रविवार, 17 मई 2015

संसद में नौ साल से मौन हैं ये माननीय!

जनता की अपेक्षाओं से कोसो दूर सांसद
ओ.पी. पाल,
नई दिल्ली।
भारतीय राजनीति में अपने सांसदों या विधायकों से जनता को क्षेत्र व जनहित के मुद्दे उठाने की अपेक्षाएं रहती हैं, लेकिन उच्च सदन में एक ऐसे सांसद भी हैं जिन्होंने पार्टी मुख्यिा से नजदीकियों की वजह से राज्यसभा में दूसरा कार्यकाल भी हासिल कर लिया, लेकिन उच्च सदन में लगातार नौ साल से उत्तर प्रदेश की जनता का प्रतिनिधित्व करते आ रहे ये माननीय पूरी तरह से मौन हैं। मसलन इन्होंने सदन में न तो कोई सवाल ही किये और न ही किसी चर्चा में हिस्सा लिया।
देश की सर्वोच्च पंचायत कही जाने वाली संसद और वह भी उच्च सदन में बसपा प्रमुख मायावती की मेहरबानी से उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में अपने दूसरे कार्यकाल में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे बसपा सांसद मुनकाद अली को मौनी बाबा की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मसलन अपने पहले छह साल और दूसरे कार्यकाल में तीन वर्ष के नजदीक पहुंचे बसपा सांसद मुनकाद अली उच्च सदन में पूरी तरह से मौन है। उच्च सदन में ये ऐसे अकेले माननीय हैं जिन्होंने अपने नौ साल के कार्यकाल में न तो कभी सदन में किसी लोकमहत्व या अन्य किसी मुद्दे पर जनता की आवाज को बुलंद करने का प्रयास किया और न ही कोई सवाल
उठाया। यह भी दिलचस्प बात है कि दूसरे कार्यकाल में उच्च सदन में उपस्थिति के लिहाज से इस माननीय की हाजिरी अपनी नेता मायावती के बराबर ही है। शायद यह इसलिए कि वह सदन में उसी दिन प्रवेश करते हैं जिस दिन बसपा प्रमुख मायावती भी संसद आती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के नजदीक कस्बा किठौर निवासी मुनकाद अली बसपा के ऐसे भाग्यशाली नेता हैं जिन पर उत्तर प्रदेश मे राजनीति की प्रमुख धुरी माने जानी वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अगर किसी पर ज्यादा विश्वास करती हैं। तभी तो अपै्रल 2006 में मायावती ने इन माननीय को राज्य की राजनीत से उठाकर केंद्रीय राजनीति में लाकर राज्यसभा भेज दिया था। मायावती के इस फैसले से पार्टी के अन्य नेताओं को भी हैरानी हुई थी। यही नहीं उन्हें दूसरा कार्यकाल भी दे दिया गया। संसद के उच्च सदन कहे जाने वाली राज्यसभा देशभर के 245 सदस्य हैं, जिसमें बसपा के मायावती समेत बसपा के 10 सदस्य हैं। बसपा सदस्यों में मुनकाद का दूसरा कार्यकाल अप्रैल 2018 तक है। संसद के गलियारे में कुछ नेता तो इन माननीय को मौनी बाबा सांसद की संज्ञा देते सुने गये हैं। सूत्रों के अनुसार संसद की जिन समितियों के मुनकाद अली सदस्य रहे हैं उनकी बैठकों में भी वे कुछ बोलने का प्रयास नहीं करते।
यहां भी पदासीन  हैं माननीय
जब अप्रैल 2006 में पहली बार मुनकाद अली राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए तो उन्हें संसदीय परंपरा के तहत अप्रैल 2006-मई 2007 तक कृषि और ग्रामीण उद्योग मंत्रालय तथा लघु उद्योग मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनाया गया। इसके बाद मई 2007-मई 2009 तक वे सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। जनवरी 2009-मई 2009 और अगस्त 2009 और फिर अगस्त 2011 में रक्षा संबंधी समिति के सदस्य बने। अगस्त 2010-दिसंबर 2011 के बीच वे वक्फ (संशोधन) विधेयक-2010 संबंधी प्रवर समिति के सदस्य तथा अगस्त 2010 से फिर कृषि मंत्रालय हेतु परामर्शदात्री समिति के सदस्य बने। अप्रैल 2012 में फिर से राज्य सभा के लिए निर्वाचित होकर आए तो उन्हें मई 2012 से ग्रामीण विकास संबंधी समिति का सदस्य बनाया गया। हाल ही में संपन्न हुए सत्र में जीएसटी विधेयक पर बनी प्रवर समिति में भी मुनकाद अली को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।
17May-2015


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