सोमवार, 4 मई 2015

ऐसे तो पूरा नहीं होगा स्‍वच्‍छ भारत मिशन।

बगैर संसाधनों की कमियों से बेखबर सरकार
-ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शौचालयों की स्थिति चिंताजनक
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत मिशन को पूरा करने के लक्ष्य पर संसद की एक समिति ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि संसाधनों की पहचान किये बिना यह मिशन पूरा होने वाला नहीं है। देश में ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में निर्माण के बावजूद 1.57 लाख शौचालयों के ठप्प पड़े होने पर भी समिति ने चिंता जताई है।
संसद की प्राक्कलन समिति की पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय से संबन्धित ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता कार्यक्रम की समीक्षा के बाद एक रिपोर्ट संसद में पेश की गई। इस रिपोर्ट में समिति ने साफ कहा कि संसाधनों की पहचान किए बगैर सरकार इस महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत मिशन को 2019 तक पूरा नहीं कर सकेगी। डा. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्ष्ता वाली इस संसदीय समिति ने सरकार से इस दिशा में कोष की व्यवहार्यता तलाशने की प्रक्रिया तेज करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिए प्रस्तावित स्रोतों से कोष की उपलब्धता को अंतिम रूप नहीं दिया है, जबकि मिशन के पूरा होने का समय इसने 2019 तय कर दिया। समिति ने माना कि संसाधनों की पहचान किए बगैर मिशन को पूरा करने के लिए समय सीमा तय करने या आंकड़ों का आकलन करने से न सिर्फ मिशन के लक्ष्य को पूरा करना असंभव होगा, बल्कि टाले नहीं जा सकने लायक एक अनिश्चितता भी बनी रहेगी। ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में सर्व शिक्षा अभियान और राष्टÑीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत विभिन्न राज्यों में शौचालयों, हैंडपंप और आवेरहैड टैंक के निर्माण की लागत मानव की स्वीकृति संसाधन विकास मंत्रालय देता है। इसके अनुसार शौचालयों के निर्माण की औसत लागत के आधार पर सुविधा रहित स्कूलों में नए शौचालयों का निर्माण कराने के लिए करीब 16 सौ करोड़ रुपये की अनुमानिम राशि की जरुरत होगी। समिति ने खुलासा किया कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में बने 1.57 लाख शौचालय ऐसे हैं जो सिविल निर्माण कार्य को नुकसान, जल आपूर्ति की कमी, शौचालयों में बाधित जल आपूर्ति,ओवरहैड वाटर टैंकों की कमी, स्कूलों में जलापूर्ति की रूकावट आदि कमियों के कारण पूरी तरह से ठप पड़े हुए हैं। समिति ने पाया कि सार्वजनिक शौचालयों के मामले में कम प्रगति सरकार के मिशन में रोड़ा बन रही है। समिति ने यह भी टिप्पणी की है कि देश में निर्मल किये गये और उपयोग में लाये जा रहे शौचालयों की संख्या का पता लगाने के लिए भी केेंद्र सरकार के पास कोई तंत्र नहीं है। यही कारण है कि ग्रामणी स्वच्छता संविधाएं प्रदान करने में अत्यंत खराब प्रगति बेहद चिंताजन है।
50 करोड़ ग्रामीण का खुले में शौच
समिति की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 75 करोड़ लोग रहते हैं, लेकिन इनमें से करीब 50 करोड़ लोगों के पास निजी शौचालय नहीं है, जिन्हें खुले में शौच करने को मजबूर होना पड़ रहा है। सरकार ने स्वयं भी स्वीकार किया है कि सार्वजनिक शौचालयें की संख्या 9.9 प्रतिशत और उनके भी रखरखाव की कमी आड़े आ रही है। गौरतलब है कि दो अक्टूबर 2014 को मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन आरंभ करके 2019 तक भारत को खुले में शौच करने से मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। इस संकल्प इस संकल्प की ओर सरकार का ध्यान दिलाते हुए समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के निर्माण और उपयोग के संबन्ध में विश्वसनीय माइक्रो और रीयल टाइम आंकड़ा प्राप्त करने की महत्वपूर्ण सिफारिश की है, ताकि इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाया जा सके। समिति ने सरकार से इच्छा जताई कि सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण और उनके रखरखाव की योजना में भागीदारी रणनीति के रूप में पंचायती राज संस्थाओं और गैर सरकारी संगठनों को मिशन में शामिल करना सुनिश्चित करे।
04May-2015

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