के लिए मजबूर रहना पड़ता है। हालांकि इस दौरान केंद्र सरकार ने पिछले चार साल में आए इन विधेयकों में से 75 विधेयकों को अंतिम रूप दिया है। हालांकि मौजूदा साल में केंद्र को मिले सभी 14 बिलों पर काई कार्रवाही आगे नहीं बढ़ सकी है। हालांकि इससे पहले केंद्र ने राज्यों से वर्ष 2014 में मिले 29 बिलों में से 19, वर्ष 2013 में 31 में से 20, वर्ष 2012 के 45 में से 36 बिलों को अंतिम रूप दिया है। गृह मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि फिलहाल केंद्र सरकार के पास राज्यों के 44 ऐसे विधेयक है जिन्हें अंतिम रूप दिया जाना है। इनमें छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा पारित छत्तीसगढ़ धर्म  स्वातंत्रय (संशोधन) विधेयक-2006 तथा जमाकतार्ओं का हित संरक्षण विधेयक-2005 अभी तक अटका हुआ है।
छत्तीसगढ़: पांच विधेयकों की मंजूरी का इंतजार
छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की ओर से केंद्र को पिछले चार साल में सात विधेयक भेजे गये, लेकिन इस दौरान केंद्र ने केवल छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (डिवीजन बैंच को अपील संशोधन) विधेयक-2013 और छत्तीसगढ़ सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक-2013 को ही अंतिम रूप दिया है। जबकि इनसे पहले लंबित छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्रय (संशोधन) विधेयक-2006 तथा जमाककतार्ओं का हित संरक्षण विधेयक-2005 हर साल अटकते आ रहे हैं। इन बिलों के अलावा छत्तीसगढ़ शैक्षिक संस्थान(प्रबंधन)विधेयक-2013, दंड विधि (छत्तीसगढ़ संशोधन) विधेयक-2013 तथा भारतीय वन (छत्तीसगढ़ संशोधन) विधेयक-2014 भी केंद्र सरकार के समक्ष राष्टÑपति की मंजूरी के का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के दो बिल अटके
केंद्र सरकार के समक्ष जांच पड़ताल और राष्ट्रपति  की मंजूरी के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने भी इन चार सालों में तीन विधेयक भेजे हैं,जिनमें दंड विधि (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2014 और पंजीकरण (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2014 पर राष्टÑपति की मंजूरी के इंतजार में केंद्र सरकार में जांच पड़ताल के लिए खाक छान रहे हैं। जबकि राज्य के दंड प्रक्रिया संहिता (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2013 को केंद्र सरकार अंतिम रूप दे चुकी है। इससे पहले भी केंद्र सरकार मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश स्टाम्प विधेयक-2009, मध्य प्रदेश आतंकवादी एवं उच्छेदक गतिविधियों तथा संगठित अपराध निवारण विधेयक-2010 तथा मध्य प्रदेश विधेयक कपास बीज, विक्रय का विनियमन तथा विक्रय मूल्य निर्धारण विधेयक को भी प्राथमिकता के साथ अंतिम रूप दे चुकी है।
हरियाणा को विश्वविद्यालय की दरकार
हरियाणा सरकार के केंद्र सरकार के समक्ष आए तीन विधेयकों में राज्य को अभी मीरपुर में इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय हेतु इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर (संशोधन) विधेयक -2014 के अंतिम रूप मिलने का इंतजार है। जबकि केंद्र सरकार राज्य के दो पुराने विधेयकों दि हरियाणा श्रीदुर्गा माता श्राइन विधेयक-2012 तथा हरियाणा वित्तीय प्रतिष्ठानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण विधेयक-2013 का निपटान कर चुकी है।
11May-2015

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