रविवार, 15 मई 2016

राग दरबार: सियासी तीरो का तरकश...


नितीश के निशाने पर मोदी 
देश की राजनीति शायद एक सरकस की तरह ही है, जिसमें कलाकार, तिगड़मगाज, जोकर जैसे पात्र दिखने लगे हैं। खसकर नरेन्द्र मोदी का पीएम बन जाना एसे स्यापो को बर्दाश्त नहीं? तभी तो अपने राज्य को संभाल नही पा रहे और सुशासन बाबू कहलाना पसंद करने वाले बिहार के सीएम नितीश कुमार भी दिल्ली के सीएम केजरीवाल की चाल पर हैं, ज्जिनके निशाने पर सिर्फ पीएम मोदी हैं? यूपी मिशन-2017 के महज एक बहाने से शायद नीतीश की नजर मिशन-2019 पर है। तभी तो बनारस में उन्होंने बतौर बानगी अपने तरकश के दो तीर दिखाए। पहला संघ मुक्त भारत और दूसरा शराब मुक्त भारत’ आरएसएस मुक्त भारत का उनका नारा 2019 के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत गढ़ा गया ही प्रतीत होता है यानि यह नारा देकर नितीश देश के दूसरेभाजपा विरोधी सेक्यूलर सूरमाओं को बौना बनाने की जुगत में हैं। हिंदी पट्टी में ज्यादातर राज्यों में भाजपा सरकारें हैं, जिनके लिए बिहार की तरह शराब बंदी लागू करना एक मुश्किल फैसला होगा। इसका सियासी कारण साफ है यदि भाजपा शासित राज्यों में शराब बंदी लागू करे, तो नितीश प्रेरक माने जाएंगे और यदि नही लागू करती तो नितीश नैतिक बढ़त और मध्यवर्ग व मजदूरपेशा परिवारों की महिलाओं का समर्थन हासिल करेंगे। नीतीश की इस सियासत को लेकर राजनीति गलियारों में चर्चा है कि ना शराब और ना संघ, नितीश के निशाने पर तो केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। तभी तो उन्होंने ठीक उसी तरह बनारस चुना, जिस प्रकार लोकसभा चुनाव में केजरीवाल वहां मुंह की खाकर वापस लैटे थे। नीतीश-केजरीवाल की जुगलबंदी उसी कहावत की तर्ज नजर आती है कि जो अपने दुख से नहीं, बल्कि दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी हैं और हसीन सपने देखना उनकी आदत में शुमार है, भले ही उनके तरकश में सियासी युद्ध लायक तीर ना हो। यही तो है जनता को भ्रर्मित करने की सियासत...।
बेनी-आजम की जोड़ी
बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए तो आजम खान ने राहत की सांस ली। बेनी बाबू के पार्टी में लौटने की घोषणा जब मुलायम सिंह यादव मंच से कर रहे थे तो आजम खान भी साथ बैठे हुए थे। दरअसल दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है वाला मामला है। इस पूरी कहानी में एक कड़ी ठाकुर अमर सिंह भी हैं। कभी ठाकुर साहब की सपा में तूती बोलती थी। हुआ ये कि 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में अमर सिंह ने बेनी बाबू के बेटे राकेश वर्मा की टिकट कटवा दी थी। इससे नाराज होकर कुर्मी नेता बेनी प्रसाद मुलायम का साथ छोड़ गये थे। उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के बाद मुलायम को खरी खोटी सुनाने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ा। इस सारी अदावत के पीछे अमर सिंह थे। समय बीता और एक दिन अमर सिंह को भी सपा से दूर होना पड़ा। अब बेनी को भी कांग्रेस में कोई फायदा नहीं दिख रहा था और मुलायम को भी अगले साल होने वाले यूपी चुनाव को जीतने की गर्ज है लिहाजा दोनों ने एक-दूसरे के साथ खड़े होने का मन बना लिया। बताया जा रहा है कि दोनों को मिलाने और गिले-शिकवे मिटाने में आजम खान ने बड़ी भूमिका निभायी। दरअसल आजम भी अमर सिंह से हद दर्जे की राजनैतिक दुश्मनी रखते हैं। अब बेनी बाबू भी अमर के खिलाफ आजम का साथ निभायेंगे। कहा जा रहा है कि नये समीकरणों के बीच अमर सिंह के वापस सपा में लौटने की कोशिशों को झटका लग सकता है।
कुछ यूं लगी पर्रिकर सर की आईआईटी क्लास
आईआईटी दिल्ली के छात्रों और फैकेल्टी के सदस्यों के लिए 11 मई (राष्ट्रीय तकनीक दिवस)का दिन बाकी दिनों से कुछ अलग नजर आया। क्योंकि  उनके बीच से ही आगे बढ़कर निकला एक छात्र आज लंबे अर्से के बाद उनके बीच अपने अनुभवों को साझा करने और उनके विचारों को सुनने के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आने वाला था। यह छात्र और कोई नहीं बल्कि देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर थे। उनके आगमन को लेकर आईआईटी दिल्ली के छात्र और फैकेल्टी सभी बेहद उत्साहित थे। पर्रिकर खुद भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के छात्र रह चुके हैं। कार्यक्रम में वो रक्षा मंत्री कम और एक आईआईटी के पूर्व छात्र की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे थे। इसका नजारा उन्होंने अपने आईआईटी बॉम्बे के अनुभव और वहां के तब के वातावरण का विस्तृत वर्णन  छात्रों के समक्ष पेश करके भी किया। इस देखकर ऐसा लग रहा था कि यह रक्षा मंत्री की आईआईटी छात्रों के साथ एक अनोखी  क्लास हो रही है ना कि उनका भाषण।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
15May-2016

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