रविवार, 10 मई 2015

आखिर भूमि विवाद की दशकों बाद खुलेगी गांठ

भारत-बांग्लादेश के भूमि सीमांकन पर ऐतिहासिक राह
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा संबन्धी विधेयक पर संसद की मुहर लगवाकर एक ऐसे एतिहासिक कूटनीति को परवान चढ़ाया है, जिसमें दक्षिण एशिया के दो पडोसी देशों के बीच सीमा विवाद की 41 साल पुरानी गांठ खुलने जा रही है। सरकार के इस कदम ने दोनों देशों के उन हजारों लोगों को पहचान मिलेगी, जो गुमनामी के माहौल में अपना जीवन जीते आ रहे थे।
भारतीय राजनीति में ऐसे मौके बहुत ही कम आते हैं जब मौजूदा केंद्र सरकार अपने काम का श्रेय पिछली सरकार को देती हो। लेकिन पिछले साल केंद्र की सत्ता संभालने के बाद राजग की मोदी सरकार ने ऐसा ऐतिहासिक क्षण सामने लाकर निरंतर आलोचना करते आ रहे विपक्षी दलों को अपनी कूटनीतिक रणनीति के जरिए धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। मसलन संसद के दोनों सदनों में भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा संबन्धी विवाद को सुलझाने वाले संविधान संशोधन विधेयक को पूर्ववर्ती सरकार के जस के तस मसौदे के रूप में ही पारित कराकर विपक्षी दलों की तल्खी का मिठास में बदला। वहीं दक्षिण एशिया में दो पडोसी देशों के रिश्तों को मजबूत करने की ऐसी नीवं भी रख दी, जो पिछले 41 साल से विवादों में उलझी हुई थी। मसलन इस संशोधन विधेयक के जरिए वर्ष 1974 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान के बीच दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को खत्म करने के लिए हुए समझौते और वर्ष 2011 में इस संबन्ध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच प्रोटोकॉल पर अमल हो सकेगा। सरकार की इस पहल से भूमि सीमा विवाद के सुलझने से ऐसे करीब 51 हजार लोगों को भी अपने-अपने देश की नागरिकता के रूप में पहचान मिलेगी, जो चार दशकों से गुमनामी का जीवन जी रहे थे।
भारत के लिए बांग्लादेश जरूरी
विदेश मामलों के विशेषज्ञ अफसर करीम ने केंद्र सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पडोसी देश बांग्लादेश से भारत के हालांकि अच्छे रिश्ते रहे हैं। फिर भी अब सीमा विवाद की तल्खी के मिठास में बदलने से उन सभी जरूरतों को दोनों देश एक दूसरे के बेहतर रिश्तों से पूरी कर सकेेंगे, जिनकी पडोस में चीन व पाक की बढ़ती दोस्ती के चलते दोनों देशों के लिए जरूरी भी हो गया था। भारत के लिए बांग्लादेश से बेहतर रिश्तों की समय की मांग बताते हुए करीम का मानना है कि इस कदम से दोनों देशों की सीमाओं के पुनर्निर्धारित होने से अवैध आप्रवासियों की समस्या पर बेहतर नियंत्रण हो सकेगा और अन्य आपराधिक गतिविधियों पर भी लगाम कसी जा सकेगी। दोनों पडोसी देशों के बीच भूमि विवाद के कारण ही भारत का सबसे महत्वपूर्ण अनसुलझा तीस्ता जैसी नदियों के पानी के बंटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। वहीं दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक तौर से भी सहयोग बढ़ना तय है। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का विवाद भी अंतरर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल के फैसले से बीते साल ही सुलझा लिया गया।
भारत के विभाजन में उलझी गुत्थी
विदेश मंत्रालय के अनुसार दोनों देशों के बीच विवादित भूखंडों के रूप में बांग्लादेश में भारत के 111 और भारत में बांग्लादेश के ऐसे 51 इन्क्लेव हैं यानि 162 भूखंडों में करीब 51 हजार लोगों की जिंदगी पटरी पर आने वाली है। ये इन्क्लेव 1947 में भारत के हुए विभाजन का नतीजा था। इन इन्क्लेवों में रहने वाले लोगों को फिलहाल किसी भी देश के नागरिक होने का अधिकार हासिल नहीं है। सदियों पहले राजाओं के जमाने में भी हुए जमीन के बंटवारे के कारण ऐसी स्थिति बनी थी। इस विवाद के सुलझने से भूमि के आदान-प्रदान में भारत को 2,777.038 एकड़ और बांग्लादेश को 2,267.682 एकड़ भूमि मिल सकेगी।
10May-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें