शुक्रवार, 20 मई 2016

असम में होंगी सोनोवाल के सामने बड़ी चुनौतियां!

बांग्लादेशियों के मुद्दे ने बदली राज्य में राजनीतिक फिजां
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की राजनीति के इतिहास में पूर्वात्तर के असम राज्य में पहली बार सरकार बनाने जा रही भाजपा के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के सामने चुनौतियों का भी मकड़जाल होगा। राजनीतिकारों की माने तो राज्य में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ को लेकर वे हमेशा सख्त रहे है और शायद इसी के मुद्दे ने उनके नेतृत्व में लड़े गये विधानसभा चुनावों ने कामयाबी की पटकथा लिखी है।
असम में भाजपा की सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर जिस रणनीति से इन चुनावों में दस्तक दी, उसी का नतीजा माना जा रहा है कि भाजपा को अप्रत्याशित जीत हासिल हुई और उसे सोनोवाल के नेतृत्व में सरकार बनाने का मौका मिला। राज्य में सोनोवाल के सामने मुख्यमंत्री के रूप में जहां तक चुनौतियों का सवाल है, उनसे पार पाने की क्षमता भी असम के इस नेता में है, जो अपने सियासी सफर में निर्विवाद नेता रहे हैं, चाहे वह असमगण परिषद में रहे हो या अब भाजपा में। उनके छात्र नेता के रूप में भी बेदाग छवि रही है, जिसका सकारात्मक नतीजा उन्हें इस मुकाम तक ले गया है। राजनीतिकारों का कहना है कि सोनोवाल का भाजपा के अन्य नेताओं की तरह अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को लेकर जो सख्त रुख रहा है उन्होंने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक भी उठाया है। माना जा रहा है कि इसी कारण उनके नेतृत्व में भाजपा ने असम में एक नये सियासी सफर की पटकथा लिखी है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें हर तरफ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिकारों की माने तो असम में माजुली एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं के लिए हर रोज जूझना पड़ता है। मसलन ब्रह्मपुत्र नदी में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण कई बार यह क्षेत्र देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग हो जाना सबसे बड़ी चुनौती होगा।
घुसपैठ के डर का सबब
राजनीतिकारों की माने तो असम विधानसभा चुनाव के नतीजे जहां जनता के बदलाव का जनादेश माना जा रहा है, लेकिन यह भी हकीकत से दूर नहीं है कि पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेसी राज में असम के लोगों की राज्य में अवैध घुसपैठ के कारण बांग्लादेशियों की बढ़ती संख्या एक बड़ी चिंता का सबब थी। चूंकि इस मुद्दे पर सोनोवाल हमेशा सक्रिय होकर जनता के साथ रहे तो चुनाव में यह मुद्दो भाजपा के लिए सकारात्मक परिणाम का कारण बना। इस सियासी बदलाव को बांग्लादेशियों का डर भी कहा जा सकता है। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों में तेजी के साथ शुरू की गर्इी विकास की योजनाएं भी भाजपा को सत्ता तक ले जाना माना जा रहा है।
सार्क खेलों ने दी ऊर्जा
असम की जनता के बीच सर्बानंद सोनोवाल ऐसे नहीं छा गये। केंद्र की मोदी सरकार में खेल मंत्री होने के नाते उन्होंने पूर्वोत्तर में पहली बार सैफ खेल कराकर अपनी छाप छोड़ी, जिसके कारण राज्य में सियासत में उन्हें नई ऊर्जा मिली और उसके बाद ही भाजपा ने उन्हें राज्य के भाजपा संगठन की बागडौर सौंपना और फिर विधानसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करना उनकी सियासत की बुलंदियों का अहम हिस्सा माना जा रहा है। मसलन देश में आनंद होगा और असम में सवार्नंद। असम में चुनावी प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सोनोवाल के लिए हमेशा यही जुमला बार-बार सामने आया, जो चुनावी नतीजों में साबित भी हो गया।
20May-2016

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